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Guru Purnima 2024 (गुरु पूर्णिमा )

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का शुभ दिन, जिसे व्यास पूर्णिमा या व्यास पूजा भी कहा जाता है, जो हिंदू महीने के अनुसार आषाढ़ या अशरा (जून और जुलाई के महीनों के बीच) में होता है। यह वेद व्यास के जन्मदिन का भी स्मरण कराता है, जिन्हें पुराण, महाभारत और वेद जैसे सभी समय के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू ग्रंथों के लेखक होने का श्रेय दिया जाता है।

यह दिन गुरु को समर्पित है – संस्कृत शब्द का अर्थ है, वह जो अंधकार को दूर करता है और अज्ञानता को दूर करता है।

Who is true Guru (सच्चा गुरु कौन है?)

गुरु या शिक्षक को हमेशा भगवान के समान माना गया है, गुरू अपने शिष्य को हर अच्छे बुरे का ज्ञान करवाता है। गुरू के बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, 
बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताय ।

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ यह है कि जब गुरु (शिक्षक) और गोविंद (सर्वशक्तिमान) दोनों शिष्य (छात्र) के सामने खड़े हों, तो उसे पहले किसके पैर छूने चाहिए? वह सोचता है कि वह पहले अपने गुरु के पैर छुए, क्योंकि वह वही व्यक्ति है जिसने शिष्य को गोविंद के बारे में बताया और उसे सर्वशक्तिमान तक पहुंचाया।

गुरु, जैसा कि उल्लेख किया गया है, अज्ञानता और निरक्षरता के अंधकार को दूर करने वाला है। जो एक शिष्य की बुद्धि, ज्ञान और जागरूकता को जागृत करता है और उसे आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। एक गुरु धैर्यवान होता है और अपने शिष्य को नियमित ध्यान, सही कार्यों, विचारों और सच्चाई पर केंद्रित एक नैतिक और नैतिक जीवन शैली सिखाता है।

हम अपने जीवनकाल में कई सबक सीखते हैं और जो कोई भी उम्र, लिंग, जाति, धर्म या स्थिति की परवाह किए बिना अंतर्दृष्टि जगाता है वह गुरु है, गुरु है।

The story of Guru Purnima (गुरु पूर्णिमा की कथा)

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, लगभग 15,000 साल पहले एक योगी हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में प्रकट हुए थे। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया है, लेकिन सभी ने उसकी पवित्र उपस्थिति को महसूस किया और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। वह ध्यान कर रहा था, न तो वह हिल रहा था और न ही बात कर रहा था। जीवन का एकमात्र लक्षण जो उसने दिखाया वह कभी-कभार उसके चेहरे से बहने वाले आनंद के आँसू थे।

उनकी क्षमताएँ देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। आख़िरकार उनमें से सात को छोड़कर सभी दर्शक चले गए, जो रुके रहे
जब उसने आख़िरकार अपनी आँखें खोलीं, तो सातों ने उससे अनुरोध किया कि वह उन्हें अपने तरीके सिखाए, जो वह अनुभव कर रहा था उसका अनुभव करना चाहता था।

उसने उन्हें बर्खास्त कर दिया, लेकिन वे डटे रहे। अंत में, उसने उन्हें एक सरल प्रारंभिक कदम दिया और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं। सातों आदमी तैयारी करने लगे। दिन सप्ताहों में, सप्ताह महीनों में, महीने वर्षों में बदल गए, लेकिन अगले चौरासी वर्षों तक योगी का ध्यान उन पर दोबारा नहीं गया।

ग्रीष्म संक्रांति पर जागने पर, जो दक्षिणायन के आगमन का प्रतीक है, योगी को यह स्पष्ट हुआ कि सातों चमकदार पात्र बन गए थे, जो आत्मज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिए तैयार थे। अगली पूर्णिमा के दिन, उन्होंने एक शिक्षक के रूप में सातों का सामना किया। इस प्रकार, आदि योगी – प्रथम योगी, आदि गुरु – प्रथम शिक्षक बन गए। आदि गुरु कोई और नहीं बल्कि महान व्यास थे और इस प्रकार इसे व्यास पूर्णिमा और व्यास पूजा नाम दिया गया।

History of Guru Purnima (गुरु पूर्णिमा का इतिहास)

गुरु पूर्णिमा के पीछे की पौराणिक कथा ऋषि वेद व्यास के जन्म से जुड़ी है, जिन्हें महाभारत और पुराणों का लेखक कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित और संपादित किया था, जो आज ज्ञात हैं

गुरु पूर्णिमा का दिन वेद व्यास, जिन्हें ”महागुरु” माना जाता है, का आशीर्वाद लेने के लिए शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनका आशीर्वाद अज्ञानता के अंधेरे को दूर करता है और ज्ञान के प्रकाश को जन्म देता है।

Buddhist History  (बौद्ध इतिहास )-

बौद्ध कथाओं के अनुसार, यह वह दिन है जब गौतम बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया था । जिसके बाद उनके ”संघ” या शिष्यों के समूह का गठन हुआ था।

Jain History (जैन इतिहास)-

जैन इतिहास के अनुसार, यह दिन भगवान महावीर की पूजा करने के लिए मनाया जाता है, जो इसी दिन अपने पहले शिष्य गौतम स्वामी के गुरु बने थे।

Ancient folktales (प्राचीन लोककथाएँ)-

भारत में प्राचीन काल से, किसान अच्छी वर्षा प्रदान करने के लिए धन्यवाद के रूप में इस दिन भगवान का सम्मान करते थे आने वाली फसल उनके लिए फायदेमंद होगी। 

Guru Purnima Rituals (गुरु पूर्णिमा अनुष्ठान)

गुरु पूर्णिमा विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है।

Guru Purnima in Hinduism (हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा)-

हिंदू गुरु पूर्णिमा को ”व्यास पूजा” के रूप में भी मनाते हैं। महा गुरु की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। पूरे दिन भक्ति गीत और भजन गाए जाते हैं। गुरु गीता, एक पवित्र ग्रंथ, का पाठ भी महा गुरु की याद में किया जाता है। फूल और उपहार चढ़ाए जाते हैं और ”प्रसाद” वितरित किया जाता है, जिसे कभी-कभी ”चरणामृत” भी कहा जाता है।

कुछ आश्रमों में, चप्पलों को ऋषि वेद व्यास की चप्पलें मानकर उसकी पूजा की जाती है। अन्य लोग अपने स्वयं के आध्यात्मिक गुरुओं के पास जाते हैं और उन्हें अपना जीवन और आध्यात्मिक मार्ग पुनः समर्पित करते हैं।

इस दिन साथी शिष्यों को भी ”गुरु भाई” के रूप में सम्मान दिया जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा का सम्मान करता है और उन्हें और स्वयं को गुरु और ईश्वर के साथ एक के रूप में देखता है।

कुछ लोग इस दिन अपने गुरुओं को ‘दीक्षा’ देकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा या पढ़ाई भी शुरू करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के छात्र इस दिन को अपने संगीत शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करके मनाते हैं, जो शिक्षक और छात्र के बीच के पवित्र बंधन को मजबूत करता है, जिसे ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ के रूप में जाना जाता है।

Guru Purnima in Buddhism (बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा)- 

बौद्ध गुरु पूर्णिमा को ‘उपोसथ’ नामक अनुष्ठान आयोजित करके मनाते हैं। वे इस दिन बुद्ध की आठ शिक्षाओं का सम्मान करते हैं। कई बौद्ध भिक्षु इस दिन का उपयोग अपनी ध्यान की यात्रा शुरू करने के लिए करते हैं। वे इस दिन अन्य तप साधनाएँ भी शुरू करते हैं। 

Secular traditions (धर्मनिरपेक्ष परंपराएँ)-

देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में, वर्तमान और पूर्व छात्र अपने शिक्षकों से मिलते हैं और उन्हें कृतज्ञता और सम्मान के प्रतीक और शब्दों के साथ बधाई देते हैं। कविताएँ सुनाई जाती हैं और शिक्षक छात्रों को अपना आशीर्वाद देते हैं। इन पाठों के लिए प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

संक्षेप में कहें तो भारत में प्राचीन काल से ही गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।

Guru Disciple Relationship (गुरु शिष्य का रिश्ता)

जीवन में कुछ भी सीखने के लिए हमें एक शिक्षक/गुरु/गुरू की आवश्यकता होती है, जो हमें सही राह दिखा सके। गुरु वह है जो प्रबुद्ध है और शिष्य वह दीपक है जिसे जलाया जाता है। शिक्षक के ज्ञान और शिक्षाओं के बिना हम जीवन में अधिकांश चीजों में असहाय होंगे।

हम अपनी गलतियों और अपनी जीवित रहने की प्रवृत्ति से सीखते हैं लेकिन एक शिक्षक के माध्यम से सीखना अधिक गहन प्रक्रिया है, अधिक संरचित है। इसके अलावा, ऐसे कई विषय हैं जो शिक्षक के मार्गदर्शन के बिना पूरी तरह से अथाह या समझ से परे हैं। एक गुरु जीवन भर एक गुरु/मार्गदर्शक के रूप में प्रोत्साहित और प्रबुद्ध करके शिष्यों की क्षमता का निर्माण करता है।

What should be offered to Gurudev on Guru Purnima? (गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुदेव को क्या भेंट देनी चाहिए?)

गुरु पूर्णिमा का दिन अपने गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने का एक श्रेष्ठ दिन है। Guru Purnima 2024 पर अगर आप अपने गुरु को कोई उपहार देना चाहते हो तो आप अपने गुरु की शिक्षा पर चलने का प्रण करें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अच्छाई भलाई के मार्ग से जोड़ें। गुरु के लिए इससे बढ़कर कोई उपहार नहीं।

इसके अलावा आप इस अवसर पर आप उन्हें वस्त्र, फूल या उनके पसंदीदा पदार्थों की भेंट दे सकते हैं। जीवन में उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन के लिए आभार प्रकट करना भी एक महत्वपूर्ण भेंट हो सकती है।

जो लोग आध्यात्मिक पथ पर हैं, उनके लिए गुरु पूर्णिमा वर्ष का सबसे शुभ दिन है क्योंकि वे आदि गुरु और रास्ते में आने वाले हर गुरु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा जश्न मनाने, अपना आभार व्यक्त करने और अपने गुरुओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है।

इस प्रकार हमें भी गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का आभार प्रकट करना चाहिए और गुरु की शिक्षा पर चलकर गुरु के संस्कारों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए।

गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए यह विशेष पर्व गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। भारत में, गुरु पूर्णिमा हमेशा गुरु-शिष्य परम्परा या शिक्षकों और उनके छात्रों के बीच के अनोखे संबंधों के लिए बहुत खास दिन रहा है। आइए जानते हैं कि 2020 में Guru Purnima Kab Hai और इस दिन के बारे में सब कुछ।

इस वर्ष गुरु पूर्णिमा कब है?

यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की जून-जुलाई के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 5 जुलाई 2020 को मनाया जा रहा है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल गुरु पूर्णिमा जुलाई में ही आती है। इस बार यह 16 जुलाई को है।

गुरु पूर्णिमा का हमारे हिंदू धर्म में विशेष महत्व है हिंदुओं में गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। हमारे यहां गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। गू का अर्थ है अंधकार और उनका अर्थ है प्रकाश।

अर्थात – वह गुरु ही है जो अज्ञानता रूपी अंधकार में प्रकाश रूपी दीपक जला दें। जो हमें सही मार्ग दिखाएं। यही कारण है कि देशभर में गुरु पूर्णिमा का उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

माना जाता है कि इस दिन तमाम ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास यानी महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के महान विद्वान थे।

महाभारत जैसा महाकाव्य भी इन्हीं की देन है।

सभी 18 पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय इन्हीं को दिया गया है। इसीलिए तो इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। इनको आदिगुरु भी कहा जाता है।

इसी कारण गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा की जाती है। इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) भी है।

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गुरुओं का हमारे जीवन में महत्व

Guru Purnima Ka Mahatva: इस संसार में गुरु के बिना शिष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। आदि काल से ही,अर्थात रामायण से लेकर महाभारत तक गुरुओ का स्थान ऊंचा व महत्वपूर्ण रहा है। गुरु की महत्वता को देखते हुए संत कबीर दास जी ने अपने एक दोहे में लिखा है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाए।
बलिहारी गुरु अपने गोविंद दिए मिलाए।।

अर्थात – गुरु का स्थान भगवान से भी कहीं जाता ऊपर होता है। गुरु पूर्णिमा का यह पर्व महर्षि वेदव्यास जी के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है। महर्षि वेदव्यास जी जो कि पराशर जी के पुत्र थे। इन्होने चारों वेदों को अलग-अलग खंडों में विभाजित करके उनके नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थ वेद रखे थे। वेदों का इस तरह खंडों में करने के कारण से ही ये वेदव्यास जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि

जैसा कि ऊपर भी जिक्र हुआ है, कि हमारे हिंदू धर्म में गुरुओं का दर्जा भगवान से भी बढ़कर है। गुरुओं के द्वारा ही ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है। तो आइए जानते हैं ऐसे में हमे अपने गुरु की पूजा किस तरह करनी चाहिए।

  • सबसे पहले गुरु पूर्णिमा के दिन जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र ग्रहण करें।
  • फिर अपने गुरु की प्रतिमा या चित्र को सामने रखकर पूजा अर्चना करें।
  • इस दिन हम किसी भी ऐसे इंसान की पूजा कर सकते हैं जिसे हम अपना गुरु मानते हैं। फिर चाहे
    वह हमारे गुरु हो शिक्षक, माता-पिता, भाई-बहन या दोस्त ही क्यों ना हो।
  • इस दिन हम किसी गरीब व जरूरतमंद इंसान की मदद कर सकते हैं।
  • जैसा कि आप सभी को पता है। बाहर कोरोना चल रहा है तो ऐसे में प्रयास करें कि अपने घर में रहकर ही अपने गुरु की पूजा अर्चना करें, ध्यान व सिमरन करें।

अपने गुरु के सामने जब भी जाए तो उन्हें झुककर प्रणाम करें क्योंकि

“जो झुक गया सो पा गया।

जो तन गया सो गवा गया।।”

गुरु ऐसा हो जो लोगों के नशे छुड़वाए, बुराइयां छुड़वा कर इंसानियत का पाठ पढ़ाए, किसी जरूरतमंद व गरीब की मदद करने की प्रेरणा दे। इस कलयुग में ऐसे गुरु होना गुरु का होना बहुत जरूरी है।