VVIP TREE || VVIP BODHI TREE || VVIP TREE IN INDIA 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल एवं विदिशा के बीचों-बीच सलामतपुर की पहाड़ी पर लगा हैं – बोधि वृक्ष! जिसकी सुरक्षा के लिए दिन रात होमगार्डो की तैनाती की गई है।

आप यह सुनकर चोंक गए होंगे मगर यह सच है। दरअसल यह VVIP Tree जिसकी यहां बात की जा रही है, करीब आठ साल पहले 21 सितम्बर 2012 को श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे एवं भूटान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जिग्मी योजर थिंगले द्वारा एक पौधे के रूप में रोपित किया गया था। यह वही बोधि वृक्ष की टहनी है, जिसके नीचे बैठकर गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी।

बौद्ध धर्म में खास महत्व रखता है- बोधि वृक्ष

यह वृक्ष गौतम बुद्ध की धरोहर है। इसलिए बौद्ध धर्म के लिए इसका खास महत्व है। इसी के चलते जिस पहाड़ी पर यह वृक्ष रोपित है, उस पूरी पहाड़ी को बौद्ध विश्वविद्यालय के लिए आवंटित किया गया है, एवं पूरा क्षेत्र ही बोद्धिस्ट सर्कल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। बौद्ध अनुयायियों के लिए यह वृक्ष श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र है।

सुरक्षा एवं रख-रखाव के पूरे प्रबन्ध

आप को बता दें, 15 फीट ऊंची जालियों से घिरे इस वृक्ष की सुरक्षा में कोई कमी नही छोड़ी गई है। 4 होमगार्ड सुरक्षा की दृष्टि से यहां पर दिन-रात पहरा देते हैं। इस वृक्ष के रख-रखाव पर हर साल लगभग 15 लाख रुपये का खर्च होता है । 

वृक्ष तक पहुंचने के लिए पक्का रास्ता भी बनाया गया है। जोकि भोपाल-विदिशा हाइवे से लेकर पहाड़ी तक का है। सिंचाई के लिए भी स्पेशल इंतज़ाम किए गए हैं। सांची नगरपालिका ने पानी के टैंकर सिंचाई व्यवस्था के लिए लगाए हैं। किसी भी प्रकार की बीमारी से बचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी हर हफ्ते इस वृक्ष की सेहत जांचते है। यह सब कार्य जिला कलेक्टर की निगरानी में सम्पन्न किये जाते है। 

यूनिवर्सिटी पहाड़ी पर लगाया गया यह वृक्ष, लेकिन यूनिवर्सिटी निर्माण अभी भी बाकी हैं। 
 राज्य के पेड़ के रख-रखाव में लगते प्रतिवर्ष 15 लाख, थोड़े से कर्ज की वजह से खुदकुशी कर चुके है राज्य में 51 किसान। 

महिंद्रा राजपक्षे इस पहाड़ी पर यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखने आये थे। तब उन्होंने इस बोधि वृक्ष को रोपित किया। जिसके बाद से इस वृक्ष पर लाखों रुपये लगाए जा रहे है। सुरक्षा, सिंचाई से लेकर कीटों एवं बीमारी से बचाव तक की पूरी व्यवस्था की गई है। मगर यूनिवर्सिटी के निर्माण की शुरुआत भी अभी बाकी है। 

जिस यूनिवर्सिटी के नाम पर इस वृक्ष को रोपित किया गया, 5 साल बाद इसकी चारदिवारी भी टूट गयी है। यूनिवर्सिटी को लगभग 20 लाख किराए पर एक निजी भवन में चलाया जा रहा है।
वहीं दूसरी ओर इसी राज्य के करीब 51 किसान थोड़े से कर्ज की वजह से खुदखुशी कर चुके हैं।

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