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November 2018

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नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपको एक बहुत ही गंभीर विषय की जानकारी देने जा रही हूं। जी मैं यहां पर एक ऐसी बीमारी के बारे में बात करूंगा जिसे कई बार सुनना भी हम पसन्द नहीं करते।

 

यह बीमारी है एड्स, और जहाँ एड्स की बात आतु है यकीनन लोगों के दिमाग में एक और शब्द आता है और वो है एच आई वी। बहुत से लोग एड्स और एच आई वी को एक ही बीमारी मानते है, उन्हें इनके बीच का अंतर नहीं पता। जबकि ये दोनों ही अलग हैं। तो आइये जानते हैं एड्स और एच आई वी के बीच का अंतर।

मुख्य अंतर

एच आई वी का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस है जिसके सक्रंमण से इंसान के शरीर का इम्युनिटी सिस्टम प्रभावित हो जाता है। जबकि एड्स एक बीमारी है जो एच आई वी वायरस के सक्रंमण के कारण होती है।

 

हमारे शरीर में हानिकारक बीमारियों तथा कीटाणुओं से लड़ने के लिए एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र होता है। एच आई वी एक ऐसा वायरस है जो सीधे इस रक्षा तंत्र अर्थात इम्युनिटी सिस्टम को प्रभावित करता है, जिससे इंसान की अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है।

एड्स का परिणाम

एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम है। यह एक प्रकार की बीमारी है जो तब होती है जब इंसान का इम्युनिटी सिस्टम पूरी तरह से खराब हो चुका होता है। एड्स की बीमारी व्यक्ति के शरीर में शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बिल्कुल खत्म कर देती है। यही कारण है कि लोग अक्सर इस बीमारी के बाद खुद को अन्य रोगों का शिकार होने से नहीं बचा पाते। पूरे विश्व मे 1 दिसंबर को एड्स दिवस के रूप में जाना जाता है। एड्स दिवस का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में लोगों को एच आई वी वायरस तथा इस से होने वाली एड्स नामक खतरनाक बीमारी के प्रति जागरूक करना है।

एच आई वी का इम्यून सिस्टम पर प्रभाव

हमारे शरीर में रोगों से बचने के लिए एक रक्षा तन्त्र होता है जो इस कार्य के लिए सफेद कोशिकाओं का प्रयोग करता है। किंतु एच आई वी सफेद कोशिकाओं के साथ-साथ CD4 को भी प्रभावित करता है। CD4 एक ग्लाइकोप्रोटीन होता है जो इम्यून सिस्टम में सफेद कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है। एच आई वी इन्फ़ेक्शन इन कोशिकाओं के नष्ट होने से होता है जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं पता चला है।

 

एच आई वी का एड्स में बदलना

एड्स की बीमारी के कोई मुख्य लक्षण नहीं होते तथा यह अन्य किसी बीमारी के कारण नहीं होता है। यह एच आई वी सक्रंमण का परिणाम होता है और जब यह वायरस इम्यून सिस्टम को नष्ट कर देता है तो उस अवस्था को हम एड्स कहते हैं। एड्स की वजह से वजन कम होना, सिरदर्द होना तथा अन्य शारिरिक और मानसिक शिकायतें हो सकती हैं। एड्स प्रभावित व्यक्ति को किसी भी तरह का रोग आसानी से लग जाता है क्योंकि उस समय व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह नष्ट हो चुकी होती है।

 

अंत में मैं आप सब से यह कहना चाहूंगी कि आप सभी इस बीमारी से सावधान रहें तथा किसी भी प्रकार के सक्रंमण से बचें क्योंकि सावधानी में ही समझदारी है।
हमारे बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते थे कि खुशियां हमेशा बांटने से बढती हैं और वो खुशियां जब किसी के चेहरे की मुस्कान बनती हैं तो दिल को एक सुकून मिलता है।
जी हां कुछ ऐसा ही नज़ारा बीती 23 नवम्बर को देखने को मिला एक सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित किये गए एक समागम में। यह समागम उस संस्था के संस्थापक के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था।
यह जन्मोत्सव किसी आम जन्मोत्सव की तरह नहीं था तथा न ही यह आम तरीके से मनाया गया।
तो आइए जानते हैं कि कौनसी संस्था है यह और ऐसा क्या किया उन्हों इस जन्मोत्सव के अवसर पर।
सर्व-धर्म संगम:
जी जिस संस्था की हम बात कर रहे हैं वह कोई छोटी नहीं बल्कि बहुत बड़ी सामाजिक संस्था है जो पिछले कई वर्षों से समाज के हित में कार्य करती आ रही है। इस संस्था का नाम है, डेरा सच्चा सौदा। डेरा सच्चा सौदा एक ऐसी सामाजिक संस्था है जहाँ जातिवाद और पक्षपात की कोई जगह नहीं है। देर सच्चा सौदा में सभी धर्मों को एक समान माना जाता है तथा सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है।
यहां कोई भी धर्म का इंसान आ सकता है।
सामाजिक कार्यों की शृंखला:
डेरा सच्चा सौदा द्वारा किए जाने वाले सामाजिक कार्यों की सूची बहुत लंबी है। करीबन 133 सामाजिक कार्य इस संस्था द्वारा शुरू किए जा चुके हैं। इसी सूची के अंतर्गत गत 23 नवम्बर को देर सच्चा सौदा द्वारा आश्रम में खूनदान शिविर तथा मुफ़्त चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया जिसमें लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर रक्तदान किया। डेरा श्रद्धालुओं द्वारा जरूरतमंद लोगों में राशन भी वितरित किया गया तथा विकलांग लोगों को फ्री ट्राइसाइकिल भी दी गयी।
इतना ही नहीं डेरा श्रद्धालुओं द्वारा पूरे भारत के अन्य स्थानों पर भी इस अवसर पर जरूरतमंद परिवारों को राशन तथा गरीब व अनाथ बच्चों को पुस्तकें, कपड़े तथा खिलौने वितरित किए गए।
मदद के पीछे मकसद:
जब डेरा श्रद्धालुओं से उनके इन कार्यों की वजह पूछी गयी तो उन्होंने बताया कि ये सामाजिक कार्य वे लोग अपने आध्यात्मिक गुरु सन्त गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसा की बताई गई शिक्षा के अनुसार करते हैं। इन कार्यों को करने के पीछे उनका मकसद केवल समाज मे अच्छाई तथा सच्चाई को बढ़ावा देना है। वे लोग ये सब इसलिए करते हैं ताकि समाज मे इंसानियत हमेशा जिंदा रहे। उनका मकसद सिर्फ अपने देश और धरती माँ की रक्षा करना है और इसके लिए वे हमेशा कोशिश करते रहेंगे।
निष्कर्ष:
बात सिर्फ डेरा श्रद्धालुओं की नहीं है, बल्कि उनके द्वारा समझी गयी समाज के प्रति जिमेवारी की है।
इंसान चाहे कोई भी उसे सदैव अपने समाज तथा अपने देश के हित में ही कार्य करने चाहिए, जिससे हमारी आने वाली पीढियों का भविष्य सुरक्षित रहे।
अपने साथ साथ, समाज मे रहने वाले और लोगों कर हित में सोचना भी न केवल हमारा फ़र्ज़ है बल्कि हमारा धर्म भी है।
दोस्तों, हमारे समाज के मुख्य चार धर्मों में से एक धर्म सिख धर्म है जिसकी शुरुआत श्री गुरु नानक देव जी ने की| सिखों के पहले गुरु कहे जाने वाले गुरु नानक देव जी का जन्म हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है| यह प्रकाश पर्व न सिर्फ सिख धर्म के लोगों के लिए मायने रखता है अपितु हिन्दू धर्म के लोगों में इसकी खास एहमियत है| प्रकाश पर्व को गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है और इस साल यह प्रकाश पर्व 23 नवम्बर को मनाया जा रहा है|

 

गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व:

गुरु नानक देव जी सिखों के सबसे पहले गुरु होने के साथ साथ एक अत्यंत ज्ञानी महापुरुष और मार्गदर्शक भी थे| उन्होंने न केवल लोगों में एकता का सन्देश दिया अपितु इंसानियत का भी संचार किया| गुरु नानक देव जी एक शांत व्यक्तित्व के स्वामी थे| गुरु नानक देव जी अपने प्रवचनों द्वारा सभी को सद्भावना तथा एकता का सन्देश देते थे| प्रकाश पर्व के इस पवन उत्सव पर आज भी उनके दिए गये उपदेशों को याद किया जाता है|

 

गुरु नानक जी द्वारा दिए गये मुख्य उपदेश:

गुरु नानक देव जी ने ‘इक ओंकार’ का नारा दिया जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और हर जगह मौजूद है| हम सभी के परम पिता एक ही हैं, इसलिए हमे सब क साथ प्रेम से रहना चाहिए|

 

गुरु नानक देव जी ने हमेशा लोगों को हक़ हलाल की कमाई कर के खाने का उपदेश दिया| उन्होंने कहा था की इन्सान को सदा मेहनत कर के ही अपना गुजरा करना चाहिए न की कभी किसी का हक मार लार खाना चाहिए| उन्होंने सम्पूर्ण मानवजाति को न्यायपूर्वक उचित तरीके से धन कमाने का सन्देश दिया तथा कभी भी किसी लोभ में न पड़ने के लिए समझाया| गुरु जी ने हमेशा जरुरतमंदो की यथासम्भव सहायता करने का भी सन्देश दिया|

 

गुरु जी जातिवाद के सख्त खिलाफ थे, उन्होंने सभी से एकता, भाइचारे तथा प्रेम से रहने का अनुरोध किया| उन्होंने उपदेश दिया की कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए तथा एसी कोई भी बात किसी को नहीं कहनी चाहिए जिससे उसका हृदय दुखी हो क्योंकि हम सब एक परमात्मा की सन्तान है और यदि कोई किसी का दिल दुखाता है तो ये ईश्वर के दिल को दुखाने जेसा है| गुरु जी ने सन्देश दिया की स्त्री तथा पुरुष एक समान है इसलिए सभी को नारीत्व का सम्मान करना चाहिए| उन्होंने बताया की इन्सान को कभी भी अपने जीवन में चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तनाव तथा चिंता मनुष्य के व्यक्तिव पर बुरा प्रभाव डालते है| इन्सान को सदैव प्रसन्नचित हृदय रखना चाहिए|

 

गुरु जी ने उपदेश दिया था की व्यक्ति संसार को तभी जीत सकता है जब वह अपने अंदर को बुराइयों से लड़ कर उनपर विजय हासिल करे| कोई भी इन्सान जब तक खुद को अंतर्मन से स्थिर नहीं बनाएगा तब तक वह अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता| इन्सान को कभी भी अपने मन में अहंकार को जगह नहीं देनी चाहिए क्योंकि अहंकार ही इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन है जो इन्सान को अच्छाई के मार्ग पर आगे बढने से रोकता है| गुरुनानक देव जी पुरे संसार को एक परिवार की भांति मानते थे तथा सबसे अनुरोध करते थे की आपस में प्यार से मिलकर रहें|

निष्कर्ष:

धर्म चाहे कोई भी हो, भगवन को मानने वाले तथा उस से मिलने का रास्ता दिखने वाले फ़क़ीर तथा गुरु हमेशा सच्चाई तथा अच्छाई को अपनाने का सन्देश देते हैं| तो आइये हम सब मिलकर इस प्रकाश पर्व पर प्रण लें की हम सभी एक दुसरे के हित में सोकहेंगे तथा अपने अंदर की बुराइयों को त्याग कर एक सच्चे इन्सान बनेंगे|

बाजारों की चहल-पहल , घरों की मनोहर सजावट व लोगों के चेहरे की रौनक …..’इन दिनों तो मानो हवा में भी उत्सवों की महक घुली हो’। भारतवर्ष में साल भर त्योहारों की जो अनोखी छटा देखने को मिलती है वह कहीं और कहां। प्रेम तथा भाईचारे का संदेश देते हुए त्यौहार हमें जीवन के सही अर्थ समझाते हैं।

इन्ही में से एक है..”भाई-दूज” । जी हाँ, प्राचीन समय से भाई बहन के प्रेम को प्रकट करता यह त्यौहार अपने आप मे बहुत विशेष है।वैसे तो बहन सदैव ही अपने भाई की लम्बी आयु व स्वस्थ जीवन की कामना करती है, परन्तु कहा जाता है कि भाई-दूज पर भाई के लिए की गई प्रार्थना जरूर फलिभूत होती है।

कब मनाया जाता है भाई-दूज : 

मित्रों ! दीपावली के दो दिन बाद अर्थात कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।हिन्दू धर्मानुसार यह यम द्वितीय तथा भ्रातृ द्वितीय आदि नामों से भी प्रचलित है।h

क्या है भाई-दूज मनाने का उद्देश्य : 

भ्रातृ द्वितीय का उद्देश्य भाई बहन के प्रेम को प्रगाढ करना है।इस दिन एक ओर जहां बहनें भाई की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं वहीं भाई भी उनकी सम्रद्धि व खुशहाली की कामना करते हैं।

क्या है भ्रातृ द्वितीय मनाने की विधि: 

इस दिन धार्मिक प्रथा अनुसार  चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृतिया बना कर उनमें जल,फल,सिंदूर,पान ,इलायची व जायफल आदि रखे जाते हैं।जिसके बाद भाई को शुभासन पर बिठा कर उनके हाथ पैर धुलाये जाते हैं तथा तिलक लगा कर आरती उतारी जाती है। तत्पश्चात उनकी लम्बी आयु व समृद्धि की प्रार्थना करते हुए उन्हे स्नेहपूर्वक भोजन कराया जाता है।इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है।भाई- दूज पर बहन, भाई को भोजन कराने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है।

भाई-दूज की कथा :

भगवान सूर्य नारायण व माता छाया की दो सन्ताने थी, यमराज तथा यमुना । दोनों में अत्यंत स्नेह था।विवाह पश्चात यमुना बार बार भ्राता यम को भोजन पर आने के लिए निवेदन करती थी।परंतु बहुत व्यस्त होने के कारण यम उनका निमंत्रण स्वीकार नही कर पाते थे।

एक बार यमुना ने यमराज को निमंत्रण दे कर वचनबद्ध कर लिया तथा यम ने सहर्ष इसे स्वीकार भी किया। यम यह सोच कर बहुत खुश थे कि प्राण हरण के डर से उन्हे कोई भी घर बुलाना नही चाहता, परन्तु बहन इतने स्नेह से उन्हें  आमंत्रित कर रही है।

वे इतने हर्षित थे कि बहन के घर आते समय उन्होने सभी नर्कवासी जीवों को मुक्ति दे दी। यमुना ने यह दिवस उत्सव की भांति मनाया।भाई का पूजन कर प्रेमपूर्वक ,अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से उन्हे प्रसन्न किया। खुश हो कर जब यमराज ने उन्हे कोई वर मांगने का आदेश दिया तो यमुना बोली , ” भ्राता ! आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आएं तथा  मेरी तरह जो भी बहन आज के दिन भाई का टीका सत्कार करे ,उसके भाई को तुम्हारा भय न हो।

तब यमराज ने तथास्तु कहकर उनका वचन स्वीकार कर लिया। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय का दिन था।तभी से भाई-दूज मनाया जाने लगा ।इस दिन विशेष रूप से यम तथा यमुना की पूजा की जाती है।

 

भाई -दूज के उपहार :यह भाई बहनों का विशेष त्यौहार है , इस दिन भाई-बहन दोनो ही एक दूसरे को अपने सामर्थ्य अनुसार उपहार देते हैं।हर बार यह पर्व भाई बहन के प्रेम को ओर अधिक प्रगाढ कर देता है।

हर बहन की भाई दूज पे एक ही आस   

भाई तुम खुश रहो,लम्बी आयु हो तुम्हारी

हमारा प्रेम यूँ ही बढ़ता जाए,हो किस्मत तुम्हारी सुनहरी…..

क्या है धनतेरस

धनतेरस का शाब्दिक अर्थ है धन और तेरा (13)। इसका मतलब है धन के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है धनतेरस जो कार्तिक महीने के 13वें दिन होता है।

 

धनतेरस उत्सव

धनतेरस के त्योहार को महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार पर, लोग धन की देवी लक्ष्मी जी और मृत्यु के देवता यम की पूजा करते हैं, भगवान यम से अच्छे स्वास्थ्य और देवी लक्ष्मी से समृद्धि के रूप में आशीर्वाद प्राप्त करते है। लोग अपने घरों और कार्यालयों को सजाते है।

 

सभी अपने घर आँगन के प्रवेश द्वार को सजाने के लिए लोग रंगीन रंगोलियां बनाकर सजावट करते है । चावल के आटे और सिंदूर से लक्ष्मी जी के छोटे पैरों के निशान बनाये जाते हैं जो कि देवी लक्ष्मी के लंबे समय से प्रतीक्षित आगमन का संकेत होता है। धनतेरस पर सोने या चांदी जैसी कीमती धातुओं से बने नए बर्तन या सिक्के खरीदना बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह शुभ माना जाता है और यह हमारे परिवार के लिये सुख सम्रद्धि और अच्छा भाग्य लाता है।

 

धन तेरस की पूजा

 

धनतेरस के दिन शाम को ‘लक्ष्मी जी की पूजा’ के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। देवी लक्ष्मी जी के लिए लोग भक्ति गीत गाते हैं। सभी दुखों को दूर करने के लिए छोटे-छोटे दीपक जलाते है। धनतेरस की रात, लोग पूरी रातभर के लिए दीपक को जलाते हैं। पारंपरिक मिठाई पकायी जाती हैं और देवी माँ को प्रसाद समर्पित किया जाता हैं।

 

धनतेरस पर कहानी

एक  कथा के अनुसार प्राचीन समय में हेम नाम के एक राजा रहता था. विवाह के कई सालो बाद उसकी एक संतान हुई. जब ज्योतिषियों ने बालक देखी तो पता चला की राजकुमार के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी. यह बात जानकार राजा और रानी बहुत दुखी हो गए. धीरे धीरे समय बितता गया और राजकुमार ने गन्धर्व विवाह कर लिया.

 

विवाह के चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने लेकर चले गए लेकिन राजकुमार की पत्नी के शोक विलाप को देखकर उन्होंने यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इंसानों की अकाल मृत्यु न हो सके.  यमराज ने इसका उपाय बताते हुए कहा की  कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात को जो मनुष्य   दक्षिण दिशा की और दीप जलाएगा वो अकाल मृत्यु से बच सकता है. तभी से धनतेरस (Dhanteras) के दिन दीया जलने की परम्परा की शुरुआत हुई.

धनतेरस 2018 में क्या ख़रीदे?

1.शंख खरीदना:- पुरानी कथाओ के अनुसार इस दिन दक्षणीवर्ती शंख खरीदना अच्छा माना जाता है |
2.रूद्राक्ष खरीदना:- कुछ लोग इस दिन रूदाक्ष की माला भी खरीदते है |

 

3.लोहा खरीदने का शुभ दिन:- लोहा खरीदने का शुभ दिन धन तेरस को ही माना गया है|
4.बर्तन खरीदना:- इस दिन बर्तन खरीदने को शुभ माना जाता है |

 

 

5.चांदी की खरीदारी:- इस दिन चांदी भी खरीदना शुभ माना जाता है | प्रचीन प्रथा के अनुसार चांदी चाँद का प्रतीक होती है जिस से शीतलता प्राप्त होती है इसलिए इसको लाना शुभ होता है |

 

6.सोना खरीदना:-इस दिन सोने को भी खरदीना अच्छा होता है |

 

 

7.गाय को सजाना:- इस दिन दक्षिण भारत के कुछ लोग गायों को भी सजाते है क्योंकी गाय लक्ष्मी का रूप मानी जाती है |

 

बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है। इसलिए धनतेरस के दिन अब बर्तनों और आभूषणों के आलावा वाहन, मोबाइल आदि भी ख़रीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग इस दिन कम्पूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।

 

मगर सच्चे संत फरमाते हैं इस दिन हमें दुनियाभी वस्तुएं न खरीद कर  गरीबों की मदद करके ,उनके बच्चों को नऐ कपडे और मिठाई दिलाकर रुहानी दौलत खरीदनी चाहिए।