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Chandigarh Tourist Places: अगर आपका वीकेंड में घूमने का है प्लान, तो 2 दिनों में चंडीगढ़ की इन जगहों को कर सकते हैं आप कवर

Best Places to Visit in Chandigarh: यदि आप घूमने का सोच रहे हैं, तो चंडीगढ़ शहर में ऐसी कई जगह हैं जहां पर आप अपने वीकेंड को बहुत ही अच्छे तरीके से enjoy कर सकते हैं। आइए आज हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताते हैं, जहां आप बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं और आपका ज्यादा समय भी बर्बाद नहीं होगा। चंडीगढ़ के ये स्थान बेहद शांत और खूबसूरत हैं।

Top and Famous  Chandigarh tourist places: जब भी हम घूमने की बात करते है, तो एक्साइटमेंट तो बहुत ज्यादा हो जाती है, बहुत से लोगों को घूमना बहुत पसंद होता है। लेकिन जैसे ही ट्रैवलिंग (Travelling) के बारे में सोचते है, तो लगता है कि एक से दो दिन तो सफर में ही बीत जाएंगे। घूमने का तो समय ही नहीं मिलेगा। तो घबराइए मत, यदि आप घूमना भी चाहते हैं और अपनी ट्रैवलिंग का समय भी बचाना चाहते हैं, तो ऐसी बहुत से place हैं, जो आपके शहर में मौजूद हैं। जहां जाने के लिए आपके पास समय ही समय है।

घूमते-घूमते हुए गुजारें अपना वीकेंड- यदि आप लोग चंडीगढ़ घूमने का प्लान कर रहे हैं, तो यहां ऐसी कई जगहें हैं, जहां पर आप अपना वीकेंड बहुत ही अच्छी तरह से enjoy कर सकते हैं। आप किसी दूसरे शहर से आए हैं तो भी आप यहां शानदार वीकेंड गुजार सकते हैं और अगर आप चंडीगढ़ (Weekend Plan in Chandigarh) के बाहर भी आस-पास जाना चाहते हैं, तो भाई क्या ही कहने। चंडीगढ़ से कुछ ही दूरी पर कुछ हिल स्टेशन भी है, जहां जाने में आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा।

चंडीगढ़- शांत और खूबसूरत- आज हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां आप बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां जाने पर आपका समय ज्यादा बर्बाद नहीं होगा। चंडीगढ़ की ये जगहें बेहद शांत, रोमांचक और खूबसूरत हैं। यानी की आप आराम से अपनी छुट्टियां एन्जॉय कर सकते हैं। इतना पढ़ने के बाद मन में चंड़ीगढ़ जाने के बारे में एक बार तो सोच ही लिया होगा आपने।

चंडीगढ़ में क्या है खास – आइये पहले चंडीगढ़ के बारे में कुछ जान लेते हैं। जी हां यदि आप कहीं घूमने जाने का प्लान कर रहें हैं तो जाहिर सी बात है कि आपको उस जगह के बारे में पता होना चाहिए। बहुत नहीं पर थोड़ा बहुत इतिहास जानना तो बनता है न दोस्त।
सबसे पहले आपको जानकारी के लिए बता दें कि चंडीगढ़ हरियाणा और पंजाब की राजधानी है। हालांकि, देश आज़ाद होने से पहले पंजाब की राजधानी लौहार हुआ करती थी, लेकिन देश की आज़ादी के बाद नई राजधानी की जरूरत पड़ी और 1947 में चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी घोषित किया गया। चंडीगढ़ का नाम यहां पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक मंदिर मां चंडी मंदिर के नाम से मिला है। ये दिल्ली से 245 किलोमीटर दूर स्थित है। देश-दुनिया के पर्यटक यहां आते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं रॉज गार्डन से और रॉक गार्डन से जो यहां सबसे ज्यादा फेमस है। जहां घूमने वालों की संख्या भी सबसे ज्यादा होती है।

रोज गार्डन (Rose Garden)- चंडीगढ़ में स्थित रोज गार्डन(Rose Garden) को एशिया(Asia) के सबसे बड़े रोज गार्डन में से एक माना जाता है। रोज गार्डन चंडीगढ़ (Chandigarh) में रॉक गार्डन के बाद सबसे ज्यादा घूमा जाने वाला गार्डन है। रोज गार्डन का नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के नाम पर रखा गया है। इस खूबसूरत उद्यान की स्थापना 1967 में की गई थी। यह पार्क 10 एकड़ में फैला हुआ है और यहां गुलाब की कई प्रजातियां है। इन्हें बेहद खूबसूरत तरीके से प्रदर्शित किया गया है। यहां 1600 से अधिक तरह के फूल पाए जाते हैं। आपको बता दें कि इस रॉज गार्डन में वार्षिक गार्डन फेस्टिवल भी मनाया जाता है। ये फरवरी और मार्च के दौरान एक प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम(cultural program) होता है।

आख़िर क्या है खास रोज़ गार्डन में:- यहां तरह-तरह के गुलाब के फूल मिलेंगे। यहां 32,500 किस्म के पेड़ व औषधीय पौधे मौजूद हैं। यहां लोगों के लिए जॉगिंग ट्रैक भी उपलब्ध है और लोगों को आकर्षित करने के लिए पानी का फव्वारा भी है।

रॉक गार्डन (Rock Garden)- रॉक गार्डन चंडीगढ़ शहर की जानी-मानी घूमने की जगह है। यह चंडीगढ़ की सबसे ज्यादा घूमने वाली जगहों में से एक है। यहां सबसे ज्यादा पर्यटकों का आना-जाना है। यह गार्डन मूर्तिकला, वास्तुकला और पौराणिक कथाओं का मिश्रण है। रॉक गार्डन चंडीगढ़ में स्थित 35 एकड़ की भूमि में बनाया गया एक बड़ा गार्डन है। इसकी खास बात यह है कि यह घरेलू कचरे और कई औद्योगिक वस्तुओं से बनाया गया है। इस उद्यान में चूड़ियां, चीनी मिट्टी के बर्तन, टाइलें, बोतलें और बिजली के कचरे जैसी वस्तुओं का उपयोग करके मूर्तियां बनाई गई हैं।

इतिहास- History
रॉक गार्डन के पीछे की कहानी यह है कि इसके संस्थापक नेक चंद ने 1957 में अपने खाली समय में गुप्त रूप से इस गार्डन को बनाना शुरू किया था। इस गार्डन का layout एक खोए हुए साम्राज्य की कल्पना पर आधारित है। इसमें 14 कमरे बने हुए हैं। लगभग हर त्योहार के समय रॉक गार्डन त्योहार जैसा माहौल बना देता है।

आखिर क्या खास है रॉक गॉर्डन में?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मनुष्यों और जानवरों की आकृतियां बनाने के लिए टूटे हुए कांच के टुकड़े, शौचालय के उपकरण और टूटी टाइलों का उपयोग किया गया है। रॉक गार्डन में जाने के बाद आपको ऐसा लगेगा, जैसे आप किसी गांव में आ गए हों। इसमें सुंदर झोपड़ियां बनाई गई है। यह गार्डन रोमन वास्तुकला से प्रेरित होकर बनाया गया है। यहां बच्चों के लिए झूले भी लगे हुए हैं। यहां झरने और एक्वैरियम भी बने हुए हैं, जहां हम चारों ओर घूमती हुई मछलियां भी देख सकते हैं। यहां पर एक तरह का ओपन एयर थिएटर है, जिसकी सीढ़ियों पर बैठकर आप हंसता हुआ दर्पण प्रदर्शन, एंटीक वस्तुओं की दुकान, ऊंट और रेलगाड़ी की सवारी और फूड कोड का आनंद ले सकते हैं।

पता और एंट्री फीस:
ये उद्यान चंडीगढ़ के उत्तर मार्ग, सेक्टर-1 में स्थित है। यहां पर एंट्री फीस भी है। बड़ों के लिए 30 रुपए और बच्चों के लिए- 10 रुपए ticket है।

सुखना लेक (Sukhna Lake): Sukhna Lake भी चंडीगढ़ में आकर्षण का केंद्र है। आपको बता दें सुखना लेक 3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई है, सुखना लेक में सर्दियों के महीनों में कई विदेशी प्रवासी पक्षी, साइबेरियन, बत्तख और क्रेन का आवागमन होता है। सुखना लेक (Sukhna lake) को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय आर्द्रभूमि घोषित किया गया है। मानसून के समय यहां अधिकतर लोग यहाँ पर घूमने आते हैं। यहां पर ज़्यादातर लोग अपने परिवार को लेकर आते हैं। सुखना लेक एशिया में नौकायन व नौकायन आयोजनों के लिए प्रचलित है।

क्या खास है सुखना लेक में: Boating: यहां पर लोग सैलानी बोटिंग भी करते हैं। यहां पर आपको 2 सीटर, 4 सीटर, शिकारा बोट, सोलर क्रूज मिल जाती हैं, जिसमें बोटिंग करके आप इस लेक का आनंद उठा सकते हैं और अपने वीकेंड को यादगार बना सकते हैं।
Park: इस लेक पर पार्क भी बनाया गया है। जिसमें बच्चे ट्रेन की सवारी कर सकते हैं। यहां पर बुल राइड भी की जाती है, जो बेहद मजेदार होती है यक़ीनन यह आपको बहुत पसंद आएगी।
Food court: यहां पर खाने-पीने के लिए सिटको कैफेटेरिया, शेफ लेक व्यू और कई फूड कोर्ट बने हुए हैं।
सुखना लेक की सुंदरता को बढ़ाने के लिए यहाँ पर विभिन्न मूर्तियां भी बनाई गई हैं। यहां आपको जॉगिंग ट्रैक भी मिलेगा, जहां पर आप सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य का आनंद उठा सकते हैं।

कहां है स्थित सुखना लेक- Address
सुखना लेक(Sukhna lake) चंडीगढ़ शहर के सेक्टर-1 में स्थित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यहां पर जाने के लिए कोई एंट्री फीस नहीं है।

सेक्टर-17 मार्किट – Sector -17 Market
आप चंडीगढ़ घूमने आ ही गए हैं, तो मन कर रहा होगा कि थोड़ी शॉपिंग भी की जाए। चंडीगढ़ का सबसे फेमस मार्केट यहां पर सेक्टर-17 में है। शहर के बीचों-बीच होने के कारण इसे सिटी सेंटर भी कहा जाता है। यह इलाका 240 एकड़ में बना हुआ है। यहां पर आपको कई बड़े ब्रांड की दुकाने, इंटरनेशनल फूड भी मिलता है। खाने-पीने की सभी दुकानें सेक्टर-17 के बाज़ार में मिल जाती हैं।

क्या है खास यहाँ पर?
यहां एक मूवी थिएटर है। यहाँ पर स्थानीय दुकानें और अंतर्राष्ट्रीय ब्रेंड स्टोर है। शाम के म्यूजिकल फाउंटेन शो होता है, जो कि 7 बजे, 8 बजे और 09:00 बजे आयोजित किया जाता है। इन म्यूजिकल फाउंटेन शो में लोग इतने घुल जाते हैं कि वे खुद नाचने गाने लगते हैं।

चंडीगढ़ में स्थित म्यूजियम : Museum in Chandigarh

चंडीगढ़ के म्यूजियम बड़ी तेजी से पर्यटकों के लिए आकर्षणों का एक अहम हिस्सा बन रहे हैं। चंडीगढ़ में प्रतिष्ठित सरकारी संग्रहालय, आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ के तीन वास्तुकला संग्रहालय, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, अंतर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय, रॉक गार्डन में राग गुड़िया संग्रहालय और उच्च न्यायालय संग्रहालय लोगों के लिए इतिहास के बारे में जानने के लिए बेहद खास बनता जा रहा है। ये संग्रहालय चंडीगढ़ में घूमने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं।

इंटरनेशनल डॉल्स म्यूजियम- इंटरनेशनल डॉल्स म्यूजियम की स्थापना वर्ष 1985 में बाल भवन परिसर में की गई थी। इसमें 25 देशों (25 countries) की विरासत गुड़ियों का संग्रह दिखाया गया है। जिसमें ऐतिहासिक, भौगोलिक कलात्मक, सामाजिक-सांस्कृतिक, फैशन डिजाइन और पोशाक विशेषताओं के साथ विदेशी और स्वदेशी गुड़िया शामिल हैं। इसमें बच्चों के लिए गुड़ियों के रंगीन आदमकद कटआउट भी हैं।
इस खबर से जुड़ी सभी जानकारी चंडीगढ़ की अधिकारिक वेबसाइट (official website) से ली गई है।

लाल मिर्च पाउडर में भरा होता है ईंट का चूरा, चिरने लगेंगी आपकी आंतें, FSSAI ने बताया घर में इस तरीके से करे नकली मिर्च की जांच-

आज के आधुनिक समय में मसालों में मिलावट करना आम बात हो गई है और मिलावटी चीजें खाने से इंसान की सेहत पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। आप सभी के घरों में इस्तेमाल होने वाले लाल मिर्च पाउडर में भी ईंट के चुरे की मिलावट हो सकती है। जानिए घर पर रहते हुए इसकी पहचान कैसे करे।
 हम सभी के घरों में लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक है। खाना में सब्जी को स्वाद और गहरा रंग देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। पुराने समय में साबुत लाल मिर्च को धूप में सुखाकर और पीसकर उसका पाउडर बनाया जाता था और फिर इसके इस्तेमाल में लिया जाता था। लेकिन अब लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) के पैकेट मिलने लगे हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में भरा होता है ईंट का चूरा, जो दे रहा बिमारियों को बुलावा, FSSAI ने बताया हम घर में रहते कर सकते है लाल मिर्च की जांच-

आज के समय में खाने-पीने की लगभग सभी चीजों में मिलावट होने लगी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आप जो लाल मिर्च पाउडर अपनी रसोई में इस्तेमाल कर रहे हैं, आख़िर वह कितना सुरक्षित है? क्या आपके लाल मिर्च पाउडर में कोई मिलावट तो नहीं है?
आजकल लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए व पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उन्हें गहरा रंग देने के लिए उनमें मिलावट कर रहे है। अधिकतर व्यापारी मसालों का वजन बढ़ाने के लिए उन में लकड़ी का बुरादा, ईंट का चूरा और कृत्रिम रंगों का उपयोग कर रहे है। यह मसाले इंसान के पेट में जाकर कई खतरनाक बीमारियों को बुलावा देकर उन्हें मरीज बना सकते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने एक आसान तरीक़ा बताया है जिसके द्वारा आप कुछ ही सेकंड में असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की जांच कर सकते हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में मिलावट क्यों की जाती है?
आज के समय में खाने में मिलावट करना आम बात हो गई है। लोग पैसे कमाने में इतने लीन हो गए हैं कि न जाने वो कितने लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है। ऐसे ही आज हम बात कर रहे है लाल मिर्च पाउडर की। आमतौर पर पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उनका रंग निखारने के लिए उनमें मिलावट की जाती है। मिर्च पाउडर में आमतौर पर ईंट पाउडर, नमक पाउडर या टैल्क पाउडर की मिलावट की जाती हैं।
असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की ऐसे करें जांच-
घर पर लाल मिर्च पाउडर में मिलावट की जांच ऐसे करें
  • एक गिलास सादे पानी ( normal water) में एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाए।
  • पानी में घुले हुए पाउडर को थोड़ी मात्रा में लेकर अपने हाथ में रगड़ें।
  • यदि इसको रगड़ने के बाद कोई खुरदरापन महसूस होता है, तो इसमें लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में ईंट का पाउडर या रेत की मिलावट है।
  • यदि अवशेष साबुन जैसा और चिकना लगता है, तो इसमें सोप स्टोन की मिलावट है।
आर्टिफिशियल कलर की ऐसे करें जांच-
  • इसे चमकीला रंग देने के लिए लाल मिर्च पाउडर में आर्टिफिशियल कलर मिक्स किए जाते हैं।
  • एक गिलास पानी में थोड़ा सा मिर्च पाउडर छिड़कें।
  • अगर इसमें आपको एक रंगीन लकीर नजर आती है, तो लाल मिर्च पाउडर मिलावटी हो सकता है।
  • लाल मिर्च पाउडर में कई बार पानी में घुलनशील तारकोल रंग मिलाया जाता है।
स्टार्च का पता लगाने के लिए ऐसे करें जांच-
  • लाल मिर्च पाउडर की मात्रा बढ़ाने के लिए अक्सर इसमें स्टार्च भी मिलाया जाता है।
  • स्टार्च की जांच के लिए पिसे हुए मसाले में टिंचर आयोडीन या आयोडीन घोल की कुछ बूंदें मिलाए।
  • यदि यह नीले रंग में बदलता है, तो यह लाल मिर्च पाउडर में स्टार्च की वजह से हो सकता है।
सेहत के लिए खतरनाक है ईंट का पाउडर
ईंट पाउडर आमतौर पर ईंट के चूरे से बनता है, जो दिखने में लाल रंग का होता है। इस पाउडर का रंग और बनावट लाल मिर्च के पाउडर के समान होती है। इसलिए इसका उपयोग अक्सर मिलावटी पदार्थ के रूप में किया जाता है। यह सेहत के लिए बहुत खतरनाक होता है। इसके नियमित सेवन से शरीर पर गंभीर परिणाम होते हैं। यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है।

वजन कम करने में रामबाण है मीठी तुलसी (Stevia)-

आज के समय में बढ़ता वजन और मोटापा हर दूसरे से तीसरे इंसान के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। हर इंसान चाहता है कि वह स्वस्थ रहे। लेकिन बढ़ते वजन/मोटापे के कारण शरीर बीमारियों का घर बन जाता है।
वजन बढ़ने से इंसान को बहुत सी बीमारियां आकर घेरती है।

वजन बढ़ना तो आसान है लेकिन इसे कम करना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन एक तरीका है जिससे इंसान अपना वजन कम कर सकता है।
“मीठी तुलसी” जिसे Stevia भी कहते हैं। इसका सेवन करने से बढ़ता वजन ही कम नहीं होता बल्कि और भी बहुत सी बीमारियों में राहत मिलती है।

आखिर क्या है मीठी तुलसी (Stevia)-

‘Stevia’ यानी मीठी तुलसी, सूरजमुखी परिवार (एस्टरेसिया) के झाड़ी और जड़ी बूटी के लगभग 240 प्रजातियों में पाया जाने वाला एक जीन्स है। यह पश्चिमी उत्तर अमेरिका से लेकर दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह तालाबों अथवा नालों के किनारों पर प्राकृतिक रूप से उगता है।

यह जीरो कैलोरी वाला पौधा सैकड़ों वर्षों से नेचुरल शूगर के ऑप्शन और स्वाद बढ़ाने वाले घटक के रूप में उपयोग किया जाता है। जो लोग बढ़ते वजन या मोटापे के कारण मीठे का सेवन नहीं कर सकते, वो इस मीठी तुसली के सेवन से अपना मीठे का शोंख पूरा कर सकते हैं।

Stevia/मीठी तुसली के अन्य फायदे –

मीठी तुलसी यानी Stevia में केवल बढ़ते वजन को कम करने का ही गुण नहीं पाया जाता बल्कि यह और भी अन्य समस्याओं में राहत प्रदान करती है ।
मीठी तुलसी में शुगर नहीं होता अर्थात इसमें कैलोरी की मात्रा जीरो होती है।
इसलिए यह वजन कम करने में रामबाण का काम करती है। मीठी तुलसी वजन कम करने के अलावा और भी अन्य बीमारियों में फायदेमंद है।

बढ़ते शुगर लेवल को करती है कंट्रोल –

मीठी तुलसी में औषधीय गुणों से भरपूर है। इसमें मौजूद नॉन ग्लाइसेमिक स्वीटनर बढ़ते शुगर को नियंत्रित करने में मददगार है।

इसका सेवन करने से ब्लड शुगर और इन्सुलिन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए अगर आप शुगर के मरीज हैं और मीठा खाने के चाहवान हैं, तो आप मीठी तुलसी का सेवन कर सकते है।

मीठी तुलसी बढ़ते रक्तचाप को नियंत्रित में सहायक-

ब्लड प्रेशर आज आम समस्या बनी हुई है। मीठी तुलसी के इस्तेमाल से बढ़ते रक्तचाप को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
मीठी तुलसी के रस में विद्यमान ग्लाइकोसाइड रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करने की ताकत रखते हैं। जो सोडियम उत्पादन और उत्तर उत्सर्जन को भी बढ़ा देते हैं।

एक अध्ययन के अनुसार मीठी तुलसी (Stevia) के पौधे में विद्यमान कार्डियोटोनिक क्रियाएं बढ़ते रक्तचाप को कम करते हुए दिल की धड़कन को नियंत्रित करने में सहायक है।
इस तरह से आप मीठी तुलसी के सेवन से अपने बढ़ते वजन और मोटापे को कम करने के साथ अन्य समस्याओं से भी निजात पा सकते हैं।

निष्कर्ष-

जहां मीठी तुलसी बहुत सी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मददगार है, वहीं इसका ज्यादा मात्रा सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है। यह किडनी, प्रजनन हृदय प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए मीठी तुलसी/Stevia का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह अनुसार ही करें।

Winter Destinations- सर्दियों में घूमने की कर रहे हैं प्लानिंग, तो यह जगह है सबसे अच्छी

घूमना-फिरना हर इन्सान को अच्छा लगता है। सर्दी का मौसम शुरू हो चुका है। उत्तर भारत में अब मौसम बहुत रफ्तार से बदल रहा है।

सर्दी का मौसम हर इंसान को बहुत पसंद आता है। क्योंकि इस मौसम में घूमने-फिरने और खाने-पीने का एक अपना अलग ही मजा होता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें, भारत में बहुत सी ऐसी जगह हैं, जहां सर्दियों में घूमने का अलग ही मजा है। कईं जगहों पर इस मौसम में बर्फबारी शुरू हो जाती है।

सर्दियों में छुट्टियों में अगर आप कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो एक बार इन जगहों पर जरूर जाएं। ये जगह सुकून और शांति से भरपूर हैं, जहां आप एक बार जाकर हर बार जाना पसंद करेंगे।

भारत में घूमने की सबसे अच्छी जगह-

  1. केरल
  2. गोवा
  3. राजस्थान
  4. हिमाचल के सबसे लोकप्रिय स्थल
    शिमला, मनाली और धर्मशाला।

 

1.केरल-

केरल दक्षिण भारत में बसा वो राज्य है जो बीच और बाँधों के लिए मशहूर है। इसे “ईश्वर का अपना घर” के नाम से भी जाना जाता है। यहां विभिन्न प्रकार की चाय और कॉफी की चुस्कियाँ लेते-लेते आपका मन नहीं भरेगा।
बारिश के बाद केरल की हरियाली का अपना ही अलग रंग होता है। यहां खड़े मसालों की सौंधी खुशबू आपको रसोई के नटखट और चटपटे स्वाद का स्मरण करवाएगा। केरल के दर्शनीय स्थल आपके इन सभी एहसासों को जीवंत कर देंगा।

केरल में प्रकृति से प्यार करने वालों के लिए सुंदर पहाड़ी स्टेशन, महासागर प्रेमियों के लिए सुनहरे सुंदर तट, पशु प्रेमियों के लिए विदेशी वन्यजीवन, शरीर और दिमाग को शांत करने के लिए आयुर्वेदिक मालिश और योग सब का अपना-अपना अलग महत्व है।

केरल में घूमने के लिए यादगार स्थल –

नाव की सवारी करने वालों के लिए अलापुला, थेककाड़ी और वेम्बानाद बहुत ही शानदार स्थल है।
वन्यजीव प्रेमियों के लिए साइलेंट वैली नेशनल पार्क, पेरियार टाइगर रिजर्व और कुमारकाम पक्षी अभ्यारण्य बहुत अच्छी जगह है। पक्षी प्रेमियों के लिए कन्नूर और कोझिकोड जिलों में स्थित वायनाड स्थल। धार्मिक स्थल में श्री पद्मनाभास्वामी मंदिर ज़ो की भगवान विष्णु की कलाकारी का प्रसिद्ध मंदिर है।

2. गोवा –

शीतकालीन मौसम में घूमने के लिए गोवा बहुत ही सुंदर और प्राकृतिक नज़ारों से भरा रमणीक स्थल है।
वैसे तो यहां किसी भी मौसम में जा सकते हैं। लेकिन सर्दी के मौसम में गोवा में घूमने का अलग ही नजारा है।
नए साल का जश्न मनाने के लिए गोवा सबसे बढ़िया स्थान है।
गोवा को भारत की पार्टी राजधानी भी कहा जाता है। यहां के रोमांचित सुनहरे समुद्र तट रोमांचक जल खेल, पारिवारिक व्यंजन, पुर्तगाली संस्कृति और जीवंत त्यौहार इस स्थान गोवा को भारत का सबसे बढ़िया सर्दियों में घूमने का अवकाश स्थल बनाते हैं।

यहां के समुद्री तट, आकर्षक चर्च, मंदिर, पुराने किले, लहराते पेड़, कार्निवल मांडवी नदी के तट पर क्रुज की सवारी आदि पर्यटकों के लिए सबसे आकर्षण का केंद्र है।
आपको बता दें कि दिसंबर में घूमने की सबसे अच्छी जगह गोवा है। अतः अगर आप भी अब की बार कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो इस बार गोवा जरूर जाएं।

3. राजस्थान –

राजस्थान भारत के पश्चिम में स्थित है। राजस्थान ना केवल अपनी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के प्राचीन महल, किले, परंपरा, वेश भूषा, राजशाही इतिहास सब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।

हालांकि राजस्थान में ज्यादा ठंड नहीं होती, लेकिन सर्दी के मौसम में यहां घूमने का नजारा बेहद खूबसूरत होता है।
यहां के प्राचीन किले, “गढ़” के नाम से बहुत प्रसिद्ध है।
राजस्थान के महाराजाओं की संस्कृति और परंपरा को उनके चमकदार किलों व राजसी कलाकारियों में साफ-साफ देखा जा सकता है।

राजस्थान में घूमने के प्रसिद्ध स्थल व स्थान-
जोधपुर, रणथंबोर, जैसलमेर, उदयपुर, बीकानेर और माउंट आबू आदि राजस्थान में घूमने के बहुत ही सुंदर स्थान हैं।

पुष्कर और अजमेर तीर्थ अद्भुत तीर्थ स्थान है।
इन स्थानों पर आकर आप खुद को भगवान के शरण में आया महसूस कर सकते हैं। यहाँ आप अपने को बहुत ही शान्त महसूस करेंगे।
बीकानेर और बूंदी राजस्थान की विरासत और राजशाही से भरे शहर हैं।
शाही महल और गजनेर पैलेस बीकानेर का प्रसिद्ध यात्रा स्थल है।
जोधपुर वास्तुकार प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
जैसलमेर मिठाई सीहोर और ऊंट की सवारी के लिए प्रसिद्ध स्थल है।

इस प्रकार राजस्थान की विभिन्न जगहों की कला और लोक नृत्य काफी मनोहर है। यह इंसान के दिलो दिमाग में एक जादू सा कर देते हैं। सर्दियों के मौसम में राजस्थान में घूमने का एक अपना ही आनंद है।

4. हिमाचल के सबसे लोकप्रिय स्थल शिमला, मनाली और धर्मशाला –
सर्दियों में अगर आप हिमाचल में घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो आप शिमला, मनाली या धर्मशाला जरूर जाएं।
सर्दियों में सैलानियों के लिए हिमाचल की राजधानी “शिमला” बर्फबारी का आनंद लेने के लिए बहुत ही परफेक्ट और सुंदर स्थान है।

शिमला घुमावदार पहाड़ियों और बर्फ से ढके जंगलों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर पर्यटक स्थल है। शिमला साइक्लिंग करने के लिए बहुत अच्छा स्थान है।

मनाली- मनाली हिमाचल में बर्फबारी से घिरा बहुत रमणीक स्थल है। यहां आकर हर कोई अपने आपको स्वर्ग से घिरा पाता है। यहां के पेड़ और देवदार के पेड़ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
मनाली को रंग-बिरंगे फूलों की घाटी कहा जाता है। बर्फ के कारण सर्दियों में यहां हरियाली दूर-दूर तक नजर नहीं आती।

एडवेंचर के शौकीन के लिए मनाली-ट्रैकिंग, स्कीइंग, पैरा ग्लाइडिंग आदि के लिए बहुत अच्छा स्थल है।
मनाली स्कीइंग अभियान, नदी बीस, पर्वतारोहण, अन्य साहसिक खेल और हिमालय के शानदार दृश्य के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

धर्मशाला- अगर आप इस बार सर्दियों में किसी शांत स्थल पर घूमने का सोच रहे हैं तो धर्मशाला घूमने के लिए पहाड़ों से घिरा बहुत ही रमणीक और शांत स्थल है।
धर्मशाला को दलाई लामा के “गृहनगर” के नाम से भी जाना जाता है।
बर्फ से ढके हुए पहाड़ों, शांतिपूर्ण मठ, शांत झीलों और चुनौती पूर्ण ट्रैकिंग ट्रेल्स से घिरा धर्मशाला ऐसा स्थल है, जहां अभी तक व्यवसायीकरण अनछुआ है।
यह बहुत ही शांत स्थल है।

अगर आप भी इस बार सर्दियों में कहीं घूमने का सोच रहे हैं तो आप इन रमणीक स्थलों पर जरूर जाएं और प्रकृति का भरपूर आनंद लें।

आइए जानें कि आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए कैसे पोष्टिक फूड्स खाएं

आज हम देखते हैं कि बिगड़ रहे वातावरण का असर हमारी आंखों पर भी पड़ रहा है। जिससे ज्यादातर लोगों को चश्मा लग जाता है। यहां तक छोटे बच्चे भी इसमें शामिल हैं, आज दुनिया भर में निकट दृष्टि दोष एक महामारी बनता जा रहा है।

यूरोप और अमेरिका में 30-40% लोगों को चश्मे की जरूरत पड़ती है और कुछ एशियाई देशों में यह आंकड़ा 90% तक पहुंच गया है। क्योंकि हमारा लाइफस्टाइल ठीक नहीं है। ज्यादा कंम्पयूटर पर काम करने से, टीवी या मोबाइल का इस्तेमाल ज्यादा करने से आंखों में चुभन होने लगती है जिससे हमारी आंखों में असर पड़ता है और खाने में तले हुए खाद्य-पदार्थों का सेवन करने या पोष्टिक आहार ना लेने के कारण भी आंखों की रोशनी कम हो जाती है।

अगर हम अपने खान पान की ग़लत आदतों को सुधार कर अपने रोजाना आहार में विटामिन A,C,E और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर चीजें शामिल कर लें तो आंखों की रोशनी बढ़ाई जा सकती है।

आइए जानते हैं कि आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए क्या खाएं-

गाजर-
गाजर में पोटाशियम, विटामिन C, E और विटामिन B1 भरपूर मात्रा में होते हैं। जिसे खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। गाजर को हम सलाद, सब्जी के रूप में या जूस बनाकर भी पी सकते हैं। इसका एक गिलास जूस रोजाना पीने से आंखों को लाभ होता है।

आंवला-
आंवले को खाली पेट जूस के रूप में या इसका मुरब्बा खाने से बहुत लाभ होता है। क्योंकि यह आंखों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।

हरी पत्तेदार सब्जियां-
हरी पत्तेदार सब्जियों का स्वाद भले ही ख़ाने में अच्छा ना लगता हो, परंतु इनमें मौजूद लुटिन और जियोकसथीन कैमीकल आंखों के लिए बहुत अच्छे होते हैं। इनमें धनिया, पालक, शकरकंदी बहुत उपयोगी हैं।

फल-
फलों में विटामिन C, E, A और अन्य पौशक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते है। खट्टे फलों में संतरा, मौसमी में विटामिन सी होता है और विटामिन सी एक एंटी ऑक्सीडेंट है। जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके इलावा केला, पपीता और आम जैसे पीले फलों में कैराटिन और लाइकोपिन होता है, जो आंखों की रोशनी बढ़ाता है। जिससे आंखों का चश्मा भी उतर सकता है।

जामुन-
जामुन के सेवन से बहुत सी बिमारियों को ठीक किया जा सकता है। इससे कई औषधियां भी तैयार होती हैं, इसे खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

बादाम-
बादाम हमारी सेहत के लिए वरदान है। इससे दिमाग तेज होता है और मैमोरी पावर बढ़ती है। इसमें विटामिन ई होता है, जिससे आंखों का चश्मा उतर सकता है।

नट्स-
कई लोगों की आंखों में सूखेपन की बिमारी होती है। उनकी आंखों में आंसुओ की कमी के कारण धुंधलापन या सुखापन जैसी समस्या आती है। अपनी डाइट में ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा बढ़ाने से यह समस्या खत्म हो जाती है। नट्स खासकर अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होता है। इसके इलावा मूंगफली, ब्राजील नट्स, काजू जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से भी आंखों की रोशनी तेज होती है। यह आंखों के रेटिना को सही रखते है और इन्हें खाने से मोतियाबिंद की समस्या नहीं होती।

काली मिर्च-
बहुत से लोगों का मानना है कि काली मिर्च को देसी घी के साथ सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। क्योंकि इसमें विटामिन ए और ई भरपूर मात्रा में होते हैं।

इलायची और सौंफ-
इलायची और सौंफ को पीस कर इनका पाउडर बनाकर अगर ठंडे दुध में मिलाकर पीया जाए तो इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।

इन सब के अलावा पानी को हमारी सेहत के लिए वरदान माना गया है। पानी पीने से सूखी आंखों के लक्षण कम हो जाते हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं।

आंखों की रोशनी कम होने का कारण कई बार जैनेटिक भी होता है। इसलिए अपने खान पान पर ध्यान दें और अपनी रोजाना दिनचर्या में ऐसे आहार शामिल करें, जिनमें पोष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में हो। जिससे आंखों को पोषण मिल सके और आंखों की रोशनी बढ़ाई जा सके।

जीवन और मृत्यु देना इंसान नहीं भगवान के हाथ मे है। लेकिन भगवान ने इंसान को डॉक्टर बनाकर उसे जीवन देने का हक दिया है, इस जीवनदानी को डॉक्टर कहते है। आज विज्ञान की मदद से डॉक्टर यहां तक पहुंच गए है कि वह जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे व्यक्तियों के लिए जीवनदाता है। जब हम अपनी सारी उम्मीदें छोड़ देते है, तब हमारे जीवन में स्वास्थ्य लाने के लिए और हमारा साथ देने के लिए केवल डॉक्टर के पास ही जादुई शक्ति होती है।

जब हम रोते हैं, तब हमें कंधों की जरूरत होती है।
जब हम दर्द में होते हैं, तब हमें दुआओं की जरूरत होती है।लेकिन जब हम त्रासदी में होते है, तब हमें डॉक्टर की जरूरत होती है।।

कब और कैसे हुई राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस को मनाने की शुरुआत-

केंद्र सरकार द्वारा भारत में 1991 में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई थी। हमारे देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ विधानचंद्र राय को सम्मान देने के लिए उनके जन्म दिवस पर यह दिन मनाया जाता है।

भारत में कब मनाया जा रहा है डॉक्टर्स डे-

इस वर्ष 1 जुलाई 2021को 31वां राष्ट्रीय डाॅक्टर्स डे मनाया जा रहा है। कोरोना काल में अपनी व परिवार की परवाह न करते हुए डाॅक्टर्स ने जो सेवाएं निभाई है। इसके लिए सभी डाॅक्टर एवं चिकित्सकों को सम्मान देने व उनका हौसला बढ़ाने के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उनका धन्यवाद किया जाएगा।

राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस मनाने का उद्देश्य-

भारत में प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य डॉक्टरों द्वारा दी जा रही अमूल्य सेवाओं व योगदान को सम्मान देना। भारत सरकार द्वारा 1991 में पहले नेशनल डॉक्टर डे मनाने की घोषणा की थी। इस दिन हमें भी चिकित्सकों के प्रति आभार प्रकट करने के साथ-साथ उन्हें धन्यवाद भी करना चाहिए।
यह दिन उन डाॅक्टरों के लिए सबक का दिन है जो लाचार मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं व बेईमानी करते है।

राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का महत्व

प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। हमारी जिंदगी में एक डॉक्टर का क्या महत्व व भूमिका है ?? इस का एहसास दिलवाने व डॉक्टरों को सम्मानित करने के लिए ये दिवस मनाया जाता है। जैसे कि हम जान ही सकते हैं कि कैसे कोरोना महामारी के चलते जब सभी लोग अपने घरों में सुरक्षित थे। तो कैसे डॉक्टर अपने परिवार, बच्चों और माता-पिता को छोड़कर दूसरों की सहायता करने के लिए आगे आए।

एक डॉक्टर ही वो भूमिका निभाता है, जो रोते हुए आए अस्पताल के लोगों को हंसाते हुए घर भेजता है।

हमारे विश्वास की डोर है- डॉक्टर

डॉक्टर होना सिर्फ एक काम ही नहीं बल्कि चुनौतीपूर्ण वचनबद्धता है। डॉक्टर ही एक ऐसा व्यक्ति है, जिस पर लोग भगवान की तरह विश्वास करते है। जो हमारे लिए आशा की एक किरण है। जीवन और मौत की लड़ाई लड़ रहे अनगिणत लोगों के जीवन की डोर उनके हाथ में होती है। सभी डॉक्टर जब अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत करते हैं, तो अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाने की कसम खाते है। उनके मन में नैतिकता और जरूरतमंद लोगों की मदद का जज्बा होता है। डॉक्टर की एक छोटी सी भूल से रोगी की जान जा सकती है।

डॉक्टर्स का न कोई दर्द, न कोई आराम, उनकी तो बस जिंदगी है…देश के नाम।

जो व्यक्ति अपने जीवन को समाज के कार्य के लिए लगा देता है और अपना सुख, दुख किसी की जिंदगी को बचाने के लिए लगा देता है। उसके लिए भी एक दिन होना चाहिए और वही एक खास दिन है डॉक्टर्स डे।

डॉक्टर को दुनिया में विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे हिंदी में चिकित्सक व वैध कई नामों से जाना जाता है। प्राचीन काल से भारत में वैध परंपरा रही है। जिनमें धनवन्तरि, सुश्रुत, जीवक व चरक आदि रहे हैं।

एक अच्छे डॉक्टर की पहचान

एक अच्छा डॉक्टर सबसे पहले एक अच्छा इंसान भी होता है। जो आपकी पीड़ा को महसूस ही नहीं करता, बल्कि वास्तव में उसके लिए चिंतित होता है। वह अपने पेशेंट्स की आर्थिक व पारिवारिक परेशानियों को समझता है। एक अच्छा डॉक्टर बिना किसी स्वार्थ के लंबे लंबे पर्चे लिखने की बजाए अपने पेशेंट्स को अच्छी सलाह देता है।

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस को कैसे मनाएं

  • 1 जुलाई को ज्यादातर लोग चिकित्सक दिवस की शुभकामनाएं देने के लिए फोन करके, मैसेज करके या फिर फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम व अन्य सोशल मीडिया द्वारा उनका धन्यवाद करते हैं।
  • अपने फैमिली डाॅक्टर के घर जाकर उन्हें गिफ्ट देकर उनका धन्यवाद करते हैं।
  • स्कूलों एवं कालेजों में इस दिन कई प्रोग्राम आयोजित करके डॉक्टरों के महत्व के बारे में लोगों को बताया जाता हैं और धन्यवाद करने के लिए बच्चों द्वारा चित्रकला व ड्राइंग प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।
  • हम अस्पताल या नर्सिंग होम में जाकर डॉक्टर्स को धन्यवाद करने के लिए उन्हें गिफ्ट भी दे सकते हैं।

कोरोना महामारी में डाॅक्टर्स की अहम भूमिका

इस कोरोना महामारी के दौरान जब कोई जरूरत पड़ी, तो बिना घबराएं लोगों का इलाज करने के लिए डाॅक्टर्स ने ही अपनी अहम भूमिका निभाई। कोरोना संक्रमण के समय हम देख ही रहे है कि कैसे डाॅक्टर्स अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की देखभाल कर रहे है।

निष्कर्ष-

अब आप सभी जान ही गए होंगे डॉक्टर का हमारे जीवन लिए क्या योगदान है। इसी लिए तो भगवान के बाद डॉक्टर को इंसान के रूप में भगवान के समान दर्जा दिया जाता है। एक डॉक्टर ही है, जो व्यक्ति को नया जीवनदान दे सकता है। सभी डॉक्टर्स का फर्ज बनता है कि वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए पैसा कमाने को पेशा ना बनाकर मानवीय सेवा को अपना पेशा बनाएं। तभी हमारा डॉक्टर्स डे मनाना सही साबित होगा। लेकिन वर्तमान में डॉक्टर संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है इसके पीछे कई कारण है।

हमारे शरीर के स्वास्थ्य और संतुलित कार्य प्रणाली के लिए बहुत से विटामिन आवश्यक हैं। विटामिन बी 12 भी शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है। विटामिन b12 को कोबालमीन भी कहा जाता है। यह इकलौता ऐसा विटामिन है। जिसमें कोबाल्ट धातु पाया जाता है। मेटाबॉलिज्म से लेकर डीएनए सिंथेसिस और रेड ब्लड सेल्स के गठन में विटामिन बी 12 की जरूरत पड़ती है। नर्वस सिस्टम की हेल्थ के लिए भी बी12 अत्यंत आवश्यक है।

विटामिन बी12 की कमी से दिखने वाले लक्षण-

बी 12 की कमी के कारण शरीर में कई तरह के लक्षण और विकार दिखने लगते हैं। बढ़ती उम्र या पोषण तत्व या पेट की सर्जरी की वजह से विटामिन b12 की कमी हो सकती है। इस कमी को पूरा करने के लिए विटामिन b12 सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं। परंतु सबसे पहले विटामिन b12 की कमी के लक्षणों को पहचानना आवश्यक है।

एक्सपर्ट्स के अनुसार इसकी चार प्रकार के प्रमुख लक्षण होते हैं। इसमें स्किन हाइपरपिगमेंटेशन, विटिलिगो, एंगुलर चेलाइटिस और बालों में बदलाव शामिल है।

हाइपरपिगमेंटेशन-

यह एक ऐसा रोग है जिसमें त्वचा पर दाग धब्बे, पेट या शरीर की दूसरी त्वचा से रंग गहरा हो जाता है। यह डार्क पेज चेहरे के अलावा शरीर के किसी भी हिस्से पर दिखाई दे सकते हैं।

अमेरिकन ओस्टियोपेथिक कॉलेज ऑफ डर्मेटोलॉजी के अनुसार हाइपरपिगमेंटेशन तब होता है, जब त्वचा ज्यादा मात्रा में मेलेनिन नामक पिगमेंट का उत्पादन करने लगती है। यह पिगमेंट त्वचा के रंग से काला रंग प्राप्त होता है। बढ़ती उम्र के लोगों में यह ज्यादा धूप में रहने वालों में ज्यादा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य की यूवी किरणों से अपनी रक्षा करने के लिए त्वचा मेलेनिन का ज्यादा मात्रा में उत्पादन करने लगती है। इसी कारण से त्वचा पर पैच आ जाते हैं।

विटिलिगो-

यह एक आम तौर पर देखी जाने वाली बीमारी है। इसे सफेद दाग भी कहा जाता है। यह हाइपरपिगमेंटेशन के विपरीत है क्योंकि इसमें मेलेनिन की कमी हो जाती है। जिसके कारण सफेद पैच हो जाते हैं। शरीर पर सफेद दाग या पैच की स्थिति को विटिलिगो कहते हैं। यह उन अंगों पर होती है जो सूर्य के सीधे संपर्क में आते हैं। चेहरा, गर्दन और हाथ के हिस्से में यह आम तौर पर होती है।

एंगुलर चेलाइटिस-

यह एक ऐसा रोग है। जिसमें मुंह के कोनो पर लालिमा और सूजन आ जाती है। एक्सपर्ट्स के अनुसार लालिमा और सूजन के अलावा दरारों में दर्द होना ट्रस्टिंग पोजिंग और खून निकलने की समस्या भी होती है।

बालों का झड़ना-

विटामिन b12 की कमी से बालों की समस्या भी उत्पन्न होती है। बालों में विकास के लिए शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन b12 का होना आवश्यक है और विटामिन b12 की कमी से ही बाल झड़ने लगते हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं विटामिन b12 की कमी के अन्य लक्षण है।
त्वचा का रंग हल्का पीला होना, जीव का रंग पीला या लाल होना, मुंह में छाले, त्वचा में सुई चुभना, चलने के तरीके में बदलाव,धुंधली दृष्टि, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, सोचने व महसूस करने के तरीकों में बदलाव आना, मानसिक क्षमताओं में गिरावट जैसे स्मृति, समझ और निर्णय लेने में असमर्थ होना।

विटामिन b12 को हम कैसे पूरा कर सकते हैं-

विटामिन b12 दूध, दही, पनीर वह चीज के सेवन से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है। अगर आप भी इन समस्याओं से बचना और सुरक्षित रहना चाहते हैं, तो इन सब का सेवन अवश्य करें। इनमें से किसी भी प्रकार की समस्या होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें।

इम्यूनिटी:- इम्यूनिटी यानी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता जो कि हमें कई प्रकार की बीमारियों से बचा सकता हैं। हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत हैं, तो हमारा शरीर कई प्रकार की बीमारियों से लड़ सकता हैं।

इम्यूनिट सिस्टम हमारे शरीर में कैसे काम करता हैं, इसको हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं जैसे हमारा लेपटॉप या कम्प्यूटर होता हैं, उसमें जो हम एंटीवायरस डालते हैं वो क्यों डालते हैं वो इसलिए डालते हैं, क्योंकि वो पेनड्राइव के द्वारा या किसी इंटरनेट के जरिए वायरस आते हैं, उससे वो एंटी वायरस उसकी सुरक्षा करता हैं। इसलिए वो एंटीवायरस को इंस्टॉल करते हैं। ठीक उसी तरह हमारे शरीर के अंदर भी एक इम्यून सिस्टम होता हैं, जो रोगों से लड़ने में हमारी मदद करता हैं।

इम्यूनिटी बढ़ाने के उपाय:-

  1. मेडिटेशन के साथ प्राणायाम:- मेडिटेशन के साथ प्राणायाम का अभ्यास करे। सुबह-शाम कम से कम 15-20 ऐसा करने से आपका आत्मबल बढ़ेगा, जिससे आपका मानसिक स्वास्थ स्वस्थ बना रहेगा।
  1. रोजाना सुबह नीम गिलोय की भाप ले और बीमारियों से बचे:- नीम व गिलोय की टहनी पत्तों समेत 100-100 ग्राम कूटकर 2 लीटर पानी डालकर उसकी भाप ले। 25 लंबे समय लेते-छोड़ते जाइए‌। यह भांप 2 मिनट तक ले रोजाना सुबह के समय ऐसा करेे|
  2. पिस्ता ले– अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए पिस्ता ले। क्योंकि इनमें फाइबर, खनिज ओर अनसेचुरेटेड फैट होते हैं और इनसे कई लाभ होते हैं। जैसे:- ह्रदय रोग का खतरा कम, ब्लड शुगर नियंत्रण, ब्लड प्रेशर नियंत्रण, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण आदि।
  3. विटामिन सी ले:- विटामिन सी से भरपूर फल जैसे कि किन्नू , मौसमी, संतरा, नींबू और आंवला आदि खाए व इम्यूनिटी बढ़ाए।
  4. घरेलू प्रोटीन स्रोतों को शामिल करे:- छाछ, दाल, पनीर, पिस्ता, काले चने, दालें आदि लेने आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।
  5. हफ्ते में एक या दो बार यह काढ़ा पीए और स्वस्थ रहे:

काढ़ा बनाने की विधि:-

4 पत्ते नीम, 2 इलायची, 4 पत्ते तुलसी, 1-1 चुटकी हल्दी, मुलेठी, 10 ग्राम गिलोय ( पत्ते व टहनी ) , अजवाइन व सोंठ, 2 लोंग, 5 ग्राम जीरा।


इस सामग्री को 300 ग्राम पानी में डालकर 150 ग्राम होने तक उबाले। स्वादानुसार 20 ग्राम शहद या गुड़ मिला सकते हैं। फिर इसे चाय की तरह धीरे-धीरे पिए।


इस काढ़े को आप ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं। इम्यूनिटी बढ़ाने में यह काढ़ा रामबाण का काम करता हैं।

दोस्तों यह थे, इम्यूनिटी बढ़ाने के कुछ सरल व घरेलू नुस्खे। जिसके द्वारा हम आसानी से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते है। ऐसा करके हम भयानक से भयानक बिमारियों से बच सकते है|

आखिर क्यों बढ़ रहे हैं भारत में ब्लैक फंगस के मामले

ब्लैक फंगस के सबसे अधिक मामले भारत में कोरोना की दूसरी लहर में देखने को मिल रहे हैं। जिन्होंने बड़ी संख्या में तबाही मचा रखी है। ऑक्सीजन और हस्पताल में बेड्स की कमी से बहुत से मरीजों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

जैसे कि आप जानते है, कोरोना महामारी की समस्या तो सारी दुनिया में फैल रही है, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आखिर ब्लैक फंगस की समस्या केवल भारत में ही दिनों- दिन क्यों बढ़ती जा रही है।

भारत में इसका सबसे बड़ा कारण लापरवाही और घर पर ही दवाईयां लेना बताया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार ब्लैक फंगस से निपटने के लिए लिपोसोमल एंफोटेरेसिरिन भी इंजेक्शन का उपयोग होता है। इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के द्वारा पांच और कंपनियों को इसको बनाने का लाइसेंस दिया गया है।

पूरा विश्व अभी तक कोरोना वायरस के कहर से जूझ रहा है तो दूसरी भारत में ओर चैलेंज ब्लैक फंगस ने दी दस्तक जो एक बेहद ख़तरनाक इंफेक्शन है और पिछले कुछ दिनों से कोविड-19 के मरीजों को तेज़ी से अपना शिकार बना रहा है। जिससे लोग बेहद चिंतित हैं। इसकी शुरुआत दिल्ली से हुई उसके बाद में गुजरात, अहमदाबाद, पंजाब राजस्थान इत्यादि को इसने अपनी चपेट में ले लिया है, जो बेकाबू हो रहा है और कुछ मरीजों की मौत हो चुकी है। भारत में ब्लैक फंगस के सबसे अधिक 11 हजार से ज़्यादा मामले सामने आ चुके है। कई राज्यों में इसे महामारी घोषित किया जा चुका है। तो आइए जानते हैं भारत में फैल रहे ब्लैक फंगस के बारे में, इसके लक्षण और बचने के उपाय?

ब्लैक फंगस क्या है-

ब्लैक फंगस या म्यूकर माइकोसिस एक ऐसी घातक फंगल बीमारी है, जोकि म्यूकरमायोसिस नाम के फंगाइल से होता है। जो शरीर के जिस भी भाग में होता है, उसे खत्म कर देता है।

ब्लैक फंगस हमारे शरीर पर कैसे असर डालता है-

  • चेहरे, नाक व आंख के अलावा मस्तिष्क को अपनी चपेट में ले रहा है।
  • जिससे आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा होता है।
  • दिमाग के साथ-साथ साइनस फेफड़ों पर भी असर डालता है।

ब्लैक फंगस किसी भी आयु के व्यक्ति में देखा जा सकता है ये बीमारी इतनी घातक है कि जहां भी हो जाए वो अंग निकालने पड़ते हैं।

क्या है ब्लैक फंगल का वैज्ञानिक नाम-

ब्लैक फंगस का वैज्ञानिक नाम म्यूकोरमाइकोसिस है, जो एक घातक व बहुत कम होने वाला फफूंद संक्रमण है। जो भारत में Covid-19 के मरीजों में तेजी से फ़ैल रहा है।

कैसे फैलता है ब्लैक फंगस और कहां पाया जाता है-

ब्लैक फंगस एक रेअर संक्रमण है जोकि हमारे वातावरण में कहीं से भी पाया जा सकता है। जो सांस के द्वारा हमारे शरीर में पहुंच जाता है। ब्लैक फंगस हमारी धरती के साथ-साथ सड़ने वाले ऑर्गेनिक पदार्थों जैसे कि बड़ी लकड़ी, कम्पोस्ट खाद व पत्तियों में पाया जाता है।

इतिहास-

अगर देखा जाए तो हमारे लिए ब्लैक फंगस बीमारी नई है, लेकिन जर्मनी के पाल्टाॅफ नाम के एक पैथोलॉजीस्ट ने 1885 में ब्लैक फंगस का पहला मामला देखा था इस को म्यूकोरमाईकोसिस नाम अमेरिकी पैथोलॉजीस्ट आरडी बेकर ने दिया था। 1955 में इस बीमारी से बचने वाला पहला व्यक्ति हैरिस था।

ब्लैक फंगस होने के लक्षण-

कोरोना वायरस के चलते इसके लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल है। लेकिन ये देखा गया है कि जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती, उनको ये अपनी चपेट में लें रहा है जैसे कि

मस्तिष्क व साइनस संबंधी म्यूकरमायोसिस के लक्षण में शामिल होने वाले-

  • सिरदर्द
  • चेहरे के एक तरफ सूजन
  • चेहरे पर जैसे कि नाक,आंख व मुंह वाले हिस्से में काले घावों का भयंकर रूप धारण करना।

फेफड़ों से संबंधित म्यूकरमायोसिस के लक्षण-

  • बुखार होना
  • खांसी
  • छाती में दर्द होना
  • सांस लेने में मुश्किल आना

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल से संबंधित म्यूकरमायोसिस के लक्षण-

  • उल्टी आना
  • पेट में दर्द होना

ब्लैक फंगस के शरीर में फैलने की आशंका-

  • ब्लैक फंगस के होने की संभावना उन्हें ज्यादा होती है, जो कि पहले से ही किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हो।
  • निरंतर उन दवाइयों का इस्तेमाल करना जोकि आपकी इम्यूनिटी को कम कर रही हो।
  • जो व्यक्ति मधुमेह के मरीज हो ।
  • जिसकी ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होती है, तो वो डाॅक्टर की सलाह लिए बिना स्टेराॅइड लेना न छोड़ें।
  • गंदे मास्क का इस्तेमाल करने से।
  • शरीर में धीमी उपचारात्मक क्षमता के कारण।

इन अफवाहों से बचें इन पर न दें ध्यान-

  • कुछ लोगों का मानना है कि कुछ भी कच्चा खाने से फंगस इन्फेक्शन हो रहा है जोकि गलत धारणा है।
  • कहीं ओर से लाए गए सिलिंडर द्वारा कोरोना के मरीज को ऑक्सीजन सपाॅर्ट की वजह से।
  • होम आइसोलेशन में रह रहे, अधिकतर कोरोना मरीजों में फंगस इन्फेक्शन के लक्षणों में देखा जा सकता है।

इससे बचने के उपाय-

  • मरीज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उसे फल, संतरा व नीबू पानी दें।
  • तली चीजें न देकर इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत करने वाले पदार्थों का सेवन करें।
  • शरीर में पानी व नमक की मात्रा कायम रखी जाएं। मरीज पर लगातार निगरानी रखे। समय पर उपचार न मिलने की वजह से जानलेवा हो सकती है।

अपने आप को फंगस इंफेक्शन से कैसे बचाएं-

  • यदि हमारे शरीर में इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होगा, तो कोई भी बीमारी हमारे शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती। इसलिए सबसे मुख्य कारण शरीर को स्वस्थ व फिट रखने के लिए इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होना चाहिए।
  • स्टेराॅईड का अतिरिक्त सेवन न करें।
  • मधुमेह को नियंत्रित रखने का प्रयत्न कीजिए।
  • जिस व्यक्ति को म्यूकरमायोसिस की बीमारी हो उस व्यक्ति के संपर्क से दूर रहें।
  • कैंसर, एड्स वाले मरीजों को फंगल इंफेक्शन का अधिक खतरा होता है।
  • अगर समय पर इसके लक्षणों को पहचानकर उपचार हो जाए तो व्यक्ति ठीक हो जाता है।

ब्लैक फंगस से बचने के लिए इम्यूनिटी से भरपूर पदार्थ ले, यदि आप इस बीमारी का शिकार हो गए हो जाए तो तुरंत इन लक्षणों को पहचानें और डाॅक्टरों से सही समय पर उपचार करवाएं।

थैलेसीमिया क्या होता है

थैलेसिमिया एक आनुवंशिक रोग है, जो अक्सर बच्चों में जन्म से पाया जाता है। प्रत्येक वर्ष लाखों लोग इस बीमारी से ग्रसित होते हैं बच्चों को इस बीमारी से अधिक खतरा रहता है। इस रोग में मरीज के शरीर में खून सामान्य स्तर तक नहीं बन पाता। हमारे शरीर में रक्त में तीन प्रकार के रक्ताणु पाए जाते है- लाल रक्ताणु , सफेद रक्ताणु और प्लेटलेट्स। लाल रक्ताणु शरीर में बोन मैरो में बनते रहते है और इनकी आयु लगभग 120 दिन की होती है और इसके बाद ये मृत हो जाते है। परंतु साथ में नए भी बनते रहते है। अगर यह प्रकिर्या सही अनुपात में न हो तो इसी विकार को थैलेसिमिया कहा जाता है।

थैलेसिमिया के दो प्रकार

World Thalassemia Day 2021 - Exclusive Samachar

यह दो प्रकार का होता है

  • माइनर थैलसीमिया।
  • मेजर थैलेसिमिया।

माइनर थैलसीमिया वाले बच्चों के जीवन में रक्त समान्य रूप से नहीं बन पाता लेकिन वह सामान्य जीवन जी लेते हैं, लेकिन मेजर थैलेसिमिया वाले बच्चों को हर 21-22 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता हैं।

विश्व थैलेसीमिया दिवस का उद्देश्य

यह दिन हर वर्ष 8 मई को मनाया जाता है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य इस बीमारी के लक्षणों और इस बीमारी से कैसे निपटा जाए, उन तरीकों के बारे में सभी को जागरूक करना और जो इस बीमारी के साथ जी रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित करना। तो आइए हम भी इस बीमारी के बारे में जितना हो सके, जागरूकता फैलाए और थैलेसीमिया से पीड़तों के लिए नियमित रक्तदान को अपनी जिंदगी का अभिन्न अंग बनाए और दूसरों को भी प्रेरित करें।

भारत में थैलेसीमिया के आंकड़े

Thalassemia statistics in India - Exclusive Samachar

विश्व भर में लगभग 1 लाख बच्चे जन्म से थैलेसीमिया का शिकार होते हैं। अगर भारत की बात की जाए, तो प्रत्येक वर्ष 10 हजार से अधिक बच्चे जन्म से थैलेसीमिया के रोगी पाए जाते हैं। यह एक ऐसा रोग है जिसकी पहचान बच्चों में 3 महीने बाद ही हो पाती है। ऐसा रक्त की कमी के कारण होता है और इसका इलाज ताउम्र करवाना पड़ता है। सही समय पर उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। तो आइए जानते हैं इस बीमारी के लक्षण क्या है और इससे बचने के उपाय।

आखिर क्यों होता है यह रोग

जैसे कि हम बात कर चुके हैं कि यह एक आनुवंशिक रोग है, यह माँ-बाप से ही बच्चों को होता है ।अगर माँ या बाप में से किसी को भी यह रोग है या दोनों को है तो उनकी आने वाली पीढ़ी में भी इस रोग के होने के आसार होते हैं।

थैलसीमिया के लक्षण

  • थकान ,
  • छाती में दर्द,
  • सांस लेने में कठनाई,
  • सिर दर्द,
  • चक्र आना ,
  • बेहोशी,
  • पेट मे सूजन ,
  • सक्रमण,
  • त्वचा,नाखूनों,आंखें और जीभ का पीला होना इत्यादि।
  • लेकिन कुछ लक्षण बाल्य अवस्था तथा किशोरावस्था के बाद दिखाई देते हैं।

इस रोग से कैसे बचा जाए

  • इसके लिए सबसे जरूरी है कि शादी से पहले लड़का और लड़की टेस्ट करवा कर सुनिश्चित कर ले कि कहीं दोनों में से किसी को भी माइनर थैलसीमिया तो नहीं है।
  • अगर माता या पिता में से किसी को भी थैलेसीमिया हो तो वह डॉक्टर की सलाह और निगरानी में ही बच्चा प्लान करें।
  • रोगी विटामिन भरपूर और आइरन युक्त पदार्थ लें।
  • संतुलित आहार लें।
  • नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।

निष्कर्ष

आइए हम सब मिलकर लोगों को इस बारे में जागरूक करें। यह ऐसा रोग है जो माता पिता के जींस में गड़बड़ी होने के कारण होता है। इसके बारे में अगर सभी को जागरुक किया जाए तो इस रोग के होने की संभावना बहुत कम होती है। हम ऐसे रोगियों के लिए अधिक से अधिक रक्त दान करें ताकि रक्त की कमी से किसी की भी मृत्यु ना हो।