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Cricket World Cup 2023: Did India lose the World Cup because of the Law of averages?

Cricket World Cup 2023: वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम(Indian team) जैसे ही ऑस्ट्रेलिया टीम से हारी, वहाँ पर उपस्थित तमाम क्रिकेट एक्सपर्ट्स और सांख्यिकीविद् (Statistician) इसके लिए Law of Average को जिम्मेदार ठहराने लगे। जब टीम इंडिया लीग मैच के आखिरी पड़ाव पर थी, तब भी कुछ एक्सपर्ट्स का कहना था कि बेहतर होता कि नॉक आउट में पहुँचने से पहले भारतीय टीम एक या दो लीग में हार जाती।

विश्व कप में टीम इंडिया के हारने का क्या है असली कारण? क्या लॉ ऑफ एवरेज है इसका असल कारण? जानिए टीम इंडिया के हारने की क्या है असली कहानी?

ICC विश्व कप का आयोजन कब, कहां किसके बीच-

ICC विश्व कप का मैच 5 अक्टूबर को शुरू हुआ था और गत 19 नवंबर को इसका फाइनल मैच हुआ। यह मैच भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ। जिसमें ऑस्ट्रेलिया टीम ने मैच में जीत हासिल की।

इस बार विश्व कप में 10 टीमों ने भाग लिया। अबकी बार क्रिकेट इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ की पूरे क्रिकेट विश्व कप का आयोजन भारत में हुआ। यह मैच अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में हुआ।

विश्व कप में भारत की सेमी फाइनल में जीत –

भारत ने सेमी फाइनल में अपनी जगह बनाने के लिए 10 मैच लगातार जीते। सेमी फाइनल में भारत ने न्यूजीलैंड को हराकर अपनी जगह निश्चित की। अब सभी भारतवासियों की उम्मीद भारत को फाइनल विश्व कप में जीतता हुआ देखने की थी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल मुकाबले में शानदार जीत हासिल की।

भारत के फाइनल मुक़ाबले में हारने के कईं कारण सामने रख रहे हैं। कुछ का मानना है कि भारत लॉ ऑफ एवरेज के कारण ये मैच हार गया है। लेकिन असली कारण आखिर क्या है जिससे भारत इस बार विश्व कप में जीत हासिल नहीं कर पाया?

क्या है लॉ ऑफ एवरेज का नियम –

कुछ क्रिकेट एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ फाइनल विश्व कप में भारत की हार का कारण लॉ ऑफ एवरेज यानी “ओसत का नियम ” बताया जा रहा है।

आखिर ये नियम क्या है ?

क्रिकेट एक्सपर्ट्स के अनुसार कोई भी टीम लगातार जीत हासिल नहीं कर सकती। भारत लगातार 10 मैच जीत चुका था। तो इस लॉ ऑफ एवरेज नियम के अनुसार संखियिकीविदों का मानना था कि देर सवेर भारत को हराना ही था। क्या भारत की हार का ये असली कारण है ? अगर ऐसा है तो ऑस्ट्रेलिया टीम भी लगातार 11 मैच जीतकर फाइनल में शामिल हुई है।

यह केवल एक अवधारणा है। इसका भारत की हार से कोई लेना देना नहीं है। भारत की विश्व कप में हार का असल कारण कुछ और ही है।

वजन बढ़ने के डर को खत्म करें और लो कैलरी मिठाइयां बनाकर खाएँ

हर किसी को मिठाई बहुत पसंद होती है, लेकिन वजन बढ़ने के डर से बहुत से लोग मिठाई खाने से वंचित रह जाते हैं। आइए आज हम सिखेंगे लो-कैलरी मिठाइयां जिसको आप खुद भी खाएं और परिवार को भी खिलाएं।

1. गाजर हलवा रेसिपी

गाजर के हलवे को बनाने के लिए गाजर और चुकंदर का उपयोग करें। जो भोजन में प्राकृतिक मिठास लाते हैं। इस प्रकार यह कृत्रिम चीनी के उपयोग को कम कर देते हैं। गाजर के हलवे में कम कैलरी युक्त सामग्री का उपयोग करके आप इसका सेवन कर सकते हैं। गाजर आवश्यक विटामिन का एक अच्छा स्रोत है और इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत अच्छे हैं।

आवश्यक सामग्री –

👉3 छोटे चम्मच घी
👉1/3 कप कम वसा वाला कसा हुआ खोया
👉1/4 कप कद्दूकस किया हुआ गाजर
👉3/4 कप कद्दूकस किया हुआ चुकंदर
👉3/4 कप दूध
👉1/3 कप चीनी
👉1/4 छोटे चम्मच इलायची पाउडर

बनाने की विधि –

सबसे पहले गहरे पैन या कढ़ाई में एक छोटा चम्मच घी डालकर उसे गर्म करें। उसमें मावा डाल कर 2 से 3 मिनट के लिए मध्यम आंच पर भूनें और अलग रख दें।
अब उसी बर्तन में शेष 2 चम्मच घी और गाजर डालकर मध्यम आंच पर 5-7 मिनट तक भूनें, जब तक यह आधा ना पक जाए। यदि आवश्यकता हो तो थोड़ा पानी डाल सकते हैं।
अब इसमें दूध, चीनी, मावा और इलायची पाउडर को डालकर अच्छी तरह से मिलाएं और 10 से 12 मिनट या पानी सूखने तक पकाएं। अब आप इसे गर्म गर्म परोसें।

2. ओट्स और ड्राई फ्रूट बर्फी

ओट्स और ड्राई फ्रूट से बनी यह बर्फी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ एक पौष्टिक और लो कैलरी वाली मिठाई का एक बढ़िया विकल्प है। इसे बनाने के लिए यह विधि अपनाएं।

आवशयक सामग्री-

👉1 कप ओट्स
👉1/2 कप बारीक कटे मिक्स ड्राई फ्रूट्स
👉1/2 कप लो फैट मिल्क
👉1/4 कप शहद या ऐपल सिरप
👉1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर
👉एक चुटकी केसर (वैकल्पिक)

बनाने की विधि

सबसे पहले ओट्स को पैन या कढ़ाई में हल्का सुनहरा और ख़ुशबूदार होने तक सूखा भून लें।
फिर दूसरे पैन में लो फैट मिल्क को गर्म करें और उसमें शहद, इलायची पाउडर और केसर डालकर मिलाएं।
इसके बाद भुने हुए ओट्स डालें और तब तक मिलाए जब तक कि मिश्रण गाढ़ा ना हो जाए और पैन के किनारे न छोड़ने लगे।
अब इसे आंच से उतार लें और बारीक कटे सूखे मेवे डालकर अच्छी तरह मिला लें।
इस मिश्रण को एक ग्रीस की गई प्लेट में निकाल लें और इसे समान रूप से दबाकर बर्फी बना लें।
कुछ देर इसे ठंडा और सेट होने दें। फिर चकोर टुकड़ों में काट लें।

इस तरह से आप घर पर ही खुद की बनाई लो कैलरी की मिठाइयों का आनंद ले सकते है।

फिर से पैरोल पर बाहर आ सकता है राम रहीम : जानिए बाबा राम रहीम की ज़िंदगी से जुड़े रहस्य

अक्सर सुर्ख़ियों में रहने वाले बाबा राम रहीम की पैरोल को लेकर चल रही चर्चा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सूत्रों के अनुसार पता चल रहा है कि बाबा राम रहीम जल्द ही पेरोल पर बाहर आ सकते है। गुरमीत राम रहीम जिन्हें अक्सर लोग “राम रहीम” के नाम से भी जानते है। पिछले कुछ सालों से अक्सर सुर्ख़ियों में बना रहता है और बाबा राम रहीम सिंह के सुर्ख़ियों में बने रहने के पीछे एक बड़ी कहानी है।

अगर हम बाबा राम रहीम की कहानी के बारे में बात करें, तो डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख है। बाबा एक प्रसिद्ध गुरू है, जिनके अनुयायी देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। सुर्ख़ियों में रहने वाले बाबा राम रहीमको देश का बच्चा-बच्चा जानता है।

फिलहाल, सुर्खियों में बाबा की पैरोल का विषय है-
एक ऐसा विषय जो राम रहीम की खबरों में सुर्ख़ियों में बना हुआ है। जिस पर बहुत से लोग विवाद करते है और अक्सर उनके यह प्रश्न होते हैं की आख़िर बाबा राम रहीम को इतनी बार पैरोल क्यों दी जाती है? बाबा आख़िर पैरोल पर आने के बाद करते क्या हैं? बाबा राम रहीम की कहानी में जो दिखता है, क्या यही सच्चाई है या उससे अधिक कुछ है?

यह पोस्ट यहां बाबा गुरमीत राम रहीम पैरोल की दिलचस्प दुनिया के बारे में लोगों के मन में जो सवाल है उनको गहराई तक जाकर स्पष्ट करने के लिए है।
आइए एक-एक करके राम रहीम समाचार पर विचार करते हुए, राम रहीम की कहानी पर गौर करें।

क्या पैरोल मिलना सचमुच एक कानूनी अधिकार है?
अक्सर पैरोल कैदी की अस्थायी रूप से रिहाई होती है, लेकिन यह पैरोल कैदी के अनुरोध पर दी जाती है जबकि पैरोल मिलना कैदी का क़ानूनी अधिकार है। पैरोल सरकार द्वारा जेल में बंद लोगों को दिया गया एक मौका है। जिसका उद्देश्य है कि क़ैदी को कुछ समय तक जेल में रहने के बाद सामान्य जीवन में वापस आने में मदद मिलेती है। बाबा राम रहीम की कहानी के मामले में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि उन्हें पैरोल देना कोई साधारण बात नहीं है। इस बारे में हरियाणा सरकार का कहना है कि वह राम रहीम को पैरोल देकर कानून का पालन कर रहे है।

आख़िर कितने समय तक पैरोल मिल सकती है-
पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है जबकि फरलो ज्यादा से ज्यादा 21 से 28 दिन के लिए दिया जा सकता है।इन नियमों के मुताबिक उन्हें साल में 70 दिन तक की पैरोल व 21 से 28 दिनकी फ़र्लो मिल सकती है। व 3 साल की जेल में रहने के बाद ये किसी भी क़ैदी का हक़ होती है! इसलिये अगर अपने देश के क़ानून के अनुसार देखा जाए तो राम रहीम पैरोल कोई राजनातिक सहायता दाव पच नहीं है बल्कि कानूनन अधिकार है।

बाबा राम रहीम को कितनी बाबा मिल चुकी है पैरोल?
बाबा राम रहीम इस से पहले चार बार पैरोल पर युपी के बागपत आश्रम में रह चुके है। आपको बता दें यह आश्रम डेरा सच्चा सौदा के दूसरे गुरु शाह सतनाम सिंह जी द्वारा बनाया गया था।
बाबा राम रहीम सबसे पहले 2022 में 17 जून को 30 दिन के लिए आए थे, इसके बाद अक्टूबर में 40 दिन के लिए, फिर साल 2023 में जनवरी में और जुलाई में युपी डेरे में पधारे थे।

क्या सच में बाबा राम रहीम की पैरोल को लेकर दी जा रही है अतिरिक्तप ढील?
इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण शर्मा से जब पूछा गया कि क्यात राम रहीम को ढील देते हुए बार-बार पैरोल दी जा रही है? इस अधिवक्ता ने कहा कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। अगर कोई भी कैदी अपनी सजा का कुछ हिस्साई जेल में बिता चुका है और इस दौरान उसका व्यंवहार और आचरण ठीक रहा है तो उसे पैरोल दी जा सकती है। उन्होंबने बताया कि हर साल तिहाड़ जेल से सैकड़ों कैदी पैरोल पर बाहर आते हैं। उन्होंने बताया दरअसल, जब हम बड़े मामलों से जुड़े अपराधियों पर ज्या‍दा गौर करते हैं, तो हमें लगता है कि उनको अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है। जबकि स्पंष्टय ऐसा बिलकुल नहीं होता है। यह राज्यग सरकार का विशेषाधिकार होता है। अगर सरकार को लगता है कि सजा काट रहे व्येक्ति के आचरण में सुधार है, उसके आवेदन का आधार मजबूत है और उसकी रिहाई से कोई नुकसान नहीं है तो उसे पैरोल दी जा सकती है।

बाबा राम रहीम की पैरोल के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया-
आइए जानते है कि आख़िर राम रहीम की पैरोल के बारे में लोग वास्तव में क्या सोचते हैं। राम रहीम की पैरोल इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर समाचारों और जनता दोनों में खूब चर्चा हो रही है। राम रहीम सिंह की पैरोल की ख़बर आते ही काफी हलचल पैदा हो जाती है। सिक्के के अगर एक पहलू की तरफ़ देखें तो कुछ लोग बाबा राम रहीम की पैरोल की ख़बर सुनते ही टीवी चैनल सक्रिय हो जाते है वि शुरू हो जाता है वाद विवाद! कुछ लोग इसको ग़लत बताते है तो बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो बाबा राम रहीम के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते है। इन लोगों का मानना है कि जब इनके गुरु जी पैरोल पर आते हैं, तो वह अपने श्रद्धालुओं को इंसानियत की शिक्षा व परहित कार्यों को करने का आह्वान करते है। हैरानी कर देने वाली बात यह है कि इन लोगों का मानना है कि बाबा राम रहीम हर नेक कार्य की शुरुआत स्वयं करते हैं उसके बाद ही लोगों को वह कार्य करने का आह्वान करते है ।

पैरोल पर आने के बाद आख़िरकार करते क्या हैं बाबा राम रहीम?
राम रहीम की पैरोल की कहानी को गहराई से जानते कि वह जेल के बाहर अपना समय कैसे बिताते हैं। हालाँकि बाबा को कई बार पैरोल मिल चुकी है। लेकिन अभी भी उनके आने की ख़बर सुर्ख़ियों में है। सूत्रों से पता चला है कि बाबा राम रहीम पैरोल पर जल्द ही आ सकते हैं। लेकिन गौर करते है कि इन अवधियों के दौरान बाबा करते क्या है।

पैरोल के दौरान बाबा राम रहीम ने शुरुआत की नशा मुक्त अभियान की और नाम दिया “डैप्थ मुहीम”-
बाबा राम रहीम पैरोल में एक महत्वपूर्ण पहल जो सामने आई है वह है “डेप्थ मुहीम”। इस अभियान की शुरुआत खुद गुरुमीत राम रहीम ने की थी। इस मुहीम का उद्देश्य देश को, विशेषकर युवा पीढ़ी को नशीली दवाओं की लत और अन्य मादक द्रव्यों के सेवन से बचाना है।
राम रहीम की पैरोल के दौरान शुरू हुआ यह अभियान युवाओं को नशे रूपी दैत्य को समाज से दूर भगाने व युवा पीढ़ी को नशे की लत से उबरने के लिए सशक्त बनाता है। लोगों का दावा है कि इस मुहीम से जुड़कर लाखों लोगों ने नशे रूपी दैत्य का त्याग किया है।

क्योंकि बाबा एक किसान है तो इस टाइम में बाबा काफ़ी समय खेती को देते हैं व खेती के आधुनिक तरीको को आज़माते है और साथ ही ये अपने सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरो को भी बताते हैं। इस तरह से बाबा लगभग अपना समय कोई ना कोई नया सामाजिक उत्थान कार्य करने में लगाते है।

यूपी के बागपत प्रशासन से माँगी गई बाबा राम रहीम की रिपोर्ट-
डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम एक बार फिर जेल से बाहर आ सकते हैं। सरकार एक बार फिर बाबा राम रहीम को जेल से बाहर निकालने की तैयारियां कर रही है। इसके लिए बाबा राम रहीम ने जेल के प्रशासन को पैरोल के लिए अर्ज़ी लगाई हुई है। इसके लिए बाबा राम रहीम के चाल-चलन व व्यवहार की रिपोर्ट यूपी के बागपत प्रशासन से माँगी गई है। जिसके बाद ही बाबा राम रहीम जेल से बाहर जल्द आ सकते है।

पैरोल देने का फैसला करना आसान नहीं होता है।यह रस्सी पर चलने जैसा होता है। किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और बाकी सभी की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करना बड़ा कठिन होता है। लेकिन बाबा के केस में ऐसा नहीं है और यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि पैरोल से अच्छे बदलाव आ सकते हैं। जो यह दिखाते हैं कि वे बदलाव लाना चाहते हैं और समाज की मदद करना चाहते हैं, तो उन्हें वह मौका मिलना चाहिए। डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम के मामले में, उनकी पैरोल को उनकी रिहाई के दौरान उनके द्वारा किए गए अच्छे कामों के खुली आँखों से से देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष
आज आपके साथ पैरोल से जुड़ी कुछ बातें साँझा की और आपने बाबा राम रहीम से जुड़ी कुछ बातें जानी।बाबा द्वारा किए जा रहे समाज भलाई के कार्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। उनका आचरण इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए कहता है कि हम उसकी पैरोल को कैसे देखते हैं सकारात्मक या नकारात्मक!

Baba Ram Rahim Parole news: बाबा राम रहीम एक बार फिर आएगा जेल से बाहर, 21 दिन के लिए हुई पैरोल मंजूर

लगातार सुर्खियों में छाए जाने वाले बाबा राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim Singh) आजकल बड़ी चर्चा में हैं। मीडिया में बाबा राम रहीम की चर्चा का विषय है-पैरोल, जो उनको जल्द ही मिलने वाली है।
इससे पहले जुलाई माह में बाबा राम रहीम जेल से बाहर आए थे। डेरा सच्चा सौदा के चीफ बाबा राम रहीम (Dera Chief Baba Ram Rahim) के लिए 21 दिन की पैरोल मंजूर हो गई है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इससे पहले राम रहीम 7 बार पैरोल पर आ चुके हैं।

इस बार बाबा राम रहीम (Ram Rahim Singh) पैरोल पर 21 दिन के लिए बाहर आ रहे हैं।

आपको बता दें कि राम रहीम 25 अगस्त 2017 से सुनारिया जेल में हैं। 3 साल के अंदर बाबा राम रहीम 184 दिन यानी 7 बार पैरोल पर जेल से बाहर आ चुके हैं। हरियाणा सरकार से राम रहीम की 21 दिन की पैरोल मंजूर कर दी है। इसलिए अबकी बार फिर बाबा राम रहीम 21 दिन की पैरोल पर बाहर आ रहे हैं।

पैरोल मिलने के बाद गुरमीत राम रहीम उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बरनावा आश्रम डेरे में पधारेंगे। इससे पहले गुरमीत राम रहीम 20 जुलाई 2023 को 30 दिन की पैरोल पर आए थे और 15 अगस्त का जन्मदिन डेरा सच्चा सौदा की साध संगत ने बाबा राम रहीम के साथ मनाया था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें, बाबा राम रहीम के पूरे विश्व में श्रद्धालु है, जो बाबा राम रहीम को भगवान मानते हैं और अनेकों मानवता भलाई के कार्य करके लोगों का सहारा बनते हैं। एक बार बाबा राम रहीम को अपनी मां के इलाज के लिए भी पैरोल मिली थी।
बाबा राम रहीम में कुछ तो ऐसी खूबियां हैं जिनके कारण उन्हें बार-बार पैरोल मिल रही है।

बार-बार पैरोल मिलने का कारण है बाबा का अच्छा व्यवहार जिसके कारण बाबा जी को बार-बार पैरोल मिलती है। यह सब ध्यान में रखा जाता है कि जब पैरोल मिलती है तो वहां का कैसा माहौल है? शायद सब कुछ अच्छा होने का कारण है बाबा को बार-बार पैरोल मिलना।

Digital Strike By Central Government against Fraud YouTube channels

भारत सरकार द्वारा की गई डिजिटल स्ट्राइक का मकसद-

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है। हर कोई सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है और कोई भी न्यूज इंसान तक कुछ ही समय में पहुंच जाती है।

लोगों ने सोशल मीडिया को एक जरिया बना लिया है, अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने का। अगर कोई फेमस चैनल किसी गलत न्यूज को भी अपलोड कर देता है, तब लोग उस पर बिना सोचे समझे विश्वास भी कर लेते हैं।

ऐसे में लोगों के अंदर, देश और समाज के प्रति नेगेटेविटी फैलाना आम बात बन जाती है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने किया 18 फर्जी यूट्यूब चैनल को ब्लॉक-

सूचना और प्रसारण मंत्रायल ने यूट्यूब पर 18 भारतीय और 4 पाकिस्तानी चैनलों को ब्लॉक कर दिया है। ये चैनल्स भारतीय विरोधी कंटेंट और फेक न्यूज फैला रहे थे।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ये चैनल्स दर्शकों को गुमराह करने के लिए समाचार न्यूज चैनलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन चैनल्स की व्यूअरशिप 260 करोड़ से अधिक थी।

इसलिए IT के नियम 2021 के तहत 18 भारतीय यूट्यूब चैनल और 4 पाकिस्तानी चैनलों को ब्लॉक कर दिया है। इसके साथ साथ 4 ट्विटर अकाउंट, 1 फेसबुक और 1 न्यूज साइट को भी ब्लॉक किया गया है।

फर्जी यूट्यूब चैनलों को ब्लॉक करने का कारण

सूचना और प्रसारण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार ये चैनल्स भारतीय सशस्त्र बलों, जम्मू और कश्मीर जैसे विषयों को लेकर गलत अफवाहें फैला रहे थे।इसके साथ-साथ यूक्रेन की मौजूदा स्थिति को लेकर लोगों को गलत न्यूज दिखाई जा रही थी। इन चैनल्स का मकसद लोगों को भारत के विदेशी संबधों को खतरे में डालना है। इसी लिए ये चैनल्स भारत विरोधी कंटेंट पोस्ट कर रहे थे।

पहले भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा ऐसे 78 फर्जी यूट्यूब चैनल्स को ब्लॉक किया है, ताकि देश में गलत न्यूज से लोगों को गुमराह न किया जा सके।

भारत की धरती गुरुओं, पीरों व त्यौहारों की धरती है। जहां समय-समय पर कई त्यौहार मनाए जाते हैं। उन त्यौहार में से एक त्यौहार है दिवाली।

सब के लिए खुशियां लेकर आता है यह त्यौहार:-

दिवाली हिंदुओं व सिक्खों का प्रसिद्ध त्यौहार है। दिवाली हर किसी के लिए खुशियां लेकर आती है, चाहे कोई बच्चा हो, बड़ा हो व चाहे कोई बुजुर्ग हो। प्रत्येक वर्ग के लिए दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। स्कूलों व काॅलेजों में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है।

दिवाली का यह पवित्र पर्व कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। 2021 में 4 नवंबर को दिवाली का यह पर्व मनाया जा रहा है।

दिवाली के विभिन्न नाम व किन शब्दों से मिलकर बनी है?

दिवाली को, दीपोत्सव, दीपावली व दीपों का त्यौहार के नामों से भी जाना जाता है। दीपावली दो शब्दों से मिलकर बनी है दीप+ आवली.. दीप का मतलब दीपक व आवली का मतलब पंक्ति भाव कि “दीपों की पंक्ति”।

दिवाली मनाने का इतिहासिक कारण:-

इस दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी 52 राजाओं को ग्वालियर के किले से रिहा करवाकर लाएं थे। इसलिए ये पर्व मनाया जाता है और गुरु जी को बंदी छोड़ दाता कहा जाता है।

इस दिन ही श्री रामचन्द्र जी लंका के राजा को मारकर 14 वर्षों का वनवास पूरा करके अयोध्या वापिस आएं थे। उनके आने की खुशी में लोगों ने घी के दीपक जलाएं थे। तब से इस खुशी में दिवाली का पर्व मनाया जाता है।

दिवाली की शुभकामनाएं देना:-

इस दिन लोग अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को whatsapp, कार्ड व अन्य साधनों के द्वारा एक दूसरे को बधाई देते हैं और अपना मनोरंजन करते हैं।

दिवाली से कई दिन साफ-सफाई करना:-

लोग दिवाली से कई दिन पहले अपने घरों की साफ-सफाई करना शुरु कर देते हैं और रंग- रोगन करते हैं। दिवाली वाले दिन घरों के साथ- साथ बाजारों की रौनक भी देखने योग्य होती है।

बाजारों की सजावट:-

दिवाली वाले दिन बाजारों की सजावट देखने योग्य होती है। लोग बाजारों को दुल्हन की तरह सजाते हैं, दिवाली से कई दिन पहले ही दुकानों की सजावट होनी शुरु हो जाती है। इस दिन बाजारों में लोगों की बड़ी भीड़ होती है। लोग नए कपड़े, मिठाइयां, पटाखे खरीदते हैं।

पटाखे चलाना व मिठाइयां बांटना:-

इस दिन लोग शाम के समय एक-दूसरे को मिठाइयां बांटते हैं और पटाखे चलाकर इस त्यौहार को मनाया जाता है बच्चों की खुशी देखने योग्य होती है।

त्यौहार को गलत ढंग से मनाना:-

पुरातन समय से जो त्यौहार चले आ रहे हैं, वह हमें कुछ न कुछ संदेश अवश्य देते हैं जैसे कि दिवाली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है इस दिन हमें अपनी बुरी आदतों को छोड़कर अच्छाई को अपनाना चाहिए। परन्तु लोग इस दिन शराब पीते हैं और जुंआ खेलते हैं जोकि एक बुराई है। इसलिए हमें दिवाली को बुराइयां छोड़कर मनाना चाहिए और शराब नहीं पीनी चाहिए और जुंआ नहीं खेलना चाहिए।

त्यौहार को सही ढंग से मनाना:-

यदि आप भी दीवाली की खुशियों को प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस दीवाली को जरूरतमंद लोगों की जरूरतों को पूरा करके मनाए और बेसहारों का सहारा बने और दूसरों को भी ऐसे नेक कार्य करने के लिए प्रेरित करें।

लक्ष्मी पूजा करना :-

इस दिन जो लोग लक्ष्मी माता का पूजन करते हैं, उन पर देवी माता की विशेष कृपा होती है। रात के समय लोग अपने घरों के दरवाज़े खुले रखते हैं, बताया जाता है कि इस दिन लक्ष्मी माता घर में प्रवेश करते हैं।

निष्कर्ष:-

आइए हम सब भी अपने पर्यावरण को शुद्ध होने से बचाने के लिए व जरूरतमंद लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस दिवाली को पटाखे की जगह जरूरतमंद लोगों की जरूरतों को पूरा करके यह दिवाली उन लोगों के साथ मनाए व दूसरों को भी ऐसे नेक कार्य करने के लिए प्रेरित करें।

बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है- दशहरा

भारत गुरुओं-पीरों व त्यौहारों की धरती है। जहां समय-समय पर कई मेले व त्यौहार मनाए जाते हैं। उनमें से एक पर्व है दशहरा जो कि बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।

नवरात्रों के साथ-साथ दशहरे का भी लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। दुर्गा पूजन और रावन-वध के साथ-साथ विजयदशमी की चकाचौंध हर जगह होती है। दशहरा जहां एक ओर बच्चों के लिए मेले के रूप में आता है, तो बड़ों के लिए रामलीला व स्त्रियों के लिए पावन नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। भाव यह है कि चाहे असत्य कितना भी बड़ा हो, उसके लिए समय लग सकता है परन्तु विजय हमेशा सत्य की होती है।

दशहरे का नाम विजयदशमी क्यों पड़ा?

भगवान श्री राम जी ने इस दिन लंका के राजा का वध किया था। जोकि असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। इसलिए यह विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। नौ नवरात्रे होने के साथ-साथ दसवें नवरात्रे को दशहरे का पर्व मनाया जाता है।

दशहरे से कई दिन पहले रामलीला का आयोजन-

दशहरे से 10 दिन पहले जगह-जगह व कोने कोने में रामलीला होनी शुरू हो जाती है। जिसमें माता सीता, श्रीराम चंद्र जी के जीवन के बारे में बताया जाता है। दशहरे वाले दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाकर जलाएं जाते है। यह दिन रामलीला का अंतिम दिन होता है। जिस दिन श्रीराम जी के स्वरूप बने राम जी ने लंका के राजा रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी।

दशहरे के 20 दिन बाद दीवाली का पर्व मनाया जाता है। लोग भगवान श्री राम चन्द्र जी के आने की खुशी में घी के दीपक जलाकर खुशी प्रकट करते है।

दशहरे पर तरह-तरह की दुकानें लगी होती है। बच्चे खुशी से दशहरे पर जाने के लिए उत्सुक होते है। पहले भगवान राम और रावण के बीच लड़ाई होती है और फिर राम चन्द्र जी रावण का वध करते है। ये नाटक खत्म होने पर भगवान राम जी शाम के समय रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले को जलाते है। फिर सभी लोग अपने अपने घरों को वापिस लौटते समय घर के लिए मिठाइयां खरीदते हैं।

लोगों द्वारा त्यौहार को गलत ढंग से मनाना-

इस दिन कई लोग जुंआ खेलते और शाराब पीते है। जोकि एक बहुत ही बुरी बीमारी है। क्योंकि प्रत्येक त्यौहार को उसके महत्व को समझते हुए उसे मनाना चाहिए और अपनी बुराइयों को छोड़ना चाहिए।

निष्कर्ष-

अहंकार को हमेशा मार पड़ती है क्योंकि लंका के राजा ने अंहकार किया और उसकी कुलों का सर्वनाश हो गया इसलिए कभी अंहकार नहीं करना चाहिए।

आईबीपीएस ने निकाली 6000 पदों पर क्लर्क भर्ती-

हाल ही में IBPS ने 2021 क्लर्क भर्ती निकाली हैं। (IBPS) बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान, भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मियों की भर्ती के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। इस वर्ष भी आईबीपीएस ने 6000 रिक्त पदों पर भर्ती निकाली है।

महत्वपूर्ण तिथियां : आईबीपीएस की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सीआरपी-XI के तहत क्लर्कों की भर्ती के लिए पंजीकरण प्रक्रिया गुरुवार, 07 अक्तूबर, 2021 से शुरू हो गई है तथा पंजीकरण करने की अंतिम तिथि 27 अक्तूबर, 2021 है।

योग्यता : उम्मीदवारों के पास किसी भी विश्वविद्यालय से किसी भी विषय में स्नातक स्तर की डिग्री होनी चाहिए और वह विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त भी होना चाहिए।

फीस : फीस सामान्य वर्ग ( General) व अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 750 रुपए प्रति व्यक्ति है तथा अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजातियां (ST) के लिए ये निःशुल्क है।

आयु सीमा : उम्मीदवारों की आयु कम से कम 20 वर्ष होनी चाहिए। अधिकतम आयु सीमा 28 वर्ष है। आरक्षित जातियों के लिए ऊपरी आयु सीमा में छूट दी गई है।

पंजीकरण प्रक्रिया :
चरण 1: सबसे पहले ibps.in वेबसाइट पर जाएं।
चरण 2: इसके बाद ‘आईबीपीएस क्लर्क भर्ती 2021’ लिंक पर क्लिक करें।
चरण 4: मांगी गई सभी जानकारी भरें और सबमिट बटन पर क्लिक करें।
चरण 5: आवेदन करते वक्त मांगे गए जरूरी दस्तावेजों को सबमिट करें।
चरण 6: यदि आप सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग से है, तो शुल्क का भुगतान करके आवेदन प्रक्रिया को पूरा करें।
अतः इस प्रकार आप 6 चरणों में अपना आवेदन कर सकते हैं।

प्रवेश पत्र और परिणाम :
आप ऑनलाइन परीक्षा के लिए प्रवेश पत्र डाउनलोड नवंबर/दिसंबर 2021 के प्रारंभिक कर सकते है।

उसके बाद प्रारंभिक ऑनलाइन परीक्षा दिसंबर 2021 में आयोजित की जाएगी और ऑनलाइन परीक्षा का परिणाम दिसंबर 2021/जनवरी 2022 तक आएगा। उसके तुरंत बाद मुख्य ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की जाएगी, जिसके लिए कॉल लेटर दिसंबर 2021/जनवरी 2022 में ही डाउनलोड होंगे और अंतिम परिणाम अप्रैल 2022 तक आने की संभावना है।

सिलेबस:

प्रीलिम्स सिलेबस :

अंग्रेजी भाषा के 30 प्रश्न होंगे जो कुल 30 अंक के होंगे और उनको करने का समय 20 मिनट होगा।

संख्यात्मक क्षमता के 35 प्रश्न होंगे, जो 35 अंक के होंगे और उनको करने का समय 20 मिनट होगा।

रीजनिंग एबिलिटी के 35 प्रश्न होंगे, जो 35 अंक के होंगे और उनको करने का समय भी 20 मिनट ही होगा।

प्रत्येक गलत जवाब के लिए 1/4 की नेगेटिव मार्किंग भी रखी गई है।

प्रीलिम्स के बाद चुने गए उम्मीदवार मुख्य परिक्षा के लिए आमंत्रित किए जाएंगे।

मुख्य परीक्षा का सिलेबस :

सामान्य/वित्तीय जागरूकता के कुल 50 प्रश्न होंगे और प्रत्येक प्रश्न का प्राप्त अंक 1 होगा।

सामान्य अंग्रेजी के 40 प्रश्न होंगे सभी प्रश्न का प्राप्त अंक 1 होगा
रीजनिंग और कंप्यूटर एप्टीट्यूड के भी 50 प्रश्न आएंगे, जो कुल 60 अंक के होंगे। मात्रात्मक योग्यता के 50 प्रश्न होंगे और प्रत्येक प्रश्न का प्राप्त अंक 1 होगा|

मुख्य परिक्षा को करने के लिए कुल समय 160 मिनट है।

अंत में मुख्य परिक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों को दस्तावेजो की जांच के लिए बुलाया जाएगा।

इस प्रकार आईबीपीएस की परिक्षा संपन्न होगी।

इंजीनियर को हमारे समाज में रीढ़ की हड्डी के रूप में देखा जाता है। इंजीनियर के हाथों में जादू होता है, जो अपनी रचनाओं से दुनिया को मोहित व आकर्षित करते हैं। एक इंजीनियर ही होता है जो अपनी कला से भविष्य के काम को आसान बनाने के साथ-साथ परिपक्वता और क्षमता के उच्च स्तर तक पहुंंचाने के लिए उचित उपकरण बनाता है।

एक उन्नत तकनीकी दुनिया में रहने के लिए और अपने विचारों को वास्तविक में बदलने के लिए इंजीनियर्स की आवश्यकता होती है। आज की दुनिया में इंजीनियर्स बहुत ही अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आइए हम सब भी जानते हैं कि इंजीनियरिंग दिवस क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्व है??

जैसे कि डाक्टरों को सम्मान देने के लिए डाक्टर्स डे व अन्य डे मनाए जाते हैं। उसी तरह इंजीनियर्स को सम्मान देने के लिए इंजीनियर्स डे मनाया जाता है।

इंजीनियर्स डे क्यों मनाया जाता है??

 

सभी इंजीनियर्स को सम्मान देने के लिए इंजीनियर डे मनाया जाता है। भारत के एक महान इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को याद करने के लिए 15 सितंबर को इंजीनियर डे के रूप में मनाया जाता है।

इंजीनियर दिवस कब मनाया जाता है-

इंजीनियर दिवस प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष 15 सितंबर को सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। इन्हें एक अच्छे इंजिनियर की भूमिका निभाने के लिए 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इंजीनियर दिवस समस्त इंजिनियरों को सम्मान देने हेतु मनाया जाता है। अलग-अलग जगह में इंजिनियर्स डे अलग अलग तारीख को मनाया जाता हैं। इंजीनियर्स डे मनाने का उद्देश्य आज के युवा को ऐसे ( इंजिनियरिंग) कार्य की ओर प्रेरित करना है।

कैसे मनाया जाता है इंजिनियर डे??

इंजीनियर डे को लोग एक दूसरे को बधाई देकर मनाते हैं। लोग सोशल मीडिया, फ़ोन के माध्यम से एक दूसरे को बधाई देते हैं। मैसज भेजे जाते हैं और मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी को याद करके स्कूलों व काॅलेज में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसके द्वारा उन्हें याद किया जाता है।

वर्ष 2021 में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का 160 वां जन्म दिवस इंजिनियर्स डे के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कोरोना महामारी के चलते स्कूल व काॅलेज बंद होने के कारण कोई भी प्रोग्राम आयोजित नहीं किए गए। शायद 2021 में इस वर्ष 160 वां जन्म दिवस समारोह मनाया जाए।

आइए जानते हैं महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैयआ के जीवन परिचय के बारे में:-

जीवन परिचय-

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 में मैसूर रियासत, जोकि आज कर्नाटक राज्य में है, वहां पर हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री जोकि संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। इनकी माता वेंकचाम्मा एक धार्मिक विचारों की महिला थी। जब विश्वेश्वरैया 15 वर्ष के थे, तो इनकी पिता जी का देहांत हो गया था। प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंगलोर चले गए। 1881 में विश्वेश्वरैया मद्रास यूनिवर्सिटी के सरकार से बी.ए की परीक्षा पास की इसके बाद मसूर सरकार से इन्हें सहायता मिली और उन्होंने साइंस कॉलेज पूना में इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया। वर्ष 1883 में LCE और FCE एग्जाम में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया।

जब इंजीनियरिंग पास की तो विश्वेश्वरैया को मुंबई सरकार की तरफ से नौकरी का ऑफर आया, फिर उन्हें नासिक में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में काम किया। एक इंजीनियर की भूमिका निभाते हुए उन्होंने बहुत से अद्भुत काम किए। उन्होंने सिन्धु नदी से लेकर सुक्कुर गांव तक पानी की सप्लाई शुरू करवाई इसके साथ ही साथ उन्हेंने “ब्लाक सिस्टम” एक नई सिंचाई प्रणाली को शुरू किया। उन्होंने बाँध में इस्पात के दरवाजे लगवाए ताकि पानी के प्रवाह को रोका जा सके। अब तक ऐसे बहुत से कार्य इनके द्वारा करवाए गए।

हैदराबाद सिटी को बनाने का पूरा श्रेय विश्वेश्वरैया जी को जाता है, उन्होंने एक बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार की जिसके बाद समस्त भारत में उनका नाम मशहूर हो गया। इसके अलावा उन्होंने अन्य क्षेत्र में भी सफलताएं प्राप्त की।

सर विश्वेश्वरैया का व्यक्तित्व-

विश्वेश्वरैया एक साधारण, आदर्शवादी व अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे। शुद्ध शाकाहारी और नशों की लत से दूर व समय के पाबंद थे।

फिट, तंदरुस्त व भाषण देने से पहले उसे लिखते और बाद में अभ्यास भी करते थे। 92 वर्ष की आयु में भी वह बिना किसी लाठी के सहारे चलते। उनके द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं के कारण भारत आज उन पर गर्व महसूस करता है। यदि विश्वेश्वरैया आज इतना संघर्ष न करता तो भारत में शायद इतना विकास न हो पाता। भारत में ब्रिटिश राज्य में भी विश्वेश्वरैया ने अपने काम में कोई बांधा नहीं आने दी, बल्कि उनका मुकाबला करके उन्हें दूर किय

विश्वेश्वरैया को प्राप्त अवार्ड-

  • 1955 में विश्वेश्वरैया को “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था।
  • लंदन इंस्टीट्यूशन सिविल इंजीनियर्स, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की तरफ से भी इनको सम्मानित किया गया।

इसके अलावा अलग-अलग आठ इंस्टिट्यूट के द्वारा डोक्टरेट की अपाधि दी गई थी।

एक अच्छा इंजिनियर वहीं बन पाता है, जो बचपन के खिलौने को तोड़कर खुश होता है और जो किताबी ज्ञान को वास्तविक रूप दे। जो व्यक्ति जीवन में कुछ बनने का सपना लेकर आगे चलता है वो ही जीवन में सफलता प्राप्त करता है।

जैसे कि हम जानते हैं कि एक इंजीनियर की हमारी जिंदगी व हमारे समाज को क्या देन है। एक इंजीनियर ने हमारी जिंदगी को बदलकर ही रख दिया जैसे कि आज से 15 वर्ष पहले टैलीफोन आए जिसके द्वारा हम एक-दूसरे से कही भी बैठे बातचीत कर सकते थे। इसके बाद स्मार्टफोन आए जिसके माध्यम से कोरोना काल में बच्चे अपनी पढ़ाई इस से कर रहे हैं। हम अपने आस पास की प्रत्येक इंजीनियर्स को समाज में रीढ़ की हड्डी के रूप में देखा जाता है।

 

भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। अन्य पर्व की तरह भारत के लोग हिंदी दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। इस दिन को स्कूल, कॉलेज व सरकारी कार्यालयों में अलग अलग तरह से मनाया जाता है।

हिंदी दिवस का इतिहास-

सन् 1947 में जब भारत ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ, तो उनके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी थी। भारत विविध संस्कृति वाला विशाल देश है, जिसमें सैंकड़ों भाषाएं और हजारों बोलियां हैं। 6 दिसंबर 1946 को स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया।

शुरुआत में सच्चीदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उनकी जगह डॉ राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया। डॉ भीम राव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया। इसलिए स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया।

लेकिन फिर भी, संविधान के लिए आधिकारिक भाषा चुनने की चिंता अभी भी खड़ी थी। एक लंबी चर्चा और बहस के बाद, हिंदी और अंग्रेजी को स्वतंत्र भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में चुना गया।

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि और अंग्रेजी को एक लिखित भाषा के रूप में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने इस दिन को हिंदी दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।

हिंदी दिवस का महत्व-

हिंदी भाषा किसी परिचय की मोहताज नही है। कई वर्षों से हमारे देश में हिंदी बोली जाती रही है। हिंदी दिवस एक माध्यम है, इस बात से अवगत कराने का कि भारत की मातृभाषा हिंदी है।
भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है। हिंदी दिवस पर कई अवॉर्ड भी दिए जाते हैं। इस दिन दिए जाने वाले विशेष अवॉर्ड में राजभाषा गौरव पुरुस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरुस्कार सम्मिलित हैं।

हिंदी दिवस संदेश-

दूसरी भाषाओं को सीखना गलत नहीं है। परंतु दूसरी भाषाओं को सीखते सीखते अपनी मातृभाषा को अनदेखा कर देना भी सही नही है।

विश्व की सभी भाषाओं में से हिंदी एक व्यवस्थित भाषा है। दूसरे शब्दों में हिंदी में जो हम लिखते हैं, वही हम बोलते हैं बल्कि अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं होता, वहां बोला कुछ और जाता है और अर्थ कई बार भिन्न ही होता है।

हिंदी भाषा दिन प्रतिदिन अपना अस्तित्व खो रही है। बड़े बड़े स्कूल, कॉलेज में हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता दी जाती है ।

आज हिंदी दिवस के मौके पर हमें अपने आप से वादा करना चहिए कि हम भी अपनी मातृभाषा को अपनाएंगे । आप सभी को हमारी तरफ से हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ।