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February 2019

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डेरा सच्चा सौदा

डेरा सच्चा सौदा एक रूहानी कालेज है। यहां पर इन्सानियत का सच्चा पाठ पढ़ाया जाता है। डेरा सच्चा सौदा 1948 में शुरू हुआ था। शहंशाह मस्ताना जी नाम के एक धार्मिक गुरू ने एक झोपड़ी से आध्यात्मिक कार्यक्रमों और सत्संगों का आयोजन करके इसकी शुरुआत की थी। समय के साथ साथ डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। शाह मस्ताना जी महाराज के बाद डेरा के प्रमुख शाह सतनाम जी महाराज बने। 1990 में उन्होंने अपने अनुयायी संत गुरमीत सिंह को गुरगद्दी सौंपी। हरियाणा के सिरसा जिला में डेरा सच्चा सौदा का आश्रम 70 सालों से चल रहा है और इसका साम्राज्य अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से लेकर ऑस्ट्रेलिया और यूएई तक फैला है। इस संगठन के अनुयायियों में सिख धर्म के लोग, हिंदू धर्म के अनुयायी, इसाई, मुसलमान और पिछड़े और दलित वर्गों के सभी लोग शामिल हैं। डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म संगम के लिए जाना जाता है।

आज हम बात करते हैं डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही शाह सतनाम सिंह जी महाराज के बारे में, जिनको 28 फरवरी 1960 को मस्ताना जी के द्वारा गुरु गद्दी सौंपी गई थी। इस दिन को इनके अनुयायी महारहमोकर्म दिवस के रूप में मनाते हैं। आइए जानें आज उनकी जीवनी के बारे में।

शाह सतनाम सिंह जी की जीवनी

शाह सतनाम सिंह जी का जन्म 25 जनवरी 1919 में उनके ननिहाल में हुआ। इनका बचपन में नाम सरदार हरबंस सिंह था। इनकी माता जी का नाम आस कौर जी और पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी था। वे जलालआणा साहिब गांव के रहने वाले थे। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव जलालआणा साहिब में ही प्राप्त की। इसके आगे मैट्रिक तक की पढ़ाई कालांवाली मण्डी में की। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिऐ उन्होंने बठिंडा में दाखिला ले लिया, मगर अपनी माता जी का दिल न लगने की वजह से वो पढ़ाई बीच में छोड़ कर आ गए। फिर इनकी शादी कर दी गई। 14 मार्च 1954 में इन्होंने मस्ताना जी महाराज से नाम शब्द की प्राप्ति की।

गुरुगद्दी की प्राप्ति और गुरु के लिए कुरबानी

मस्ताना जी महाराज ने चोला बदलने से पहले गुरुगद्दी के लिए एक सच्चे व्यक्ति की खोज करनी शुरू कर दी। खोज पूरी होने के बाद आखिरकार सरदार हरबंस सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गुरुगद्दी नशीन के लिए चुना गया। खोज के दौरान इनकी परीक्षा ली गई। यह हर परीक्षा में सफल होते गए। गुरु के प्यार में इन्होंने अपने ही हाथों से अपना ही घर तोड़ कर घर का सारा सामान बाँट दिया और अपना सर्वस्व गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया।

28 फरवरी 1960 को इनको मस्ताना जी के द्वारा गुरुगद्दी पर विराजमान कर दिया गया और उसी समय इनका नाम सरदार हरबंस सिंह से शाह सतनाम सिंह जी कर दिया गया। इस दिन को इनके अनुयायी महारहमोकरम दिवस के रूप में मनाते हैं।

जीवोद्धार् यात्रा

अपनी जीवोद्धार् यात्रा के दौरान उन्होंने 4142 सत्संग किए और 1,110,630 जीवों को नाम शब्द देकर भवसागर से पार किया।

सत्संगों के दौरान उन्होंने लोगों को झूठे रीति रिवाजों, कुरीतियों और पाखंडों से निकाल कर सच्ची इन्सानियत का पाठ पढ़ाया।

इन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, दहेज प्रथा को रोकना, नशे आदि जैसी कुरितियों से लोगों को दूर किया। इन्होंने सभी से प्रेम करना, सच्चा दान, इन्सानियत, प्रभु भक्ति आदि की शिक्षाऐं प्रदान की।

अंत में वो 23 सितंबर 1990 को मौजूदा गद्दीनशीन संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरुगद्दी पर बिठा कर 13 दिसंबर 1991 को ज्योति ज्योत समा गए।

जैसा कि हम पिछले कुछ आर्टिकल में पढ़ चुके हैं कि कैसे इनके अनुयायियों ने जनवरी का महीना अपने गुरु शाह सतनाम सिंह जी के जन्ममाह को मानवता भलाई के कार्य करके मनाया। क्या इनके अनुयायी इस महारहमोकरम माह को भी ऐसे ही मना रहे हैं? जानने के लिए इंतजार करिए हमारे अगले आर्टिकल का।

जम्मू-कश्मीर स्थित पुलावामा में गुरुवार को CRPF के जवानों पर हुए आतंकी हमले से सारा देश शोक में डूबा हुआ हैं। सूत्रों के अनुसार इस आतंकवादी हमले में करीब 38 जवान शहीद हुए हैं और 44 जवान घायल हो चुके हैं।

 

ये हमला 2016 में उरी में हुए हमले के बाद अब तक का सबसे भीषण आतंकवादी हमला है, जिसमें हमारे देश के 40 जवान शहीद हुए हैं।

 

जानकारी के अनुसार हमला जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर स्थित अवंतिपोरा इलाके में करीब अपराह्न 3 बजे हुआ जब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 2500 कर्मी 78 वाहनों के काफिले में जा रहे थे। इनमें से अधिकतर जवान अपनी छुटियाँ बिताकर ड्यूटी पर लौट रहे थे।

 

ये आंतकवादी हमला एक साजिश के तहत घात लगाकर हुआ जिसमें जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन के एक सुसाइड बॉमर ने विस्फोतकों से भरे एक ट्रक से CRPF जवानों से भरी बस को टक्कर मार दी, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए।
हमले को मद्देनजर रखते हुए शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों पर केबिनेट समिति की बैठक भी हुई। इस बैठक में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, तीनों सेनाध्यक्ष और CRPF के डीजी भी शामिल थे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि आगे की करवाई के लिए समय, स्थिति तथा कारवाई का स्वरूप निर्धारित करने की सेना को पूर्ण रूप से इजाज़त दे दी गई है। बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि पाकिस्तान से मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा भी वापिस ले लिया जाएगा।

 

सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया जाएगा।
देश में हर जगह पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन के इस जघन्य कृत्य की कड़ी निंदा की जा रही है। हर जगह शोक का माहौल है।

 

गृह मंत्री राजनाथ सिंह सैनिकों को श्रद्धांजलि देने श्रीनगर पहुंचे। गृह मंत्री ने बड़गाम में एक जवान के पार्थिव शरीर को कंधा भी दिया।

 

हमले के बाद से ही सभी देशवासियों में खासा रोष है तथा सभी इस हमले के जवाब में सरकार व सेना से कड़े एक्शन व बदले की उम्मीद कर रहे हैं।

एक मुलाकात जो छोड़ गई गंभीर सवाल….

गर्मी की छुट्टियां बिताने निवेदिता काफी अरसे के बाद अपनी 12 वर्षीय बेटी देवांशी के साथ अपने पीहर पालमपुर आ रही थी। मरांदा रेलवे स्टेशन पर पांव पडते ही एक अलग सी रौनक उसके चेहरे पर आ गई। दिवांशी को साथ लेकर उसनें कदम टैक्सी स्टैण्ड की तरफ बडाऐ, तभी एक बेहद अपनी सी आवाज ने उसे पुकारा। रेलवे स्टेशन पर गाडिय़ों और आते-जाते लोगों के शोर के बीच उस अपनी सी आवाज को सुनकर निवेदिता के कदम वहीं रुके और अपनी बचपन की सबसे प्रिय सहेली सागरिका को सामने पाकर उसकी आखें सहसा चमक उठी। उसके मस्तिष्क पटल पर वो ‘घुग्गर स्कूल की पढाई’, वो ‘गोबिंद की मिठाई’, वो ‘शर्मा की कुल्फी’, वो कालेज की टिक्की’, वो ‘न्यूगल कैफे की हवा’ सब यादें एक साथ तस्वीर बन गऐ।

निवेदिता ने सागरिका को आलंगिन मे लिया और अपनी बेटी को उसका परिचय देते हुऐ कहने लगी, ये है मेरे बचपन की ‘बेस्टी’ और दोनों सहेलियां खिल-खिलाकर हंस पडी। सागरिका ने भी दिवांशी को प्यार दिया। सागरिका की शादी पालमपुर मे ही हुई थी और उसका ससुराल निवेदिता के घर के पास ही था, इसलिए दोनों ने एक ही टैक्सी लेने का मन बनाया ताकिं कुछ वक्त साथ मे बिताया जा सके।

चूंकि दोनो सहेलियां एक अरसे बाद मिल रही थी तो दोनों ने एक दूसरे के परिवार के बारे मे जानने के लिए उत्सुकता दिखाई। सागरिका के परिवार मे उसके पति और तीन बच्चे हैं। निवेदिता ने बताया वह अपने सास-ससुर, पति और बेटी के साथ नई दिल्ली मे रहती है, यह जानकर हैरानी भरे भाव से सागरिका ने पूछा, अच्छा तो फैमिली कब पूरी कर रही हो? निवेदिता उसकी हैरानी की वजह समझ चुकी थी, पर फिर भी मुस्कराहट के साथ जवाब देते हुऐ कहने लगी, परिवार तो पूरा ही है और हम सब खुशी से अपनी जिदंगी व्यतीत कर रहें है। “अरे तुम समझी नहीं, मेरा मतलब तुम्हारा वंश….? निवेदिता का जवाब फिर से एक सहज मुस्कराहट के साथ था “हमारी बेटी बढाऐगी हमारा वंश”। और इस बात का व्यावहारिक तौर पर क्या अधार है? सागरिका एक के बाद एक प्रश्नो के साथ तैयार थी।

अब बारी निवेदिता की थी वो सागरिका के सारे सवालों को सतुंष्ट करे। निवेदिता ने बताया कि उसके पति अनुराग हरियाणा के एक संत बाबा राम रहीम के अनुयायी है और वो उन्हीं के साथ एक बार… । उसकी बात को काटती हुई सागरिका बोली वोही बाबा राम रहीम जिनके बारे मे गत 1-2 सालों से मीडिया काफी कुछ दिखा रहा है, क्या तुम्हारे पति अब भी उनके अनुयायी हैं? निवेदिता ने कहा हां अब भी, और सिर्फ वो ही नही, मैं भी उनको अपना गुरु मानती हूँ।

सागरिका ने कहा आज तुम मुझे क्यों बार बार हैरान किए जा रही हो, जिस निवेदिता को मैं बचपन से जानती हूँ वो तो एकदम नास्तिक, तर्कशील सोच, वैज्ञानिक द्रष्टिकोण रखने वाली निवेदिता थी। तुम कब से बाबाओं और संतो की बात करने लगी। जब से अनुराग जी के साथ बाबा जी के आश्रम मे जाने का मौका मिला, निवेदिता का जवाब था। अपनी बात को पूरा करते हुए निवेदिता बोली बाबा राम रहीम सिर्फ एक आध्यात्मिक गुरु नहीं हैं, बल्कि एक समाज सुधारक भी हैं। धर्म के सच्चे अर्थों को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से इतनी सरलता से आमजन तक पहुंचाने वाले और ‘नर सेवा नरायण सेवा’ को यथार्थ रुप देने वाले एक सच्चे और सहासपूर्ण संत हैं। उनकी परहित की सोच ने उसे बहुत प्रभावित किया।

बाबा राम रहीम द्वारा चलाऐ मानवता भलाई कार्यों के एक लंबी सूची है जिसमें से एक है ‘कुल का क्राउन‘, जिसके तहत जिन माता पिता के इकलौती संतान बेटी है, वो शादी कर के लडके को अपने माता पिता के घर लाऐगी और ऐसी शादी से हुई संतान का नाम उसके माता पिता के नाम से होगा, तांकि उनका वंश आगे बढाया जा सके। और बाबा जी की प्ररेणा से ऐसे बहुत से लडके आगे आऐ हैं जो लडकी के मां-बाप को अपने मां-बाप के समान समझ कर उनका हर तरह से सहारा बन कर साथ रहेंगे। समाज मे भी इस नई सोच को सहारा गया हैं और इस मुहिम के तहत अब तक कई शादियां भी सम्पन्न हुई हैं।

मेरी दिवांशी भी हमारे कुल का दीपक नहीं ‘ताज’ बनेगी। निवेदिता की बातों से सागरिका के मन मे एक बेहद सकरात्मक समाज की तस्वीर बन रही थी। जिन बाबा राम रहीम के बारे वो मीडिया से ने जाने क्या कुछ अनाप शनाप सुन चुकी थी, आज उनकी सच्चाई जान कर वो उनसें काफी प्रभावित थी, वह बाबा जी और उनके मानवता भलाई के कार्यों के बारे मे और जानना चाहती थी, लेकिन निवेदिता का घर आ चुका था और जिदंगी के रुझानो के चलते अगली मुलाकात अनिश्चित थी।

सागरिका निवेदिता को तो अलविदा कह चुकी थी लेकिन अपने मन मै पैदा हुऐ सवालों की उत्सुकता को अलविदा न कह पाई, बाबा राम रहीम जैसे सच्चे संत जो समाज को सही राह दिखाते है, परहित के कार्य करते हैं आखिर उन्हें क्यों विरोध और यातनाएं सहनी पडती हैं? अगर सागरिका के सवालों का जवाब आपके पास हो तो हमे बताऐगा जरूर कमेंट बॉक्स मे।

 

हम बात कर रहे हैं सूरजकुंड मेले की, जो कि हर बार की तरह इस बार भी भरपूर जोश और उत्साह से पूर्ण है। अनेकों लोग यहां दूर दूर से अपनी कला से बनाया हुआ सामान बिक्री के लिए लाये हैं। अनेकों लोग यहां घूमने आये हुए हैं। इन्हीं अनेकों लोगों की तरह ही एक इंसान (जिसकी बात आपको बताने लगे हैं) मेला देखने आया था। मेले में आकर वो एक स्टॉल पर गया और सारी स्टॉल खरीद डाली। स्टॉल के इंचार्ज और अन्य लोगों के बीच ये बहुत बड़ा चर्चा का विषय बन गया क्योंकि कुल बिल 60 हज़ार के पास था। हुआ यूँ की मेले में पहुँच कर सोनू कुमार को पता लगा की जैसे अन्य कई जगहों से सामान बिक्री के लिए आया है, वैसे ही हरियाणा की जेलों से भी सामान आया है, इसी बीच उसकी नज़र उस स्टॉल पर पड़ी जहां पर रोहतक की सुनारिया जेल में बना हुआ सामान बिक्री के लिए पड़ा था। उसने उस स्टॉल पर जाकर सारा सामान खरीदने का आर्डर दे डाला। स्टॉल पर मौजूद इंचार्ज और अन्य लोगों की हैरानी की कोई सीमा नहीं रही क्योंकि उस सामान में कुर्सी, टेबल, फ्रूट टोकरी, आदि थे जिनकी सोनू जी को जरूरत भी नहीं थी।

Surajkund Mela

जब इस बारे में इस व्यक्ति से बात की गई तो उसने पूछे जाने पर बताया कि जिस सामान की उनको जरूरत नहीं, वो भी इसलिए खरीदा है क्योंकि यह सामान सुनारिया जेल से आया है। उसने बताया कि वो डेरा सच्चा सौदा का श्रद्धालु है और इस वक़्त उनके गुरूजी सुनारिया जेल में हैं, इसी श्रद्धा भावना के चलते उसने सुनारिया जेल से आया सारा सामान ले लिया।

स्टॉल के इंचार्ज ललित भरद्वाज जी को जब सोनू कुमार के डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी होने का पता लगा तो इन्होंने इस बात पर यकीन कर लिया कि ये मुमकिन है कि किसी ने इतनी महँगाई के बावजूद सारी स्टॉल खरीद डाली।

Surajkund Mela
कहते हैं कि मिसालें दी जाती हैं, भूली नहीं जाती, और अगर मिसाल श्रद्धा भावना की हो तो कोई कैसे भूल जाये! ये सब देख कर और जान कर एक ही बात कही जा सकती है कि श्रद्धा हो तो डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों जैसी, वरना न हो।