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लाल मिर्च पाउडर में भरा होता है ईंट का चूरा, चिरने लगेंगी आपकी आंतें, FSSAI ने बताया घर में इस तरीके से करे नकली मिर्च की जांच-

आज के आधुनिक समय में मसालों में मिलावट करना आम बात हो गई है और मिलावटी चीजें खाने से इंसान की सेहत पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। आप सभी के घरों में इस्तेमाल होने वाले लाल मिर्च पाउडर में भी ईंट के चुरे की मिलावट हो सकती है। जानिए घर पर रहते हुए इसकी पहचान कैसे करे।
 हम सभी के घरों में लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक है। खाना में सब्जी को स्वाद और गहरा रंग देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। पुराने समय में साबुत लाल मिर्च को धूप में सुखाकर और पीसकर उसका पाउडर बनाया जाता था और फिर इसके इस्तेमाल में लिया जाता था। लेकिन अब लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) के पैकेट मिलने लगे हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में भरा होता है ईंट का चूरा, जो दे रहा बिमारियों को बुलावा, FSSAI ने बताया हम घर में रहते कर सकते है लाल मिर्च की जांच-

आज के समय में खाने-पीने की लगभग सभी चीजों में मिलावट होने लगी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आप जो लाल मिर्च पाउडर अपनी रसोई में इस्तेमाल कर रहे हैं, आख़िर वह कितना सुरक्षित है? क्या आपके लाल मिर्च पाउडर में कोई मिलावट तो नहीं है?
आजकल लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए व पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उन्हें गहरा रंग देने के लिए उनमें मिलावट कर रहे है। अधिकतर व्यापारी मसालों का वजन बढ़ाने के लिए उन में लकड़ी का बुरादा, ईंट का चूरा और कृत्रिम रंगों का उपयोग कर रहे है। यह मसाले इंसान के पेट में जाकर कई खतरनाक बीमारियों को बुलावा देकर उन्हें मरीज बना सकते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने एक आसान तरीक़ा बताया है जिसके द्वारा आप कुछ ही सेकंड में असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की जांच कर सकते हैं।
लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में मिलावट क्यों की जाती है?
आज के समय में खाने में मिलावट करना आम बात हो गई है। लोग पैसे कमाने में इतने लीन हो गए हैं कि न जाने वो कितने लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है। ऐसे ही आज हम बात कर रहे है लाल मिर्च पाउडर की। आमतौर पर पिसे हुए मसालों की मात्रा बढ़ाने और उनका रंग निखारने के लिए उनमें मिलावट की जाती है। मिर्च पाउडर में आमतौर पर ईंट पाउडर, नमक पाउडर या टैल्क पाउडर की मिलावट की जाती हैं।
असली-नकली लाल मिर्च पाउडर की ऐसे करें जांच-
घर पर लाल मिर्च पाउडर में मिलावट की जांच ऐसे करें
  • एक गिलास सादे पानी ( normal water) में एक चम्मच लाल मिर्च पाउडर मिलाए।
  • पानी में घुले हुए पाउडर को थोड़ी मात्रा में लेकर अपने हाथ में रगड़ें।
  • यदि इसको रगड़ने के बाद कोई खुरदरापन महसूस होता है, तो इसमें लाल मिर्च पाउडर (Red Chilli Powder) में ईंट का पाउडर या रेत की मिलावट है।
  • यदि अवशेष साबुन जैसा और चिकना लगता है, तो इसमें सोप स्टोन की मिलावट है।
आर्टिफिशियल कलर की ऐसे करें जांच-
  • इसे चमकीला रंग देने के लिए लाल मिर्च पाउडर में आर्टिफिशियल कलर मिक्स किए जाते हैं।
  • एक गिलास पानी में थोड़ा सा मिर्च पाउडर छिड़कें।
  • अगर इसमें आपको एक रंगीन लकीर नजर आती है, तो लाल मिर्च पाउडर मिलावटी हो सकता है।
  • लाल मिर्च पाउडर में कई बार पानी में घुलनशील तारकोल रंग मिलाया जाता है।
स्टार्च का पता लगाने के लिए ऐसे करें जांच-
  • लाल मिर्च पाउडर की मात्रा बढ़ाने के लिए अक्सर इसमें स्टार्च भी मिलाया जाता है।
  • स्टार्च की जांच के लिए पिसे हुए मसाले में टिंचर आयोडीन या आयोडीन घोल की कुछ बूंदें मिलाए।
  • यदि यह नीले रंग में बदलता है, तो यह लाल मिर्च पाउडर में स्टार्च की वजह से हो सकता है।
सेहत के लिए खतरनाक है ईंट का पाउडर
ईंट पाउडर आमतौर पर ईंट के चूरे से बनता है, जो दिखने में लाल रंग का होता है। इस पाउडर का रंग और बनावट लाल मिर्च के पाउडर के समान होती है। इसलिए इसका उपयोग अक्सर मिलावटी पदार्थ के रूप में किया जाता है। यह सेहत के लिए बहुत खतरनाक होता है। इसके नियमित सेवन से शरीर पर गंभीर परिणाम होते हैं। यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है।

ISRO का सबसे आधुनिक, महत्वपूर्ण व अडवांस मौसम सैटेलाइट INSAT -3DS किया गया सफलतापूर्वक लॉन्च-

ISRO का सबसे आधुनिक व महत्वपूर्ण मौसम सैटेलाइट INSAT-3DS सफलतापूर्वक लॉन्च हो चुका है। इस सैटेलाइट GSLV-F14 को राकेट श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड 2 से छोड़ा गया है, यह सैटेलाइट समुद्र, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी देने के साथ-साथ राहत एवं बचाव कार्यों में मदद करेगा। इसलिए इसे बनाया गया है।
17 फरवरी 2024 की शाम को 5 बजकर 35 मिनट पर भारत का सबसे एडवांस मौसम सैटेलाइट INSAT-3DS  सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया है। इसके श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से GSLV- F14 राकेट के जरिए इनसेट -3 डीएस सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में छोड़ा गया है, जोकि इस सीरीज का तीसरी पीढ़ी का सैटेलाइट है।
इस लॉन्चिंग में तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल हुईं। जैसे कि यह GSLV के द्वारा 16वीं उड़ान है, स्वदेशी क्रायो स्टेज की ये 10वीं उड़ान और स्वदेशी क्रायो स्टेज की सातवीं ऑपरेशनल फ्लाइट होगी। GSLV-F14 रॉकेट ने लॉन्चिंग के बाद इनसैट-3डीएस सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में पहुँचाया है, आपको बता दें, इसके पश्चात अब सैटेलाइट के सोलर पैनल्स भी खुल गए हैं। सूरज से मिलने वाली रोशनी से सैटेलाइट को ऊर्जा मिलती रहेगी और यह लगातार काम करता रहेगा।
यह सैटेलाइट 170 किलोमीटर पेरीजी और 36,647 किलोमीटर वाली अंडाकार जीटीओ की कक्षा में अब चक्कर लगाएगा। सैटेलाइट का कुल वजन 2274 किलोग्राम इसकी फंडिंग पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने की है जिसमें 6 चैनल इमेजर (Channel Imager) है और 19 चैनल साउंडर मेटियोरोलॉजी पेलोड्स मौजूद हैं। यह नया सैटेलाइट अपने पुराने सैटेलाइट के साथ मिलकर हमें मौसम की जानकारी देगा।
यह सैटेलाइट क्या-क्या काम करेगा-
  • अलग-अलग स्पेक्ट्रल वेवलेंथ के जरिए धरती की सतह, समुंद्र और पर्यावरण पर नजर रखेगा।
  • वैज्ञानिकों को अलग-अलग जगहों से डेटा कलेक्ट करके देगा।
  • वायुमंडल में होनी वाली अलग-अलग मौसमी पैरामीटर्स का वर्टिकल प्रोफाइल देगा।
  • बचाव व राहत कार्यों के दौरान मदद करेगा।
सातवां सैटेलाइट हुआ लॉन्च-
आपकी जानकारी के लिए बता दें, अब सातवां सैटेलाइट लॉन्च हुआ है। पहले छह सैटेलाइट 2000 से 2004 में लॉन्च हुए थे।
जिससे संचार, टीवी ब्रॉडकास्ट और मौसम संबंधी जानकारियां मिल रही थी। अब इस सातवें सैटेलाइट के द्वारा समुंद्र, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी के साथ-साथ बचाव कार्यों में मदद मिलेगी।
मौसम की सटीक जानकारी-
यह यंत्र भारत व उनके आसपास मौसम में होने वाले बदलावों में जानकारी देगा, ताकि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही सूचना दी जा सके और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।

Dera Chief Gurmeet Ram Rahim को मिली 50 दिनों की पैरोल

हरियाणा में स्थित डेरा सच्चा सौदा के Chief Baba Ram Rahim, जो आए दिन सुर्ख़ियों में रहते है उनको एक बार फिर पैरोल मिल चुकी है। आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बार यह पैरोल 50 दिनों के लिए मिली है। हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को इस पैरोल के लिए मंजूरी दी है। जिसके तहत Dera Chief कभी भी जेल से बाहर आ सकते हैं। रोहतक की सुनारिया जेल में रह रहे Gurmeet Ram Rahim पहले भी कई बार पैरोल पर बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार का कहना है कि उन्हें यह Parole नियमों के आधार पर ही दी जाती है।

क्या Baba Ram Rahim को बार-बार Parole मिलना सही है?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, आमतौर पर पैरोल कैदी की अस्थायी रूप से रिहाई होती है। लेकिन पैरोल कैदी के अनुरोध पर दी जाती है, जबकि पैरोल मिलना कैदी का क़ानूनी अधिकार है। पैरोल सरकार द्वारा जेल में बंद लोगों को दिया गया एक मौका है। जिसका उद्देश्य होता है की क़ैदी को कुछ समय तक जेल में रहने के बाद सामान्य जीवन में वापस आने में मदद मिले। Baba Ram Rahim की कहानी के मामले में, यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्हें पैरोल देना कोई साधारण बात नहीं है। इस बारे में हरियाणा सरकार का कहना है कि वह राम रहीम को पैरोल देकर कानून का पालन कर रहे है।

क्यों मिल रही है Baba Ram Rahim को बार-बार पैरोल?

आपको बता दें, साल में कोई भी कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। फरलो पारिवारिक, व्यक्तिगत व सामाजिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए दी जाती है। वहीं अगर बात करें Parole की, तो इसके लिए कारण बताना जरूरी होता है। पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है। इस बार Baba Ram Rahim को 50 दिन के लिए Parole मंज़ूर की गई है। नियमों की बात करें, तो एक क़ैदी को साल में 98 दिन तक की पैरोल मिल सकती है। आपको बता दें की पैरोल के दौरान कैदी जेल के बाहर जो समय बिताते हैं उसे उनके कुल जेल के समय को कम किए बिना उनकी सजा के हिस्से के रूप में गिना जाता है।

इसलिए, जब हम Baba Ram Rahim के बारे में बात करते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि यह कोई सहायता नहीं है बल्कि कानूनन अधिकार है। राम रहीम सिंह कानून का पालन कर रहा है। हमारी कानूनी प्रणाली हर किसी को उचित मौका देने के लिए इसी तरह काम करती है और Baba Ram Rahim भी क़ानून का सम्मान करते हैं।

Baba Ram Rahim को कितनी बार मिल चुकी है Parole-

2022 से लेकर अब तक Baba Ram Rahim की यह 7वीं पैरोल होगी। इसके साथ ही Baba अब तक 2 बार फरलो पर आ चुके है। आपको बता दें इस बार Parole के दौरान Dera Chief Baba Ram Rahim Uttar Pradesh के बागपत जिले के बरनावा आश्रम में रहेंगे। इस से पहले भी Dera Chief बरनावा आश्रम में ही रूकते आए हैं। हाल ही में, नवंबर 2023 में Gurmeet Ram Rahim को 21 दिनों की फरलो  दी गई थी। हालांकि कुछ क़ानूनी प्रक्रियाओं के चलते उन्हें डेरा सच्चा सौदा के सिरसा आश्रम में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। जिसके चलते Dera Chief वर्चुअल माध्यमों के द्वारा अपने अनुयायियों से रू-ब-रू होते रहे है।

क्या सच में Baba Ram Rahim की पैरोल को लेकर दी जाती है अतिरिक्त ढील?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्या बाबा राम रहीम को बार-बार पैरोल देते हुए ढील बरती जा रही है? तो इस पर अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्सा जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्यादा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि सत्य यह है की ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्यक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से किसी को कोई नुकसान नहीं है, तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा राम रहीम (Baba Ram Rahim) की पैरोल को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया-

बाबा राम रहीम की पैरोल इन दिनों काफी सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जो social media पर बहुत चर्चा में है। समाचारों में और जनता में Baba Ram Rahim Singh के पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही वाद विवाद शुरू कर देते हैं। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। उनका मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

Parole मिलते ही आख़िरकार करते क्या है 

आइए आज Baba की Parole की कहानी पर विचार डालते है की आख़िरकार Ram Rahim जेल के बाहर अपना समय कैसे बिताते हैं। हालाँकि, Baba Ram Rahim को कई बार पैरोल मिल चुकी है। इस बार भी बाबा को 50 दिन की पैरोल मंजूर हुई है। आइए गौर करते है कि इस अवधि के दौरान बाबा करते क्या है। बाबा राम रहीम समाचार की रिपोर्टों ने विभिन्न welfare works में उनकी भागीदारी पर प्रकाश डाला है, जो समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के उनके प्रयासों को प्रदर्शित करता है।

बाबा राम रहीम ऑनलाइन सत्संगों के माध्यम से करते है लाखों लोगों को जागरूक-   

बाबा राम रहीम के अनुयायियों का आँकड़ा 6 करोड़ को पार कर चुका है। ग़ौरतलब है की उनके हर सत्संग पर लाखों लोग नशा छोड़ने के लिए आते है और राम नाम का रसपान करते है। जेल से बरनावा आश्रम में पधारने के बाद बाबा राम रहीम का ऑनलाइन सत्संग करते है, जिसमें ब्लॉक स्तर पर बने सत्संग घरों में हज़ारों लोग शामिल होते हैं और ऐसे हर सत्संग घर का मिलाकर देखें तो लाखों लोगों का हुजुम इकट्ठा होता है बाबा के प्रवचन सुनने के लिए। बाबा का मात्र एक सत्संग सुनने से हज़ारों लोग रोज़ाना नशा व बुराइयाँ छोड़ देते हैं व आगे से न करने का प्रण करते हैं। लोगों की बुराइयाँ छुड़वाने से बाबा का ऑनलाइन समागम सम्पन्न होता है ।

Baba Ram Rahim ने Parole के दौरान शुरुआत की नशा मुक्त अभियान की और नाम दिया “Depth Campaign”-

आज समाज में नशों का दरिया बह रहा है। इस नशे रूपी दैत्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए बाबा राम रहीम ने Parole के दौरान Depth Campaign की शुरुआत की। इस मुहीम का उद्देश्य देश को, विशेषकर युवा पीढ़ी को नशीली दवाओं की लत और अन्य मादक द्रव्यों के सेवन से बचाना है।

राम रहीम की पैरोल के दौरान शुरू हुआ यह अभियान युवाओं को नशे रूपी दैत्य को समाज से दूर भगाने व युवा पीढ़ी को नशे की लत से उबरने के लिए सशक्त बनाता है। लोगों का दावा है कि इस मुहीम से जुड़कर लाखों लोगों ने नशे रूपी दैत्य का त्याग किया है।

Gurmeet Ram Rahim जब भी पैरोल पर बाहर आए हैं, वे अपना समय मानवता को समर्पित करते रहे हैं। अपने इस समय में उन्होंने कई मुहिम शुरू की, जिसके तहत देश को नशा मुक्त बनाने का उनका प्रयास प्रमुख रहा। इसके लिए उन्होंने डेप्थ(DEPTH) और सेफ(SAFE) मुहिम चलाई और नशों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए कई भाषाओं में गीत भी बना चुके हैं। जिनसे प्रभावित होकर लाखों की संख्या में लोग हर बार नशे को छोड़कर स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाते हैं। इसके साथ ही Dera Sacha Sauda के अनुयायियों ने बाबा राम रहीम की रहनुमाई में गत वर्ष जनवरी 2023 में पूरे हरियाणा व राजस्थान को 5 से 6 घंटो में स्वच्छता अभियान चलाकर शीशे की तरह चमका दिया था।

Baba Ram Rahim को Parole मिलना समाज के लिए कितना सही है?

जिस प्रकार हमारा देश व समाज आए दिन बुराइयों की चर्म सीमा पर जा रहा है। युवा पीढ़ी नशे की दलदल में फँसी हुई है। देश में अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में ज़रूरत है समाज सुधारक की, जो हमारे समाज को नई दिशा दे, जो बुराइयों का ख़ात्मा करे, मरती हुई इंसानियत को पुनर्जीवित करे । बाबा राम रहीम अब तक 6 करोड़ से अधिक लोगों की बुराइयाँ छुड़वा चुके है। उनकी शिक्षाओं पर चलकर आज लाखों लोग 161 मानवता भलाई के कार्य पूरे जोश के साथ कर रहे हैं। बाबा राम रहीम की हमारे समाज को बहुत ज़रूरत है।

Conclusion-

आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी। बाबा द्वारा किए जा रहे मानवता भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उनकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

Dera Chief Gurmeet Ram Rahim को मिली 50 दिनों की पैरोल

हरियाणा स्थित डेरा सच्चा सौदा के Chief जो आए दिन सुर्ख़ियों में रहते है उनको एक बार फिर मिली पैरोल। इस बार यह पैरोल 50 दिनों के लिए मिली है। हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को इस पैरोल के लिए मंजूरी दी है। जिसके तहत Dera Chief कभी भी जेल से बाहर आ सकते हैं। रोहतक की सुनारिया जेल में रह रहे Gurmeet Ram Rahim पहले भी कई बार पैरोल पर बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार का कहना है कि उन्हें यह फरलो नियमों के आधार पर ही दी जाती है।

आख़िरकार Baba Ram Rahim को कितनी बार मिल चुकी है Parole-

2022 से अब तक उनकी यह 7 वीं पैरोल होगी। पैरोल के दौरान Dera Chief यू.पी. के बागपत जिले के बरनावा आश्रम में रहेंगे। इससे पहले भी Dera Chief बरनावा आश्रम में ही रूकते आए हैं। हाल-फिलहाल नवंबर 2023 में Gurmeet Ram Rahim को 21 दिनों की पैरोल दी गई थी। हालांकि कुछ कारणों के चलते उन्हें सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा आश्रम में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। जिसके चलते Dera Chief वर्चुअल माध्यमों के द्वारा अपने अनुयायियों से रू-ब-रू होते रहे है।

क्या सच में Baba Ram Rahim की पैरोल को लेकर दी जाती है अतिरिक्त ढील?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्या बाबा राम रहीम को बार-बार पैरोल देते हुए ढील बरती जा रही है? तो इस पर अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्सा जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्यादा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि सत्य यह है की ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्यक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से कोई नुकसान नहीं है तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा(Baba Ram Rahim) की पैरोल को लोगों की प्रतिक्रिया-

राम रहीम की पैरोल इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर समाचारों और जनता में बाबा राम रहीम सिंह की पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही वाद विवाद शुरू कर देते हैं। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। उनका मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

Gurmeet Ram Rahim जब भी पैरोल पर बाहर आए हैं, तो अपना समय मानवता को समर्पित करते रहे हैं। अपने इस समय में उन्होंने कई मुहिम शुरू की, जिसके तहत देश को नशा मुक्त बनाने का उनका प्रयास प्रमुख रहा। इसके लिए उन्होंने डेप्थ(DEPTH) और सेफ(SAFE) मुहिम चलाई और नशों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए कई भाषाओं में गीत भी बना चुके हैं। जिनसे प्रभावित होकर लाखों की संख्या में लोग हर बार नशे छोड़कर स्वस्थ समाज की ओर कदम बढ़ाते हैं।

Dera Chief को मिली इस पैरोल से डेरा प्रेमियों से चेहरे खिल उठे हैं। Baba Ram Rahim जब भी बाहर आते हैं, तो करोड़ों अनुयायी उनके द्वारा चलाये जा रहे 161 मानवता भलाई के कार्यों द्वारा अपनी खुशी जाहिर करते हैं। जनवरी 2023 में पूरे हरियाणा व राजस्थान को 5 से 6 घंटो में स्वच्छता अभियान चलाकर शीशे की तरह चमका दिया था। Dera Chief की फरलो उनके अनुयायियो के लिए किसी त्योहार के समान होती है।

Conclusion

आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी। बाबा द्वारा किए जा रहे मानवता भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उनकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

गुरु गोबिन्द सिंह जी जयन्ती (Guru Gobind Singh Ji Jayanti)

धर्म के प्रचार, सत्य की जीत और अन्याय को रोकने के लिए समय-समय पर संत, योद्धा और महापुरुष अवतार लेते रहते हैं। ऐसे ही महान शख्सियत हुए गुरु गोबिन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरु थे। धर्म की रक्षा करने और अत्याचारों को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। प्रतिवर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी जयन्ती मनाई जाती है। उनकी शिक्षाओं की पालना आज भी बड़ी शिद्दत से की जाती है।
जीवन वृत्तांत :
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पिता गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी के घर बिहार के पटना में हुआ। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था, जिसे बाद में गुरु गोबिंद सिंह के रूप में जाना जाने लगा। बचपन के कुछ वर्ष पटना में रहने के पश्चात् उनका परिवार 1670 में पंजाब के आनंदपुर साहिब में आकर रहने लगा। उस स्थान को पहले चक्‌क नानकी के नाम से जाना जाता था। यहाँ उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और एक कुशल योद्धा बनने के लिए सभी कलाएं सीखी। उन्होने संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया |
गोबिंद राय जी की तीन पत्नियाँ थी। 10 वर्ष की उम्र में उनका पहला विवाह माता जीतो के साथ हुआ। जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह उनके और माता जीतो के पुत्र थे। 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। माता साहिब देवन उनकी तीसरी पत्नी थी, जिनके साथ उनका विवाह 33 वर्ष की आयु में हुआ था।
महान् कवि और लेखक :
गुरु गोबिंद सिंह जी ( Guru Gobind Singh Ji ) एक कुशल योद्धा और गुरु होने के साथ-साथ वि‌द्वानों के संरक्षक भी थे। वे मधुर वाणी के धनी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। कई भाषाओं मे निपु‌णता रखने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई सारे ग्रंथों की रचना की थी। उनकी रचनाए आज भी समाज को प्रभावित करती हैं। सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ जी की रचना गोबिंद सिंह जी ने ही की थी। उनकी कुछ अन्य रचनाएं इस प्रकार से हैं –
जाप माहिब
• जफर नामा
• बचित्र नाटक
• अकाल उत्सतत
• खालसा महिमा
सिखों के दसवें गुरु :
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji) के पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फरियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए। उनसे जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाकर मुसलमान बनाया जा रहा था। उनके सामने शर्त रखी गयी थी कि कोई ऐसा महापुरुष हो जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करने के बदले अपना बलिदान दे सके, तो उन सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी नौ वर्ष के ही थे। करमीरी पंडितों की यह बात सुनकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि उनसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है, जो धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे सके। उनकी इस बात से गुरु तेग बहादुर जी स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चाँदनी चौक में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के पश्चात् 29 मार्च 1676 को श्री गोविंद राय जी को सिखों का दसवां गुरू घोषित कर दिया गया।
खालसा पंथ की स्थापना :
धर्म की रक्षा करने और बढ़ते हुए अत्याचारों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख कौम बनाई। 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी के दिन गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने *खालसा* पंथ की स्थापना की। वहाँ मौजूद लोगों से उन्होंने पूछा कि ऐसा कोई हो जो धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर सके तो वह आगे आए। तब एक-एक कर पाँच लोग शहीदी के लिए तैयार हुए। उन 5 सिखों को गुरु जी ने ‘पंज प्यारे’ का नाम दिया और उन्हें अमृत’ का रसपान करवाया। तब उन्हें ‘सिंह’ की उपाधि भी दी गई। उसी समय से गुरु साहिब ने स्वंय को भी ‘सिंह’ बना लिया और उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम से पहचाना गया। खालसा की स्थापना कर उन्होंने सिंह फौज बनाई, जो बहादुरी और ज़ाबाजी से शोषण और अत्याचारों का सामना करे और धर्म की रक्षा व प्रचार कर सके।
सवा लाख से एक लड़ाऊ,
चिड़ियों सो मैं बाज तड़ऊ,
तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊ…
‘अमृत’ का रसपान कर सिंह बनने वाले सिखों के लिए पंज ककार धारण करना अनिवार्य होते हैं। पांच ककारो में केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कछैरा सिख धर्म में विशेष महत्त्व रखते हैं और उनके धर्म के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं।
शहादत :
सत्य को स्थापित करने और अधर्म को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ 13 युद्ध लड़े। छोटी सेना होने के बावजूद भी उन्होंने बड़ी निडरता और कुशलता से हर बार मुगलों पर जीत हासिल की। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह को बादशाह बनने में गुरू गोबिंद सिंह जी ने मदद की थी। उनके बनते मीठे रिश्तों को देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खाँ डर गया। उसने अपने दो आदमी गुरु जी के पीछे लगा दिए, जिन्होंने धोखे से गुरु साहिब पर वार किया, जिससे 7 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में समा गए।
उन्होने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और स्वयं भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए थे। गुरु जी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरु गोबिंद जी ने बंदा बहादुर का नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और गुरु जी की शहादत का बदला लिया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों में से बाबा अजीत सिंह और बाबा जोझार सिंह को स्वंय गुरु जी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए चमकौर भेजा था, जो वहाँ शहीद हो गए थे और दो साहिबजादों जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह व माता गुजरी को वजीर खां ने पकड़ लिया था। उसने दोनों साहिबजादों को जिंदा ही दिवार में चिनवा दिया था और वे भी शहादत को प्राप्त हुए।
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji ) की पवित्र शिक्षाएं:
गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार किया और लोगों को जीने की सही राह दिखाई। उन्होंने अपने उपदेशों के द्वारा लोगों का उद्धार किया। गुरु साहिब की पवित्र शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
धरम दी किरत करनी : अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं ।
जगत-जूठ तंबाकू बिखिया दी तियाग करना : हमेशा नशे व तंबाकू के सेवन से दूर रहें।
किसी दि निंदा, अते इर्खा न करना : इसका अर्थ है कि कभी भी किसी दूसरे की निंदा-चुगली नहीं करनी चाहिए। दूसरों से ईर्ष्या करने की जगह स्वयं मेहनत करनी चाहिए।
बचन करकै पालना : अगर आप किसी को कोई वचन देते हैं, तो उसकी पालना करनी चाहिए। यानि हर कीमत पर अपने वचन को निभाना चाहिए।”
कम करन विच दरीदार नहीं करना : व्यक्ति को अपने काम करने में खूब मेहनत करनी चाहिए, किसी तरह की टाल-मटोल या लापरवाही नहीं चाहिए।
गुरबानी कंठ करनी: गुरु गोबिंद सिंह जी के इस बचन का अर्थ है कि गुरुवाणी को कंठस्थ कर लें और उसकी पालना करें।
दसवंड देना : हर व्यक्ति को अप‌नी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे देना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए।
कैसे मनाई जाती है गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती ( Guru Gobind Singh Ji Jayanti) :
इस बार गुरु गोविंद जी की 357 वीं जयंती मनाई जा रही है। इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। विशेष महत्व रखने वाले इस दिन को सिख समुदाय के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। पहले दिन नगर कीर्तन व जूलूस निकाला जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर, नहाकर व नए कपड़े पहनकर गुरुद्वारे जाते हैं। वहाँ पवित्र भावना से मथ्था टेकते हैं और अपने परिवार व समाज की भलाई के लिए अरदास करते हैं। इस दिन विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। भजन-कीर्तन व पवित्र गुरबानी का पाठ किया जाता है और इस प्रकाश पर्व के उत्सव को मनाया जाता है।

लोहड़ी

त्योहार और उत्सव-समारोह ही ऐसे अवसर होते हैं, जो जीवन को खुशियों से भरे रखते हैं और भाईचारे को बनाए रखते हैं। ऐसे मौकों पर ही एक दूसरे से मिलते हैं, जश्न मनाते हैं, मिठाइ‌याँ बाँटते हैं और पूजा-अनुष्ठान करते हैं। वर्षभर कोई न कोई त्यौहार सभी को आपस में जोड़े रखते हैं। साल के शुरू होते ही लोहड़ी का त्योहार आता है। तिल, गुड़ और अग्नि को समर्पित इस त्योहार को पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

लोहडी का पर्व :

मकर संक्रांति से पहले दिन मनाया जाने वाला लोहड़ी का त्योहार साल का सबसे प्रथम त्योहार होता है। लोहड़ी को पहले ‘तिलोड़ी’ नाम से जाना जाता था, जो तिल और रोड़ी (गुड की रोड़ी) दो शब्दों से मिलकर बना था। धीरे-धीरे लोग इसे लोहड़ी कहने लगे। यह पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पूरे उत्तरी भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाबी समुदाय के लोगों के लिए लोहड़ी पर्व का विशेष महत्व है।

लोहड़ी का त्योहार (Lohri Festival ) अधिकांशत: 13 जनवरी को मनाया जाता है। किसानों के लिए खास इस त्योहार को समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दिन सूर्य और अग्नि पूजा का विशेष महत्त्व है। सभी मिल-जुल कर अलाव लगाते हैं, गुड़, रोड़ी, मूंगफली, मक्की आदि खाते हैं। भांगडा-गिद्दा करते हैं और खुशी मनाते हैं। नवविवाहित जोड़ों और बच्चों की पहली लोहड़ी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी का महत्व :

लोहड़ी का त्योहार( Lohri Festival ) हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की आखिरी रात को मनाया जाता है। विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। लोहड़ी के बाद दिन बड़े होने लगते हैं, यानि माघ मास शुरू हो जाता है। सूर्य पृथ्वी से दूर जाने लगता है और मकर रेखा में प्रवेश कर जाता है।

सामान्यतः त्यौहारों का संबंध प्रकृति और फसलों से होता है। ऐसे ही सर्दियों की फसल में गेहूँ की बिजाई अक्तूबर में की जाती है, जिसकी कटाई मार्च-अप्रैल में होती हैं। लोहड़ी पर्व के समय तक यह फसल पकनी शुरु होने लगती है। जिसकी भरपूर उपज और समृद्धि की कामना करते हुए किसान यह त्यौहार मनाते हैं और अग्नि में अब तक की फसलों, तिल, दालें, मक्का, आदि का अर्पण कर भोग लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अग्नि में भोग लगाने से सभी देवी- देवताओं को भोग लग जाता है। इस दिन गरीबों को दान दिया जाता है और बच्चों को लोहड़ी बाँटी जाती है। इस दिन विवाहित कन्याओं को उपहार व मिठाइयाँ देने का भी विशेष महत्त्व है।

लोहड़ी का त्यौहार( Lohri Festival ) क्यों मनाया जाता है:

इसका संबंध सती के त्याग से माना जाता है। पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता है। कथानुसार, प्रजापति दक्ष ने अपने यहाँ विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया। सती के वहाँ पहुंचने पर राजा दक्ष ने उसका व उसके पति महादेव शिव का तिरस्कार किया। अपने पिता के द्वारा उनके जामाता को आमंत्रित न करने व उनका निरादार करने से आहत सती ने अपने आप को अग्नि को समर्पित कर दिया। इससे शिव आवेश में आ गए और सभी ऋषियों, देवताओं द्वारा समझाने पर शांत हुए। उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में मनाया गया और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिए जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता है। इसी खुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओं में बाँटा जाता है।

दुल्ला भट्टी की एतिहासिक कथा :

लोहड़ी पर्व( Lohri Festival ) के पीछे एक पुरानी कथा भी है। यह अकबर के शासनकाल की है। दुल्ला भट्टी उस समय पंजाब प्रांत का नामी लूटेरा था। जो धनी लोगों से लूटपाट करता। माना जाता है कि एक बार सुन्दरी मुन्दरी नाम की दो लड़कियों के माता-पिता नहीं थे और उन्हें जबरन बेचा जा रहा था। तब दुल्ला भट्टी ने उन्हें बचाया और उनकी शादी गांव के लड़कों से करवा दी। उसने सर्द रात के अंधेरे में ही आग जलाकर उनकी शादियाँ कर दी और शगुन के तौर पर उनकी झोली में सेर (एक नाप) शक्कर डालकर उनके पिता का फर्ज निभाया। वह उस इलाके के नायक के रूप में जाना जाने लगा था। तभी लोहड़ी का यह त्यौहार दुल्ला भट्टी के गीत के साथ ही मनाया जाता है –

सुन्दरी, मुन्दरिये … हो,

तेरा कौन विचारा … हो,

दुल्ला भट्टी वाला … हो,

दुल्ले धी व्याही … हो,

सेर शक्कर पाई … हो,

……….

लोहडी पर खास :

त्यौहारों का विशेष संबंध पकवानों से रहता ही है। सरसों का साग, मक्के की रोटी खासतौर पर बनाया जाता है। लोहड़ी के दिन तिल, मूंगफली, रेवड़ी, गज्ज़क, फुल्ले लोहड़ी की पहचान होते हैं। रात को अलाव पर इक्ट्‌ठे होकर किया जाने वाला भांगड़ा और गिद्दा रौनक भी लगाते हैं और खुशी भी बिखेरते हैं। घर में नवविवाहित जोड़े या नन्हें बच्चे की पहली लोहडी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उनकी तरफ से पूरे मुहल्ले और भाईचारे में उपहार व मिठाइ‌याँ बाँटे जाते हैं। गरीबों को तिलपट्टी, मूंगफली, कपड़े, गुड व अन्य चीज़ें दान में दी जाती है।

ऐसे मनाते हैं लोहडी पर्व :

कई इलाकों में तो लोहड़ी की तैयारियाँ कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती हैं। बच्चे टोलियाँ बनाकर लोहड़ी माँगने घर-घर जाते हैं। लोहड़ी के गीत गाकर व ढोल बजाकर वे सभी से लोहड़ी माँगते हैं। उन्हें खुशी के साथ मूंगफली, रेवड़ी, मक्की, टॉफी, आदि चीजें दी जाती हैं। लोहड़ी वाले दिन सभी सज-धज कर, पारंपरिक पोशाक पहनकर पड़ोसियों और संबंधियों को मिलते हैं व बधाईयाँ देते हैं। शाम के समय सभी आपस में मिलकर किसी खुली जगह पर अलाव लगाते हैं, उसमें अग्नि को गुड़, तिल व भुट्टा आदि अर्पित करते हैं। फिर वहाँ सभी को लोहड़ी बाँटी जाती है। जिनके यहाँ कोई नई शादी हुई होती है या बच्चे का जन्म हुआ होता है, तो ढोल या डी.जे. पर जमकर भांगडा व गिद्दा किया जाता है। लोहड़ी पर घर की विवाहित बेटियों को उपहार व मिठाइ‌याँ भेजी जाती हैं।

निष्कर्ष-

त्योहार एकता व भाईचारे की मिसाल होते हैं। पवित्रता का प्रतीक लोहड़ी का यह त्यौहार स्त्री सम्मान का सूचक है। अग्नि को तिल, मक्का आदि अर्पित कर किसान सभी के लिए खुशहाली, समृद्धि व अच्छी फसल की कामना करते हैं। यह माँगा जाता है कि आने वाला वर्ष सभी के लिए हर्षोल्लास से भरा हो और सुखमयी हो। द्वार पर आने वाले बच्चों को खुशी-खुशी विदा किया जाता है व एक परिवार की खुशी में ही सारा मोहल्ला जश्न मनाता है। इस तरह लोहडी हमें एकता व प्रेम के सूत्र में पिरो देती है।

(History of celebrating New Year and how to celebrate New Year )नए साल मनाने का इतिहास और नए साल को किस तरीके से मनाए –

आप सभी को जानकर बहुत ख़ुशी होगी कि आख़िर वह लम्हा आ गया, जिसका हम सभी को बेसब्री से इंतज़ार था। जी हाँ, नया साल आ गया है। आप सभी को नव वर्ष (New Year 2024)2024 की हार्दिक शुभकामनाएं। नया साल(New Year) हम सभी के लिए नई-नई खुशियां लेकर आए। सभी को बहुत शौक़ होता है कि हम ऐसा इस नए साल में क्या करें, जिससे हमारा नया साल स्पेशल बन जाए। हर कोई नए साल के लिए अपनी अपनी तरफ से प्लानिंग करता है कि हम नए साल को इस तरह से मनाए, यह करे, इसे इस तरह से मनाएं। आइए जानते हैं नए साल से जुड़ी कुछ बातें।

नए साल(New Year) को हम 1 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं-

नया साल(New Year) एक जनवरी को मनाया जाता है, क्योंकि यह ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार साल का पहला दिन होता है। इसके पीछे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं। ग्रीगोरियन कैलेंडर को पृथ्वीवासियों के सामंजस्यपूर्ण समय को संगत बनाने के लिए 16वीं सदी में पूरी दुनिया में लागू किया गया था, जिसके अनुसार साल 365 दिनों का होता है और हर चौथे साल  में एक दिन अधिक होता है। नया साल(New Year) नई उम्मीदों की शुरुआत का प्रतीक होता है और लोग इसे परिवार और दोस्तों के साथ खुशी और आत्मविश्वास के साथ मनाते हैं।

आईए जानते हैं कि हम नए साल(New Year) को बहुत कैसे बना सकते हैं –

नए साल को हर कोई अपने-अपने तरीके से प्लान करता है।
हर कोई इस अवसर को बहुत खास बनाना चाहता है।
आइए हम जानें कि नए साल को खास कैसे बनाए।

नए साल(New Year) के दिन करें यह कार्य –

  • परिवार के साथ घूमने कहीं बाहर जाए –
नए साल के शुभ अवसर पर आप परिवार के साथ कहीं घूमने बाहर जा सकते हैं। सर्दी के मौसम में बाहर घूमने का अलग ही आनंद होता है। दूसरा आप परिवार को समय से दे। इस साल आप शिमला, मनाली, कुल्लू या राजस्थान आदि में कहीं घूमने का प्लान बना सकते है, ताकि ये साल परिवार वालों के लिए बहुत खास बन जाए।
घर में पूजा-पाठ करें –
नया साल सभी की जिंदगी में खुशियां ही खुशियां लेकर आए इसकी कामना करते हुए हम नए साल(New Year)के दिन घर में पूजा का आयोजन भी कर सकते हैं, ताकि भगवान की याद के साथ नए साल का स्वागत हो।
  • नए लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लें –
नए साल(New Year) में आपके हर कार्य में तरक्की हो, इसके लिए पुराने साल में जो कमियां थी। उनको सुधार कर अपने लक्ष्य पर फ़ोकस करते हुए, अपने लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लें। ये नया साल आपकी तरक्की लेकर आए, इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ आगे बढ़ने का प्रण लें।
  • नए साल के अवसर पर करें मानवता भलाई के कार्य –
आप नए साल को और भी ज्यादा स्पेशल मनाने के लिए इस दिन मानवता के कार्य कर सकते हैं। जैसे कि सर्दी में कांप रहे लोगों को सर्दी के कपड़े पहनाएं, भूखों को खाना खिलाएं, पेड़ लगाएं, रक्तदान करें आदि। इस तरह मानवता के कार्यों के साथ आपका नया साल बहुत खास बनाया जा सकता है।
  • पुराने साल की नफरत को छोड़, सभी के साथ प्यार से रहने का संकल्प लें-
पुराने साल में अगर आपकी किसी के साथ दुश्मनी या झगड़ा था, तो उसे इस नव वर्ष में खत्म कर प्यार से एक नई शुरुआत करें। नफरत को भुला सभी के लिए प्यार को दिल में लेकर आएं, इस तरह से नए साल(New Year) का उत्सव मनाएं।
  • अपनी बुरी आदतों से करें तोबा और अच्छी आदतों को अपनाएं –
आपके अंदर अगर कोई बुरी आदत है, तो उसे इस नव वर्ष में छोड़ने का और अच्छी आदतों को अपनाने का प्रण करें। अच्छी आदतों से इंसान हर जगह इज्जत हासिल करता है। इसलिए इस नए साल में आप खुद को अच्छाई के राह पर अग्रसर करें।
निष्कर्ष-
तो इस तरह से आप अलग अलग और विभिन्न तरीके से इस नए साल को खास मना सकते हैं।
नया साल आप सभी के लिए खुशियों भरा हो, हम इसकी कामना करते हैं और आप सभी को नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई देते हैं।

फिर से पैरोल पर बाहर आ सकता है राम रहीम : जानिए बाबा राम रहीम की ज़िंदगी से जुड़े रहस्य

अक्सर सुर्ख़ियों में रहने वाले बाबा राम रहीम की पैरोल को लेकर चल रही चर्चा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सूत्रों के अनुसार पता चल रहा है कि बाबा राम रहीम जल्द ही पेरोल पर बाहर आ सकते है। गुरमीत राम रहीम जिन्हें अक्सर लोग “राम रहीम” के नाम से भी जानते है। पिछले कुछ सालों से अक्सर सुर्ख़ियों में बना रहता है और बाबा राम रहीम सिंह के सुर्ख़ियों में बने रहने के पीछे एक बड़ी कहानी है।

अगर हम बाबा राम रहीम की कहानी के बारे में बात करें, तो डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख है। बाबा एक प्रसिद्ध गुरू है, जिनके अनुयायी देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। सुर्ख़ियों में रहने वाले बाबा राम रहीमको देश का बच्चा-बच्चा जानता है।

फिलहाल, सुर्खियों में बाबा की पैरोल का विषय है-
एक ऐसा विषय जो राम रहीम की खबरों में सुर्ख़ियों में बना हुआ है। जिस पर बहुत से लोग विवाद करते है और अक्सर उनके यह प्रश्न होते हैं की आख़िर बाबा राम रहीम को इतनी बार पैरोल क्यों दी जाती है? बाबा आख़िर पैरोल पर आने के बाद करते क्या हैं? बाबा राम रहीम की कहानी में जो दिखता है, क्या यही सच्चाई है या उससे अधिक कुछ है?

यह पोस्ट यहां बाबा गुरमीत राम रहीम पैरोल की दिलचस्प दुनिया के बारे में लोगों के मन में जो सवाल है उनको गहराई तक जाकर स्पष्ट करने के लिए है।
आइए एक-एक करके राम रहीम समाचार पर विचार करते हुए, राम रहीम की कहानी पर गौर करें।

क्या पैरोल मिलना सचमुच एक कानूनी अधिकार है?
अक्सर पैरोल कैदी की अस्थायी रूप से रिहाई होती है, लेकिन यह पैरोल कैदी के अनुरोध पर दी जाती है जबकि पैरोल मिलना कैदी का क़ानूनी अधिकार है। पैरोल सरकार द्वारा जेल में बंद लोगों को दिया गया एक मौका है। जिसका उद्देश्य है कि क़ैदी को कुछ समय तक जेल में रहने के बाद सामान्य जीवन में वापस आने में मदद मिलेती है। बाबा राम रहीम की कहानी के मामले में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि उन्हें पैरोल देना कोई साधारण बात नहीं है। इस बारे में हरियाणा सरकार का कहना है कि वह राम रहीम को पैरोल देकर कानून का पालन कर रहे है।

आख़िर कितने समय तक पैरोल मिल सकती है-
पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है जबकि फरलो ज्यादा से ज्यादा 21 से 28 दिन के लिए दिया जा सकता है।इन नियमों के मुताबिक उन्हें साल में 70 दिन तक की पैरोल व 21 से 28 दिनकी फ़र्लो मिल सकती है। व 3 साल की जेल में रहने के बाद ये किसी भी क़ैदी का हक़ होती है! इसलिये अगर अपने देश के क़ानून के अनुसार देखा जाए तो राम रहीम पैरोल कोई राजनातिक सहायता दाव पच नहीं है बल्कि कानूनन अधिकार है।

बाबा राम रहीम को कितनी बाबा मिल चुकी है पैरोल?
बाबा राम रहीम इस से पहले चार बार पैरोल पर युपी के बागपत आश्रम में रह चुके है। आपको बता दें यह आश्रम डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गुरु शाह सतनाम सिंह जी द्वारा बनाया गया था।
बाबा राम रहीम सबसे पहले 2022 में 17 जून को 30 दिन के लिए आए थे, इसके बाद अक्टूबर में 40 दिन के लिए, फिर साल 2023 में जनवरी में और जुलाई में युपी डेरे में पधारे थे।

क्या सच में बाबा राम रहीम की पैरोल को लेकर दी जा रही है अतिरिक्तप ढील?
इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्यात राम रहीम को ढील देते हुए बार-बार पैरोल दी जा रही है? इस अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। अगर कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्साई जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यंवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंबने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्या‍दा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि स्पंष्टय ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्यग सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्येक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से कोई नुकसान नहीं है तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा राम रहीम की पैरोल के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया-
आइए जानते है कि आख़िर राम रहीम की पैरोल के बारे में लोग वास्तव में क्या सोचते हैं। राम रहीम की पैरोल इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर समाचारों और जनता दोनों में खूब चर्चा हो रही है। राम रहीम सिंह की पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही टीवी चैनल सक्रिय हो जाते है वि शुरू हो जाता है वाद विवाद! कुछ लोग इसको ग़लत बताते है तो बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। इन लोगों का मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

पैरोल पर आने के बाद आख़िरकार करते क्या हैं बाबा राम रहीम?
राम रहीम की पैरोल की कहानी को गहराई से जानते कि वह जेल के बाहर अपना समय कैसे बिताते हैं। हालाँकि बाबा को कई बार पैरोल मिल चुकी है। लेकिन अभी भी उनके आने की ख़बर सुर्ख़ियों में है। सूत्रों से पता चला है कि बाबा राम रहीम पैरोल पर जल्द ही आ सकते हैं। लेकिन गौर करते है कि इन अवधियों के दौरान बाबा करते क्या है।

पैरोल के दौरान बाबा राम रहीम ने शुरुआत की नशा मुक्त अभियान की और नाम दिया “डैप्थ मुहीम”-
बाबा राम रहीम पैरोल में एक महत्वपूर्ण पहल जो सामने आई है वह है “डेप्थ मुहीम”। इस अभियान की शुरुआत खुद गुरुमीत राम रहीम ने की थी। इस मुहीम का उद्देश्य देश को, विशेषकर युवा पीढ़ी को नशीली दवाओं की लत और अन्य मादक द्रव्यों के सेवन से बचाना है।
राम रहीम की पैरोल के दौरान शुरू हुआ यह अभियान युवाओं को नशे रूपी दैत्य को समाज से दूर भगाने व युवा पीढ़ी को नशे की लत से उबरने के लिए सशक्त बनाता है। लोगों का दावा है कि इस मुहीम से जुड़कर लाखों लोगों ने नशे रूपी दैत्य का त्याग किया है।

क्योंकि बाबा एक किसान है तो इस टाइम में बाबा काफ़ी समय खेती को देते हैं व खेती के आधुनिक तरीको को आज़माते है और साथ ही ये अपने सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरो को भी बताते हैं। इस तरह से बाबा लगभग अपना समय कोई ना कोई नया सामाजिक उत्थान कार्य करने में लगाते है।

यूपी के बागपत प्रशासन से माँगी गई बाबा राम रहीम की रिपोर्ट-
डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम एक बार फिर जेल से बाहर आ सकते हैं। सरकार एक बार फिर बाबा राम रहीम को जेल से बाहर निकालने की तैयारियां कर रही है। इसके लिए बाबा राम रहीम ने जेल के प्रशासन को पैरोल के लिए अर्ज़ी लगाई हुई है। इसके लिए बाबा राम रहीम के चाल-चलन व व्यवहार की रिपोर्ट यूपी के बागपत प्रशासन से माँगी गई है। जिसके बाद ही बाबा राम रहीम जेल से बाहर जल्द आ सकते है।

पैरोल देने का फैसला करना आसान नहीं होता है।यह रस्सी पर चलने जैसा होता है। किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और बाकी सभी की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करना बड़ा कठिन होता है। लेकिन बाबा के केस में ऐसा नहीं है और यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि पैरोल से अच्छे बदलाव आ सकते हैं। जो यह दिखाते हैं कि वे बदलाव लाना चाहते हैं और समाज की मदद करना चाहते हैं, तो उन्हें वह मौका मिलना चाहिए। डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम के मामले में, उनकी पैरोल को उनकी रिहाई के दौरान उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों के खुली आँखों से से देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष
आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी।बाबा द्वारा किए जा रहे समाज भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उसकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

Baba Ram Rahim Parole news: बाबा राम रहीम एक बार फिर आएगा जेल से बाहर, 21 दिन के लिए हुई पैरोल मंजूर

लगातार सुर्खियों में छाए जाने वाले बाबा राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim Singh) आजकल बड़ी चर्चा में हैं। मीडिया में बाबा राम रहीम की चर्चा का विषय है-पैरोल, जो उनको जल्द ही मिलने वाली है।
इससे पहले जुलाई माह में बाबा राम रहीम जेल से बाहर आए थे। डेरा सच्चा सौदा के चीफ बाबा राम रहीम (Dera Chief Baba Ram Rahim) के लिए 21 दिन की पैरोल मंजूर हो गई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इससे पहले राम रहीम 7 बार पैरोल पर आ चुके हैं।

इस बार बाबा राम रहीम (Ram Rahim Singh) पैरोल पर 21 दिन के लिए बाहर आ रहे हैं।

आपको बता दें कि राम रहीम 25 अगस्त 2017 से सुनारिया जेल में हैं। 3 साल के अंदर बाबा राम रहीम 184 दिन यानी 7 बार पैरोल पर जेल से बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार से राम रहीम की 21 दिन की पैरोल मंजूर कर दी है। इसलिए अबकी बार फिर बाबा राम रहीम 21 दिन की पैरोल पर बाहर आ रहे हैं।

पैरोल मिलने के बाद गुरमीत राम रहीम उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बरनावा आश्रम डेरे में पधारेंगे। इससे पहले गुरमीत राम रहीम 20 जुलाई 2023 को 30 दिन की पैरोल पर आए थे और 15 अगस्त का जन्मदिन डेरा सच्चा सौदा की साध संगत ने बाबा राम रहीम के साथ मनाया था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें, बाबा राम रहीम के पूरे विश्व में श्रद्धालु है, जो बाबा राम रहीम को भगवान मानते हैं और अनेकों मानवता भलाई के कार्य करके लोगों का सहारा बनते हैं। एक बार बाबा राम रहीम को अपनी मां के इलाज के लिए भी पैरोल मिली थी।
बाबा राम रहीम में कुछ तो ऐसी खूबियां हैं जिनके कारण उन्हें बार-बार पैरोल मिल रही है।

बार-बार पैरोल मिलने का कारण है बाबा का अच्छा व्यवहार जिसके कारण बाबा जी को बार-बार पैरोल मिलती है। यह सब ध्यान में रखा जाता है कि जब पैरोल मिलती है तो वहां का कैसा माहौल है? शायद सब कुछ अच्छा होने का कारण है बाबा को बार-बार पैरोल मिलना।

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। अन्य पर्व की तरह भारत के लोग हिंदी दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन को स्कूल, कॉलेज व सरकारी कार्यालयों में अलग अलग तरह से मनाया जाता है।

हिंदी दिवस का इतिहास-

सन् 1947 में जब भारत ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ, तो उनके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी थी। भारत विविध संस्कृति वाला विशाल देश है, जिसमें सैंकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां हैं। 6 दिसंबर 1946 को स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया।

शुरुआत में सच्चीदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उनकी जगह डॉ राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया। डॉ भीम राव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया। इसलिए स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया।

लेकिन फिर भी, संविधान के लिए आधिकारिक भाषा चुनने की चिंता अभी भी खड़ी थी। एक लंबी चर्चा और बहस के बाद, हिंदी और अंग्रेजी को स्वतंत्र भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में चुना गया।

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि और अंग्रेजी को एक लिखित भाषा के रूप में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने इस दिन को हिंदी दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।

हिंदी दिवस का महत्व-

हिंदी भाषा किसी परिचय की मोहताज नही है। कई वर्षों से हमारे देश में हिंदी बोली जाती रही है। हिंदी दिवस एक माध्यम है, इस बात से अवगत कराने का कि भारत की मातृभाषा हिंदी है।
भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है। हिंदी दिवस पर कई अवॉर्ड भी दिए जाते हैं। इस दिन दिए जाने वाले विशेष अवॉर्ड में राजभाषा गौरव पुरुस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरुस्कार सम्मिलित हैं।

हिंदी दिवस संदेश-

दूसरी भाषाओं को सीखना गलत नहीं है। परंतु दूसरी भाषाओं को सीखते सीखते अपनी मातृभाषा को अनदेखा कर देना भी सही नही है।

विश्व की सभी भाषाओं में से हिंदी एक व्यवस्थित भाषा है। दूसरे शब्दों में हिंदी में जो हम लिखते हैं, वही हम बोलते हैं बल्कि अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं होता, वहां बोला कुछ और जाता है और अर्थ कई बार भिन्न ही होता है।

हिंदी भाषा दिन प्रतिदिन अपना अस्तित्व खो रही है। बड़े बड़े स्कूल, कॉलेज में हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता दी जाती है ।

आज हिंदी दिवस के मौके पर हमें अपने आप से वादा करना चहिए कि हम भी अपनी मातृभाषा को अपनाएंगे । आप सभी को हमारी तरफ से हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ।