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Yaad -E – Murshid Free Polio Camp

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आने वाली 18 तारीख़ को हरियाणा की एक संस्था में निःशुल्क विकलांगता निवारण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। आपको बता दें यह शिविर हर साल लगाया जाता है और सैंकड़ों लोग इस शिविर का हिस्सा बनते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें यह शिविर हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा सिरसा में लगाया जा रहा है। आपको बता दें कि यह शिविर डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की पावन स्मृति में हर साल लगाया जाता है। जो पूर्ण रूप से निःशुल्क लगाया जाता है। इस कैंप में सभी तरह की मेडिकल सुविधा फ्री में दी जाती है।

याद-ए-मुर्शीद विकलांगता निवारण शिवर —
मानवता को सर्पित है डेरा सच्चा सौदा का निःशुल्क याद-ए-मुर्शीद विकलांगता निवारण शिवर। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि Dera Sacha Sauda में यह कैंप Baba Ram Rahim ji की पावन प्रेरणा से हर साल “18 अप्रैल” को “पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज” की पावन स्मृति में लगाया जाता है। इस कैंप में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ अपनी सेवाएं फ्री में देते हैं। Dera Sacha Sauda में इस तरह के कैंप निरंतर रूप से लगते रहते हैं।

Yaad E Murshid Free Polio & Disability Correction Camp के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी –

इस कैंप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी जा रही है –

दिनांक — 18 अप्रैल 2024
समय -सुबह 9:00 बजे से शाम 3:00 बजे तक

स्थान — शाह सतनाम जी स्पेशलिटी हॉस्पिटल , सिरसा (हरियाणा) 125055

फोन नं — 01666- 260222, 97288- 60222

Baba Ram Rahim के मार्गदर्शन में DSS में disability camp की तरह और भी अन्य मासिक कैंप लगाए जाते हैं।

रक्तदान शिविर, फ्री मेडिकल कैंप, याद -ए – मुर्शीद फ्री Eye camp आदि Dera Sacha Sauda में लगने वाले कैंप मानवता को समर्पित हैं। अगर आपके आस-पास कोई भी शारीरिक रूप से विकंलाग है और आर्थिक रूप से अपना इलाज करवाने में असमर्थ है, तो आप उन्हें इस शिविर की जानकारी दें, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस कैंप का हिस्सा बन सके।

Eid-ul-Fitar 2024: Significance and Celebrations:

मुस्लिमों के लिए ईद का त्योहार बहुत ही खास होता है। इसे दुनियाभर में मुसलमान अपने अपने तरीके से नमाज अदा करके मानते हैं। वर्ष 2024 की पहली ईद इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार माह ए रमजान पूरा होने के बाद शावल की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसे ईद उल फितर, ईद अल फितर, रमजान ईद या मीठी ईद आदि नामों से भी जाना जाता है।

Eid -ul -Fitar Meaning – ईद-उल-फितर का अर्थ है: ‘व्रत तोड़ने का त्योहार’। यह रमजान के अंत का प्रतिक है। ईद-उल-फितर की तारीख “चंद्रमा के चक्र” से तय होती है। इस दिन मुसलमान न केवल उपवास की समाप्ति का जश्न मनाते हैं, बल्कि पूरे रमज़ान के दौरान उन्हें दी गई मदद और शक्ति के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं।
Eid -ul -Fitar Celebration – ईद-उल-फितर से पहले के दिनों में, इतालवी मुसलमान इस अवसर को मनाने के लिए विभिन्न तैयारियों में जुटे होते हैं। घरों को साफ किया जाता है और सजाया जाता है । नए कपड़े खरीदे जाते हैं या सिलवाए जाते हैं और विशेष भोजन की योजना बनाई जाती है। यह उत्साह का समय है क्योंकि परिवार प्रार्थनाओं, दावतों और उत्सवों के लिए इकट्ठा होने की तैयारी करते हैं। भारत देश में आज के दिन ईद के त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से व बड़े उत्साह से मनाया जा रहा है। ईद का यह पवित्र पर्व सौहार्द व भाईचारे का प्रतीक होता है। आज के दिन मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़कर पूरे विश्व में शांति और अमन की दुआ करते हैं। नमाज़ पढ़ने के बाद सभी एक दूसरे के घर जाकर मुंह मीठा करते हैं और एक दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं।
Eid -ul -Fitar Celebration Day and Date – ईद उल फितर किस महीने में और कब मनाई जाती है इसका फैसला चांद के दीदार से किया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर हिज़री के 10वें महीने शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है । अबकी बार भारत में ईद उल फितर 11 अप्रैल को मनाई जा रही है क्योंकि इसी दिन चांद दिखाई देगा। ईद के त्योहार के दिन घर पर मीठे पकवान बनाए जाते हैं। सभी के घरों में सेवियाँ बनाई जाती हैं। नए-नए कपड़े पहनकर, इत्र लगाकर, एक दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देना, यह सब करना, इस त्यौहार की खुशियां हैं। लेकिन सिर्फ ये काम करने से ईद पूरी नहीं होती । लोग समूहों में जाकर नमाज अदा करते हैं और एक दूसरे को गले लगकर ईद मुबारक बोलते हैं और समाज में अमन शांति के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं।

Chaitra Navratri 2024

Chaitra Navratri इस वर्ष 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है। 9 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव शुरू हो रहा है। नवरात्रि 9 April से प्रारंभ होकर 17 April तक चलेगी। जिसमें माता के 9 स्वरूपों की आराधना की जाएगी।
पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कुष्मांडा, पांचवी स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवी महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री यह मां दुर्गा के 9 स्वरूप हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साल में चार बार नवरात्रि आती है। इसमें चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रत्यक्ष होती हैं। दो गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ नवरात्रि होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि से हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत का आरंभ होता है। जिसे भक्त उल्लास पूर्वक मॉं दुर्गा की पूजा अर्चना करके मानते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 14 मार्च से 13 अप्रैल तक खरमास है। यह महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महीना होता है। इसी माह में मॉं दुर्गा की पूजा का विशेष त्यौहार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है। इससे यह पर्व और भी अधिक विशेष हो गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास में चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होना सभी के लिए बेहद शुभ है। मां दुर्गा की आराधना करके नवरात्रि में आसानी से माता का आशीर्वाद पाया जा सकता है। यह भी मान्यता है कि नवरात्रि में मॉं जगदंबा धरती पर ही विराजमान होती है और भक्तों का कल्याण करती हैं।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना मुहूर्त-
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना मंगलवार 9 अप्रैल 2024 को होगी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल 2024 को रात 11:50 बजे प्रारंभ होगी और प्रतिपदा तिथि समाप्त 9 अप्रैल 2024 को रात 8:30 बजे होगी।

कलश स्थापना मुहूर्त – सुबह 6:05 बजे से 10:16 बजे तक रहेगा।
कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:57 बजे से 12:47 बजे तक रहेगा।

नवरात्रि पूजा के नियम-

वास्तु शास्त्र के अनुसार नवरात्रि पूजा ( Navratri Pooja) में नियमों का पालन बहुत ही जरूरी है।

⁃ नवरात्रि पूजा में घर के ईशान कोण (उत्तर पूर्व) में कलश और माता की फोटो स्थापित करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यह स्थान देवताओं का है इसीलिए इस दिशा में कलश स्थापना से सकारात्मकता बढ़ती है।

⁃ नवरात्रि पूजा के दौरान आप घर के मैन गेट पर लक्ष्मी माता के चरण चिन्ह लगाए जो की बेहद शुभ माने जाते है।

⁃ घर में नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए ????️ ओम का निशान घर के मुख्य द्वार पर बनाए।

⁃ नौकरी और व्यवसाय में तरक्की के लिए ऑफिस के मैन गेट पर लाल, पीले फूल डालकर एक बर्तन में जल भर कर रखें।

⁃ नवरात्रि में नौ दिनों की अखंड ज्योति जलाई जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार अखंड ज्योति को दक्षिण पूर्व की दिशा में रखना शुभ होता है, इससे घर के लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।

आदिशक्ति मॉं दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना का यह उत्सव भक्तों का कल्याण करता है और मनवांछित फल प्रदान करता है।

First Solar Eclipse : 8 अप्रैल को लगने जा रहा है इस साल का पहला सूर्य ग्रहण

First Solar Eclipse of 2024:
8 अप्रैल को इस साल का पहला सूर्य ग्रहण (First Solar Eclipse of 2024) लगने वाला है। यह ग्रहण विश्व के अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देगा। खास तौर पर मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा।

क्या होता है सूर्य ग्रहण ?

चाँद के धरती और सूर्य के बीच आने के कारण लगता है सूर्य ग्रहण। चाँद सूर्य को पूर्ण या आंशिक रूप से ढक लेता है और सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती।
इस वर्ष का सूर्यग्रहण (Solar eclipse of 2024) दुनिया के तीन देशों में ही दिखाई देगा। इस पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा, सूर्य की पूरी डिस्क को ढक लेगा और दिन में अंधेरा छा जाएगा।

कहाँ और कब देखा जा सकेगा First Solar Eclipse of 2024 :
आपकी जानकारी के लिए बता दें की 8 अप्रैल को लगने वाले साल के पहले सूर्यग्रहण (First Solar Eclipse) को मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा में देखा जा सकेगा। अलग-अलग देशों के अनुसार इसकी अवधि अलग-अलग रहेगी। माना जा रहा है कि अमेरिका के टेक्सास में इसका सबसे ज्यादा असर रहेगा। टेक्सास के कुछ इलाकों में 4 मिनट 25 सेकंड तक पूर्ण सूर्यग्रहण रहेगा और अंधेरा छा जाएगा।
मैक्सिको में इसका असर 40 मिनट 43 सेकंड तक होगा। अमेरिका में यह ग्रहण 67 मिनट 58 सेकंड तक के लिए होगा और कनाडा में 34 मिनट 4 सेकंड ही इस सूर्यग्रहण को देखा जा सकेगा। बता दें कि ग्रहण के समय भारत में रात होने के कारण (रात्रि 10:08 – 1:25 बजे), इसे भारत में (in India) देखना मुमकिन नहीं होगा।

When was the First Solar Eclipse?
वैसे तो सूर्य, चंद्र, अंतरिक्ष या इनसे संबंधित खगोलीय घटनाओं की शुरुआत के बारे में जानकारी या साक्ष्य जुटा पाना संभव नहीं है। फिर भी इतिहासकारों का मानना है कि पहला सूर्यग्रहण 22 अक्तूबर, 2134 ई.पू. को प्राचीन चीन में लगा था। हालांकि इसे रिकॉर्ड नहीं किया जा सका सका था।
3 मई 1375 या 5 मार्च 1223, ई०पू० प्रमाणिक सूर्यग्रहण के सूर्यग्रहण को सबसे पहला सूर्यग्रहण (First Solar Eclipse) माना जाता है। यह ग्रहण कांस्य युग के उगारिट शहर में 3247 साल पहले दिखाई दिया था, जो कि वर्तमान सीरिया में है।

When was the solar eclipse first discovered?
अनेक्सागोरस (Anaxagoras) नामक एक ग्रीस विद्वान ने सबसे पहले सूर्य और चंद्र ग्रहण के लिए सटीक वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की। ई०पू० के समय में ग्रहणों से संबंधित सही थ्योरी उनकी ही थी। वर्तमान में कई चीनी और ग्रीक दार्शनिकों ने ग्रहण को विस्तार से जानने के प्रयत्न किए। परंतु जोहानस केपलर ने 1605 में पूर्ण सूर्यग्रहण की प्रमाणिक व्याख्या पेश की।

Noble Gas first observed during solar eclipse?
हीलियम (Helium) एक ऐसी गैस है, जिसे 18 अगस्त, 1868 के पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सबसे पहले पाया गया। (noble gas first observed during solar eclipse) लार्कयर ने हीलियम को सूर्य के करोमोस्फीयर में पाया। गौरतलब है कि उससे पहले तक यह गैस धरती पर भी नहीं पाई गई|

How A Solar Eclipse first proved Einstein right?
सूर्य ग्रहण विज्ञानिकों को शोध, रिसर्च व खोज के नये अवसर प्रदान करते हैं। इसी कड़ी में 29 मई 1919 का सूर्य ग्रहण विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। 1919 के सूर्य ग्रहण ने महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की सामान्य सापेक्षता (General Relativity) की थ्योरी को सही साबित कर दिया था।
1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने रिलेटिविटी से संबंधित एक सिद्धांत प्रस्तुत किया। जिसके अनुसार तारों से निकलने वाला प्रकाश सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण मुड़ जाता है। यानि की अब दिखाई देने वाले तारों का स्थान उनका वास्तविक स्थान नहीं है। उनकी यह थ्योरी 1919 के सूर्य ग्रहण ने सच साबित कर दी(solar eclipse proved Einstein right).

भारत में सूर्यग्रहण (in India) :
भारत में (in India) सूर्य और चंद्रग्रहण की सर्वप्रथम व्याख्या आर्यभट्‌ट ने की। माना जाता है कि भारत में सूर्यग्रहण को धार्मिक महत्वों के साथ जोड़ा जाता है। इस साल 8 अप्रैल का सूर्यग्रहण यहां दिखाई नहीं देगा। भारत में (in India) अगला सूर्यग्रहण 2031 में देखा जा सकेगा।

लाल मिर्च पाउडर में भरा होता है ईंट का चूरा, चिरने लगेंगी आपकी आंतें, FSSAI ने बताया घर में इस तरीके से करे नकली मिर्च की जांच-

आज के आधुनिक समय में मसालों में मिलावट करना आम बात हो गई है और मिलावटी चीजें खाने से इंसान की सेहत पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। आप सभी के घरों में इस्तेमाल होने वाले लाल मिर्च पाउडर में भी ईंट के चुरे की मिलावट हो सकती है। जानिए घर पर रहते हुए इसकी पहचान कैसे करे।
 हम सभी के घरों में लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक है। खाना में सब्जी को स्वाद और गहरा रंग देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। पुराने समय में साबुत लाल मिर्च को धूप में सुखाकर और पीसकर उसका पाउडर बनाया जाता था और फिर इसके इस्तेमाल में लिया जाता था। लेकिन अब लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) के पैकेट मिलने लगे हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में भरा होता है ईंट का चूरा, जो दे रहा बिमारियों को बुलावा, FSSAI ने बताया हम घर में रहते कर सकते है लाल मिर्च की जांच-

आज के समय में खाने-पीने की लगभग सभी चीजों में मिलावट होने लगी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आप जो लाल मिर्च पाउडर अपनी रसोई में इस्तेमाल कर रहे हैं, आख़िर वह कितना सुरक्षित है? क्या आपके लाल मिर्च पाउडर में कोई मिलावट तो नहीं है?
आजकल लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए व पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उन्हें गहरा रंग देने के लिए उनमें मिलावट कर रहे है। अधिकतर व्यापारी मसालों का वजन बढ़ाने के लिए उन में लकड़ी का बुरादा, ईंट का चूरा और कृत्रिम रंगों का उपयोग कर रहे है। यह मसाले इंसान के पेट में जाकर कई खतरनाक बीमारियों को बुलावा देकर उन्हें मरीज बना सकते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने एक आसान तरीक़ा बताया है जिसके द्वारा आप कुछ ही सेकंड में असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की जांच कर सकते हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में मिलावट क्यों की जाती है?
आज के समय में खाने में मिलावट करना आम बात हो गई है। लोग पैसे कमाने में इतने लीन हो गए हैं कि न जाने वो कितने लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है। ऐसे ही आज हम बात कर रहे है लाल मिर्च पाउडर की। आमतौर पर पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उनका रंग निखारने के लिए उनमें मिलावट की जाती है। मिर्च पाउडर में आमतौर पर ईंट पाउडर, नमक पाउडर या टैल्क पाउडर की मिलावट की जाती हैं।
असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की ऐसे करें जांच-
घर पर लाल मिर्च पाउडर में मिलावट की जांच ऐसे करें
  • एक गिलास सादे पानी ( normal water) में एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाए।
  • पानी में घुले हुए पाउडर को थोड़ी मात्रा में लेकर अपने हाथ में रगड़ें।
  • यदि इसको रगड़ने के बाद कोई खुरदरापन महसूस होता है, तो इसमें लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में ईंट का पाउडर या रेत की मिलावट है।
  • यदि अवशेष साबुन जैसा और चिकना लगता है, तो इसमें सोप स्टोन की मिलावट है।
आर्टिफिशियल कलर की ऐसे करें जांच-
  • इसे चमकीला रंग देने के लिए लाल मिर्च पाउडर में आर्टिफिशियल कलर मिक्स किए जाते हैं।
  • एक गिलास पानी में थोड़ा सा मिर्च पाउडर छिड़कें।
  • अगर इसमें आपको एक रंगीन लकीर नजर आती है, तो लाल मिर्च पाउडर मिलावटी हो सकता है।
  • लाल मिर्च पाउडर में कई बार पानी में घुलनशील तारकोल रंग मिलाया जाता है।
स्टार्च का पता लगाने के लिए ऐसे करें जांच-
  • लाल मिर्च पाउडर की मात्रा बढ़ाने के लिए अक्सर इसमें स्टार्च भी मिलाया जाता है।
  • स्टार्च की जांच के लिए पिसे हुए मसाले में टिंचर आयोडीन या आयोडीन घोल की कुछ बूंदें मिलाए।
  • यदि यह नीले रंग में बदलता है, तो यह लाल मिर्च पाउडर में स्टार्च की वजह से हो सकता है।
सेहत के लिए खतरनाक है ईंट का पाउडर
ईंट पाउडर आमतौर पर ईंट के चूरे से बनता है, जो दिखने में लाल रंग का होता है। इस पाउडर का रंग और बनावट लाल मिर्च के पाउडर के समान होती है। इसलिए इसका उपयोग अक्सर मिलावटी पदार्थ के रूप में किया जाता है। यह सेहत के लिए बहुत खतरनाक होता है। इसके नियमित सेवन से शरीर पर गंभीर परिणाम होते हैं। यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है।

ISRO का सबसे आधुनिक, महत्वपूर्ण व अडवांस मौसम सैटेलाइट INSAT -3DS किया गया सफलतापूर्वक लॉन्च-

ISRO का सबसे आधुनिक व महत्वपूर्ण मौसम सैटेलाइट INSAT-3DS सफलतापूर्वक लॉन्च हो चुका है। इस सैटेलाइट GSLV-F14 को राकेट श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड 2 से छोड़ा गया है, यह सैटेलाइट समुद्र, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी देने के साथ-साथ राहत एवं बचाव कार्यों में मदद करेगा। इसलिए इसे बनाया गया है।
17 फरवरी 2024 की शाम को 5 बजकर 35 मिनट पर भारत का सबसे एडवांस मौसम सैटेलाइट INSAT-3DS  सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया है। इसके श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से GSLV- F14 राकेट के जरिए इनसेट -3 डीएस सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में छोड़ा गया है, जोकि इस सीरीज का तीसरी पीढ़ी का सैटेलाइट है।
इस लॉन्चिंग में तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल हुईं। जैसे कि यह GSLV के द्वारा 16वीं उड़ान है, स्वदेशी क्रायो स्टेज की ये 10वीं उड़ान और स्वदेशी क्रायो स्टेज की सातवीं ऑपरेशनल फ्लाइट होगी। GSLV-F14 रॉकेट ने लॉन्चिंग के बाद इनसैट-3डीएस सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में पहुँचाया है, आपको बता दें, इसके पश्चात अब सैटेलाइट के सोलर पैनल्स भी खुल गए हैं। सूरज से मिलने वाली रोशनी से सैटेलाइट को ऊर्जा मिलती रहेगी और यह लगातार काम करता रहेगा।
यह सैटेलाइट 170 किलोमीटर पेरीजी और 36,647 किलोमीटर वाली अंडाकार जीटीओ की कक्षा में अब चक्कर लगाएगा। सैटेलाइट का कुल वजन 2274 किलोग्राम इसकी फंडिंग पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने की है जिसमें 6 चैनल इमेजर (Channel Imager) है और 19 चैनल साउंडर मेटियोरोलॉजी पेलोड्स मौजूद हैं। यह नया सैटेलाइट अपने पुराने सैटेलाइट के साथ मिलकर हमें मौसम की जानकारी देगा।
यह सैटेलाइट क्या-क्या काम करेगा-
  • अलग-अलग स्पेक्ट्रल वेवलेंथ के जरिए धरती की सतह, समुंद्र और पर्यावरण पर नजर रखेगा।
  • वैज्ञानिकों को अलग-अलग जगहों से डेटा कलेक्ट करके देगा।
  • वायुमंडल में होनी वाली अलग-अलग मौसमी पैरामीटर्स का वर्टिकल प्रोफाइल देगा।
  • बचाव व राहत कार्यों के दौरान मदद करेगा।
सातवां सैटेलाइट हुआ लॉन्च-
आपकी जानकारी के लिए बता दें, अब सातवां सैटेलाइट लॉन्च हुआ है। पहले छह सैटेलाइट 2000 से 2004 में लॉन्च हुए थे।
जिससे संचार, टीवी ब्रॉडकास्ट और मौसम संबंधी जानकारियां मिल रही थी। अब इस सातवें सैटेलाइट के द्वारा समुंद्र, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी के साथ-साथ बचाव कार्यों में मदद मिलेगी।
मौसम की सटीक जानकारी-
यह यंत्र भारत व उनके आसपास मौसम में होने वाले बदलावों में जानकारी देगा, ताकि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही सूचना दी जा सके और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।

Dera Chief Gurmeet Ram Rahim को मिली 50 दिनों की पैरोल

हरियाणा में स्थित डेरा सच्चा सौदा के Chief Baba Ram Rahim, जो आए दिन सुर्ख़ियों में रहते है उनको एक बार फिर पैरोल मिल चुकी है। आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बार यह पैरोल 50 दिनों के लिए मिली है। हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को इस पैरोल के लिए मंजूरी दी है। जिसके तहत Dera Chief कभी भी जेल से बाहर आ सकते हैं। रोहतक की सुनारिया जेल में रह रहे Gurmeet Ram Rahim पहले भी कई बार पैरोल पर बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार का कहना है कि उन्हें यह Parole नियमों के आधार पर ही दी जाती है।

क्या Baba Ram Rahim को बार-बार Parole मिलना सही है?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, आमतौर पर पैरोल कैदी की अस्थायी रूप से रिहाई होती है। लेकिन पैरोल कैदी के अनुरोध पर दी जाती है, जबकि पैरोल मिलना कैदी का क़ानूनी अधिकार है। पैरोल सरकार द्वारा जेल में बंद लोगों को दिया गया एक मौका है। जिसका उद्देश्य होता है की क़ैदी को कुछ समय तक जेल में रहने के बाद सामान्य जीवन में वापस आने में मदद मिले। Baba Ram Rahim की कहानी के मामले में, यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्हें पैरोल देना कोई साधारण बात नहीं है। इस बारे में हरियाणा सरकार का कहना है कि वह राम रहीम को पैरोल देकर कानून का पालन कर रहे है।

क्यों मिल रही है Baba Ram Rahim को बार-बार पैरोल?

आपको बता दें, साल में कोई भी कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। फरलो पारिवारिक, व्यक्तिगत व सामाजिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए दी जाती है। वहीं अगर बात करें Parole की, तो इसके लिए कारण बताना जरूरी होता है। पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है। इस बार Baba Ram Rahim को 50 दिन के लिए Parole मंज़ूर की गई है। नियमों की बात करें, तो एक क़ैदी को साल में 98 दिन तक की पैरोल मिल सकती है। आपको बता दें की पैरोल के दौरान कैदी जेल के बाहर जो समय बिताते हैं उसे उनके कुल जेल के समय को कम किए बिना उनकी सजा के हिस्से के रूप में गिना जाता है।

इसलिए, जब हम Baba Ram Rahim के बारे में बात करते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि यह कोई सहायता नहीं है बल्कि कानूनन अधिकार है। राम रहीम सिंह कानून का पालन कर रहा है। हमारी कानूनी प्रणाली हर किसी को उचित मौका देने के लिए इसी तरह काम करती है और Baba Ram Rahim भी क़ानून का सम्मान करते हैं।

Baba Ram Rahim को कितनी बार मिल चुकी है Parole-

2022 से लेकर अब तक Baba Ram Rahim की यह 7वीं पैरोल होगी। इसके साथ ही Baba अब तक 2 बार फरलो पर आ चुके है। आपको बता दें इस बार Parole के दौरान Dera Chief Baba Ram Rahim Uttar Pradesh के बागपत जिले के बरनावा आश्रम में रहेंगे। इस से पहले भी Dera Chief बरनावा आश्रम में ही रूकते आए हैं। हाल ही में, नवंबर 2023 में Gurmeet Ram Rahim को 21 दिनों की फरलो  दी गई थी। हालांकि कुछ क़ानूनी प्रक्रियाओं के चलते उन्हें डेरा सच्चा सौदा के सिरसा आश्रम में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। जिसके चलते Dera Chief वर्चुअल माध्यमों के द्वारा अपने अनुयायियों से रू-ब-रू होते रहे है।

क्या सच में Baba Ram Rahim की पैरोल को लेकर दी जाती है अतिरिक्त ढील?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्या बाबा राम रहीम को बार-बार पैरोल देते हुए ढील बरती जा रही है? तो इस पर अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्सा जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्यादा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि सत्य यह है की ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्यक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से किसी को कोई नुकसान नहीं है, तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा राम रहीम (Baba Ram Rahim) की पैरोल को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया-

बाबा राम रहीम की पैरोल इन दिनों काफी सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जो social media पर बहुत चर्चा में है। समाचारों में और जनता में Baba Ram Rahim Singh के पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही वाद विवाद शुरू कर देते हैं। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। उनका मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

Parole मिलते ही आख़िरकार करते क्या है 

आइए आज Baba की Parole की कहानी पर विचार डालते है की आख़िरकार Ram Rahim जेल के बाहर अपना समय कैसे बिताते हैं। हालाँकि, Baba Ram Rahim को कई बार पैरोल मिल चुकी है। इस बार भी बाबा को 50 दिन की पैरोल मंजूर हुई है। आइए गौर करते है कि इस अवधि के दौरान बाबा करते क्या है। बाबा राम रहीम समाचार की रिपोर्टों ने विभिन्न welfare works में उनकी भागीदारी पर प्रकाश डाला है, जो समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के उनके प्रयासों को प्रदर्शित करता है।

बाबा राम रहीम ऑनलाइन सत्संगों के माध्यम से करते है लाखों लोगों को जागरूक-   

बाबा राम रहीम के अनुयायियों का आँकड़ा 6 करोड़ को पार कर चुका है। ग़ौरतलब है की उनके हर सत्संग पर लाखों लोग नशा छोड़ने के लिए आते है और राम नाम का रसपान करते है। जेल से बरनावा आश्रम में पधारने के बाद बाबा राम रहीम का ऑनलाइन सत्संग करते है, जिसमें ब्लॉक स्तर पर बने सत्संग घरों में हज़ारों लोग शामिल होते हैं और ऐसे हर सत्संग घर का मिलाकर देखें तो लाखों लोगों का हुजुम इकट्ठा होता है बाबा के प्रवचन सुनने के लिए। बाबा का मात्र एक सत्संग सुनने से हज़ारों लोग रोज़ाना नशा व बुराइयाँ छोड़ देते हैं व आगे से न करने का प्रण करते हैं। लोगों की बुराइयाँ छुड़वाने से बाबा का ऑनलाइन समागम सम्पन्न होता है ।

Baba Ram Rahim ने Parole के दौरान शुरुआत की नशा मुक्त अभियान की और नाम दिया “Depth Campaign”-

आज समाज में नशों का दरिया बह रहा है। इस नशे रूपी दैत्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए बाबा राम रहीम ने Parole के दौरान Depth Campaign की शुरुआत की। इस मुहीम का उद्देश्य देश को, विशेषकर युवा पीढ़ी को नशीली दवाओं की लत और अन्य मादक द्रव्यों के सेवन से बचाना है।

राम रहीम की पैरोल के दौरान शुरू हुआ यह अभियान युवाओं को नशे रूपी दैत्य को समाज से दूर भगाने व युवा पीढ़ी को नशे की लत से उबरने के लिए सशक्त बनाता है। लोगों का दावा है कि इस मुहीम से जुड़कर लाखों लोगों ने नशे रूपी दैत्य का त्याग किया है।

Gurmeet Ram Rahim जब भी पैरोल पर बाहर आए हैं, वे अपना समय मानवता को समर्पित करते रहे हैं। अपने इस समय में उन्होंने कई मुहिम शुरू की, जिसके तहत देश को नशा मुक्त बनाने का उनका प्रयास प्रमुख रहा। इसके लिए उन्होंने डेप्थ(DEPTH) और सेफ(SAFE) मुहिम चलाई और नशों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए कई भाषाओं में गीत भी बना चुके हैं। जिनसे प्रभावित होकर लाखों की संख्या में लोग हर बार नशे को छोड़कर स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाते हैं। इसके साथ ही Dera Sacha Sauda के अनुयायियों ने बाबा राम रहीम की रहनुमाई में गत वर्ष जनवरी 2023 में पूरे हरियाणा व राजस्थान को 5 से 6 घंटो में स्वच्छता अभियान चलाकर शीशे की तरह चमका दिया था।

Baba Ram Rahim को Parole मिलना समाज के लिए कितना सही है?

जिस प्रकार हमारा देश व समाज आए दिन बुराइयों की चर्म सीमा पर जा रहा है। युवा पीढ़ी नशे की दलदल में फँसी हुई है। देश में अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में ज़रूरत है समाज सुधारक की, जो हमारे समाज को नई दिशा दे, जो बुराइयों का ख़ात्मा करे, मरती हुई इंसानियत को पुनर्जीवित करे । बाबा राम रहीम अब तक 6 करोड़ से अधिक लोगों की बुराइयाँ छुड़वा चुके है। उनकी शिक्षाओं पर चलकर आज लाखों लोग 161 मानवता भलाई के कार्य पूरे जोश के साथ कर रहे हैं। बाबा राम रहीम की हमारे समाज को बहुत ज़रूरत है।

Conclusion-

आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी। बाबा द्वारा किए जा रहे मानवता भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उनकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

Dera Chief Gurmeet Ram Rahim को मिली 50 दिनों की पैरोल

हरियाणा स्थित डेरा सच्चा सौदा के Chief जो आए दिन सुर्ख़ियों में रहते है उनको एक बार फिर मिली पैरोल। इस बार यह पैरोल 50 दिनों के लिए मिली है। हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को इस पैरोल के लिए मंजूरी दी है। जिसके तहत Dera Chief कभी भी जेल से बाहर आ सकते हैं। रोहतक की सुनारिया जेल में रह रहे Gurmeet Ram Rahim पहले भी कई बार पैरोल पर बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार का कहना है कि उन्हें यह फरलो नियमों के आधार पर ही दी जाती है।

आख़िरकार Baba Ram Rahim को कितनी बार मिल चुकी है Parole-

2022 से अब तक उनकी यह 7 वीं पैरोल होगी। पैरोल के दौरान Dera Chief यू.पी. के बागपत जिले के बरनावा आश्रम में रहेंगे। इससे पहले भी Dera Chief बरनावा आश्रम में ही रूकते आए हैं। हाल-फिलहाल नवंबर 2023 में Gurmeet Ram Rahim को 21 दिनों की पैरोल दी गई थी। हालांकि कुछ कारणों के चलते उन्हें सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा आश्रम में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। जिसके चलते Dera Chief वर्चुअल माध्यमों के द्वारा अपने अनुयायियों से रू-ब-रू होते रहे है।

क्या सच में Baba Ram Rahim की पैरोल को लेकर दी जाती है अतिरिक्त ढील?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्या बाबा राम रहीम को बार-बार पैरोल देते हुए ढील बरती जा रही है? तो इस पर अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्सा जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्यादा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि सत्य यह है की ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्यक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से कोई नुकसान नहीं है तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा(Baba Ram Rahim) की पैरोल को लोगों की प्रतिक्रिया-

राम रहीम की पैरोल इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर समाचारों और जनता में बाबा राम रहीम सिंह की पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही वाद विवाद शुरू कर देते हैं। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। उनका मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

Gurmeet Ram Rahim जब भी पैरोल पर बाहर आए हैं, तो अपना समय मानवता को समर्पित करते रहे हैं। अपने इस समय में उन्होंने कई मुहिम शुरू की, जिसके तहत देश को नशा मुक्त बनाने का उनका प्रयास प्रमुख रहा। इसके लिए उन्होंने डेप्थ(DEPTH) और सेफ(SAFE) मुहिम चलाई और नशों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए कई भाषाओं में गीत भी बना चुके हैं। जिनसे प्रभावित होकर लाखों की संख्या में लोग हर बार नशे छोड़कर स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाते हैं।

Dera Chief को मिली इस पैरोल से डेरा प्रेमियों से चेहरे खिल उठे हैं। Baba Ram Rahim जब भी बाहर आते हैं, तो करोड़ों अनुयायी उनके द्वारा चलाये जा रहे 161 मानवता भलाई के कार्यों द्वारा अपनी खुशी जाहिर करते हैं। जनवरी 2023 में पूरे हरियाणा व राजस्थान को 5 से 6 घंटो में स्वच्छता अभियान चलाकर शीशे की तरह चमका दिया था। Dera Chief की फरलो उनके अनुयायियो के लिए किसी त्योहार के समान होती है।

Conclusion

आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी। बाबा द्वारा किए जा रहे मानवता भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उनकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

गुरु गोबिन्द सिंह जी जयन्ती (Guru Gobind Singh Ji Jayanti)

धर्म के प्रचार, सत्य की जीत और अन्याय को रोकने के लिए समय-समय पर संत, योद्धा और महापुरुष अवतार लेते रहते हैं। ऐसे ही महान शख्सियत हुए गुरु गोबिन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरु थे। धर्म की रक्षा करने और अत्याचारों को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। प्रतिवर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी जयन्ती मनाई जाती है। उनकी शिक्षाओं की पालना आज भी बड़ी शिद्दत से की जाती है।
जीवन वृत्तांत :
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पिता गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी के घर बिहार के पटना में हुआ। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था, जिसे बाद में गुरु गोबिंद सिंह के रूप में जाना जाने लगा। बचपन के कुछ वर्ष पटना में रहने के पश्चात् उनका परिवार 1670 में पंजाब के आनंदपुर साहिब में आकर रहने लगा। उस स्थान को पहले चक्‌क नानकी के नाम से जाना जाता था। यहाँ उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और एक कुशल योद्धा बनने के लिए सभी कलाएं सीखी। उन्होने संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया |
गोबिंद राय जी की तीन पत्नियाँ थी। 10 वर्ष की उम्र में उनका पहला विवाह माता जीतो के साथ हुआ। जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह उनके और माता जीतो के पुत्र थे। 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। माता साहिब देवन उनकी तीसरी पत्नी थी, जिनके साथ उनका विवाह 33 वर्ष की आयु में हुआ था।
महान् कवि और लेखक :
गुरु गोबिंद सिंह जी ( Guru Gobind Singh Ji ) एक कुशल योद्धा और गुरु होने के साथ-साथ वि‌द्वानों के संरक्षक भी थे। वे मधुर वाणी के धनी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। कई भाषाओं मे निपु‌णता रखने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई सारे ग्रंथों की रचना की थी। उनकी रचनाए आज भी समाज को प्रभावित करती हैं। सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ जी की रचना गोबिंद सिंह जी ने ही की थी। उनकी कुछ अन्य रचनाएं इस प्रकार से हैं –
जाप माहिब
• जफर नामा
• बचित्र नाटक
• अकाल उत्सतत
• खालसा महिमा
सिखों के दसवें गुरु :
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji) के पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फरियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए। उनसे जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाकर मुसलमान बनाया जा रहा था। उनके सामने शर्त रखी गयी थी कि कोई ऐसा महापुरुष हो जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करने के बदले अपना बलिदान दे सके, तो उन सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी नौ वर्ष के ही थे। करमीरी पंडितों की यह बात सुनकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि उनसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है, जो धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे सके। उनकी इस बात से गुरु तेग बहादुर जी स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चाँदनी चौक में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के पश्चात् 29 मार्च 1676 को श्री गोविंद राय जी को सिखों का दसवां गुरू घोषित कर दिया गया।
खालसा पंथ की स्थापना :
धर्म की रक्षा करने और बढ़ते हुए अत्याचारों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख कौम बनाई। 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी के दिन गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने *खालसा* पंथ की स्थापना की। वहाँ मौजूद लोगों से उन्होंने पूछा कि ऐसा कोई हो जो धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर सके तो वह आगे आए। तब एक-एक कर पाँच लोग शहीदी के लिए तैयार हुए। उन 5 सिखों को गुरु जी ने ‘पंज प्यारे’ का नाम दिया और उन्हें अमृत’ का रसपान करवाया। तब उन्हें ‘सिंह’ की उपाधि भी दी गई। उसी समय से गुरु साहिब ने स्वंय को भी ‘सिंह’ बना लिया और उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम से पहचाना गया। खालसा की स्थापना कर उन्होंने सिंह फौज बनाई, जो बहादुरी और ज़ाबाजी से शोषण और अत्याचारों का सामना करे और धर्म की रक्षा व प्रचार कर सके।
सवा लाख से एक लड़ाऊ,
चिड़ियों सो मैं बाज तड़ऊ,
तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊ…
‘अमृत’ का रसपान कर सिंह बनने वाले सिखों के लिए पंज ककार धारण करना अनिवार्य होते हैं। पांच ककारो में केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कछैरा सिख धर्म में विशेष महत्त्व रखते हैं और उनके धर्म के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं।
शहादत :
सत्य को स्थापित करने और अधर्म को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ 13 युद्ध लड़े। छोटी सेना होने के बावजूद भी उन्होंने बड़ी निडरता और कुशलता से हर बार मुगलों पर जीत हासिल की। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह को बादशाह बनने में गुरू गोबिंद सिंह जी ने मदद की थी। उनके बनते मीठे रिश्तों को देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खाँ डर गया। उसने अपने दो आदमी गुरु जी के पीछे लगा दिए, जिन्होंने धोखे से गुरु साहिब पर वार किया, जिससे 7 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में समा गए।
उन्होने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और स्वयं भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए थे। गुरु जी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरु गोबिंद जी ने बंदा बहादुर का नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और गुरु जी की शहादत का बदला लिया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों में से बाबा अजीत सिंह और बाबा जोझार सिंह को स्वंय गुरु जी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए चमकौर भेजा था, जो वहाँ शहीद हो गए थे और दो साहिबजादों जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह व माता गुजरी को वजीर खां ने पकड़ लिया था। उसने दोनों साहिबजादों को जिंदा ही दिवार में चिनवा दिया था और वे भी शहादत को प्राप्त हुए।
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji ) की पवित्र शिक्षाएं:
गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार किया और लोगों को जीने की सही राह दिखाई। उन्होंने अपने उपदेशों के द्वारा लोगों का उद्धार किया। गुरु साहिब की पवित्र शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
धरम दी किरत करनी : अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं ।
जगत-जूठ तंबाकू बिखिया दी तियाग करना : हमेशा नशे व तंबाकू के सेवन से दूर रहें।
किसी दि निंदा, अते इर्खा न करना : इसका अर्थ है कि कभी भी किसी दूसरे की निंदा-चुगली नहीं करनी चाहिए। दूसरों से ईर्ष्या करने की जगह स्वयं मेहनत करनी चाहिए।
बचन करकै पालना : अगर आप किसी को कोई वचन देते हैं, तो उसकी पालना करनी चाहिए। यानि हर कीमत पर अपने वचन को निभाना चाहिए।”
कम करन विच दरीदार नहीं करना : व्यक्ति को अपने काम करने में खूब मेहनत करनी चाहिए, किसी तरह की टाल-मटोल या लापरवाही नहीं चाहिए।
गुरबानी कंठ करनी: गुरु गोबिंद सिंह जी के इस बचन का अर्थ है कि गुरुवाणी को कंठस्थ कर लें और उसकी पालना करें।
दसवंड देना : हर व्यक्ति को अप‌नी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे देना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए।
कैसे मनाई जाती है गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती ( Guru Gobind Singh Ji Jayanti) :
इस बार गुरु गोविंद जी की 357 वीं जयंती मनाई जा रही है। इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। विशेष महत्व रखने वाले इस दिन को सिख समुदाय के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। पहले दिन नगर कीर्तन व जूलूस निकाला जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर, नहाकर व नए कपड़े पहनकर गुरुद्वारे जाते हैं। वहाँ पवित्र भावना से मथ्था टेकते हैं और अपने परिवार व समाज की भलाई के लिए अरदास करते हैं। इस दिन विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। भजन-कीर्तन व पवित्र गुरबानी का पाठ किया जाता है और इस प्रकाश पर्व के उत्सव को मनाया जाता है।

लोहड़ी

त्योहार और उत्सव-समारोह ही ऐसे अवसर होते हैं, जो जीवन को खुशियों से भरे रखते हैं और भाईचारे को बनाए रखते हैं। ऐसे मौकों पर ही एक दूसरे से मिलते हैं, जश्न मनाते हैं, मिठाइ‌याँ बाँटते हैं और पूजा-अनुष्ठान करते हैं। वर्षभर कोई न कोई त्यौहार सभी को आपस में जोड़े रखते हैं। साल के शुरू होते ही लोहड़ी का त्योहार आता है। तिल, गुड़ और अग्नि को समर्पित इस त्योहार को पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

लोहडी का पर्व :

मकर संक्रांति से पहले दिन मनाया जाने वाला लोहड़ी का त्योहार साल का सबसे प्रथम त्योहार होता है। लोहड़ी को पहले ‘तिलोड़ी’ नाम से जाना जाता था, जो तिल और रोड़ी (गुड की रोड़ी) दो शब्दों से मिलकर बना था। धीरे-धीरे लोग इसे लोहड़ी कहने लगे। यह पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पूरे उत्तरी भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाबी समुदाय के लोगों के लिए लोहड़ी पर्व का विशेष महत्व है।

लोहड़ी का त्योहार (Lohri Festival ) अधिकांशत: 13 जनवरी को मनाया जाता है। किसानों के लिए खास इस त्योहार को समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सूर्य और अग्नि पूजा का विशेष महत्त्व है। सभी मिल-जुल कर अलाव लगाते हैं, गुड़, रोड़ी, मूंगफली, मक्की आदि खाते हैं। भांगडा-गिद्दा करते हैं और खुशी मनाते हैं। नवविवाहित जोड़ों और बच्चों की पहली लोहड़ी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी का महत्व :

लोहड़ी का त्योहार( Lohri Festival ) हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की आखिरी रात को मनाया जाता है। विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। लोहड़ी के बाद दिन बड़े होने लगते हैं, यानि माघ मास शुरू हो जाता है। सूर्य पृथ्वी से दूर जाने लगता है और मकर रेखा में प्रवेश कर जाता है।

सामान्यतः त्यौहारों का संबंध प्रकृति और फसलों से होता है। ऐसे ही सर्दियों की फसल में गेहूँ की बिजाई अक्तूबर में की जाती है, जिसकी कटाई मार्च-अप्रैल में होती हैं। लोहड़ी पर्व के समय तक यह फसल पकनी शुरु होने लगती है। जिसकी भरपूर उपज और समृद्धि की कामना करते हुए किसान यह त्यौहार मनाते हैं और अग्नि में अब तक की फसलों, तिल, दालें, मक्का, आदि का अर्पण कर भोग लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अग्नि में भोग लगाने से सभी देवी- देवताओं को भोग लग जाता है। इस दिन गरीबों को दान दिया जाता है और बच्चों को लोहड़ी बाँटी जाती है। इस दिन विवाहित कन्याओं को उपहार व मिठाइयाँ देने का भी विशेष महत्त्व है।

लोहड़ी का त्यौहार( Lohri Festival ) क्यों मनाया जाता है:

इसका संबंध सती के त्याग से माना जाता है। पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता है। कथानुसार, प्रजापति दक्ष ने अपने यहाँ विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया। सती के वहाँ पहुंचने पर राजा दक्ष ने उसका व उसके पति महादेव शिव का तिरस्कार किया। अपने पिता के द्वारा उनके जामाता को आमंत्रित न करने व उनका निरादार करने से आहत सती ने अपने आप को अग्नि को समर्पित कर दिया। इससे शिव आवेश में आ गए और सभी ऋषियों, देवताओं द्वारा समझाने पर शांत हुए। उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में मनाया गया और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिए जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता है। इसी खुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओं में बाँटा जाता है।

दुल्ला भट्टी की एतिहासिक कथा :

लोहड़ी पर्व( Lohri Festival ) के पीछे एक पुरानी कथा भी है। यह अकबर के शासनकाल की है। दुल्ला भट्टी उस समय पंजाब प्रांत का नामी लूटेरा था। जो धनी लोगों से लूटपाट करता। माना जाता है कि एक बार सुन्दरी मुन्दरी नाम की दो लड़कियों के माता-पिता नहीं थे और उन्हें जबरन बेचा जा रहा था। तब दुल्ला भट्टी ने उन्हें बचाया और उनकी शादी गांव के लड़कों से करवा दी। उसने सर्द रात के अंधेरे में ही आग जलाकर उनकी शादियाँ कर दी और शगुन के तौर पर उनकी झोली में सेर (एक नाप) शक्कर डालकर उनके पिता का फर्ज निभाया। वह उस इलाके के नायक के रूप में जाना जाने लगा था। तभी लोहड़ी का यह त्यौहार दुल्ला भट्टी के गीत के साथ ही मनाया जाता है –

सुन्दरी, मुन्दरिये … हो,

तेरा कौन विचारा … हो,

दुल्ला भट्टी वाला … हो,

दुल्ले धी व्याही … हो,

सेर शक्कर पाई … हो,

……….

लोहडी पर खास :

त्यौहारों का विशेष संबंध पकवानों से रहता ही है। सरसों का साग, मक्के की रोटी खासतौर पर बनाया जाता है। लोहड़ी के दिन तिल, मूंगफली, रेवड़ी, गज्ज़क, फुल्ले लोहड़ी की पहचान होते हैं। रात को अलाव पर इक्ट्‌ठे होकर किया जाने वाला भांगड़ा और गिद्दा रौनक भी लगाते हैं और खुशी भी बिखेरते हैं। घर में नवविवाहित जोड़े या नन्हें बच्चे की पहली लोहडी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उनकी तरफ से पूरे मुहल्ले और भाईचारे में उपहार व मिठाइ‌याँ बाँटे जाते हैं। गरीबों को तिलपट्टी, मूंगफली, कपड़े, गुड व अन्य चीज़ें दान में दी जाती है।

ऐसे मनाते हैं लोहडी पर्व :

कई इलाकों में तो लोहड़ी की तैयारियाँ कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती हैं। बच्चे टोलियाँ बनाकर लोहड़ी माँगने घर-घर जाते हैं। लोहड़ी के गीत गाकर व ढोल बजाकर वे सभी से लोहड़ी माँगते हैं। उन्हें खुशी के साथ मूंगफली, रेवड़ी, मक्की, टॉफी, आदि चीजें दी जाती हैं। लोहड़ी वाले दिन सभी सज-धज कर, पारंपरिक पोशाक पहनकर पड़ोसियों और संबंधियों को मिलते हैं व बधाईयाँ देते हैं। शाम के समय सभी आपस में मिलकर किसी खुली जगह पर अलाव लगाते हैं, उसमें अग्नि को गुड़, तिल व भुट्टा आदि अर्पित करते हैं। फिर वहाँ सभी को लोहड़ी बाँटी जाती है। जिनके यहाँ कोई नई शादी हुई होती है या बच्चे का जन्म हुआ होता है, तो ढोल या डी.जे. पर जमकर भांगडा व गिद्दा किया जाता है। लोहड़ी पर घर की विवाहित बेटियों को उपहार व मिठाइ‌याँ भेजी जाती हैं।

निष्कर्ष-

त्योहार एकता व भाईचारे की मिसाल होते हैं। पवित्रता का प्रतीक लोहड़ी का यह त्यौहार स्त्री सम्मान का सूचक है। अग्नि को तिल, मक्का आदि अर्पित कर किसान सभी के लिए खुशहाली, समृद्धि व अच्छी फसल की कामना करते हैं। यह माँगा जाता है कि आने वाला वर्ष सभी के लिए हर्षोल्लास से भरा हो और सुखमयी हो। द्वार पर आने वाले बच्चों को खुशी-खुशी विदा किया जाता है व एक परिवार की खुशी में ही सारा मोहल्ला जश्न मनाता है। इस तरह लोहडी हमें एकता व प्रेम के सूत्र में पिरो देती है।