विश्व विद्यार्थी दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह दिवस सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। यह दिवस भारत के “मिसाइल मेन” कहें जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम के जन्मदिवस के दिन मनाया जाता है। डॉ अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था।
विद्यार्थी दिवस क्यों मनाया जाता है?
डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम सभी वर्गों और जाति के छात्रों के लिए एक प्रेरणा और मार्गदर्शन की भूमिका निभाते थे। एक छात्र के रूप मे उनका स्वयं का जीवन काफी चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने अपने जीवन में बहुत तरह की कठिनाईयों का सामना किया। इसके अलावा उन्होंने बचपन में अपने परिवार और खुद के पालन पोषण के लिए वह घर-घर जाकर अखबार बेचने का काम करते थे। लेकिन उनकी पढ़ाई में अत्याधिक रूचि होने के कारण उन्होंने अपने जीवन में हर तरह की समस्याओं का डटकर सामना किया और वे उसमें सफल भी हुए। राष्ट्रपति जैसे भारत के सबसे बड़े संवैधानिक पद को उन्होने प्राप्त किया।
उनके जीवन की यही कहानी उनके साथ-साथ भारत की आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है। अपने जीवन में डाॅ ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने छात्रों के उच्च भविष्य के लिए वैज्ञानिक और आध्यात्मिक शिक्षा की तरक्की पर ध्यान दिया। इसके लिए उन्होंने बहुत सारे भाषण दिए और किताबें लिखी।
शुरुआत
सन् 2010 मे संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष 15 October के दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम के जन्मदिवस को विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। तब से यह दिवस प्रति वर्ष मनाया जाता है। वे भारत के 11वे राष्ट्रपति (2002-2007) थे। डॉ अब्दुल कलाम एक महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ गंभीर चिंतक और अच्छे इंसान भी थे। डॉ अब्दुल कलाम सभी विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श थे। बाल शिक्षा में विशेष रुचि रखने वाले अब्दुल कलाम को वीणा बजाने का भी शौक था। वे तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से थे। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर देश के सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर पहुंचे।
विश्व विद्यार्थी दिवस कैसे मनाया जाता है?
विश्व विद्यार्थी दिवस भारत के सभी स्कूलों और कॉलेजों में मनाया जाता है। विश्व विद्यार्थी दिवस के अवसर पर स्कूलो, कालेजों में विभिन्न गतिविधियों, घटनाओं और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। डॉ अब्दुल कलाम के जीवन चरित्र को याद किया जाता हैं और उनके जीवन से प्रेरणा ली जाती है। डॉ कलाम के जीवन से जुड़ी घटनाओं की प्रदर्शनी और विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा भाषण, निबंध लेखन और समूह चर्चा जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
अपने विद्यार्थियों के साथ अत्याधिक प्रेम और विश्वास के कारण अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के बाद वह भारत के बहुत सारे स्कूलों और कॉलेजों में अपने भाषणों द्वारा छात्रों को प्रेरित करने के कार्य करते रहे और उन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस तक भारतीय प्रबंधन संकाय में पृथ्वी को एक जीवित ग्रह बनाएं रखने के विषय पर भाषण देते हुए दी।
विद्यार्थी शब्द का अर्थ
विद्यार्थी संस्कृत भाषा का शब्द है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है विद्या+अर्थी। इसका अर्थ है- विद्या चाहने वाला। विद्यार्थी विद्या प्राप्त करने के लिए विद्यालय जाता हैं और विद्या से प्रेम करता है। यदि छात्र ने विद्यार्थी जीवन में परिश्रम, अनुशासन, संयम और नियम का अच्छी प्रकार से पालन किया है, तो उसका भावी जीवन सुखद होगा।
अनुशासन
अनुशासन का भी विद्यार्थी जीवन मे उतना ही महत्व है, जितना कि विनम्रता का है।
विद्यार्थी एक नन्ही कोंपल के समान होता है। उसे जो भी रूप दिया जाए वह उसे ग्रहण करता है। उसका मन शीघ्र प्रभावित होता है। अतः बाल्यावस्था से ही विद्यार्थी को अनुशासन की शिक्षा दी जानी चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बालक-बालिकाएं अपना-अपना काम नियमित रूप से करें। इस दिशा मे माता-पिता का दायित्व और भी अधिक महत्वपूर्ण है। बच्चे की शिक्षा का प्रथम विद्यालय उसका घर ही है। यदि माता-पिता स्वयं अनुशासित है, तो बालक भी अनुशासन की भावना ग्रहण करेगा।
प्राचीनकाल में विद्यार्थी जीवन
प्राचीन भारत मे विद्यार्थी गुरुकुलो में शिक्षा ग्रहण करने जाते थे। 25 वर्ष तक विद्यार्थी ब्रह्मचार्य का पालन करते थे और यह काल शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करते थे। उन दिनों गुरुकुलों का वातावरण बहुत ही पावन और अनुशासित होता था। प्रत्येक विद्यार्थी अपने गुरुजनों का सम्मान करता था। शिक्षा के साथ-साथ उसे गुरुकुल के सारे काम भी करने पड़ते थे। छोटे-बड़े या अमीर सभी एक ही गुरु के चरणों में विद्या ग्रहण करते थे। श्रीकृष्ण और सुदामा ने इकट्ठे संदीपन ऋषि के आश्रम में अनुशासनबद्ध होकर शिक्षा ग्रहण की।
वर्तमान स्थिति
आज हमारे देश के विद्यार्थियों में अनुशासन का अभाव है। वे ना तो माता-पिता का कहना मानते हैं और न ही गुरुजनों का। प्रतिदिन स्कूलों और कॉलेजों में हड़तालें होती रहती है। इस प्रकार के समाचार देखने को मिलते हैं कि विद्यार्थियों ने बस जला डाली।विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता के अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। ये विद्यार्थी परीक्षा में नकल करते हैं, शिक्षकों को धमकाते है और विश्वविद्यालय के वातावरण को दूषित करते रहते हैं। अनेक विद्यार्थी हिंसात्मक कार्यवाही में भाग लेने लगे है। यही कारण है कि आज विद्यार्थियों में अनुशासन की कमी आ चुकी है।
अनुशासन हीनता
आज की शिक्षण संस्थाओं का ठीक प्रबंध ना होना भी विद्यार्थियों को अनुशासनहीन बनाता है। वे विद्यालय के अधिकारियों और शिक्षकों की आज्ञा का उल्लघंन करते हैं। ऐसा भी देखने में आया है कि स्कूलों में छात्र-छात्राओं की भीड़ लगी रहती है। भवन छोटे होते हैं और शिक्षकों की संख्या कम।
कालेजों में तो एक-एक कक्षा में 100-100 विद्यार्थी होते हैं। ऐसी अवस्था में शिक्षक क्या तो शिक्षक पढ़ाएगा और क्या विद्यार्थी पढ़ेंगे। कालेजों में छात्रों के दैनिक कार्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। रचनात्मक कार्यों के अभाव में छात्र का ध्यान व्यर्थ की बातों की ओर जाता है। यदि प्रतिदिन विद्यार्थी के अध्ययन अध्यापन की ओर ध्यान दिया जाए, तो विद्यार्थी अपना काम अनुशासनपूर्वक करेंगे।
Theme 2020
विद्यार्थी काल मानव के भावी जीवन की आधारशिला है। यदि यह आधारशिला मजबूत है, तो उसका जीवन निरंतर विकास करेगा, नहीं तो आने वाले कल की बाधाओं के सामने वह टूट जाएगा। यदि छात्र ने विद्यार्थी जीवन में परिश्रम, अनुशासन, संयम और नियम का अच्छी तरह से पालन किया है तो उसका भावी जीवन सुखद होगा।
वर्तमान शिक्षण पद्धति में परिवर्तन करके महापुरुषों की जीवनियो से भी छात्र छात्राओं को अवगत कराया जाना चाहिए। यथासंभव व्यावसायिक शिक्षा की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि स्कूल से निकलते ही विद्यार्थी अपने व्यवसाय का शीघ्र चयन करें।