डेरा सच्चा सौदा

डेरा सच्चा सौदा एक रूहानी कालेज है। यहां पर इन्सानियत का सच्चा पाठ पढ़ाया जाता है। डेरा सच्चा सौदा 1948 में शुरू हुआ था। शहंशाह मस्ताना जी नाम के एक धार्मिक गुरू ने एक झोपड़ी से आध्यात्मिक कार्यक्रमों और सत्संगों का आयोजन करके इसकी शुरुआत की थी। समय के साथ साथ डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। शाह मस्ताना जी महाराज के बाद डेरा के प्रमुख शाह सतनाम जी महाराज बने। 1990 में उन्होंने अपने अनुयायी संत गुरमीत सिंह को गुरगद्दी सौंपी। हरियाणा के सिरसा जिला में डेरा सच्चा सौदा का आश्रम 70 सालों से चल रहा है और इसका साम्राज्य अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड से लेकर ऑस्ट्रेलिया और यूएई तक फैला है। इस संगठन के अनुयायियों में सिख धर्म के लोग, हिंदू धर्म के अनुयायी, इसाई, मुसलमान और पिछड़े और दलित वर्गों के सभी लोग शामिल हैं। डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म संगम के लिए जाना जाता है।

आज हम बात करते हैं डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही शाह सतनाम सिंह जी महाराज के बारे में, जिनको 28 फरवरी 1960 को मस्ताना जी के द्वारा गुरु गद्दी सौंपी गई थी। इस दिन को इनके अनुयायी महारहमोकर्म दिवस के रूप में मनाते हैं। आइए जानें आज उनकी जीवनी के बारे में।

शाह सतनाम सिंह जी की जीवनी

शाह सतनाम सिंह जी का जन्म 25 जनवरी 1919 में उनके ननिहाल में हुआ। इनका बचपन में नाम सरदार हरबंस सिंह था। इनकी माता जी का नाम आस कौर जी और पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी था। वे जलालआणा साहिब गांव के रहने वाले थे। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव जलालआणा साहिब में ही प्राप्त की। इसके आगे मैट्रिक तक की पढ़ाई कालांवाली मण्डी में की। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिऐ उन्होंने बठिंडा में दाखिला ले लिया, मगर अपनी माता जी का दिल न लगने की वजह से वो पढ़ाई बीच में छोड़ कर आ गए। फिर इनकी शादी कर दी गई। 14 मार्च 1954 में इन्होंने मस्ताना जी महाराज से नाम शब्द की प्राप्ति की।

गुरुगद्दी की प्राप्ति और गुरु के लिए कुरबानी

मस्ताना जी महाराज ने चोला बदलने से पहले गुरुगद्दी के लिए एक सच्चे व्यक्ति की खोज करनी शुरू कर दी। खोज पूरी होने के बाद आखिरकार सरदार हरबंस सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गुरुगद्दी नशीन के लिए चुना गया। खोज के दौरान इनकी परीक्षा ली गई। यह हर परीक्षा में सफल होते गए। गुरु के प्यार में इन्होंने अपने ही हाथों से अपना ही घर तोड़ कर घर का सारा सामान बाँट दिया और अपना सर्वस्व गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया।

28 फरवरी 1960 को इनको मस्ताना जी के द्वारा गुरुगद्दी पर विराजमान कर दिया गया और उसी समय इनका नाम सरदार हरबंस सिंह से शाह सतनाम सिंह जी कर दिया गया। इस दिन को इनके अनुयायी महारहमोकरम दिवस के रूप में मनाते हैं।

जीवोद्धार् यात्रा

अपनी जीवोद्धार् यात्रा के दौरान उन्होंने 4142 सत्संग किए और 1,110,630 जीवों को नाम शब्द देकर भवसागर से पार किया।

सत्संगों के दौरान उन्होंने लोगों को झूठे रीति रिवाजों, कुरीतियों और पाखंडों से निकाल कर सच्ची इन्सानियत का पाठ पढ़ाया।

इन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन, कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, दहेज प्रथा को रोकना, नशे आदि जैसी कुरितियों से लोगों को दूर किया। इन्होंने सभी से प्रेम करना, सच्चा दान, इन्सानियत, प्रभु भक्ति आदि की शिक्षाऐं प्रदान की।

अंत में वो 23 सितंबर 1990 को मौजूदा गद्दीनशीन संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरुगद्दी पर बिठा कर 13 दिसंबर 1991 को ज्योति ज्योत समा गए।

जैसा कि हम पिछले कुछ आर्टिकल में पढ़ चुके हैं कि कैसे इनके अनुयायियों ने जनवरी का महीना अपने गुरु शाह सतनाम सिंह जी के जन्ममाह को मानवता भलाई के कार्य करके मनाया। क्या इनके अनुयायी इस महारहमोकरम माह को भी ऐसे ही मना रहे हैं? जानने के लिए इंतजार करिए हमारे अगले आर्टिकल का।

3 Comments

  1. कुर्बान जाए ऐसे गुरु को जिनकी वजह से आज करोड़ो लोग मानवता के राह पर चलते है।।

  2. Dalsher Singh Reply

    सच्चे सौदे के दो ही काम
    इंसानियत की सेवा राम का नाम

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