आइए जाने संपूर्ण जानकारी
जब भी किसी ग्रह पर जीवन संभव होने की संभावना मिलती है, तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वहां पर हमें अपने जैसे इंसान, पशु-पक्षी या अन्य जीव मिल गए हैं। बल्कि इसका अर्थ यह होता हैं कि हमें वहां पर जीवन जीने की कुछ ऐसी संभावनाएं मिली है। जैसे- Bacteria हो या कोई अन्य सूक्ष्म जीव हो, जो आने वाले समय में जीवन के पनपने में मदद कर सकते हैं।
आपको बता दें कि यदि किसी ग्रह पर बैक्टीरिया भी मिलता मिलता है। तो यही कहा जाता है कि उस ग्रह पर जीवन संभव है।
आइए बात करते हैं शुक्र ग्रह यानी Venus की…..
आपको बता दें Venus की सतह का तापमान 400°C है। अर्थात जहां पर 100°C पर पानी उबल जाता है। यह उस से 4 गुना ज्यादा गर्म है। शुक्र ग्रह का तापमान बहुत अधिक है। जो Lead को भी पिघला सकता है। यहां कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक है।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि यहां जीवन की संभावना कैसे उत्पन्न हो सकती है।

आइए जानते हैं शुक्र पर जीवन
आपकी जानकारी के लिए बता दें खगोल शास्त्रियों ने शुक्र ग्रह यानि Venus के वायुमंडल में सतह से 50 किलोमीटर ऊपर आसमान की ओर फॉस्फीन नामक गैस रिसर्च की है। जो 1 फास्फोरस और 3 हाइड्रोजन के कणों से मिलकर बनी है। इस गैस के शुक्र मिलने से पता चला कि वहां पर जीवन संभव हो सकता। इसका मुख्य आधार फॉस्फीन गैस हैं। इस ग्रह के बादलों में सूक्ष्म जीव तार रहे हैं।
अगर फास्फीन गैस की बात हम पृथ्वी पर करें। तो यह गैस दो कारणों से बनती है। पृथ्वी पर फॉस्फीन गैस कम अॉक्सीजन वाली जगह जैसे कि दलदल में पाई जाती है। जहां इसे micro bacteria oxygen की अनुपस्थिति में पैदा करते हैं। दूसरा इसको कारखानों में बनाया जाता है। लेकिन शुक्र ग्रह पर कोई कारखाना नहीं है। तो ऐसे में हो सकता है कि micro bacteria इस गैस को Venus पर उत्सर्जित रहे हो।
इस बारे में ब्रिटेन की कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीब्स ने अपने साथियों के साथ मिलकर इस नई खोज के आधार पर एक विस्तृत लेख लिखा हैं और इस लेख को Nature Astronomy नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
आपको बता दें इस लेख में बड़े विस्तार से यह लिखा गया है कि फास्फीन गैस के मिलने से शुक्र पर जीवन की संभावना कैसे बढ़ जाती है।

शोधकर्ताओं का मानना है कि फॉस्फीन गैस शुक्र ग्रह के बादलो में बहुत ज्यादा मात्रा में मौजूद हो सकती है।
गैस की खोज कैसे हुई
आपको बता दें हवाई और चिली पर दो टेलिस्कोप है जो निरंतर शुक्र पर नजर बनाए हुए हैं। इनका नाम हवाई के मोना केआ अॉब्जर्वेटरी में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलिस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा मिलीमीटर ऐरी टेलिस्कोप की सहायता से शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन गैस का पता लगाया है। इस गैस के होने से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां जीवन मिलने की संभावना है। शुक्र ग्रह धरती के नजदीक हमारे सौरमंडल में है। तो उस पर जीवन तक पहुंचना आसान है।
लेकिन Venus के घने बादलों में 75 से 95 फ़ीसदी सल्फ्यूरिक एसिड होने के कारण जीवन को पनपने की संभावना बहुत कम है। ऐसे वातावरण में बैक्टीरिया को जीवित रहने के लिए अपने आसपास कवच बनाना होगा। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है, क्योंकि अगर बैक्टीरिया अपने आसपास कवच बना लेंगे तो गैसों का आदान प्रदान नहीं होगा और वहां जीवन की संभावना कम होगी।
लेकिन यह खोज का विषय है तो हो सकता है, वहां कुछ हद तक जीवन के संकेत मिले।
नासा वर्ष 2030 तक शुक्र पर फ्लैगशिप या इंस्ट्रुमेंटल भेजने का प्लान बना रहा है।

आपको बता दी ऐसा नहीं है कि Venus यानी शुक्र ग्रह पर आज तक पृथ्वी से अभी तक कोई मिशन नहीं गया है। वर्ष 1961 से 1984 के बीच सोवियत यूनियन के वनेरा मिशन के तहत शुक्र पर 13 मिशन भेजे थे। जिनमें से 10 सतह पर उतरे थे। लेकिन शुक्र ग्रह का तापमान बहुत ज्यादा है। जिस कारण मिशन केवल 23 मिनट से 2 घंटे तक ही वहां पर काम कर पाया, उसके बाद काम बंद हो गया। हालांकि इस दौरान उन्होंने शुक्र के सतह की कुछ तस्वीरें पर पृथ्वी पर भेज दी थी। तो इनकी मदद से हो सकता है, आने वाले समय में जी जीवन की खोज में नासा शुक्र पर कोई बड़ा मिशन भेजने की योजना बनाएं।
यदि शुक्र पर जीवन मिलता है तो आकाशगंगा में असंख्य जगहो पर जीवन मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। क्योंकि आमतौर पर गर्म सतहो वाले ग्रहों पर जीवन संभव नहीं हो सकता। यदि शुक्र पर जीवन के अंश मिल जाते हैं तो हो सकता है असंख्य जगह पर जीवन मिलने की संभावना हो।