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September 2021

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इंजीनियर को हमारे समाज में रीढ़ की हड्डी के रूप में देखा जाता है। इंजीनियर के हाथों में जादू होता है, जो अपनी रचनाओं से दुनिया को मोहित व आकर्षित करते हैं। एक इंजीनियर ही होता है जो अपनी कला से भविष्य के काम को आसान बनाने के साथ-साथ परिपक्वता और क्षमता के उच्च स्तर तक पहुंंचाने के लिए उचित उपकरण बनाता है।

एक उन्नत तकनीकी दुनिया में रहने के लिए और अपने विचारों को वास्तविक में बदलने के लिए इंजीनियर्स की आवश्यकता होती है। आज की दुनिया में इंजीनियर्स बहुत ही अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आइए हम सब भी जानते हैं कि इंजीनियरिंग दिवस क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्व है??

जैसे कि डाक्टरों को सम्मान देने के लिए डाक्टर्स डे व अन्य डे मनाए जाते हैं। उसी तरह इंजीनियर्स को सम्मान देने के लिए इंजीनियर्स डे मनाया जाता है।

इंजीनियर्स डे क्यों मनाया जाता है??

 

सभी इंजीनियर्स को सम्मान देने के लिए इंजीनियर डे मनाया जाता है। भारत के एक महान इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को याद करने के लिए 15 सितंबर को इंजीनियर डे के रूप में मनाया जाता है।

इंजीनियर दिवस कब मनाया जाता है-

इंजीनियर दिवस प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष 15 सितंबर को सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। इन्हें एक अच्छे इंजिनियर की भूमिका निभाने के लिए 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इंजीनियर दिवस समस्त इंजिनियरों को सम्मान देने हेतु मनाया जाता है। अलग-अलग जगह में इंजिनियर्स डे अलग अलग तारीख को मनाया जाता हैं। इंजीनियर्स डे मनाने का उद्देश्य आज के युवा को ऐसे ( इंजिनियरिंग) कार्य की ओर प्रेरित करना है।

कैसे मनाया जाता है इंजिनियर डे??

इंजीनियर डे को लोग एक दूसरे को बधाई देकर मनाते हैं। लोग सोशल मीडिया, फ़ोन के माध्यम से एक दूसरे को बधाई देते हैं। मैसज भेजे जाते हैं और मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी को याद करके स्कूलों व काॅलेज में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसके द्वारा उन्हें याद किया जाता है।

वर्ष 2021 में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का 160 वां जन्म दिवस इंजिनियर्स डे के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कोरोना महामारी के चलते स्कूल व काॅलेज बंद होने के कारण कोई भी प्रोग्राम आयोजित नहीं किए गए। शायद 2021 में इस वर्ष 160 वां जन्म दिवस समारोह मनाया जाए।

आइए जानते हैं महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैयआ के जीवन परिचय के बारे में:-

जीवन परिचय-

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 में मैसूर रियासत, जोकि आज कर्नाटक राज्य में है, वहां पर हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री जोकि संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। इनकी माता वेंकचाम्मा एक धार्मिक विचारों की महिला थी। जब विश्वेश्वरैया 15 वर्ष के थे, तो इनकी पिता जी का देहांत हो गया था। प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंगलोर चले गए। 1881 में विश्वेश्वरैया मद्रास यूनिवर्सिटी के सरकार से बी.ए की परीक्षा पास की इसके बाद मसूर सरकार से इन्हें सहायता मिली और उन्होंने साइंस कॉलेज पूना में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया। वर्ष 1883 में LCE और FCE एग्जाम में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया।

जब इंजीनियरिंग पास की तो विश्वेश्वरैया को मुंबई सरकार की तरफ से नौकरी का ऑफर आया, फिर उन्हें नासिक में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में काम किया। एक इंजीनियर की भूमिका निभाते हुए उन्होंने बहुत से अद्भुत काम किए। उन्होंने सिन्धु नदी से लेकर सुक्कुर गांव तक पानी की सप्लाई शुरू करवाई इसके साथ ही साथ उन्हेंने “ब्लाक सिस्टम” एक नई सिंचाई प्रणाली को शुरू किया। उन्होंने बाँध में इस्पात के दरवाजे लगवाए ताकि पानी के प्रवाह को रोका जा सके। अब तक ऐसे बहुत से कार्य इनके द्वारा करवाए गए।

हैदराबाद सिटी को बनाने का पूरा श्रेय विश्वेश्वरैया जी को जाता है, उन्होंने एक बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार की जिसके बाद समस्त भारत में उनका नाम मशहूर हो गया। इसके अलावा उन्होंने अन्य क्षेत्र में भी सफलताएं प्राप्त की।

सर विश्वेश्वरैया का व्यक्तित्व-

विश्वेश्वरैया एक साधारण, आदर्शवादी व अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे। शुद्ध शाकाहारी और नशों की लत से दूर व समय के पाबंद थे।

फिट, तंदरुस्त व भाषण देने से पहले उसे लिखते और बाद में अभ्यास भी करते थे। 92 वर्ष की आयु में भी वह बिना किसी लाठी के सहारे चलते। उनके द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं के कारण भारत आज उन पर गर्व महसूस करता है। यदि विश्वेश्वरैया आज इतना संघर्ष न करता तो भारत में शायद इतना विकास न हो पाता। भारत में ब्रिटिश राज्य में भी विश्वेश्वरैया ने अपने काम में कोई बांधा नहीं आने दी, बल्कि उनका मुकाबला करके उन्हें दूर किय

विश्वेश्वरैया को प्राप्त अवार्ड-

  • 1955 में विश्वेश्वरैया को “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था।
  • लंदन इंस्टीट्यूशन सिविल इंजीनियर्स, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की तरफ से भी इनको सम्मानित किया गया।

इसके अलावा अलग-अलग आठ इंस्टिट्यूट के द्वारा डोक्टरेट की अपाधि दी गई थी।

एक अच्छा इंजिनियर वहीं बन पाता है, जो बचपन के खिलौने को तोड़कर खुश होता है और जो किताबी ज्ञान को वास्तविक रूप दे। जो व्यक्ति जीवन में कुछ बनने का सपना लेकर आगे चलता है वो ही जीवन में सफलता प्राप्त करता है।

जैसे कि हम जानते हैं कि एक इंजीनियर की हमारी जिंदगी व हमारे समाज को क्या देन है। एक इंजीनियर ने हमारी जिंदगी को बदलकर ही रख दिया जैसे कि आज से 15 वर्ष पहले टैलीफोन आए जिसके द्वारा हम एक-दूसरे से कही भी बैठे बातचीत कर सकते थे। इसके बाद स्मार्टफोन आए जिसके माध्यम से कोरोना काल में बच्चे अपनी पढ़ाई इस से कर रहे हैं। हम अपने आस पास की प्रत्येक इंजीनियर्स को समाज में रीढ़ की हड्डी के रूप में देखा जाता है।

 

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। अन्य पर्व की तरह भारत के लोग हिंदी दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन को स्कूल, कॉलेज व सरकारी कार्यालयों में अलग अलग तरह से मनाया जाता है।

हिंदी दिवस का इतिहास-

सन् 1947 में जब भारत ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ, तो उनके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी थी। भारत विविध संस्कृति वाला विशाल देश है, जिसमें सैंकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां हैं। 6 दिसंबर 1946 को स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया।

शुरुआत में सच्चीदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उनकी जगह डॉ राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया। डॉ भीम राव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया। इसलिए स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया।

लेकिन फिर भी, संविधान के लिए आधिकारिक भाषा चुनने की चिंता अभी भी खड़ी थी। एक लंबी चर्चा और बहस के बाद, हिंदी और अंग्रेजी को स्वतंत्र भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में चुना गया।

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि और अंग्रेजी को एक लिखित भाषा के रूप में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने इस दिन को हिंदी दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।

हिंदी दिवस का महत्व-

हिंदी भाषा किसी परिचय की मोहताज नही है। कई वर्षों से हमारे देश में हिंदी बोली जाती रही है। हिंदी दिवस एक माध्यम है, इस बात से अवगत कराने का कि भारत की मातृभाषा हिंदी है।
भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है। हिंदी दिवस पर कई अवॉर्ड भी दिए जाते हैं। इस दिन दिए जाने वाले विशेष अवॉर्ड में राजभाषा गौरव पुरुस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरुस्कार सम्मिलित हैं।

हिंदी दिवस संदेश-

दूसरी भाषाओं को सीखना गलत नहीं है। परंतु दूसरी भाषाओं को सीखते सीखते अपनी मातृभाषा को अनदेखा कर देना भी सही नही है।

विश्व की सभी भाषाओं में से हिंदी एक व्यवस्थित भाषा है। दूसरे शब्दों में हिंदी में जो हम लिखते हैं, वही हम बोलते हैं बल्कि अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं होता, वहां बोला कुछ और जाता है और अर्थ कई बार भिन्न ही होता है।

हिंदी भाषा दिन प्रतिदिन अपना अस्तित्व खो रही है। बड़े बड़े स्कूल, कॉलेज में हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता दी जाती है ।

आज हिंदी दिवस के मौके पर हमें अपने आप से वादा करना चहिए कि हम भी अपनी मातृभाषा को अपनाएंगे । आप सभी को हमारी तरफ से हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ।

भारतवर्ष में हर साल 5 सितम्बर के दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म वर्ष 1888 में हुआ था। वे एक महान विद्वान और शिक्षक थे, शिक्षा के क्षेत्र में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने अपना जीवन 40 वर्ष तक एक शिक्षक के रूप में बिताया। इसी लिए उनके जन्म दिवस को टीचर्स डे के रूप में मानते हैं।

अक्सर यह कहा जाता है की शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ की हड्डी होते है। हमारे माता-पिता हमारे पहले गुरु होते हैं, क्योंकि वह हमें जन्म देते हैं, लेकिन शिक्षक हमें अच्छे और बुरे का अंतर बता कर हमारे आने वाले भविष्य को उज्जवल बनाते हैं। हमारे जीवन में शिक्षक का महत्व बहुत बड़ा होता है। शिक्षा हर इंसान के लिए जरुरी है। जिसके बिना हम अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते है।

गुरु शब्द का अर्थ क्या है?

गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें पूरा ब्रह्मांड समाया है। ‘गु’ का मतलब है – अंधकार और ‘रु’ का मतलब है – प्रकाश। जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे, वो ही सच्चा गुरु है।

हमारे जीवन में गुरु की भूमिका-

‘गुरु’ एक शिल्पकार की तरह होता है, जो अपने विद्यार्थियों को सही ज्ञान प्रदान करके उनको एक योग्य नागरिक बनाता है। किसी भी देश को महान और गौरवशाली बनाने में गुरु की अहम भूमिका होती है।

आखिर गुरु की जरूरत क्यों पड़ी?

कोई भी इंसान गुरु के बिना किसी भी क्षेत्र में महारथ हासिल नहीं कर सकता। इंसान को कदम-कदम पर गुरु की जरूरत होती है। गुरु के बिना शिष्य के जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है।

इंसान का पहला गुरु कौन होता है?

मां इंसान की पहली गुरु होती है, जो कि उसको खाना, पीना, बोलना सिखाती है। इसलिए हमारे धर्मों में मां को भगवान का दर्जा दिया गया है। उसके बाद स्कूल , कॉलेज में उसको टीचर, लेक्चरर के द्वारा शिक्षा दी जाती है।

क्या लक्ष्य होता है एक गुरु का अपने शिष्यों के प्रति ?

शिष्यों को हमेशा यह विश्वास दिलाकर कि वे कुछ बन सकते हैं, कुछ कर सकते हैं। उनका यही लक्ष्य रहता है कि वे अपने विचारों से अपने शिष्यों के जीवन में बदलाव लाकर उनके आचरण को और उनको ऊंचाइयों पे ले जाएं।

कैसा होना चाहिए एक गुरु को ?

एक आदर्श गुरु को निष्पक्ष और अपमान से प्रभावित हुए बिना हर समय विनम्र रहना चाहिए। उन्हें छात्रों के स्वास्थ्य और एकाग्रता के स्तर को बनाए रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने चाहिए। छात्रों के मानसिक स्तर में सुधार लाने के लिए पढ़ाई से अलग अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें दुनियावी ज्ञान के साथ साथ हमारे धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों का भी ज्ञान देना चाहिए।

निष्कर्ष-

हमारा जीवन बिना गुरु के व्यर्थ है। हमे अपने गुरुओं का आदर सत्कार करना चाहिए। 5 सितंबर का दिन जो हम टीचर्स डे के रूप में मनाते हैं। इस दिन हमें अपने गुरुओं का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने हमें शिक्षा दी और एक अच्छा जीवन जीने के काबिल बनाया ।