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Guru Purnima 2024 (गुरु पूर्णिमा )

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का शुभ दिन, जिसे व्यास पूर्णिमा या व्यास पूजा भी कहा जाता है, जो हिंदू महीने के अनुसार आषाढ़ या अशरा (जून और जुलाई के महीनों के बीच) में होता है। यह वेद व्यास के जन्मदिन का भी स्मरण कराता है, जिन्हें पुराण, महाभारत और वेद जैसे सभी समय के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू ग्रंथों के लेखक होने का श्रेय दिया जाता है।

यह दिन गुरु को समर्पित है – संस्कृत शब्द का अर्थ है, वह जो अंधकार को दूर करता है और अज्ञानता को दूर करता है।

Who is true Guru (सच्चा गुरु कौन है?)

गुरु या शिक्षक को हमेशा भगवान के समान माना गया है, गुरू अपने शिष्य को हर अच्छे बुरे का ज्ञान करवाता है। गुरू के बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, 
बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताय ।

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ यह है कि जब गुरु (शिक्षक) और गोविंद (सर्वशक्तिमान) दोनों शिष्य (छात्र) के सामने खड़े हों, तो उसे पहले किसके पैर छूने चाहिए? वह सोचता है कि वह पहले अपने गुरु के पैर छुए, क्योंकि वह वही व्यक्ति है जिसने शिष्य को गोविंद के बारे में बताया और उसे सर्वशक्तिमान तक पहुंचाया।

गुरु, जैसा कि उल्लेख किया गया है, अज्ञानता और निरक्षरता के अंधकार को दूर करने वाला है। जो एक शिष्य की बुद्धि, ज्ञान और जागरूकता को जागृत करता है और उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। एक गुरु धैर्यवान होता है और अपने शिष्य को नियमित ध्यान, सही कार्यों, विचारों और सच्चाई पर केंद्रित एक नैतिक और नैतिक जीवन शैली सिखाता है।

हम अपने जीवनकाल में कई सबक सीखते हैं और जो कोई भी उम्र, लिंग, जाति, धर्म या स्थिति की परवाह किए बिना अंतर्दृष्टि जगाता है वह गुरु है, गुरु है।

The story of Guru Purnima (गुरु पूर्णिमा की कथा)

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, लगभग 15,000 साल पहले एक योगी हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में प्रकट हुए थे। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया है, लेकिन सभी ने उसकी पवित्र उपस्थिति को महसूस किया और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। वह ध्यान कर रहा था, न तो वह हिल रहा था और न ही बात कर रहा था। जीवन का एकमात्र लक्षण जो उसने दिखाया वह कभी-कभार उसके चेहरे से बहने वाले आनंद के आँसू थे।

उनकी क्षमताएँ देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। आख़िरकार उनमें से सात को छोड़कर सभी दर्शक चले गए, जो रुके रहे
जब उसने आख़िरकार अपनी आँखें खोलीं, तो सातों ने उससे अनुरोध किया कि वह उन्हें अपने तरीके सिखाए, जो वह अनुभव कर रहा था उसका अनुभव करना चाहता था।

उसने उन्हें बर्खास्त कर दिया, लेकिन वे डटे रहे। अंत में, उसने उन्हें एक सरल प्रारंभिक कदम दिया और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं। सातों आदमी तैयारी करने लगे। दिन सप्ताहों में, सप्ताह महीनों में, महीने वर्षों में बदल गए, लेकिन अगले चौरासी वर्षों तक योगी का ध्यान उन पर दोबारा नहीं गया।

ग्रीष्म संक्रांति पर जागने पर, जो दक्षिणायन के आगमन का प्रतीक है, योगी को यह स्पष्ट हुआ कि सातों चमकदार पात्र बन गए थे, जो आत्मज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिए तैयार थे। अगली पूर्णिमा के दिन, उन्होंने एक शिक्षक के रूप में सातों का सामना किया। इस प्रकार, आदि योगी – प्रथम योगी, आदि गुरु – प्रथम शिक्षक बन गए। आदि गुरु कोई और नहीं बल्कि महान व्यास थे और इस प्रकार इसे व्यास पूर्णिमा और व्यास पूजा नाम दिया गया।

History of Guru Purnima (गुरु पूर्णिमा का इतिहास)

गुरु पूर्णिमा के पीछे की पौराणिक कथा ऋषि वेद व्यास के जन्म से जुड़ी है, जिन्हें महाभारत और पुराणों का लेखक कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित और संपादित किया था, जो आज ज्ञात हैं

गुरु पूर्णिमा का दिन वेद व्यास, जिन्हें ”महागुरु” माना जाता है, का आशीर्वाद लेने के लिए शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनका आशीर्वाद अज्ञानता के अंधेरे को दूर करता है और ज्ञान के प्रकाश को जन्म देता है।

Buddhist History  (बौद्ध इतिहास )-

बौद्ध कथाओं के अनुसार, यह वह दिन है जब गौतम बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया था । जिसके बाद उनके ”संघ” या शिष्यों के समूह का गठन हुआ था।

Jain History (जैन इतिहास)-

जैन इतिहास के अनुसार, यह दिन भगवान महावीर की पूजा करने के लिए मनाया जाता है, जो इसी दिन अपने पहले शिष्य गौतम स्वामी के गुरु बने थे।

Ancient folktales (प्राचीन लोककथाएँ)-

भारत में प्राचीन काल से, किसान अच्छी वर्षा प्रदान करने के लिए धन्यवाद के रूप में इस दिन भगवान का सम्मान करते थे आने वाली फसल उनके लिए फायदेमंद होगी। 

Guru Purnima Rituals (गुरु पूर्णिमा अनुष्ठान)

गुरु पूर्णिमा विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है।

Guru Purnima in Hinduism (हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा)-

हिंदू गुरु पूर्णिमा को ”व्यास पूजा” के रूप में भी मनाते हैं। महा गुरु की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। पूरे दिन भक्ति गीत और भजन गाए जाते हैं। गुरु गीता, एक पवित्र ग्रंथ, का पाठ भी महा गुरु की याद में किया जाता है। फूल और उपहार चढ़ाए जाते हैं और ”प्रसाद” वितरित किया जाता है, जिसे कभी-कभी ”चरणामृत” भी कहा जाता है।

कुछ आश्रमों में, चप्पलों को ऋषि वेद व्यास की चप्पलें मानकर उसकी पूजा की जाती है। अन्य लोग अपने स्वयं के आध्यात्मिक गुरुओं के पास जाते हैं और उन्हें अपना जीवन और आध्यात्मिक मार्ग पुनः समर्पित करते हैं।

इस दिन साथी शिष्यों को भी ”गुरु भाई” के रूप में सम्मान दिया जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा का सम्मान करता है और उन्हें और स्वयं को गुरु और ईश्वर के साथ एक के रूप में देखता है।

कुछ लोग इस दिन अपने गुरुओं को ‘दीक्षा’ देकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा या पढ़ाई भी शुरू करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के छात्र इस दिन को अपने संगीत शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करके मनाते हैं, जो शिक्षक और छात्र के बीच के पवित्र बंधन को मजबूत करता है, जिसे ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ के रूप में जाना जाता है।

Guru Purnima in Buddhism (बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा)- 

बौद्ध गुरु पूर्णिमा को ‘उपोसथ’ नामक अनुष्ठान आयोजित करके मनाते हैं। वे इस दिन बुद्ध की आठ शिक्षाओं का सम्मान करते हैं। कई बौद्ध भिक्षु इस दिन का उपयोग अपनी ध्यान की यात्रा शुरू करने के लिए करते हैं। वे इस दिन अन्य तप साधनाएँ भी शुरू करते हैं। 

Secular traditions (धर्मनिरपेक्ष परंपराएँ)-

देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में, वर्तमान और पूर्व छात्र अपने शिक्षकों से मिलते हैं और उन्हें कृतज्ञता और सम्मान के प्रतीक और शब्दों के साथ बधाई देते हैं। कविताएँ सुनाई जाती हैं और शिक्षक छात्रों को अपना आशीर्वाद देते हैं। इन पाठों के लिए प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

संक्षेप में कहें तो भारत में प्राचीन काल से ही गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।

Guru Disciple Relationship (गुरु शिष्य का रिश्ता)

जीवन में कुछ भी सीखने के लिए हमें एक शिक्षक/गुरु/गुरू की आवश्यकता होती है, जो हमें सही राह दिखा सके। गुरु वह है जो प्रबुद्ध है और शिष्य वह दीपक है जिसे जलाया जाता है। शिक्षक के ज्ञान और शिक्षाओं के बिना हम जीवन में अधिकांश चीजों में असहाय होंगे।

हम अपनी गलतियों और अपनी जीवित रहने की प्रवृत्ति से सीखते हैं लेकिन एक शिक्षक के माध्यम से सीखना अधिक गहन प्रक्रिया है, अधिक संरचित है। इसके अलावा, ऐसे कई विषय हैं जो शिक्षक के मार्गदर्शन के बिना पूरी तरह से अथाह या समझ से परे हैं। एक गुरु जीवन भर एक गुरु/मार्गदर्शक के रूप में प्रोत्साहित और प्रबुद्ध करके शिष्यों की क्षमता का निर्माण करता है।

What should be offered to Gurudev on Guru Purnima? (गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुदेव को क्या भेंट देनी चाहिए?)

गुरु पूर्णिमा का दिन अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने का एक श्रेष्ठ दिन है। Guru Purnima 2024 पर अगर आप अपने गुरु को कोई उपहार देना चाहते हो तो आप अपने गुरु की शिक्षा पर चलने का प्रण करें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अच्छाई भलाई के मार्ग से जोड़ें। गुरु के लिए इससे बढ़कर कोई उपहार नहीं।

इसके अलावा आप इस अवसर पर आप उन्हें वस्त्र, फूल या उनके पसंदीदा पदार्थों की भेंट दे सकते हैं। जीवन में उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन के लिए आभार प्रकट करना भी एक महत्वपूर्ण भेंट हो सकती है।

जो लोग आध्यात्मिक पथ पर हैं, उनके लिए गुरु पूर्णिमा वर्ष का सबसे शुभ दिन है क्योंकि वे आदि गुरु और रास्ते में आने वाले हर गुरु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा जश्न मनाने, अपना आभार व्यक्त करने और अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है।

इस प्रकार हमें भी गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का आभार प्रकट करना चाहिए और गुरु की शिक्षा पर चलकर गुरु के संस्कारों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।

Yaad -E – Murshid Free Polio Camp

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आने वाली 18 तारीख़ को हरियाणा की एक संस्था में निःशुल्क विकलांगता निवारण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। आपको बता दें यह शिविर हर साल लगाया जाता है और सैंकड़ों लोग इस शिविर का हिस्सा बनते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें यह शिविर हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा सिरसा में लगाया जा रहा है। आपको बता दें कि यह शिविर डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की पावन स्मृति में हर साल लगाया जाता है। जो पूर्ण रूप से निःशुल्क लगाया जाता है। इस कैंप में सभी तरह की मेडिकल सुविधा फ्री में दी जाती है।

याद-ए-मुर्शीद विकलांगता निवारण शिवर —
मानवता को सर्पित है डेरा सच्चा सौदा का निःशुल्क याद-ए-मुर्शीद विकलांगता निवारण शिवर। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि Dera Sacha Sauda में यह कैंप Baba Ram Rahim ji की पावन प्रेरणा से हर साल “18 अप्रैल” को “पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज” की पावन स्मृति में लगाया जाता है। इस कैंप में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ अपनी सेवाएं फ्री में देते हैं। Dera Sacha Sauda में इस तरह के कैंप निरंतर रूप से लगते रहते हैं।

Yaad E Murshid Free Polio & Disability Correction Camp के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी –

इस कैंप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी जा रही है –

दिनांक — 18 अप्रैल 2024
समय -सुबह 9:00 बजे से शाम 3:00 बजे तक

स्थान — शाह सतनाम जी स्पेशलिटी हॉस्पिटल , सिरसा (हरियाणा) 125055

फोन नं — 01666- 260222, 97288- 60222

Baba Ram Rahim के मार्गदर्शन में DSS में disability camp की तरह और भी अन्य मासिक कैंप लगाए जाते हैं।

रक्तदान शिविर, फ्री मेडिकल कैंप, याद -ए – मुर्शीद फ्री Eye camp आदि Dera Sacha Sauda में लगने वाले कैंप मानवता को समर्पित हैं। अगर आपके आस-पास कोई भी शारीरिक रूप से विकंलाग है और आर्थिक रूप से अपना इलाज करवाने में असमर्थ है, तो आप उन्हें इस शिविर की जानकारी दें, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस कैंप का हिस्सा बन सके।

Eid-ul-Fitar 2024: Significance and Celebrations:

मुस्लिमों के लिए ईद का त्योहार बहुत ही खास होता है। इसे दुनियाभर में मुसलमान अपने अपने तरीके से नमाज अदा करके मानते हैं। वर्ष 2024 की पहली ईद इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार माह ए रमजान पूरा होने के बाद शावल की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसे ईद उल फितर, ईद अल फितर, रमजान ईद या मीठी ईद आदि नामों से भी जाना जाता है।

Eid -ul -Fitar Meaning – ईद-उल-फितर का अर्थ है: ‘व्रत तोड़ने का त्योहार’। यह रमजान के अंत का प्रतिक है। ईद-उल-फितर की तारीख “चंद्रमा के चक्र” से तय होती है। इस दिन मुसलमान न केवल उपवास की समाप्ति का जश्न मनाते हैं, बल्कि पूरे रमज़ान के दौरान उन्हें दी गई मदद और शक्ति के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं।
Eid -ul -Fitar Celebration – ईद-उल-फितर से पहले के दिनों में, इतालवी मुसलमान इस अवसर को मनाने के लिए विभिन्न तैयारियों में जुटे होते हैं। घरों को साफ किया जाता है और सजाया जाता है । नए कपड़े खरीदे जाते हैं या सिलवाए जाते हैं और विशेष भोजन की योजना बनाई जाती है। यह उत्साह का समय है क्योंकि परिवार प्रार्थनाओं, दावतों और उत्सवों के लिए इकट्ठा होने की तैयारी करते हैं। भारत देश में आज के दिन ईद के त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से व बड़े उत्साह से मनाया जा रहा है। ईद का यह पवित्र पर्व सौहार्द व भाईचारे का प्रतीक होता है। आज के दिन मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़कर पूरे विश्व में शांति और अमन की दुआ करते हैं। नमाज़ पढ़ने के बाद सभी एक दूसरे के घर जाकर मुंह मीठा करते हैं और एक दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं।
Eid -ul -Fitar Celebration Day and Date – ईद उल फितर किस महीने में और कब मनाई जाती है इसका फैसला चांद के दीदार से किया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर हिज़री के 10वें महीने शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है । अबकी बार भारत में ईद उल फितर 11 अप्रैल को मनाई जा रही है क्योंकि इसी दिन चांद दिखाई देगा। ईद के त्योहार के दिन घर पर मीठे पकवान बनाए जाते हैं। सभी के घरों में सेवियाँ बनाई जाती हैं। नए-नए कपड़े पहनकर, इत्र लगाकर, एक दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देना, यह सब करना, इस त्यौहार की खुशियां हैं। लेकिन सिर्फ ये काम करने से ईद पूरी नहीं होती । लोग समूहों में जाकर नमाज अदा करते हैं और एक दूसरे को गले लगकर ईद मुबारक बोलते हैं और समाज में अमन शांति के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं।

Chaitra Navratri 2024

Chaitra Navratri इस वर्ष 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है। 9 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव शुरू हो रहा है। नवरात्रि 9 April से प्रारंभ होकर 17 April तक चलेगी। जिसमें माता के 9 स्वरूपों की आराधना की जाएगी।
पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कुष्मांडा, पांचवी स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवी महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री यह मां दुर्गा के 9 स्वरूप हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साल में चार बार नवरात्रि आती है। इसमें चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि प्रत्यक्ष होती हैं। दो गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ नवरात्रि होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि से हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत का आरंभ होता है। जिसे भक्त उल्लास पूर्वक मॉं दुर्गा की पूजा अर्चना करके मानते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 14 मार्च से 13 अप्रैल तक खरमास है। यह महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महीना होता है। इसी माह में मॉं दुर्गा की पूजा का विशेष त्यौहार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है। इससे यह पर्व और भी अधिक विशेष हो गया है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास में चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होना सभी के लिए बेहद शुभ है। मां दुर्गा की आराधना करके नवरात्रि में आसानी से माता का आशीर्वाद पाया जा सकता है। यह भी मान्यता है कि नवरात्रि में मॉं जगदंबा धरती पर ही विराजमान होती है और भक्तों का कल्याण करती हैं।

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना मुहूर्त-
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना मंगलवार 9 अप्रैल 2024 को होगी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल 2024 को रात 11:50 बजे प्रारंभ होगी और प्रतिपदा तिथि समाप्त 9 अप्रैल 2024 को रात 8:30 बजे होगी।

कलश स्थापना मुहूर्त – सुबह 6:05 बजे से 10:16 बजे तक रहेगा।
कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11:57 बजे से 12:47 बजे तक रहेगा।

नवरात्रि पूजा के नियम-

वास्तु शास्त्र के अनुसार नवरात्रि पूजा ( Navratri Pooja) में नियमों का पालन बहुत ही जरूरी है।

⁃ नवरात्रि पूजा में घर के ईशान कोण (उत्तर पूर्व) में कलश और माता की फोटो स्थापित करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यह स्थान देवताओं का है इसीलिए इस दिशा में कलश स्थापना से सकारात्मकता बढ़ती है।

⁃ नवरात्रि पूजा के दौरान आप घर के मैन गेट पर लक्ष्मी माता के चरण चिन्ह लगाए जो की बेहद शुभ माने जाते है।

⁃ घर में नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए ????️ ओम का निशान घर के मुख्य द्वार पर बनाए।

⁃ नौकरी और व्यवसाय में तरक्की के लिए ऑफिस के मैन गेट पर लाल, पीले फूल डालकर एक बर्तन में जल भर कर रखें।

⁃ नवरात्रि में नौ दिनों की अखंड ज्योति जलाई जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार अखंड ज्योति को दक्षिण पूर्व की दिशा में रखना शुभ होता है, इससे घर के लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।

आदिशक्ति मॉं दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना का यह उत्सव भक्तों का कल्याण करता है और मनवांछित फल प्रदान करता है।

गुरु गोबिन्द सिंह जी जयन्ती (Guru Gobind Singh Ji Jayanti)

धर्म के प्रचार, सत्य की जीत और अन्याय को रोकने के लिए समय-समय पर संत, योद्धा और महापुरुष अवतार लेते रहते हैं। ऐसे ही महान शख्सियत हुए गुरु गोबिन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरु थे। धर्म की रक्षा करने और अत्याचारों को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। प्रतिवर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास की शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी जयन्ती मनाई जाती है। उनकी शिक्षाओं की पालना आज भी बड़ी शिद्दत से की जाती है।
जीवन वृत्तांत :
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पिता गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी के घर बिहार के पटना में हुआ। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था, जिसे बाद में गुरु गोबिंद सिंह के रूप में जाना जाने लगा। बचपन के कुछ वर्ष पटना में रहने के पश्चात् उनका परिवार 1670 में पंजाब के आनंदपुर साहिब में आकर रहने लगा। उस स्थान को पहले चक्‌क नानकी के नाम से जाना जाता था। यहाँ उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और एक कुशल योद्धा बनने के लिए सभी कलाएं सीखी। उन्होने संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया |
गोबिंद राय जी की तीन पत्नियाँ थी। 10 वर्ष की उम्र में उनका पहला विवाह माता जीतो के साथ हुआ। जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह उनके और माता जीतो के पुत्र थे। 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। माता साहिब देवन उनकी तीसरी पत्नी थी, जिनके साथ उनका विवाह 33 वर्ष की आयु में हुआ था।
महान् कवि और लेखक :
गुरु गोबिंद सिंह जी ( Guru Gobind Singh Ji ) एक कुशल योद्धा और गुरु होने के साथ-साथ वि‌द्वानों के संरक्षक भी थे। वे मधुर वाणी के धनी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। कई भाषाओं मे निपु‌णता रखने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई सारे ग्रंथों की रचना की थी। उनकी रचनाए आज भी समाज को प्रभावित करती हैं। सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ जी की रचना गोबिंद सिंह जी ने ही की थी। उनकी कुछ अन्य रचनाएं इस प्रकार से हैं –
जाप माहिब
• जफर नामा
• बचित्र नाटक
• अकाल उत्सतत
• खालसा महिमा
सिखों के दसवें गुरु :
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji) के पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फरियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए। उनसे जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाकर मुसलमान बनाया जा रहा था। उनके सामने शर्त रखी गयी थी कि कोई ऐसा महापुरुष हो जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करने के बदले अपना बलिदान दे सके, तो उन सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी नौ वर्ष के ही थे। करमीरी पंडितों की यह बात सुनकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि उनसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है, जो धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे सके। उनकी इस बात से गुरु तेग बहादुर जी स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चाँदनी चौक में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के पश्चात् 29 मार्च 1676 को श्री गोविंद राय जी को सिखों का दसवां गुरू घोषित कर दिया गया।
खालसा पंथ की स्थापना :
धर्म की रक्षा करने और बढ़ते हुए अत्याचारों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख कौम बनाई। 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी के दिन गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने *खालसा* पंथ की स्थापना की। वहाँ मौजूद लोगों से उन्होंने पूछा कि ऐसा कोई हो जो धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर सके तो वह आगे आए। तब एक-एक कर पाँच लोग शहीदी के लिए तैयार हुए। उन 5 सिखों को गुरु जी ने ‘पंज प्यारे’ का नाम दिया और उन्हें अमृत’ का रसपान करवाया। तब उन्हें ‘सिंह’ की उपाधि भी दी गई। उसी समय से गुरु साहिब ने स्वंय को भी ‘सिंह’ बना लिया और उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम से पहचाना गया। खालसा की स्थापना कर उन्होंने सिंह फौज बनाई, जो बहादुरी और ज़ाबाजी से शोषण और अत्याचारों का सामना करे और धर्म की रक्षा व प्रचार कर सके।
सवा लाख से एक लड़ाऊ,
चिड़ियों सो मैं बाज तड़ऊ,
तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊ…
‘अमृत’ का रसपान कर सिंह बनने वाले सिखों के लिए पंज ककार धारण करना अनिवार्य होते हैं। पांच ककारो में केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कछैरा सिख धर्म में विशेष महत्त्व रखते हैं और उनके धर्म के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं।
शहादत :
सत्य को स्थापित करने और अधर्म को रोकने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ 13 युद्ध लड़े। छोटी सेना होने के बावजूद भी उन्होंने बड़ी निडरता और कुशलता से हर बार मुगलों पर जीत हासिल की। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह को बादशाह बनने में गुरू गोबिंद सिंह जी ने मदद की थी। उनके बनते मीठे रिश्तों को देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खाँ डर गया। उसने अपने दो आदमी गुरु जी के पीछे लगा दिए, जिन्होंने धोखे से गुरु साहिब पर वार किया, जिससे 7 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में समा गए।
उन्होने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और स्वयं भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए थे। गुरु जी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरु गोबिंद जी ने बंदा बहादुर का नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और गुरु जी की शहादत का बदला लिया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों में से बाबा अजीत सिंह और बाबा जोझार सिंह को स्वंय गुरु जी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए चमकौर भेजा था, जो वहाँ शहीद हो गए थे और दो साहिबजादों जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह व माता गुजरी को वजीर खां ने पकड़ लिया था। उसने दोनों साहिबजादों को जिंदा ही दिवार में चिनवा दिया था और वे भी शहादत को प्राप्त हुए।
गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji ) की पवित्र शिक्षाएं:
गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार किया और लोगों को जीने की सही राह दिखाई। उन्होंने अपने उपदेशों के द्वारा लोगों का उद्धार किया। गुरु साहिब की पवित्र शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
धरम दी किरत करनी : अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं ।
जगत-जूठ तंबाकू बिखिया दी तियाग करना : हमेशा नशे व तंबाकू के सेवन से दूर रहें।
किसी दि निंदा, अते इर्खा न करना : इसका अर्थ है कि कभी भी किसी दूसरे की निंदा-चुगली नहीं करनी चाहिए। दूसरों से ईर्ष्या करने की जगह स्वयं मेहनत करनी चाहिए।
बचन करकै पालना : अगर आप किसी को कोई वचन देते हैं, तो उसकी पालना करनी चाहिए। यानि हर कीमत पर अपने वचन को निभाना चाहिए।”
कम करन विच दरीदार नहीं करना : व्यक्ति को अपने काम करने में खूब मेहनत करनी चाहिए, किसी तरह की टाल-मटोल या लापरवाही नहीं चाहिए।
गुरबानी कंठ करनी: गुरु गोबिंद सिंह जी के इस बचन का अर्थ है कि गुरुवाणी को कंठस्थ कर लें और उसकी पालना करें।
दसवंड देना : हर व्यक्ति को अप‌नी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे देना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए।
कैसे मनाई जाती है गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती ( Guru Gobind Singh Ji Jayanti) :
इस बार गुरु गोविंद जी की 357 वीं जयंती मनाई जा रही है। इसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। विशेष महत्व रखने वाले इस दिन को सिख समुदाय के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। पहले दिन नगर कीर्तन व जूलूस निकाला जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर, नहाकर व नए कपड़े पहनकर गुरुद्वारे जाते हैं। वहाँ पवित्र भावना से मथ्था टेकते हैं और अपने परिवार व समाज की भलाई के लिए अरदास करते हैं। इस दिन विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। भजन-कीर्तन व पवित्र गुरबानी का पाठ किया जाता है और इस प्रकाश पर्व के उत्सव को मनाया जाता है।

जीवन में सफलता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए रतन टाटा की तरह कड़ी मेहनत और लगन होनी चाहिए

रतन टाटा को तो सभी जानते ही हैं, वे किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर ही आज टाटा कंपनी को बुलंदियों पर पहुंचाया है।

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ। उन्होंने 25 साल की उम्र में 1962 में अपने कैरियर की शुरुआत की और 21 साल के कैरियर में टाटा कंपनी को कहां से कहां पहुंचा दिया कि आज 80 देशों में टाटा समूह की कंपनियां स्थापित हैं। रतन टाटा, टाटा ग्रुप के 5वें अध्यक्ष बने, इसका मुख्य दफ्तर मुंबई में स्थापित है।

रतन टाटा ने जहां टाटा नमक और चाय से घर की आम ग्रहणी का मन जीता, वहीं नैनो जैसी कार को लांच करके मिडल वर्ग के लोगों के सपने पुरे किए। उन्होंने हर क्षेत्र में अपना उद्योग विकसित किया आयरन, स्टील, सीमेंट, कपड़ा और इसके साथ-साथ कृषि उपकरण और ट्रक का उत्पादन करने वाली कंपनियों के समूह का भी केंद्र बना।

रतन टाटा ने सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी ही कंपनी की फैक्ट्री में मजदूरों के साथ काम किया। क्योंकि वह मजदूरों की जिंदगी के बारे में नजदीक से जानना चाहते थे। वे बड़े नरमदिल इंसान थे, उन्होंने गरीबों की हमेशा मदद की। इसलिए ताज होटल में हुए हमले में प्रभावित लोगों को घर जाकर उनका हाल चाल पूछा और पास लगने वाले ठेले वाले जो इस हमले से प्रभावित हुए थे, उन्हें भी आर्थिक मदद की।

कड़ी मेहनत और लगन –

रतन टाटा रातों-रात अमीर होने वालों में से नहीं हैं, बल्कि उनकी कामयाबी पाने के पीछे उनकी कड़ी मेहनत और काम के प्रति उनकी लगन छुपी हुई है। उनकी मेहनत के सदके ही टाटा कंपनी का नाम दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में आता है।

सोच का दायरा बड़ा होना –

रतन टाटा का मानना है कि इंसान को कभी भी खाली नहीं बैठना चाहिए। बल्कि अपनी सोच का दायरा बड़ा करना चाहिए और हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए कुछ ऐसा करना चाहिए कि सोते समय भी इंसान की इनकम बढ़ती रहनी चाहिए।

सकारात्मक सोच –

उनका मानना है कि इंसान को अपनी सोच साकारात्मक रखनी चाहिए। तभी जीत के लक्ष्य पर पहुंच सकता है। नाकारात्मकता को अपने मन में कभी नहीं लाना चाहिए।

निश्चित समय का इंतजार ना करो –

रतन टाटा कहते हैं कि कोई भी काम करने के लिए निश्चित समय का इंतजार ना करो, बल्कि काम को करने के लिए लगन और शिद्दत से लग जाओ, सफलता जरुर आपके कदम चूमेगी।

सभी को एक समान समझें –

आप कभी भी किसी को छोटा बड़ा ना समझे। बल्कि सबके साथ प्यार और सम्मान का व्यवहार करें। क्योंकि किस्मत इंसान को पता नहीं कहां से कहां ले जाती है। जैसे कि बहुत कम लोगों को पता है कि झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री ने टाटा कंपनी में 17 साल काम किया है।

हमेशा नया करने की कोशिश और काम के प्रति समर्पित –

रतन टाटा का मानना है कि इंसान को नए आइडिया लेते रहना चाहिए और सफलता पाने के लिए अपने काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो। ये नहीं कि थोड़ी सी प्रसिद्धि मिली और पोलिटिक्स में चले गए। इसलिए वे अपने काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं।

हर कोई चाहता है कि वह रतन टाटा की तरह सफलता हासिल करे। पंरतु इसके लिए उनकी तरह पूरी शिद्दत से अपने काम को समर्पित होना होगा। तभी जीवन में सफलता हासिल की जा सकती है और अपने लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

लाखों लोगों के लिए लाइफ लाइन बनने वाले देश के असली हीरो – ई.श्रीधरण

एक निश्चित योजना के तहत काम करने वाले केरल वासी सिविल इंजीनियर ईश्रीधरण ने अपनी कार्यशैली व कुशलता से भारत में सार्वजनिक परिवहन का चेहरा ही बदल दिया। दिल्ली मेट्रो को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले श्रीधरन 1995 से 2012 तक दिल्ली मेट्रो रेल निगम के निर्देशक रहे। ई.श्रीधरन के लिए दिल्ली एनसीआर की लाइफ लाइन दिल्ली मेट्रो का निर्माण कार्य किसी सपने से कम नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी कुशलता और श्रेष्ठता से इसे पूरा कर दिखाया।

इनके विकास के कार्य को देखते हुए अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध पत्रकार टाइम मैग्नीज ने इन्हें एशिया का हीरो का टाइटल दिया।

जन्म व आरंभिक जीवन-

श्रीधरन का जन्म केरल के पलक्कड़ जिले में 12 जून 1932 को करूकापुथूर गांव में पिता नीलकंदन मूसा व माता अम्मालुअम्मा के घर हुआ। आरंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में पूरी करने के बाद श्रीधरन ने इंजीनियर की डिग्री के लिए आंध्रप्रदेश के काकीनाडा में गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद शुरुआत के कुछ दिनों के लिए शिक्षक के पद पर काम किया।

श्रीधरन का व्यक्तिगत जीवन-

ई.श्रीधरन का विवाह राधा श्रीधरन के साथ हुआ था। श्रीधरन के चार बच्चे है 3 बेटे और एक बेटी है।

ई. श्रीधरन द्वारा लिखी गई जीविनयां-

दो जीविनयां

प्रथम जीवनी – कर्मयोगी द स्टोरी ऑफ़ इंडिया ई. श्रीधरंस लाइफ कथा जोकि एम.एस. एसोशिएशन द्वारा लिखित है।

दूसरी जीवनी – जीविथाविजयाथिन्ते पादपुस्तकम जोकि पी. वीं. अल्बी द्वारा लिखित है।

मेट्रो मैन – मेट्रो मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए श्रीधरन ने कोलकाता मेट्रो से लेकर दिल्ली मेट्रो तक में अहम योगदान दिया। दिल्ली जैसे व्यस्त शहर में श्रीधरन ने मेट्रो का काम बहुत कम समय में पूरा कर दिखाया और देश के कई अन्य शहरों में मेट्रो सेवा शुरू करने की तैयारी की। भारत की पहली कोलकाता मेट्रो सेवा की योजना उन्हीं की ही देन है।

कई प्रोजेक्टों में अहम योगदान –

दिल्ली मेट्रो ना केवल उत्तर प्रदेश के बल्कि हरियाणा के भी दो प्रमुख शहरों गाजियाबाद और नोएडा की शान है। दिल्ली मेट्रो के जरिए दिल्ली एनसीआर के 30 लाख लोग रोजाना सफर करते हैं। लेकिन अब कोरोना के चलते यात्रियों की संख्या कम है। 60 वर्ष तक तकनीकी विद्वान के रूप में अपनी सेवाएं देने वाले 89 वर्षीय श्रीधरण का कोंकण रेल और दिल्ली मेट्रो समेत देश के कई बड़े प्रोजेक्ट में अहम योगदान रहा है।

90 दिन का कार्य 46 दिन में –

दिसंबर 1964 में समुद्री तूफ़ान ने रामेश्वरम और तमिलनाडु को आपस में जोड़ने वाले पम्बन ब्रिज को तबाह कर दिया, तो उस दौरान एक ट्रेन रेलवे ट्रैक पर थी। जिसकी वजह से हादसे में सैंकडों यात्रियों की जान चली गई। पम्बन ब्रिज 164 में से 125 गार्डर पानी में पूरी तरह से डूब गया, तो रेलवे ने उनके निर्माण के लिए 6 महीने का लक्ष्य तय किया लेकिन उस क्षेत्र के इंचार्ज ने काम की अवधि 3 महीने कर दी और जिम्मेदारी श्रीधरन को सौंपी। समय के पाबंद श्रीधरन ने मात्र 45 दिनों के में ही काम पूरा कर दिखाया।

ई. श्रीधरन की मेट्रो परियोजनाएं –

  • दिल्ली मेट्रो- 1997 दिल्ली मेट्रो मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। इनके नाम और उपलब्धियों के बहुत चर्चे होने के कारण इन्हें मेट्रो मैन की अनौपचारिक उपाधि से नवाजा गया।
  • कोंकण रेलवे- 1990 में इनको काॅन्ट्रैक्ट कोंकण रेलवे का चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया।
  • कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड
  • कोच्ची मेट्रो

ई. श्रीधरन को दिए गए पुरस्कार और सम्मान –

मेट्रो क्रांतिकारी परिवहन में इनके योगदान को देखते हुए 1963 को रेलवे मंत्री का पुरस्कार, 2021 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, 2002 को ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ द्वारा मैन ऑफ़ द इयर और श्री ओम प्रकाश भसीन अवार्ड फॉर प्रोफेशनल एक्सीलेंस इन इंजीनियरिंग, 2008 में पद्म विभूषण, फ्रांस सरकार द्वारा 2005 में सर्वोच्च नागरिक अवार्ड से सम्मानित किया गया।

दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो सितारे बन कर उभरते है। जिनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जिनकी वजह से देश उन्नति के सिखर पर पहुंचता है। भारत को अब आधुनिकता के पहिए पर चलाने के लिए सबकी उम्मीदें श्रीधरन पर टिकी है।

रक्तदान करके किसी की जिंदगी बचाने का जरिया बनें-

अक्सर कहा जाता है कि एक माँ की उम्र उसके बच्चे को नहीं बचा सकती, परन्तु आपके द्वारा किया गया रक्तदान किसी का जीवन जरूर बचा सकता है।

रक्तदान वहीं होता है, जो इंसान अपनी स्वेच्छा से करे। रक्त एक ऐसी चीज है, जिसे बनाया नहीं जा सकता। इसकी आपूर्ति किसी साधन से नहीं हो सकती, यह सिर्फ इंसानी शरीर में ही बनता है।

रक्तदान करने की बात सुनते ही लोग अजीब सा व्यवहार करने लगते है। कई लोगों के मन में यह धारणा है कि कि खून दान करने से हमारे शरीर में कमजोरी आ जाएगी, लेकिन यह सत्य नहीं है।एक यूनिट में मात्र तीन सो पचास एम एल रक्त ही निकाल सकते हैं। खून दान करने से कोई नुकसान नहीं होता बल्कि कई प्रकार के फायदे हैं।

विश्व रक्तदान दिवस क्यों मनाया जाता है-

 हमारे देश में बहुत से लोग ऐसे हैं, जो खून की कमी के कारण अपनी जिंदगी गवा देते हैं। उन्हें बचाने और लोगों को रक्तदान करने के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 14 जून को “विश्व रक्तदान दिवस” मनाया जाता है। रक्तदान दिवस पहली बार 2004 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय संघ ने मनाया था।

विश्व रक्तदान दिवस की शुरुआत-

14 जून को विश्व भर में “ रक्त दान दिवस ” मनाया जाता है। वर्ष 1997 को WHO ने स्वैच्छिक रक्तदान की नींव रखी थी, जिसका मुख्य उदेश्य यह था कि जब कभी भी किसी जरूरत मंद को खून की आवश्यकता हो तो उसे बिना पैसे दिये खून मिल सके । साल 2004 में पहली बार रक्त दान दिवस मनाया गया।
इसे 14 जून को इसलिए मनाया जाता है, क्योकि 14 जून को ही  कार्ल लैंडसटीनर का जन्मदिन होता है और कार्ल  को      ( Blood transfusions) का संस्थापक कहा जाता है।

रक्त क्या है-

हमारे शरीर में एक लाल रंग का तरल पदार्थ पाया जाता है, उसे ही रक्त कहते हैं। हमारे शरीर में रक्त की मात्रा लगभग पांच से छह लीटर तक होती है। हमारे शरीर में रक्त का कार्य शरीर मे बने विषैले पदार्थ जैसे कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर निकालना होता है तथा शरीर में हारमोन व अन्य पदार्थों को लेकर जाने का काम भी रक्त ही करता है।

रक्तदान क्यों जरूरी है-

आज के समय में थैलेसीमिया जैसी बीमारी के कारण बहुत से लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस बीमारी से छोटे-छोटे बच्चे भी जूझ रहे हैं। ऐसे बच्चों की मदद के लिए रक्त दान की बहुत आवश्यकता है‌।
रक्त दान को सबसे बड़ा दान कहा गया है। हम किसी भी जरूरत मंद के लिए खून दान करके उसकी जिंदगी बचाकर उस परिवार के जीवन में खुशियाँ भर सकते हैं। जरा सोचिए कोई व्यक्तिगत अपनी जिंदगी और मौत से लड़ रहा है और आप अचानक एक उम्मीद की किरण बनकर उसकी जिंदगी बचा लेते है, तो आपको भी कितनी खुशी होगी। तो रक्त दान से जुड़ी हुई सब भ्रांतियो को दूर करते हुए किसी की जिंदगी बचाने का जरिया बनाना चाहिए ।

रक्तदान करने के अद्भुत फायदे-

रक्तदान करने के हमारे शरीर को कईं तरह के फायदे होते हैं। एक तो हम किसी के अनमोल जीवन को बचा सकते है।

  • एक यूनिट खूनदान करने से तीन जिंदगियां बचाई जा सकती है
  • खून दान करने से हार्ट अटैक जैसी बीमारी को भी कम किया जा सकता है। क्योंकि जब हम खून दान करते हैं, तो हमारे शरीर में खून का थक्का नहीं जमता। इससे खून पतला रहता है और हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है।
  • रक्त दान करने से वजन कम करने में भी मदद मिलती है। एक बार खून दान करने से लगभग पांच सौ कैलोरी बर्न करने में मदद मिलती है। साल में कम से कम तीन बार तो खून दान अवश्य करना चाहिए।
  • रक्तदान करने से नए ब्लड सेल्स बनते हैं, जिससे शरीर में एनर्जी बनती है और शरीर तंदुरुस्त रहता है।
  • रक्त दान करने से लीवर से संबंधित समस्याओं में भी राहत मिलती है। शरीर में अगर आयरन की मात्रा ज्यादा होती हैं, तो वह लीवर पर दवाब डालती हैं। परन्तु यदि हम रक्त दान करते हैं, तो आयरन की मात्रा बराबर रहती है।
  • रक्त दान करने से कैंसर जैसी बीमारी का भी खतरा कम हो जाता है। खून दान करने से हमारे शरीर में कैलोरी की मात्रा भी कम होती हैं।
  • रक्त दान करने के कारण पुराना रक्त जब शरीर से बाहर निकल जाता है, तो उसी वक्त नया खून बनना शुरू हो जाता है। शरीर में जो सेल्स गतिहीन होते हैं, वो फिर से कार्यशील हो जाते हैं। जिससे हमारे ब्लड में यदि किसी भी प्रकार की बीमारी के कोई लक्षण दिखाई देते हैं, तो ये नए सेल्स उन्हे पहले ही नष्ट कर सकते हैं।

रक्त दान कौन नहीं कर सकते हैं-

जिन लोगों को एड्स, मलेरिया, शुगर, किडनी से संबंधित रोग, हैपेटाइटिस, उच्च और निम्न रक्त चाप, टीबी, अस्थमा, पीलिया, एलर्जी डिपथीरिया आदि में से कोई भी बीमारी हो, तो उन्हें खून दान नहीं करना चाहिए। महामारी के दौरान महिलाओं को रक्त दान नहीं करना चाहिए।
साथ ही गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं भी खून दान ना करे।

  • 18 से कम आयु और 60 से ज्यादा आयु वाले लोगों को रक्त दान नहीं करना चाहिए।
  • खून दान करने से पहले फास्ट फूड और अधिक वसा युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। धूम्रपान और शराब या अन्य किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए।

रक्तदान करने के बाद क्या खाना चाहिए

रक्तदान करने के बाद हमें हरी सब्जियां, दूध फल, आयरन, विटामिन व पौष्टिक आहार वाले भोजन का सेवन करना चाहिए।

  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए।
  • रक्त दान के बाद केवल तरल पदार्थ ही ना लें, ऐसा करने से कमज़ोरी महसूस होगी। इसलिए हेलथी डाईट अवश्य लें।

निष्कर्ष

आज  लोगों में रक्त दान को लेकर काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। युवा वर्ग बहुत जागरूक हो रहा है। जो मिथ्या भ्रांतियाँ थी, वो कम हो रही है। तो क्यों न खुद की एक पहचान बनाये रक्त दान करें और करवाए।   

स्वच्छता सर्वेक्षण के पांचवे संस्करण “स्वच्छ सर्वेक्षण 2020” के परिणामों की घोषणा हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए किया।

इसमें इंदौर जो मध्यप्रदेश प्रदेश का एक शहर हैं, इसे सबसे स्वच्छ शहर का खिताब हासिल हुआ।आपको याद भी होगा लगातार पिछले तीन साल से सबसे स्वच्छ शहर का ख़िताब इंदौर को ही मिल रहा हैं।इसके अलावा करनाल जिले ने 17 वां स्थान प्राप्त किया है इसके साथ ही हरियाणा ने राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त कर जिले का मान बढ़ाया।

swachh survekshan 2020 - Indore - Exclusive Samachar

यह उस संरक्षण के परिणाम है जिसमे 1 लाख से 10 लाख की आबादी वाले शहरों को ही शामिल किया गया हैं।

स्वच्छ सर्वेक्षण में रेटिंग के आधार पर झारखंड 2325.42 अंक के साथ पहले स्थान पर रहा, वही  हरियाणा के  1678.84 अंक रहे।करनाल जिले को 4655.07 अंक मिले, इस श्रेणी में प्रथम आने वाले शहर अम्बिका पुर को भी 4655.07 अंक मिले।

आइये हरियाणा के अन्य जिलों के बारे में जानते है

  • जिला रोहतक 4180.55 अंको के साथ 35 वें नंबर पर रहा।
  • जिला पंचकूला 3683.01 अंक के साथ 56 वें नम्बर पर रहा।
  • जिला गुरुग्राम 3733.97 अंक के साथ 63 वें नम्बर पर रहा।

इस तरह स्वच्छ सर्वेक्षण में 100 जिलों में हरियाणा के 4 जिले ही शामिल हो सकें। इसके अलावा सोनीपत 103 व हिसार 105 वें नम्बर पर हैं।

इस संरक्षण का मुख्य मकसद स्वच्छ शहरों का निर्माण, नागरिक सेवा वितरण में सुधार और सफाई के प्रति नागरिकों की सोच व्यवहार बदलने से है।यह शहरों और महानगरों के बीच स्वस्थ स्पर्धा की भावना को बढ़ावा देने में सहायक भी साबित हुआ हैं।

इसके लिए लोगो की जनभागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है ,अगर हम सब मिल कर ऐसा करें तभी शहरों और महानगरों को और भी बेहतर बनाया जा सकता है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) 2019 की परीक्षा में देश में तीसरा स्थान हासिल करने वाली प्रतिभा वर्मा का मानना है कि समाज और सुरक्षा में आज भी बेटियों के लिए बहुत बड़ी चुनौतियां हैं। बेशक हम कितने भी अच्छे विचारों के धनी क्यों न हों लेकिन एक बेटी या औरत को हर मुकाम पर चुनौती का सामना करना ही पड़ता है लेकिन अगर कोई मजबूत लक्ष्य है तो हमें मंजिल पर पहुंचने से कोई भी नहीं रोक सकता। 

Pratibha Vera UPSC CSE Topper - Exclusive Samachar

उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली प्रतिभा वर्मा का IAS बनने का जुनून उसके दृढ़ संकल्प को पूर्ण रूप से ब्यान करता है। प्रतिभा ने पहले भारतीय राजस्व सेवा (IRS) की परीक्षा पास की जिसके कारण उसे आयकर विभाग में सहायक आयुक्त की नौकरी मिली। फिर भी उसने IAS बनने के संकल्प को टूटने नहीं दिया। आखिरकार 2019 में उसने इस लक्ष्य को पूरा कर ही दिया। उसने वरीयता क्रम में तीसरा स्थान प्राप्त किया मगर फिर भी वे महिलाओं में सबसे अव्वल थी। 

प्रतिभा ने अपने अनुभव को बताते हुए कहा कि बेटियों के लिए यह संसार अभी भी मुश्किलों से भरा है लेकिन एक औरत को इसका सामना तो करना ही होगा। तभी तो बेटियां अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगी। 

Indian Administrative Services - Exclusive Samachar

अगर एक बेटी हिम्मत जुटा कर घर से निकल भी जाती है तो अपनी सुरक्षा के लिए वे अपने मन में डर हमेशा रखती है। उन्होंने बताया कि प्राथमिक और इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई गांव में पूरा कर 2010 में उन्होंने सुलतानपुर छोड़ दिया। एक दशक घर परिवार से दूर रहकर किताबों और शिक्षा के मंदिरों में साधनारत रही। वर्ष 2018 में IAS की परीक्षा देने से पहले अनुभव के लिए प्रतिभा ने वोडाफोन की कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्य किया। 2018 में IRS के नाते सहायक आयुक्त Income Tax बनी। इस पद पर कार्य करते हुए उसने IAS की परीक्षा दी और देश में तीसरा स्थान हासिल किया जबकि महिला वर्ग में देश में पहले स्थान की रैंकर बनी।