संगत का असर सब कुछ बदल देता है। संगत अर्थात् दोस्ती, मित्रता, साथ| संगत के कारण चाल-ढाल, पहरावा, खानपान, बात करने का तरीका, चरित्र, हर चीज़ में बदलाव आ जाता है। हमारी संगत व मित्रता का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है| क्यों ज़रूरी है नेक लोगों का संग करना? इसी बात को हम आज एक आर्टिकल के जरिए बताने जा रहे हैं।
आपने यह कहावत तो सुनी होगी कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस कहावत का अर्थ यह है कि संगत का असर हर किसी पर, कम या अधिक, होता ही है। इस कहावत से मिलती-जुलती राय वैज्ञानिकों की भी है जिनका यही कहना है कि बच्चों की आदतों पर उनके भाई-बहनों और मित्रों के व्यवहार और तौरतरीकों का बहुत ज्यादा असर होता है। बच्चे ज्यादातर बातें अपने भाई-बहनों व अपने माँ-बाप को देखकर ही सीखते हैं।
कदल सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन
जैसे एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बन जाती है, सीप में पड़कर मोती बन जाती है और अगर सांप के मुंह में पड़ जाए तो विष बन जाती है। ठीक उसी तरह इंसान की संगत का उस पर अच्छा या बुरा प्रभाव ज़रूर पड़ता है|
कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों में गति भी उसकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। नेक संगति से मनुष्य जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसका पतन भी करती है। छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया।
ऐसे ही कुछ दिन पहले मैं भारत की एक ऐसी संस्था, जिसको डेरा सच्चा सौदा के नाम से जाना जाता है, में गई और वहां मैंने देखा कि ऐसे संत हुए हैं जिनका संग करने से करोडों जिंदगियों में बदलाव आया। जहां लोग नशों में धुत्त रहते थे, वैश्य वृत्ति में फंसे हुए थे, चोरी ,ठग्गी, बेईमानी, मोह, लोभ, अंहकार, माया, रिश्वतखोरी आदि जैसी बुराइयों के नुमाइंदे थे, वहां मैंने देखा कि उन लोंगों ने उस सच्चे महापुरुष का संग करके सभी बुराइयों को अलविदा कहा और सच्चे संग के असर को एक नई मिसाल दी। उनका कहना है कि
अगर बैठोगे पास अग्नि के जाकर
तो उठोगे अपने कपड़े जलाकर
और अगर बैठोगे फूलों में जाकर
तो उठोगे कपडों में खुशबू बसाकर
तो जहां दुनियावी नेक संग से हम दुनियावी ऊँचाइयों को छू सकते हैं, वहीं सत्संग से ना केवल हम दुनियावी, बल्कि रूहानियत ऊँचाइयों को भी छू सकते हैं और अपने अंदर के विकारों से भी निजाद पा सकते हैं| इसलिए आप जहां भी रहें, अपनी मित्रता व संगति का ध्यान रखें, सदा नेकी का संग करें और हो सके तो सर्वश्रेष्ठ सत्संग करें|













पाँच महिला वकीलों के एक समूह ने केरला हिंदू प्लेसेज आॅफ पब्लिक वर्कशिप रूल्स,1965 के रूल 3 बी को चुनौती दी थी। यह नियम महावारी वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने से रोकने का अधिकार देता है। वकीलों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त गुहार लगाई, जब हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि सिर्फ पुजारी ही परंपराओं पर फैसला लेने का अधिकारी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये प्रतिबंध संविधान के आर्टिकल 14,15,17 के खिलाफ है और महिलाओं को अपनी पंसद के स्थान पर पूजा करने की आजादी मिलनी चाहिए।


एक बार एक व्यक्ति बाग में घूमने गया। घूमते घूमते वहाँ उसकी नज़र एक पेड़ पर एक कोकून यानि तितली के अंडे पर पड़ी। व्यक्ति को अंडे में एक छोटा सा छेद दिखाई दिया। उस व्यक्ति का कोतुहल बढ़ गया और वह वहीं बैठकर उस तितली के अंडे को देखने लगा। थोड़ी देर में उस अंडे का छिद्र थोड़ा बढ़ गया। उस व्यक्ति ने देखा कि एक तितली उस छिद्र से बाहर निकलने की जदोजहद कर रही है। किन्तु बहुत कोशिश करने पर वह तितली भी निकल नहीं पा रही थी। कुछ समय के बाद अंत में वह तितली शांत हो गयी। व्यक्ति को लगा कि तितली हार चुकी है इसलिए उसने उस तितली की सहायता करने के लिए अंडे का सुराख बड़ा कर दिया और तितली उसमें से बहुत ही आसानी से बिना किसी मेहनत के बाहर निकल आई। किन्तु तभी उस व्यक्ति ने देखा कि तितली के पंख सुख चुके थे और उसके शरीर में सूजन आ गयी थी और अंत में वह मर गयी। चूंकि तितली बिना सँघर्ष के बिना मेहनत के बाहर आई थी, इसलिए उसके शरीर का तरल पदार्थ उसके पँखो तक नहीं पहुंच पाया और वह अपनी जान से हाथ धो बैठी।

