बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है- दशहरा
भारत गुरुओं-पीरों व त्यौहारों की धरती है। जहां समय-समय पर कई मेले व त्यौहार मनाए जाते हैं। उनमें से एक पर्व है दशहरा जो कि बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
नवरात्रों के साथ-साथ दशहरे का भी लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। दुर्गा पूजन और रावन-वध के साथ-साथ विजयदशमी की चकाचौंध हर जगह होती है। दशहरा जहां एक ओर बच्चों के लिए मेले के रूप में आता है, तो बड़ों के लिए रामलीला व स्त्रियों के लिए पावन नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। भाव यह है कि चाहे असत्य कितना भी बड़ा हो, उसके लिए समय लग सकता है परन्तु विजय हमेशा सत्य की होती है।
दशहरे का नाम विजयदशमी क्यों पड़ा?
भगवान श्री राम जी ने इस दिन लंका के राजा का वध किया था। जोकि असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। इसलिए यह विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। नौ नवरात्रे होने के साथ-साथ दसवें नवरात्रे को दशहरे का पर्व मनाया जाता है।
दशहरे से कई दिन पहले रामलीला का आयोजन-
दशहरे से 10 दिन पहले जगह-जगह व कोने कोने में रामलीला होनी शुरू हो जाती है। जिसमें माता सीता, श्रीराम चंद्र जी के जीवन के बारे में बताया जाता है। दशहरे वाले दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाकर जलाएं जाते है। यह दिन रामलीला का अंतिम दिन होता है। जिस दिन श्रीराम जी के स्वरूप बने राम जी ने लंका के राजा रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी।
दशहरे के 20 दिन बाद दीवाली का पर्व मनाया जाता है। लोग भगवान श्री राम चन्द्र जी के आने की खुशी में घी के दीपक जलाकर खुशी प्रकट करते है।
दशहरे पर तरह-तरह की दुकानें लगी होती है। बच्चे खुशी से दशहरे पर जाने के लिए उत्सुक होते है। पहले भगवान राम और रावण के बीच लड़ाई होती है और फिर राम चन्द्र जी रावण का वध करते है। ये नाटक खत्म होने पर भगवान राम जी शाम के समय रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले को जलाते है। फिर सभी लोग अपने अपने घरों को वापिस लौटते समय घर के लिए मिठाइयां खरीदते हैं।
लोगों द्वारा त्यौहार को गलत ढंग से मनाना-
इस दिन कई लोग जुंआ खेलते और शाराब पीते है। जोकि एक बहुत ही बुरी बीमारी है। क्योंकि प्रत्येक त्यौहार को उसके महत्व को समझते हुए उसे मनाना चाहिए और अपनी बुराइयों को छोड़ना चाहिए।
निष्कर्ष-
अहंकार को हमेशा मार पड़ती है क्योंकि लंका के राजा ने अंहकार किया और उसकी कुलों का सर्वनाश हो गया इसलिए कभी अंहकार नहीं करना चाहिए।