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भाई -दूज

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बाजारों की चहल-पहल , घरों की मनोहर सजावट व लोगों के चेहरे की रौनक …..’इन दिनों तो मानो हवा में भी उत्सवों की महक घुली हो’। भारतवर्ष में साल भर त्योहारों की जो अनोखी छटा देखने को मिलती है वह कहीं और कहां। प्रेम तथा भाईचारे का संदेश देते हुए त्यौहार हमें जीवन के सही अर्थ समझाते हैं।

इन्ही में से एक है..”भाई-दूज” । जी हाँ, प्राचीन समय से भाई बहन के प्रेम को प्रकट करता यह त्यौहार अपने आप मे बहुत विशेष है।वैसे तो बहन सदैव ही अपने भाई की लम्बी आयु व स्वस्थ जीवन की कामना करती है, परन्तु कहा जाता है कि भाई-दूज पर भाई के लिए की गई प्रार्थना जरूर फलिभूत होती है।

कब मनाया जाता है भाई-दूज : 

मित्रों ! दीपावली के दो दिन बाद अर्थात कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।हिन्दू धर्मानुसार यह यम द्वितीय तथा भ्रातृ द्वितीय आदि नामों से भी प्रचलित है।h

क्या है भाई-दूज मनाने का उद्देश्य : 

भ्रातृ द्वितीय का उद्देश्य भाई बहन के प्रेम को प्रगाढ करना है।इस दिन एक ओर जहां बहनें भाई की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं वहीं भाई भी उनकी सम्रद्धि व खुशहाली की कामना करते हैं।

क्या है भ्रातृ द्वितीय मनाने की विधि: 

इस दिन धार्मिक प्रथा अनुसार  चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृतिया बना कर उनमें जल,फल,सिंदूर,पान ,इलायची व जायफल आदि रखे जाते हैं।जिसके बाद भाई को शुभासन पर बिठा कर उनके हाथ पैर धुलाये जाते हैं तथा तिलक लगा कर आरती उतारी जाती है। तत्पश्चात उनकी लम्बी आयु व समृद्धि की प्रार्थना करते हुए उन्हे स्नेहपूर्वक भोजन कराया जाता है।इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है।भाई- दूज पर बहन, भाई को भोजन कराने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है।

भाई-दूज की कथा :

भगवान सूर्य नारायण व माता छाया की दो सन्ताने थी, यमराज तथा यमुना । दोनों में अत्यंत स्नेह था।विवाह पश्चात यमुना बार बार भ्राता यम को भोजन पर आने के लिए निवेदन करती थी।परंतु बहुत व्यस्त होने के कारण यम उनका निमंत्रण स्वीकार नही कर पाते थे।

एक बार यमुना ने यमराज को निमंत्रण दे कर वचनबद्ध कर लिया तथा यम ने सहर्ष इसे स्वीकार भी किया। यम यह सोच कर बहुत खुश थे कि प्राण हरण के डर से उन्हे कोई भी घर बुलाना नही चाहता, परन्तु बहन इतने स्नेह से उन्हें  आमंत्रित कर रही है।

वे इतने हर्षित थे कि बहन के घर आते समय उन्होने सभी नर्कवासी जीवों को मुक्ति दे दी। यमुना ने यह दिवस उत्सव की भांति मनाया।भाई का पूजन कर प्रेमपूर्वक ,अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से उन्हे प्रसन्न किया। खुश हो कर जब यमराज ने उन्हे कोई वर मांगने का आदेश दिया तो यमुना बोली , ” भ्राता ! आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर आएं तथा  मेरी तरह जो भी बहन आज के दिन भाई का टीका सत्कार करे ,उसके भाई को तुम्हारा भय न हो।

तब यमराज ने तथास्तु कहकर उनका वचन स्वीकार कर लिया। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय का दिन था।तभी से भाई-दूज मनाया जाने लगा ।इस दिन विशेष रूप से यम तथा यमुना की पूजा की जाती है।

 

भाई -दूज के उपहार :यह भाई बहनों का विशेष त्यौहार है , इस दिन भाई-बहन दोनो ही एक दूसरे को अपने सामर्थ्य अनुसार उपहार देते हैं।हर बार यह पर्व भाई बहन के प्रेम को ओर अधिक प्रगाढ कर देता है।

हर बहन की भाई दूज पे एक ही आस   

भाई तुम खुश रहो,लम्बी आयु हो तुम्हारी

हमारा प्रेम यूँ ही बढ़ता जाए,हो किस्मत तुम्हारी सुनहरी…..