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संगत का असर सब कुछ बदल देता है। संगत अर्थात् दोस्ती, मित्रता, साथ|  संगत के कारण चाल-ढाल, पहरावा, खानपान, बात करने का तरीका, चरित्र, हर चीज़ में बदलाव आ जाता है। हमारी संगत व मित्रता का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है| क्यों ज़रूरी है नेक लोगों का संग करना? इसी बात को हम आज एक आर्टिकल के जरिए बताने जा रहे हैं।

आपने यह कहावत तो सुनी होगी कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इस कहावत का अर्थ यह है कि संगत का असर हर किसी पर, कम या अधिक, होता ही है। इस कहावत से मिलती-जुलती राय वैज्ञानिकों की भी है जिनका यही कहना है कि बच्चों की आदतों पर उनके भाई-बहनों और मित्रों के व्यवहार और तौरतरीकों का बहुत ज्यादा असर होता है। बच्चे ज्यादातर बातें अपने भाई-बहनों व अपने माँ-बाप को देखकर ही सीखते हैं।

कदल सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन

जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन

जैसे एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बन जाती है, सीप में पड़कर मोती बन जाती है और अगर सांप के मुंह में पड़ जाए तो विष बन जाती है। ठीक उसी तरह इंसान की संगत का उस पर अच्छा या बुरा प्रभाव ज़रूर पड़ता है|

कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों में गति भी उसकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। नेक संगति से मनुष्य जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसका पतन भी करती है। छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया।

ऐसे ही कुछ दिन पहले मैं भारत की एक ऐसी संस्था, जिसको डेरा सच्चा सौदा के नाम से जाना जाता है, में गई और वहां मैंने देखा कि ऐसे संत हुए हैं जिनका संग करने से करोडों जिंदगियों में बदलाव आया। जहां लोग नशों में धुत्त रहते थे, वैश्य वृत्ति में फंसे हुए थे, चोरी ,ठग्गी, बेईमानी, मोह, लोभ, अंहकार, माया, रिश्वतखोरी आदि जैसी बुराइयों के नुमाइंदे थे, वहां मैंने देखा कि उन लोंगों ने उस सच्चे महापुरुष का संग करके सभी बुराइयों को अलविदा कहा और सच्चे संग के असर को एक नई मिसाल दी। उनका कहना है कि

             अगर बैठोगे पास अग्नि के जाकर

             तो उठोगे अपने कपड़े जलाकर

             और अगर बैठोगे फूलों में जाकर

             तो उठोगे कपडों में खुशबू बसाकर

तो जहां दुनियावी नेक संग से हम दुनियावी ऊँचाइयों को छू सकते हैं, वहीं सत्संग से ना केवल हम दुनियावी, बल्कि रूहानियत ऊँचाइयों को भी छू सकते हैं और अपने अंदर के विकारों से भी निजाद पा सकते हैं| इसलिए आप जहां भी रहें, अपनी मित्रता व संगति का ध्यान रखें, सदा नेकी का संग करें और हो सके तो सर्वश्रेष्ठ सत्संग करें|

एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान थे। स्वामी विवेकानंद ने‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी स्वामी विवेकानंद महानता की कहानी बताता है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।

ऐसी सोच वाले व्यक्तित्व थे “स्वामी विवेकानंद”। जिन्होनें अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के बल पर समस्त मानव जीवन को अपनी रचनाओं के माध्यम से सीख दी वे हमेशा कर्म पर भरोसा रखने वाले महापुरुष थे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करते रहना चाहिए जब तक की लक्ष्य हासिल नहीं हो जाए।

तेजस्वी प्रतिभा वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद के विचार काफी प्रभावित करने वाले थे जिसे अगर कोई अपनी जिंदगी में लागू कर ले तो सफलता जरूर हासिल होती है – यही नहीं विवेकानंद जी ने अपने अध्यात्म से प्राप्त विचारों से भी लोगों को प्रेरित किया जिसमें से एक विचार इस प्रकार है –

उठो जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो‘ ।।

स्वामी विवेकानंद ने अपने आध्यात्मिक चिंतन और दर्शन से न सिर्फ लोगों को प्रेरणा दी है बल्कि भारत को पूरे विश्व में गौरान्वित किया है।

स्वामी विवेकानंद जी की जयंती

स्वामी विवेकानंद के जन्म तिथि 12 जनवरी को राष्‍ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। विवेकानंद जी ऐसी महान शख्‍सियत थे जिनका हर किसी पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

स्वामी विवेकानंद की जिंदगी के रहस्य:

परोपकार

स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि परोपकार की भावना समाज के उत्थान में मद्द करती है इसलिए सभी को इसमें अपना योगदान देना चाहिए। वे कहते थे कि ‘देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है’।

कर्तव्यनिष्ठा

स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि जो भी करो पूरी शिद्दत से करो नहीं तो नहीं करो । वे खुद भी जो भी काम करते थे पूरी कर्तव्यनिष्ठा से करते थे और अपना पूरा ध्यान उसी काम में लगाते थे शायद इसी गुण ने उन्हें महान बनाया।

लक्ष्य का निर्धारण करना

स्वामी विवेकानंद जी मानते थे कि सफलता पाने के लिए लक्ष्य का होना आवश्यक है क्योंकि एक निश्चित लक्ष्य के निर्धारण से ही आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।

सादा जीवन

स्वामी विवेकानंद जी सादा जीवन जीने में विश्वास रखते थे । वे भौतिक साधनो से दूर रहने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि भौतिकवादी सोच और आनंद इंसान को लालची बनाती है।

डर का हिम्मत से सामना करो

स्‍वामी विवेकानंद का मानना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए। क्योंकि अगर इंसान हिम्मत हारकर पीछे हो जाता है तो निश्चचत ही असफलता हाथ लगती है वहीं जो इंसान इसका डटकर सामना करता है तो डर भी उससे डर जाता है।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत, भारत के युवाओं के पथ प्रदर्शक, महान दार्शनिक व चिंतक स्वामी विवेकानंदजी को शत्-शत् नमन्। जय हिन्द, जय भारत! वन्दे मातरम!!

 

दोस्तों, हमारे समाज के मुख्य चार धर्मों में से एक धर्म सिख धर्म है जिसकी शुरुआत श्री गुरु नानक देव जी ने की| सिखों के पहले गुरु कहे जाने वाले गुरु नानक देव जी का जन्म हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है| यह प्रकाश पर्व न सिर्फ सिख धर्म के लोगों के लिए मायने रखता है अपितु हिन्दू धर्म के लोगों में इसकी खास एहमियत है| प्रकाश पर्व को गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है और इस साल यह प्रकाश पर्व 23 नवम्बर को मनाया जा रहा है|

 

गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व:

गुरु नानक देव जी सिखों के सबसे पहले गुरु होने के साथ साथ एक अत्यंत ज्ञानी महापुरुष और मार्गदर्शक भी थे| उन्होंने न केवल लोगों में एकता का सन्देश दिया अपितु इंसानियत का भी संचार किया| गुरु नानक देव जी एक शांत व्यक्तित्व के स्वामी थे| गुरु नानक देव जी अपने प्रवचनों द्वारा सभी को सद्भावना तथा एकता का सन्देश देते थे| प्रकाश पर्व के इस पवन उत्सव पर आज भी उनके दिए गये उपदेशों को याद किया जाता है|

 

गुरु नानक जी द्वारा दिए गये मुख्य उपदेश:

गुरु नानक देव जी ने ‘इक ओंकार’ का नारा दिया जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और हर जगह मौजूद है| हम सभी के परम पिता एक ही हैं, इसलिए हमे सब क साथ प्रेम से रहना चाहिए|

 

गुरु नानक देव जी ने हमेशा लोगों को हक़ हलाल की कमाई कर के खाने का उपदेश दिया| उन्होंने कहा था की इन्सान को सदा मेहनत कर के ही अपना गुजरा करना चाहिए न की कभी किसी का हक मार लार खाना चाहिए| उन्होंने सम्पूर्ण मानवजाति को न्यायपूर्वक उचित तरीके से धन कमाने का सन्देश दिया तथा कभी भी किसी लोभ में न पड़ने के लिए समझाया| गुरु जी ने हमेशा जरुरतमंदो की यथासम्भव सहायता करने का भी सन्देश दिया|

 

गुरु जी जातिवाद के सख्त खिलाफ थे, उन्होंने सभी से एकता, भाइचारे तथा प्रेम से रहने का अनुरोध किया| उन्होंने उपदेश दिया की कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए तथा एसी कोई भी बात किसी को नहीं कहनी चाहिए जिससे उसका हृदय दुखी हो क्योंकि हम सब एक परमात्मा की सन्तान है और यदि कोई किसी का दिल दुखाता है तो ये ईश्वर के दिल को दुखाने जेसा है| गुरु जी ने सन्देश दिया की स्त्री तथा पुरुष एक समान है इसलिए सभी को नारीत्व का सम्मान करना चाहिए| उन्होंने बताया की इन्सान को कभी भी अपने जीवन में चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तनाव तथा चिंता मनुष्य के व्यक्तिव पर बुरा प्रभाव डालते है| इन्सान को सदैव प्रसन्नचित हृदय रखना चाहिए|

 

गुरु जी ने उपदेश दिया था की व्यक्ति संसार को तभी जीत सकता है जब वह अपने अंदर को बुराइयों से लड़ कर उनपर विजय हासिल करे| कोई भी इन्सान जब तक खुद को अंतर्मन से स्थिर नहीं बनाएगा तब तक वह अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता| इन्सान को कभी भी अपने मन में अहंकार को जगह नहीं देनी चाहिए क्योंकि अहंकार ही इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन है जो इन्सान को अच्छाई के मार्ग पर आगे बढने से रोकता है| गुरुनानक देव जी पुरे संसार को एक परिवार की भांति मानते थे तथा सबसे अनुरोध करते थे की आपस में प्यार से मिलकर रहें|

निष्कर्ष:

धर्म चाहे कोई भी हो, भगवन को मानने वाले तथा उस से मिलने का रास्ता दिखने वाले फ़क़ीर तथा गुरु हमेशा सच्चाई तथा अच्छाई को अपनाने का सन्देश देते हैं| तो आइये हम सब मिलकर इस प्रकाश पर्व पर प्रण लें की हम सभी एक दुसरे के हित में सोकहेंगे तथा अपने अंदर की बुराइयों को त्याग कर एक सच्चे इन्सान बनेंगे|

क्या है धनतेरस

धनतेरस का शाब्दिक अर्थ है धन और तेरा (13)। इसका मतलब है धन के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है धनतेरस जो कार्तिक महीने के 13वें दिन होता है।

 

धनतेरस उत्सव

धनतेरस के त्योहार को महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार पर, लोग धन की देवी लक्ष्मी जी और मृत्यु के देवता यम की पूजा करते हैं, भगवान यम से अच्छे स्वास्थ्य और देवी लक्ष्मी से समृद्धि के रूप में आशीर्वाद प्राप्त करते है। लोग अपने घरों और कार्यालयों को सजाते है।

 

सभी अपने घर आँगन के प्रवेश द्वार को सजाने के लिए लोग रंगीन रंगोलियां बनाकर सजावट करते है । चावल के आटे और सिंदूर से लक्ष्मी जी के छोटे पैरों के निशान बनाये जाते हैं जो कि देवी लक्ष्मी के लंबे समय से प्रतीक्षित आगमन का संकेत होता है। धनतेरस पर सोने या चांदी जैसी कीमती धातुओं से बने नए बर्तन या सिक्के खरीदना बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह शुभ माना जाता है और यह हमारे परिवार के लिये सुख सम्रद्धि और अच्छा भाग्य लाता है।

 

धन तेरस की पूजा

 

धनतेरस के दिन शाम को ‘लक्ष्मी जी की पूजा’ के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। देवी लक्ष्मी जी के लिए लोग भक्ति गीत गाते हैं। सभी दुखों को दूर करने के लिए छोटे-छोटे दीपक जलाते है। धनतेरस की रात, लोग पूरी रातभर के लिए दीपक को जलाते हैं। पारंपरिक मिठाई पकायी जाती हैं और देवी माँ को प्रसाद समर्पित किया जाता हैं।

 

धनतेरस पर कहानी

एक  कथा के अनुसार प्राचीन समय में हेम नाम के एक राजा रहता था. विवाह के कई सालो बाद उसकी एक संतान हुई. जब ज्योतिषियों ने बालक देखी तो पता चला की राजकुमार के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी. यह बात जानकार राजा और रानी बहुत दुखी हो गए. धीरे धीरे समय बितता गया और राजकुमार ने गन्धर्व विवाह कर लिया.

 

विवाह के चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने लेकर चले गए लेकिन राजकुमार की पत्नी के शोक विलाप को देखकर उन्होंने यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इंसानों की अकाल मृत्यु न हो सके.  यमराज ने इसका उपाय बताते हुए कहा की  कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात को जो मनुष्य   दक्षिण दिशा की और दीप जलाएगा वो अकाल मृत्यु से बच सकता है. तभी से धनतेरस (Dhanteras) के दिन दीया जलने की परम्परा की शुरुआत हुई.

धनतेरस 2018 में क्या ख़रीदे?

1.शंख खरीदना:- पुरानी कथाओ के अनुसार इस दिन दक्षणीवर्ती शंख खरीदना अच्छा माना जाता है |
2.रूद्राक्ष खरीदना:- कुछ लोग इस दिन रूदाक्ष की माला भी खरीदते है |

 

3.लोहा खरीदने का शुभ दिन:- लोहा खरीदने का शुभ दिन धन तेरस को ही माना गया है|
4.बर्तन खरीदना:- इस दिन बर्तन खरीदने को शुभ माना जाता है |

 

 

5.चांदी की खरीदारी:- इस दिन चांदी भी खरीदना शुभ माना जाता है | प्रचीन प्रथा के अनुसार चांदी चाँद का प्रतीक होती है जिस से शीतलता प्राप्त होती है इसलिए इसको लाना शुभ होता है |

 

6.सोना खरीदना:-इस दिन सोने को भी खरदीना अच्छा होता है |

 

 

7.गाय को सजाना:- इस दिन दक्षिण भारत के कुछ लोग गायों को भी सजाते है क्योंकी गाय लक्ष्मी का रूप मानी जाती है |

 

बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है। इसलिए धनतेरस के दिन अब बर्तनों और आभूषणों के आलावा वाहन, मोबाइल आदि भी ख़रीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग इस दिन कम्पूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।

 

मगर सच्चे संत फरमाते हैं इस दिन हमें दुनियाभी वस्तुएं न खरीद कर  गरीबों की मदद करके ,उनके बच्चों को नऐ कपडे और मिठाई दिलाकर रुहानी दौलत खरीदनी चाहिए।

 

प्रिय पाठकों, आज मैं आपको एक ऐसे तरीके के बारे में बताऊंगी जिसे अपनाकर हम अपनी व्यस्त जिंदगी में भी दूसरों का भला कर सकते हैं। तो आइये जानते हैं कि क्या है वो तरीका और कौन है वो जिन्होंने इसे ईजाद किया है।

ईश्वर का दिया हुआ हमारा ये भौतिक शरीर तीन चीजों पर आधारित होता है। हवा, पानी तथा भोजन। मनुष्य को हवा और पानी तो फिर भी कहीं न कहीं से प्राप्त हो जाता है, किंतु भोजन प्राप्त के लिए मनुष्य न जाने क्या क्या करता है। इस संसार में कुछ अभागे जीव ऐसे भी हैं जिन्हें 2 वक़्त का भोजन भी नसीब नहीं हो पाता।

 

हमारे देश में ऐसे लाखों लोग है जिनके लिए एक वक़्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मौत को गले लगाने जैसा होता है। ये लोग खाने के लिए कुछ भी करने को मजबूर हो जाते हैं। कहते हैं कि इंसान को पापी पेट के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता। कभी किसी की जान लेनी भी पड़ती है और कभी जान देनी भी पड़ती है। और ये भुखमरी एक मुख्य कारण है कि आज हमारे देश के नौजवान जुर्म की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। एक ओर जहां देश में लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हैं, वहीं दूसरी और ऐसे लाखों लोग हैं जो प्रतिदिन झूठी शानो-शौकत का दिखावा कर भोजन को बर्बाद करते हैं। आज कल लोग दिखावे के लिए शादी, बर्थडे पार्टी और यहां तक कि अंतिम भोग में भी तरह तरह के पकवान बनाते हैं और बाद में बचने के बाद उन्हें फेंक देते हैं।

भोजन को बिना किसी मतलब के बर्बाद करना किसी अपराध से कम नहीं है। भोजन की बर्बादी न जाने कितने मासूम लोगों से उनका हक छीन लेती है। भोजन की कमी से ही पेट की आग के हाथों मजबूर होकर न जाने कितने निर्दोष लोग अपराधी बन जाते हैं। भोजन की बर्बादी कहीं न कहीं हमारे देश को गलत दिशा की ओर धकेल रही है। और हम सब को मिलकर इसे रोकना चाहिए।

 

इस मतलब से भरी दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दुनियादारी में रहते हुए भी अपने आप से पहले दूसरों का, समाज का भला सोचते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही इस विकट समय में भी कहीं न कहीं इंसानियत आज भी जिंदा है। वो लोग जो खुद भूखे रहकर दूसरों के पेट की भूख को शांत करते हैं, वे लोग जो अन्न को बर्बाद नहीं बल्कि अन्न को बचाना तथा उसका सही उपयोग करना आता है। आज के इस संसार में ऐसे जीव मिलना एक दुर्लभ बात है किन्तु इस हकीकत के प्रमाण खुद डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हैं। डेरा सच्चा सौदा एक सामाजिक संगठन है जो सभी धर्मों को एक समान मानने में विश्वास रखता है। डेरा अनुयायी आए दिन कोई न कोई समाजिक कार्य करते रहते हैं और इन्हीं में से एक है- सप्ताह में एक दिन का उपवास रखना तथा उस दिन के बचे हुए अन्न को गरीबों में बांट देना।

 

जी हाँ इस ये लोग अपने गुरु गुरमीत राम रहीम जी की दी गयी शिक्षा के अनुरूप करते हैं। उनका कहना है कि सप्ताह में एक दिन उपवास रखने स्व शरीर की मांसपेशियां स्वस्थ रहती हैं आपका शरीर सुचारू रूप से कार्य करता है। इसके साथ ही ये लोग बचे हुए अन्न को दान कर देते हैं जो कि एक सराहनीय कार्य है।

दोस्तों, वजह चाहे कोई भी हो, अपने शरीर को स्वस्थ रखने की या फिर आस्था को ध्यान में रख कर किए गए उपवास की, महत्वपूर्ण ये है कि किसी भी इंसान के उठाये गए कदम में दूसरों के लिए क्या हित है? और अगर यह कदम समाज की भलाई के लिए उठाया जाए तो यह अति प्रशंसनीय है।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओ के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

भगवान ने जहां औरत को माँ का दर्जा देकर खुद भी बडा बताया,वही उसी भारत की धरती पर उसे मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने पर रोक लगाई जाती है। केरल स्थित सबरीमालामंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकती है। उच्चतम न्यायालय ने 4:1की बहुमत से सुनाए इस फैसले में कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाना लैंगिक भेदभाव है। पाँच सदस्यों वाली संविधान पीठ की अगुआई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे थे।कोर्ट ने माना कि केरला हिंदू प्लेसेज आॅफ पब्लिक वर्कशिप (अथाॅराइजेशन आॅफ एंट्री) रूल्स 1965 का प्रावधान हिंदू महिलाओं के धर्म के पालन खे अधिकार को सीमित करता है। इस बडे फैसले के बाद यह समझते है कि यह पूरा मामला आखिर है क्या।

पाँच महिला वकीलों के एक समूह ने केरला हिंदू प्लेसेज आॅफ पब्लिक वर्कशिप रूल्स,1965 के रूल 3 बी को चुनौती दी थी। यह नियम महावारी वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने से रोकने का अधिकार देता है। वकीलों के समूह ने सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त गुहार लगाई, जब हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि सिर्फ पुजारी ही परंपराओं पर फैसला लेने का अधिकारी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये प्रतिबंध संविधान के आर्टिकल 14,15,17 के खिलाफ है और महिलाओं को अपनी पंसद के स्थान पर पूजा करने की आजादी मिलनी चाहिए।

 

जहां तक मंदिर प्रशासन का सवाल है, वह महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाए जाने पर कायम था। मंदिर प्रशासन का कहना था कि यह परंपरा भेदभाव करने वाला नहीं है क्योंकि यह उस विश्वास वाले भगवान “नैतिक ब्रह्मचारी है। वही, महिला श्रद्धालुओं का एक समूह ऐसा भी था, जो इस पाबंदी के समर्थन में था। जब सोशल मीडिया पर इस बदंश के खिलाफ #राइट_टू_प्रे अभियान चलाया। उनका कहना था कि सिर्फ निश्चित उम्र वाली महिलाओं को ही मंदिर में दाखिल होने के लिए 50 साल की उम्र का इंतजार कर सकते है। जहां तक केरल सरकार के रूख का सवाल है, राज्य ने सुप्रीम कोर्ट को इस साल सुनवाई के दौरान कहा था कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने के पक्ष में है।

सुप्रीम कोर्ट में यंग लायर्स एसोसिएशन की ओर से इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर केस लड़ा जा रहा है ऐसे में ज्यादातर यही बात सामने आ रही है कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण इनके पीरियड्स है, असल सच्चाई क्या है अभी पूरी तरह नहीं पता परंतु मंदिर के आख्यान में इसके पीछे कोई दूसरी ही कहानी बताई जा रही है कि मंदिर के देवता ने शादी न करने की शपथ ले रखी है।

एक लेख में एम ए देवैया इस आख्यान के बारे में बताते है वे लिखते है कि मैं पिछले 25सालों से सबरीमाला मंदिर जा रहा हूं और लोग मुझसे अक्सर पूछते है कि इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध किसने लगाया है मैं छोटा-सा जवाब देता हूं “खूद अयप्पा (मंदिर में स्थापित देवता) ने, आख्यानों (पुरानी कथाओं ) के अनुसार, अयप्पा अविवाहित है और वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं। साथ ही उन्होने तब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते “माना जाता है कि अयप्पा किसी कहानी का हिस्सा न होकर एक ऐताहासिक किरदार हैं। वे पंथालम के राजकुमार थे यह केरल के पथानामथिट्टा जिले में स्थित एक छोटा-सा राज्य था। परंपरा को लेकर इन लोगों का कहना है कि अगर इस पूर्व कहानी पर लोगों का विश्वास नहीं तो फिर मंदिर में श्रद्धा के साथ दर्शन करें क्या फायदा होगा? इसीलिए वे कह रहे है कि जज के फैसले से इस पर क्या फर्क पड़ेगा क्योंकि पूर्व कहानी में श्रद्धा के बिना उन्हें दर्शन से पूण्य नहीं मिलेगा।

खैर, अदालत द्वारा प्रवेश के लिए अनुमति भले दे दी गई हो, परंतु लोगों की मानसिकता आज भी वही ही पड़ी हुई है। वे आधुनिकता के इस दौर में भी सोच को परंपराओं से जोड़ कर सीमित किए हुए हैं। कोर्ट द्वारा फैसला देना ही काफी नहीं है, बल्कि लोगों को परंपराओं की बेडियां तोड़ कर आगे बढ़ना जरूरी है। लोगों को स्त्री-पुरूष के समान दर्जे के प्रति जागरूक करना होगा।

 

 

बिना संघर्ष अपंग है जीवन

दोस्तों आज मैं आपसे एक प्रेरणादायक कहानी साझा करने जा रही हूं। ये कहानी है संघर्ष की और संघर्ष के महत्व की। संघर्ष एक व्यक्ति के जीवन में ऐसे ही जरूरी है जैसे किसी सोने के आभूषण के लिए आग की तपन, जिस से उसमें और भी निखार आता है। जो व्यक्ति जीवन में संघर्ष की सीढ़ी अपनाता है वही व्यक्ति सफलता के मुकाम को हासिल कर सकता है। वही इंसान अपने सपनों को हकीकत का रूप दे सकता है। संघर्ष के इस महत्व को समझने के लिए आइए जानते है ये कहानी।

दोस्तों, आप में से कई लोगों ने सुना होगा कि तितली अपने कोकून से बाहर आने के लिए बहुत संघर्ष करती है क्योंकि ये संघर्ष ही उसके जीवन का आधार होता है। ये संघर्ष ही उसे उसके पँखो को उड़ने की ताकत देता है। यदि तितली बिना संघर्ष के ही कोकून से बाहर आ जाए तो उसके शरीर का तरल पदार्थ उसके पँखो तक नहीं पहुंच पाता और वह कभी उड़ नहीं पाती। बस इसी संघर्ष से जुड़ी है यह कहानी।

एक बार एक व्यक्ति बाग में घूमने गया। घूमते घूमते वहाँ उसकी नज़र एक पेड़ पर एक कोकून यानि तितली के अंडे पर पड़ी। व्यक्ति को अंडे में एक छोटा सा छेद दिखाई दिया। उस व्यक्ति का कोतुहल बढ़ गया और वह वहीं बैठकर उस तितली के अंडे को देखने लगा। थोड़ी देर में उस अंडे का छिद्र थोड़ा बढ़ गया। उस व्यक्ति ने देखा कि एक तितली उस छिद्र से बाहर निकलने की जदोजहद कर रही है। किन्तु बहुत कोशिश करने पर वह तितली भी निकल नहीं पा रही थी। कुछ समय के बाद अंत में वह तितली शांत हो गयी। व्यक्ति को लगा कि तितली हार चुकी है इसलिए उसने उस तितली की सहायता करने के लिए अंडे का सुराख बड़ा कर दिया और तितली उसमें से बहुत ही आसानी से बिना किसी मेहनत के बाहर निकल आई। किन्तु तभी उस व्यक्ति ने देखा कि तितली के पंख सुख चुके थे और उसके शरीर में सूजन आ गयी थी और अंत में वह मर गयी। चूंकि तितली बिना सँघर्ष के बिना मेहनत के बाहर आई थी, इसलिए उसके शरीर का तरल पदार्थ उसके पँखो तक नहीं पहुंच पाया और वह अपनी जान से हाथ धो बैठी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि जब तक व्यक्ति संघर्ष की आग में न जले उसका जीवन निर्थक है।
यदि हमें अपने जीवन को सार्थक बनाना है तो संघर्ष को अपना रास्ता बनाना होगा सफलता तक पहुंचने का। क्योंकि बिना मेहनत और संघर्ष के मिली सफलता का सुख क्षणमात्र ही रहता है। किंतु संघर्ष से हासिल की हुई सफलता का साथ हमारे जीवन को और अधिक खुशनुमा बना देता है। संघर्ष अंधकार में जलती एक लौ की तरह है जिसके सहारे व्यक्ति अपने किसी भी दुख और मुसीबत को भूलकर अपने अंदर के आत्मविश्वास को कायम रख सकता है। और वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी, “भगवान भी उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी सहायता खुद करते हैं” । तो संघर्ष को जीवन का नियम बनाइए और सफलता की हर सीढ़ी चढ़ जाइए।

सफलता का सूचक – गुरूमंत्र

कोई भी लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं।

हारा वही, जो लडा नहीं।।

‌आज हम जिस विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं वो विषय है “सफलता का सूचक – गुरुमंत्र”। गुरूमंत्र का हमारे जीवन में बहुत ज्यादा महत्व है। गुरुमंत्र के जाप के बिना हम जीवन में सफल नहीं हो सकते। गुरूमंत्र के पहले हमें अपने जीवन में एक गुरु की आवश्यकता है जो हमें सही गुरुमंत्र का मार्गदर्शक कर सके।

‌गुरु और गुरूमंत्र का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। गुरुमंत्र के माध्यम से गुरु शिष्य के जीवन में उतरता है और शिष्य का जीवन सफल बन जाता है। सच्चा गुरुमंत्र एक सच्चे संत द्वारा ही सिखाया जाता है। वही इसका सही तरीका बता सकता है। ये कोई नहीं जानता कि हमारे अंदर एक दिव्य शक्ति है जो पूरे विश्व में हर एक की मदद करती है। केवल एक गुरु ही इस के बारे में मार्गदर्शक कर सकता है। गुरुमंत्र का लगातार अभ्यास करने से हम अपनी सोई हुई आत्मा को जगा सकते हैं और जब एक बार आत्मा जाग जाऐ तो इसके बाद हमारे अंदर एक जुनून पैदा हो जाता है। फिर सुमिरन से उठने का दिल ही नहीं करता ये एक ऐसा सुकून भरा जुनून है। इससे हमारी जिंदगी में कई तरह के बदलाव आ जाते हैं जैसे हर प्रकार की समस्या हल हो जाती है, मन शांत रहता है। क्रोध, लोभ, मोह, ममता और माया ये पांच चोरों से भी पीछा छूट जाता है। गुरुमंत्र का जाप करने से हमारी आत्मा ताकतवर वन जाती है और अंदर बाहर से हम खुशियों से मालामाल हो जाते हैं और सुमिरन से हम दसवें द्वार को भी खोल सकते हैं जिसके खुलने से परमात्मा का ऐसा नूर दिखाई देता है जो कहने सुनने से परे है और उसमें जो आनन्द मिलता है वो दुनिया की किसी चीज में नहीं।

‌सफलता और असफलता के बीच जरा सा फासला है और वो है जुनून का। ऐसा जुनून जो रात को सोने नहीं देता, जो मजबूर कर देता है शिद्दत से गुरुमंत्र का जाप करने के लिए।

यूं ही नहीं मिलती राही को मंजिल,

एक जुनून दिल में जगाना पडता है।

पूछा चिड़िया से कैसे बना आशियाना,

बोली, भरनी पडती है उड़ान बार – बार।

सबसे पहले आप अपनी कमजोरी पता करें और उसे दूर करने की बार- बार कोशिश करें जैसे आप सुबह जल्दी नहीं उठ सकते लेकिन आप के पास सुबह 2-5 के बीच ही सुमिरन करने का वक्त है। तो पहले आप 4 बजे उठे धीरे-धीरे उसे बढाते जाए और फिर आप देखना एक दिन आप की आंख 2बजे खुद-ब-खुद ही खुलने लगेगी। कई बार हमारा मन बगावत करता है इसकी भावनाओं को काबू में रखने के लिए ध्यान केंद्रित करने के लिए रोज योगा के साथ सुमिरन करें।

हिम्मत करे इन्सान, तो सहायता करे भगवान।

दुनिया में कोई इन्सान इतनी आसानी से सफल नहीं होता, ठोकरें खानी पड़ती है। अभी ठोकरों से डरोगे तो कभी सफल नहीं हो पाओगे। राह में चाहे जितनी भी ठोकरें आऐ आप अपने लक्ष्य को मत छोड़ो। ये ठोकरें तो आपकी परीक्षा लेती है आपके कदम को मजबूत करती है उसी प्रकार हमें गुरुमंत्र का जाप करते रहना चाहिए कभी भी यह मत सोचना कि हमें कुछ हासिल तो हो नहीं रहा। उस भगवान को सब पता है कहां हमारे लिए क्या सही है वो समय आने पर खुद हमारी रक्षा करता है इसलिए हमें लगातार सुमिरन करते रहना चाहिए।

‌आज मैं आपके साथ कुछ अपने अनुभव शेयर करना चाहती हूं कैसे मुझे गुरुमंत्र का जाप करने से जिदंगी में सफलता हासिल हुई है। मेरी जिंदगी गुरुमंत्र लेने से पहले कुछ भी नहीं थी पर गुरुमंत्र लेने के बाद मेरी जिंदगी की काया ही पलट गई। मैंने 13 साल की उम्र में ही गुरुमंत्र ले लिया था। जैसे – जैसे मैं गुरूमंत्र का जाप करती गई मेरी जिंदगी की हर मुश्किल अपने आप हल होती गई। पढ़ाई के दौरान भी गुरुमंत्र का बहुत महत्वपूर्ण रहा है। जब पढ़ाई से मन ऊब जाता मैं 10 मिनट सुमिरन करती और फिर पढ़ाई करने बैठ जाती। ऐसा करने से पढ़ाई में मन ज्यादा लगता और याददाश्त भी बढ जाती। मेरे अंदर पहले बहुत गुस्सा था पर अब सुमिरन का अभ्यास करने से गुस्से पर मैंने 70% काबू पा लिया है। एक और बात मैं आपके साथ शेयर करना चाहूँगी। जब मेरे बेवी होने वाला था डाक्टर ने मेरे और बच्चे की जान बचाने से जबाव दे दिया मैंने हिम्मत न हारते हुए लगातार सुमिरन किया और 15 मिनट के बाद ही मेरे बेवी हो गया और हम दोनों मां बेटे की जान बच गई। मैं अपने गुरु की आभारी हूँ जिसने मेरे को गुरुमंत्र दे कर गुरु भक्ति करने का सच्चा मार्ग बताया और मुझे जिंदगी में वो हर सफलता दी जिसका मैंने कभी अनुमान भी नहीं लगाया था।

‌अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि हमें ब्रह्म मुहूर्त में सुमिरन करना चाहिए इससे हमारी हर जायज मांग पूरी होती है। गुरुमंत्र के जाप के द्वारा हम सफलता की हर ऊंचाई को छू सकते हैं। गुरूमंत्र ही एक ऐसा तरीका है जिससे हम बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार कर सकते हैं।

रात गवाई सोय के दिवस गवाया खाय।

हीरा जन्म अनमोल है, कोडी बदले जाय।।