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नमस्कार दोस्तों, आज मैं आपको एक बहुत ही गंभीर विषय की जानकारी देने जा रही हूं। जी मैं यहां पर एक ऐसी बीमारी के बारे में बात करूंगा जिसे कई बार सुनना भी हम पसन्द नहीं करते।

 

यह बीमारी है एड्स, और जहाँ एड्स की बात आतु है यकीनन लोगों के दिमाग में एक और शब्द आता है और वो है एच आई वी। बहुत से लोग एड्स और एच आई वी को एक ही बीमारी मानते है, उन्हें इनके बीच का अंतर नहीं पता। जबकि ये दोनों ही अलग हैं। तो आइये जानते हैं एड्स और एच आई वी के बीच का अंतर।

मुख्य अंतर

एच आई वी का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस है जिसके सक्रंमण से इंसान के शरीर का इम्युनिटी सिस्टम प्रभावित हो जाता है। जबकि एड्स एक बीमारी है जो एच आई वी वायरस के सक्रंमण के कारण होती है।

 

हमारे शरीर में हानिकारक बीमारियों तथा कीटाणुओं से लड़ने के लिए एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र होता है। एच आई वी एक ऐसा वायरस है जो सीधे इस रक्षा तंत्र अर्थात इम्युनिटी सिस्टम को प्रभावित करता है, जिससे इंसान की अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है।

एड्स का परिणाम

एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्युनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम है। यह एक प्रकार की बीमारी है जो तब होती है जब इंसान का इम्युनिटी सिस्टम पूरी तरह से खराब हो चुका होता है। एड्स की बीमारी व्यक्ति के शरीर में शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बिल्कुल खत्म कर देती है। यही कारण है कि लोग अक्सर इस बीमारी के बाद खुद को अन्य रोगों का शिकार होने से नहीं बचा पाते। पूरे विश्व मे 1 दिसंबर को एड्स दिवस के रूप में जाना जाता है। एड्स दिवस का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में लोगों को एच आई वी वायरस तथा इस से होने वाली एड्स नामक खतरनाक बीमारी के प्रति जागरूक करना है।

एच आई वी का इम्यून सिस्टम पर प्रभाव

हमारे शरीर में रोगों से बचने के लिए एक रक्षा तन्त्र होता है जो इस कार्य के लिए सफेद कोशिकाओं का प्रयोग करता है। किंतु एच आई वी सफेद कोशिकाओं के साथ-साथ CD4 को भी प्रभावित करता है। CD4 एक ग्लाइकोप्रोटीन होता है जो इम्यून सिस्टम में सफेद कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है। एच आई वी इन्फ़ेक्शन इन कोशिकाओं के नष्ट होने से होता है जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं पता चला है।

 

एच आई वी का एड्स में बदलना

एड्स की बीमारी के कोई मुख्य लक्षण नहीं होते तथा यह अन्य किसी बीमारी के कारण नहीं होता है। यह एच आई वी सक्रंमण का परिणाम होता है और जब यह वायरस इम्यून सिस्टम को नष्ट कर देता है तो उस अवस्था को हम एड्स कहते हैं। एड्स की वजह से वजन कम होना, सिरदर्द होना तथा अन्य शारिरिक और मानसिक शिकायतें हो सकती हैं। एड्स प्रभावित व्यक्ति को किसी भी तरह का रोग आसानी से लग जाता है क्योंकि उस समय व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह नष्ट हो चुकी होती है।

 

अंत में मैं आप सब से यह कहना चाहूंगी कि आप सभी इस बीमारी से सावधान रहें तथा किसी भी प्रकार के सक्रंमण से बचें क्योंकि सावधानी में ही समझदारी है।

दोस्तों ,आज कल नजर का चश्मा तो बस बुढ़ापे का प्रतीक माना जाने लगा है। क्योंकि युवाओं में इसका प्रयोग अब चलन के बाहर हो गया है।जिसे देखिए वह चश्मा  हटवा कर कॉन्टेक्ट लेंस लगवाने की सलाह देता नजर आता है। दें भी क्यों न , इसे लगा कर नजर की समस्या का समाधान भी हो जाता है और फैशन से समझौता भी नही करना पड़ता।

परन्तु देखा-देखी कॉन्टेक्ट लेंस प्रयोग करने की बजाय पहले इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

कॉन्टेक्ट लेंस के प्रयोग के साथ-साथ इसके साइड इफेक्ट्स भी पता होने चाहिए।

अधिकतर लोग इस बात से अनजान हैं की आंखों में लगाये जाने वाले लेंस ही आंखों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं।

आइए जानें, कैसे?

  •  बिना धुले हाथों से लेंस छूने पर हाथों के किटाणु लेंस के द्वारा आंखों तक पहुंच सकते हैं|
  • जो लोग रात को लेंस पहन कर सोते हैं उनकी आंखों में ऑक्सीजन की आपूर्ति घट जाती है जो बाद में इंफेक्शन का कारण बन सकता है। जब आंखे बंद होती हैं तो लेंस के जीवाणु आंखों में फैल जाते हैं तथा जलन व लालपन पैदा कर देते हैं|
  • लम्बे समय तक लेंस पहन कर रखना आँखों के लिए हानिकारक होता है। हालांकि कहा जाता है कि सिलिकॉन हाइड्रोजेल लेंस को लम्बे समय तक पहना जा सकता है परंतु इन्हे भी एक निश्चित अंतराल के बाद बदलना पड़ता है। लेंस का प्रयोग करते हुए लापरवाही बरतना कभी-कभी बहुत महंगा पड़ सकता है।

जी हाँ ! लेंस का प्रयोग कभी-कभी केराटाइटिस नामक रोग को भी आमन्त्रण दे सकता है।

 

आइये जानें ,क्या है केराटाइटिस?

कई बार लम्बे समय तक आँखों में कॉन्टेक्ट लेंस लगाये रखने से कॉर्निया में सूजन आ जाती है । जो आँखों में जलन व खुजली का कारण बनती है तथा धीरे – धीरे केराटाइटिस का रूप ले सकती है।

इस बीमारी की सामान्य अवस्था अधिक खतरनाक नही होती ,परन्तु यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाये तो ये इंसान को अंधा भी बना सकती है। सिलिकॉन हाइड्रोजैल लेंस के साथ सोने से केराटाइटिस जैसे संक्रमण की आशंका कम होती है।

केराटाइटिस का कारण :

कॉन्टेक्ट लेंस लगाने से आँखों के प्राकृतिक माइक्रोबियल वातावरण में बदलाव आने लगता है जिस कारण इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।लेंस के कारण , त्वचा पर पाये जाने वाले जीवाणुओं की संख्या आँखों की सुरक्षा करने वाले सूक्ष्मजीवों के मुकाबले अधिक हो जाती है तथा संक्रमण सम्भावना बढ़ जाती है।

 केराटाइटिस से बचाव : 

* कॉन्टेक्ट लेंस पहन कर गर्म पानी के टब, तालाब व समुन्द्र में नहाने से बचना चाहिए।

* सोते समय लेंस निकाल कर सोना चाहिए।

*लेंस को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो लेना चाहिए तथा लेंस बॉक्स को साफ-सुथरा रखना चाहिए।

* नेत्र विशेषज्ञ की सलाह से एक निश्चित समय बाद लेंस बदलते रहना चाहिए।

* आँखों में जलन,खुजली ,लालपन या सूजन आदि की शिकायत होने पर तुरंत नेत्र विशेषज्ञ का परामर्श लेना चाहिए।

*लगातार लम्बे समय तक कॉन्टेक्ट लेंस पहनने से बचना चाहिए।

 

तो मित्रों ! पूरी जानकारी और सावधानी से कॉन्टेक्ट लेंस का प्रयोग करें व स्वस्थ रहें।

पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस मनाया जाता है। जोनास सॉक ने पोलियो के खिलाफ़ वैक्सीन का विकास किया था। यह दिवस उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। वर्ष 2016 में इस दिवस का मुख्य विषय-‘एक दिन एक फोकसः पोलियो समाप्त’ है। भारत सरकार ने वर्ष 1995 में पोलियो उन्मूलन अभियान की शुरूआत की। 27 मार्च, 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया।

उद्देश्य:

इस दिवस को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य पोलियो जैसी बीमारी के विषय में लोगों में जागरूकता फैलाना है। पोलियो एक संक्रामक बीमारी है, जो पूरे शरीर को प्रभावित करती है। इस बीमारी का शिकार अधिकांशत: बच्चे होते हैं। पोलियो को ‘पोलियोमाइलाइटिस’ या ‘शिशु अंगघात’ भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है, जिससे कई राष्ट्र बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं। हालांकि विश्व के अधिकतर देशों से पोलियो का खात्मा पूरी तरह से हो चुका है, लेकिन अभी भी विश्व के कई देशों से यह बीमारी जड़ से खत्म नहीं हो पायी है।

पोलियो क्या है?

पोलियो एक वायरल संक्रमण रोग है, जो कि अपनी प्रकृति में संक्रामक है तथा अति गंभीर मामलों में सांस लेने में कठिनाई एवं अपरिवर्तनीय पक्षाघात का कारण बनता है।
यह वायरस व्यक्ति से व्यक्ति में मुख्य रूप से मल के माध्यम से फैलता है या बेहद कम स्तर पर सामान्य माध्यमों (जैसे कि दूषित भोजन एवं पानी) के माध्यम से फैलता है तथा आंत में पनपता है।
यह रोग वन्य पोलियो वायरस के कारण होता है।
यह रोग मुख्यत: 5 वर्ष की आयु से कम उम्र के सभी बच्चों को प्रभावित करता है।
पोलियो को केवल रोका जा सकता है, क्योंकि पोलियो का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है।
पोलियो वैक्सीन की निर्धारित ख़ुराक से बच्चे को जीवन भर के लिए पोलियो से सुरक्षित किया जा सकता है।
पोलियो से दो प्रकार का टीकाकरण सुरक्षित करता हैं। पहला मौखिक टीका है, जिसे मौखिक तौर पर यानि कि दवाई के रूप में पिलाया जाता है तथा दूसरा निष्क्रिय पोलियो वायरस टीका है, जिसे रोगी की उम्र के आधार पर हाथ या पैर में लगाया जाता है।

पोलियो के लक्षण:

पोलियो की बीमारी में मरीज़ की स्थिति वायरस की तीव्रता पर निर्भर करती है। अधिकतर स्थितियों में पोलियो के लक्षण ‘फ्लू’ जैसै ही होते हैं, लेकिन इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार होते हैं-
  • पेट में दर्द होना।
  • गले में दर्द।
  • सिर में तेज़ दर्द।
  • जटिल स्‍‍थितियों में हृदय की मांस-पेशियों में सूजन आ जाती है।
  • तेज़ बुखार।
  • खाना निगलने में कठिनाई होना।

पोलियो की रोकथाम:

पोलियो के लिए कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। इस रोग को केवल टीकाकरण के माध्यम से रोका जा सकता है। पोलियो टीकाकरण निर्धारित अनुसूची के अनुसार कई बार दिया जा सकता है। यह जीवनभर बच्चे की रक्षा करता हैं। वैक्सीन दो प्रकार के होते हैं, जो कि पोलियो से रक्षा करते हैं-निष्क्रिय पोलियो वायरस वैक्सीन (आईपीवी) एवं जीवित-तनु वैक्सीन मौखिक पोलियो वायरस वैक्सीन (ओपीवी)। मौखिक वैक्सीन को मौखिक रूप से दिया जाता है तथा निष्क्रिय पोलियो वायरस वैक्सीन को रोगी की उम्र के आधार पर हाथ या पैर में लगाया जाता है।
भारत में भी डेरा सच्चा सौदा नाम की एक संस्था इसको रोकने के लिए प्रयास कर रही है इसके लिए उन्होंने बहुत सी मुहिम शुरू की है जैसे:-
मुफ्त पोलियो शिविर आयोजित करना और नवजात शिशु को पोलियो टीकाकरण की सुविधा देना।
  • माँ-बेटा सम्भाल– नि:शुल्क कैंप लगाकर गर्भवती महिला व उसके होने वाले बच्चे के लिए स्वस्थ।

 

  • जननी-शिशु सुरक्षा – गरीब जच्चा-बच्चा का भरण-पोषण करना।

 

  • जननी सत्कार – गरीब गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार देना व इलाज करवाना।

 

  • कायाकल्प – बच्चों को पोलियो की बूंदें पिलवाना व पोलियो कैंप द्वारा मरीजों के मुफ्त आप्रेशन करवाना।

 

  • कदम से कदम – गुणवान विकलांगों की शादी करवाना और उनको रोजगार दिलवाना।

 

  • साथी -विकलांगों को ट्राई साईकिल उपलब्ध करवाना |

 

 

आजकल हर कोई सुंदर दिखने के लिए अच्छा मेकअप करना चाहता है। मेकअप से हमारे चेहरे की अनेक खामिया समाप्त हो जाती हैं और हमारा चेहरा खूबसूरत लगने लगता है। चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए मेकअप के तौर पर फाउंडेशन सबसे बेस्ट है। मेकअप की अगर बात करे तो आमतौर पर फाउंडेशन से ही मेकअप की शुरुआत की जाती है।
क्योंकि फाउंडेशन से हम चेहरे के दाग-धब्बो को आसानी से छुपा सकते हैं। यह एक बहुत ही अच्छा स्किन मेकअप है जिसकी मदद से चेहरे की अनेक खामियों को आसानी से छुपाया जा सकता है और चेहरे को खूबसूरत बनाया जा सकता है। फाउंडेशन त्वचा के कलर का एक उत्पाद होता है, जो त्वचा के टोन को इवन करता है। इसे चेहरे पर अप्लाई करने के लिए सबसे पहले मॉइस्चर या कंसीलर लगाना चाहिए। यदि आप भी चाहती हैं आपका चेहरा खूबसूरत लगे तो आप फाउंडेशन की मदद से अपने चेहरे का मेकअप कर सकते हैं।

फाउंडेशन लगाने के बेस्ट टिप्स

स्टेप 1

स्किन को अच्छी तरह मॉइश्चराइज करें। मॉइश्चराइजर को अब्जॉर्व होने के लिए कुछ समय दें।

स्टेप 2

चेहरे और गर्दन पर प्राइमर लगाएं। कुछ लोग मेकअप किट में प्राइमर नहीं रखते लेकिन इसका मेकअप में बेहद अहम रोल होता है। यह आपके चेहरे के छिद्रों को बंद करता है साथ ही इससे मेकअप ज्यादा देर तक टिका रहता है।

स्टेप 3

फाउंडेशन से पूरे चेहरे और गर्दन पर डॉट-डॉट बनाएं। जॉ-लाइन और चिन पर लगाना न भूलें। ब्रश से अच्छी तरह चेहरे पर एकसार करें। आंखों के नीचे ठीक से ब्लेंड करें ताकि सिकुड़न में फाउंडेशन भरा न दिखाई दे।

स्टेप 4

आखिर में मुलायम ब्रश या स्पंज से पूरा एकसार कर लें। रोशनी में एक बार चेक करें कि इसकी परत न दिखाई दे रही हो। इसके बाद कंसीलर और कॉम्पैक्ट पाउडर लगा सकती हैं।

ये गलतियां न करें

फाउंडेशन की खरीदारी

पाउडर फाउंडेशन फाइन लुक नहीं देता। तरल फाउंडेशन को तरजीह दें। लगाना ही है तो लिक्विड फाउंडेशन के ऊपर हल्का लगाएं।

शेड की जांच

सही टोन वाले फाउंडेशन की खरीदारी करते समय इसकी जांच गालों या कलाई के गोरे भाग पर न करें। इसे अपनी ठुड्डी, आंखों के नीचे, नाक के आसपास और हाथ पर जांच करें।

सिर्फ चेहरे पर फाउंडेशन लगाते हैं

यकीनन यह खतरनाक हो सकता है। चेहरा और नेकलाइन का अलग-अलग दिखना बहुत बुरा लगता है। गर्दन के आस-पास फाउंडेशन लगाना न भूलें।

स्पॉन्ज का इस्तेमाल न करें

स्पॉन्ज में फाउंडेशन बहुत बर्बाद होता है। ब्रश से फाउंडेशन लगाऐं।

कैसे चुनें सही फाउंडेशन

त्वचा के अनुसार

सही टोन वाले फाउंडेशन को चुनने के लिए सबसे पहले अपनी त्वचा को जानना जरूरी है। त्वचा सामान्य है या रूखी या तैलीय।
अगर त्वचा रूखी है तो ऐसे फाउंडेशन का चुनाव सही होगा, जिसमें मॉइस्चराइजर और हाईड्रेटिंग तत्व हो।  जिनकी त्वचा तैलीय है, उनके लिए मॉइस्चराइजर वाले फाउंडेशन का चुनाव गलत होगा। तैलीय त्वचा के लिए ऑयल फ्री फाउंडेशन लेना चाहिए। रूखी व तैलीय मिली-जुली त्वचा के लिए पाउडर आधारित फाउंडेशन और जिन लोगों की त्वचा ज्यादा संवेदनशील है उनके लिए मिनरल फाउंडेशन सही पसंद है।
फाउंडेशन दिन में खरीदें ताकि उसे ठीक से देख सकें। त्वचा पर लगाकर शेड की जांच करें। इसे खरीदने से पहले दुकानदार आपकी उल्टी कलाई पर इसका रंग दिखाता है। आप हाथ सीधा करके जांच कीजिए। त्वचा के टोन से यदि यह मैच करता है तो समझ लें कि यह आपके लिए सही है।

कही आप भी तो डायबिटीज के शिकार नही?

डायबिटीज जिसे  मधुमेह  भी  कहा जाता  है एक गंभीर बीमारी है जिसे धीमी मौत (साइलेंट किलर ) भी कहा जाता है। संसार भर में मधुमेह रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है विशेष रूप से भारत में। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से ब्लड शुगर को कन्ट्रोल करने के कुछ महत्वपूर्ण तरीके बताने जा रहे है…

शरीर मे शुगर लेवल बढ़ने पर मिलते है ये संकेत

शरीर मे शुगर लेवल का बढ़ना या कम होना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। शुगर लेवल के अनकंटरोल होने पर शरीर के कई आॅगनस ड़ैमेज भी हो सकते है। इसलिए शरीर मे शुगर लेवल का सही होना बहुत जरूरी होता है।

▶ड़ायबिटीज के मरीजो को फाइबर रिच से भरपूर चीजे जरूर खानी चाहिए।

अगर आप हेल्दी रहना चाहते है तो आप आपनी ड़ेली ड़ाइट मे फाइबर खाना शुरू कर दे। फाइबर ब्लड शुगर को नियंत्रित करने मे मदद करता है ।

इन चीजो को खाने से कंट्रोल मे रहेगी ब्लड शुगर:-

मेथी :- मेथी के बीज और पत्तियां दोनो ही ड़ायबिटीज से लड़ने मे मददगार है,भरपूर मात्रा मे फाइबर होने से पाचन क्रिया धीमी होती है।ये शरीर मे खराब कोलेस्ट्रॉल को घटाते है ।

दाले :- दालें प्रोटीन के साथ-2 फाइबर का भी अच्छा स्त्रोत होती है। दालों मे पाई जाने वाली कार्बोहाइड्रेट का कुल 40% फाइबर होता है जो ब्लड शुगर को कम करने मे मददगार होता है ।

अमरूद:- अमरूद मे भी खूब फाइबर होता है,  इससे कब्ज से लड़ने मे मदद मिलती है । ड़ायबिटीज के मरीजो को अक्सर कब्ज की शिकायत रहती है। यह एक बढ़िया स्नैक्स साबित हो सकता है ।

▶ इसके अलावा पपीता, चेरीज, तरबूज, हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, कदू के बीज भी ड़ायबिटीज के मरीजो को खाने चाहिए ; इसके अलावा रोजाना एक्सरसाइज भी करनी चाहिए।

ड़ायबिटीज के लक्षण

1.) अत्यधिक भूख:- आपको इसलिए भूख महसूस होती है क्योंकि आपका शरीर उस ऊर्जा का प्रयोग नही कर पाता जितनी वह कर सकता है। इसके बजाए ज्यादातर कैलोरी यूरिन के द्वारा निकाल जाती है ।

2.) वजन घटना:- ऐसा शरीर मे पानी की कमी की वजह से होता है । शरीर का पानी भी कम हो जाता है ।शरीर के पानी और अन्य तत्व यूरिन के माध्यम से बाहर निकल जाते है ।

3.) थकान:- आपको थकावट और भूख दोनो महसूस होगी। आपका शरीर उस कैलोरी को नही पचा पाता जिसे शरीर ग्रहण करता है । वही आपके शरीर को पर्याप्त ऊर्जा भी मिल जाती है ।

4.) चिड़चिड़ापन या व्यवहार परिवर्तन:- ड़ायबिटीज होने का यह भी संकेत है, जब व्यवहार परिवर्तन होने लगे और चिड़चिड़ापन होने लगे तो यह ठीक नही है ।

5.) सांसो से फलों की गंध का आना:- ड़ायबिटीज के लक्षणों मे यह भी है कि, इस अवस्था मे सांसो मे फलों के जैसी गंध भी आती है यानी आपकी सांसो मे एक तरह का स्मेल आता है।

 

कड़वे तेल के नाम से पारंपरिक रूप से उपयोग किया जाने वाला सरसों का तेल अपनी तासीर और गुणों के कारण कई तरह की समस्याओं में औषधि‍ के रूप में भी उपयोग किया जाता है। अगर आप अब तक इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों से अनजान हैं, तो आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सरसों के तेल के फायदे (sarso ke tel ke fayde) बताने जा रहे हैं कि आपकी जिंदगी में कितना महत्वपूर्ण है। इसका सेवन करने से आपकी जिंदगी में किस तरह के बदलाव आएंगे। हम सभी घरों में सब्जी बनाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं। कुछ जगह पर इसको कडवा तेल के नाम से जाना जाता है।

यदि आप भारत में रहते हैं, तो इसकी बहुत संभावना है कि आप हर महीने अपनी किराने की सूची में सरसों का तेल जरूर लाते होंगे । यह एक आवश्यक चीज़ है, और कुछ खाने के पदार्थ जैसे कि लेडीफिंगर का स्वाद सबसे ज्यादा अच्छा लगता है जब इसमें पकाया जाता है। यह तेल सरसों के पौधे के बीजों से निकाल कर बनाया जाता है और अन्य तेलों से बहुत अलग होता है। इसमें हल्का पीला रंग, एक मजबूत सुगंध, तेज स्वाद और तीखा स्वाद है। इसका अपने आप मे स्वाद इतना अच्छा तो नहीं है लेकिन इसे अपने व्यंजनों में जोड़ने से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते है उनमें से कुछ यहाँ एक सूची में हैं।

सरसों का तेल सेहत और सुंदरता दोनों के लिए ही बहुत फायदेमंद है | इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो दर्दनाशक का काम करते हैं। ये एक औषधि की तरह काम करता है। आमतौर पर लोग इसे सिर्फ तेल समझकर ही इस्तेमाल करते हैं पर आप को इसके फायदे जान कर बहुत हैरानी होगी |

Sarso Ke Tel Ke Fayde

दर्दनाशक के रूप में

जोडों का दर्द हो चाहे कानों का दर्द हो या फिर कहीं चोट लगी हो सरसों का तेल इन सब की एक आयुर्वेदिक दवाई है। सरसों के तेल की मालिश करने से जोडों का दर्द ठीक हो जाता है। सरसों के तेल को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

त्वचा के लिए फायदेमंद

सरसों के तेल में वेसन और हल्दी मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर निखार तो आता ही है साथ में त्वचा की नमी भी बनी रहती है। पुरुष सरसों के तेल को चेहरे पर लगाकर शेव करें तो चेहरा और भी निखार आ जाता है।

भूख बढ़ाने में मददगार

अगर आपको भूख नहीं लगती तो ये तेल आपके लिए बहुत फायदेमंद है ये हमारे पेट में ऐपिटाइजर का काम करता है जो भूख बढाता है।

बजन घटाने में मददगार

सरसों के तेल में मौजूद विटामिन शरीर के मेटाबॉलिज्म को बढाते है जिससे बजन कम हो जाता है।

अस्थमा की रोकथाम

अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए सरसों का तेल बहुत फायदेमंद है। इस में मैग्नीशियम पाया जाता है जो अस्थमा के मरीजों के लिए फायदेमंद है। सर्दी हो जाने पर भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

दांत दर्द में फायदेमंद

दातों पर सरसों के तेल में नमक मिलाकर लगाने से दांत सफेद और मजबूत बनते हैं।

Sarso Ke Tel Ke Fayde Balo Ke Liye

Mustard Oil Benefits for Hair in Hindi: बालों की मजबूती के लिए फायदेमंद – सरसों के तेल को बालों में लगाकर रोजाना मालिश की जाऐ तो बाल मजबूत बन जाते हैं। सरसों के तेल और बादाम दोनों को मिलाकर अच्छी तरह से उबाल लें और फिर ठंडा कर लें और फिर उस से बालों की जड़ों में मालिश करें जिससे बाल तो मजबूत बनते ही है साथ में दिमाग भी तेज होता है। रात को सोने से पहले सिर में सरसों का तेल लगाने से तनाव दूर हो जाता है।

नाभि

सोने से पहले सरसों का तेल नाभि पर लगाऐ इससे होंठ फटने की समस्या दूर हो जाती है और होंठ खूबसूरत दिखने लगते हैं। नाभि पर सरसों का तेल लगाने से पेट दर्द और डाइजेस्ट की समस्या दूर हो जाती है।

चोट

अगर लम्बे समय से लगी चोट ठीक नहीं हो रही तो सरसों के तेल लगाने से वो सूख कर जल्दी ठीक हो जाती है।

स्वस्थ शरीर

स्वस्थ शरीर और मजबूती बनाने के लिए रोजाना सुबह नहाने से पहले सरसों के तेल की मालिश की जाऐ। इससे शरीर निरोग बन जाता है। फलस्वरूप आप लंबे समय तक सुखद और जवान रह पाएंगे।

पैर के तलबे पर मालिश

रात को सोने से पहले अगर रोजाना पैरों के तलवों पर मालिश करके सोयेंगे तो बहुत फायदेमंद है। इससे आखों की रोशनी तेज होती है। इससे नींद अच्छी आती है।

दिल की सेहत में सुधार

सरसों के तेल में मोनोअनसैचुरेटेड (Monounsaturated) और पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड(Polyunsaturated Fatty Acids), ओमेगा -3 (Omega-3) और ओमेगा -6 फैटी एसिड(Omega-6 Fatty Acid) होते हैं जो इस्केमिक हृदय रोग (Ischemic Heart Disease) के जोखिम को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता हैं। यह खराब कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है।

कैंसर की रोकथाम के लिए

खोज से साबित हुआ है कि सरसों के तेल में कैंसर से लड़ने वाले गुण होते हैं। यह आपके पेट को कैंसर के खतरे से लड़ने में मदद करता है।

खांसी और जुखाम को खत्म करे

ज्यादातर लोग खांसी और जुखाम को खतरनाक मानते हैं क्योंकि इससे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है। शुक्र है कि सरसों का तेल खांसी और जुखाम का कारण बनने वाली भीड़ से छुटकारा दिलाता है। खांसी और जुखाम से छुटकारा पाने के लिए गर्म पानी मे गाजर के बीज और थोड़ा सा सरसों का तेल मिलाकर भाप लें।

मांसपेशियों का सुन्न होना बंद करे

त्वचा पर सीधे सरसों के तेल की मालिश करने से सुन्न मांसपेशियों में सनसनी होने में मदद मिलेगी। यह तनाव ग्रस्त मांसपेशियों को आराम करने में भी मदद करेगा।

अंगों का प्रदर्शन बढ़ाये

जब रक्त परिसंचरण (Blood Circulation) बढ़ जाती है, तो यह आपके शरीर को ताज़ा कर सकता है और जरूरी अंगों के काम करने की गति को बढ़ा सकता है। यही कारण है कि न केवल नवजात बच्चों को बल्कि वयस्कों (Adults) को भी सरसों के तेल की मालिश का विकल्प चुनना चाहिए। यह न केवल ताकत बढ़ाएगा बल्कि आपके शरीर को गर्माहट भी प्रदान करेगा।

जोड़ों या गठिया के दर्द

जो लोग जोड़ों या गठिया के दर्द के कारण पीड़ित हैं उन्हें सरसों के तेल को जहा-जहा दर्द है उन क्षेत्रों पर रगड़ने से कुछ राहत मिल जाती है। यह आपके रक्त परिसंचरण को बढ़ाएगा। यह ओमेगा -3 फैटी एसिड के साथ भी भरा हुआ है जो इस दर्द का विरोधी है।

बैक्टीरिया से लड़ता है

आप यह भी भरोसा कर सकते हैं कि सरसों के तेल में एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होता है। इसमें जीवाणु रोधी एजेंट होते हैं जो बैक्टीरिया को हराने के लिए काम करते हैं। इसमें ग्लूकोसिनोलेट भी है जो खराब बैक्टीरिया और रोगाणुओं के विकास को रोकने में भी मदद करता है।

फंगी से लड़ता है

इस तेल में ऐंटिफंगल गुण भी होते हैं, जिसका अर्थ है कि यह फफूंद के कारण होने वाले स्पर्श रोग और लाल चकत्ते का इलाज कर सकता है। एक अध्ययन में, एलिल आइसोथियोसाइनेट नामक यौगिक के लिए फफूंद से लड़ने में अन्य तेलों के मुकाबले सरसों का तेल सबसे प्रभावी साबित हुआ।

दिमाग के लिए महत्वपूर्ण

आप संज्ञानात्मक कार्यों, स्मृति और यहां तक ​​कि अवसाद के इलाज में मदद करके अपने मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए इस तेल में फैटी एसिड पर भरोसा कर सकते हैं। बच्चों को परीक्षा के मौसम में यह तेल दिया जा सकता है ताकि उन्हें बेहतर याद रखने में मदद मिल सके।